Saturday, 5 December 2009

यहां तो औसत से अधिक हैं कर्मी

इसके बाद भी दक्षता के मामले में पिछड़ रहा उत्तराखंड , देहरादून उत्तराखंड में राष्ट्रीय औसत से दोगुने कर्मचारी हैं। अगर बात दक्ष कार्मिकों की करें तो यहां उत्तराखंड काफी पीछे छूट जाता है। कहा जा रहा है कि राज्य के विकास में पिछडऩे और योजनाओं का सही रूप में क्रियान्वयन न हो पाने की यह भी वजह हो सकती है। सरकार के पास मौजूद आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर देश की कुल आबादी का एक प्रतिशत ही सरकारी कार्मिक हैं। बात उत्तराखंड की करें तो यहां ये अनुपात दो फीसदी है। उत्तर प्रदेश में आबादी के मुकाबले कार्मिकों की संख्या मात्र 0.5 प्रतिशत है। इस तरह उत्तराखंड कार्मिकों की संख्या के मामले में राष्ट्रीय औसत से दो गुना आगे है, जबकि उत्तर प्रदेश की तुलना में चार गुना आगे है। दूसरी तरफ तकनीकी रूप से दक्ष कार्मिकों की संख्या के मामले में उत्तराखंड काफी पीछे छूट जाता है। जानकारों का कहना है कि कुल कार्मिकों में से 15 प्रतिशत तकनीकी रूप से दक्ष होने चाहिए। उत्तराखंड में ऐसे दक्ष कार्मिकों की संख्या महज पांच फीसदी पर ही सिमट गई है। एक तरफ कार्मिकों की औसत से अधिक संख्या, दूसरी तरफ दक्षता में औसत से कम होना, सरकारी कामकाज को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। शायद यही वजह है कि उत्तराखंड में सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होने की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। खास बात यह है कि इस समय उत्तराखंड के समस्त आर्थिक संसाधन इन कार्मिकों के वेतन भत्तों पर ही खर्च हो रहे हैं। इस बारे में प्रमुख सचिव (कार्मिक) शत्रुघ्न सिंह का कहना है कि छोटे राज्यों में कार्मिकों की संख्या अधिक हो ही जाती है। छोटे और बड़े राज्यों में विभाग का ऊपरी ढांचा लगभग समान होता है। ऐसे में छोटे राज्यों में यह औसत गड़बड़ाया दिखाई देता है। दक्ष कार्मिकों की संख्या बढ़ाने के संबंध में श्री सिंह का कहना है कि इस बारे में देखना होगा। अभी ऐसे कोई प्रयास राज्य में नहीं हो रहे हैं।

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