Saturday, 5 December 2009
हर बार जुड़वा बच्चे पैदा करती है 'बरबरी'
-पहाड़ी बकरी का विकल्प बनेगी बरबरी नस्ल
-पशुपालन विभाग को मिली 1.34 करोड़ की धनराशि
गोपेश्वर (चमोली)
बकरी की एक ऐसी नस्ल है, जो हर बार जुड़वा बच्चों को ही जन्म देती है। यह बात
पढऩे में बेतुकी लग रही होगी, लेकिन है सोलह आने सच। बकरी की इस प्रजाति को 'बरबरी' कहा जाता है। पशुपालन विभाग ने बरबरी को पहाड़ी बकरी के विकल्प के रूप में चुना है। इस नस्ल को पहाड़ में चढ़ाने की कवायद सीमांत जनपद चमोली से की जा रही है। यह प्रोजेक्ट ग्वालदम में शुरू किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 1.34 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बकरी की जो नस्ल पाली जाती है उसे 'हिमालन' या 'चौगरखा' नाम से जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग व अन्य कारणों से इस प्रजाति की बकरियों की न सिर्फ औसत आयु कम हो गई है बल्कि उनका शरीर का विकास भी पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। लिहाजा, कम वजन की पहाड़ी बकरियां पशुपालकों के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में पशुपालन विभाग बरबरी प्रजाति की बकरी को पहाड़ी बकरी के विकल्प के रूप में देख रहा है। दरअसल, बरबरी प्रजाति की बकरी यूपी के ऐटा, मैनपुरी, इटावा क्षेत्र में बहुतायत में पाई जाती है। बरबरी का वजन 20 से 25 किलो तक होता है, जबकि पहाड़ी बकरी का वजन 15 से 20 किलो तक ही होता है। बरबरी की विशेषता यह है कि यह साल में दो बार बच्चे पैदा करती है और हर बार जुड़वा बच्चों को ही जन्म देती है। मैदान के गर्म इलाकों के अलावा इसे पहाड़ के ठंडे इलाकों में भी इसे आसानी से पाला जा सकता है।
इस संबंध में मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. पीएस यादव ने बताया कि बकरी प्रजनन प्रक्षेत्र ग्वालदम में 250 बरबरी बकरियां प्रजजन के लिए लाई जाएंगी। इनमें से नर बकरियां राष्ट्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मकदूम मथुरा व मादा बकरियां खुले बाजार से खरीदी जाएंगी। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पशुपालन विभाग चमोली को एक करोड़ 34 लाख रुपये प्राप्त हो चुके हैं।
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