Sunday, 20 December 2009
-पुरानी टिहरी डूबने के साथ ही डूब गई सांस्कृतिक गतिविधियां भी
-मास्टर प्लान शहर में न वह रौनक न पहले जैसा मेलजोल
नई टिहरी,---- ऐतिहासिक पुरानी टिहरी शहर डूबने के साथ ही कभी राष्ट्रीय स्तर तक इसकी पहचान के रूप में जानी जाने वाली सांस्कृतिक गतिविधियां भी खत्म हो गईं। इसके एवज में मास्टर प्लान के तहत बसाए गए नई टिहरी शहर में न तो पुरानी टिहरी जैसी रौनक है, न ही सांस्कृतिक और खेल गतिविधियां। कंक्रीट के इस नीरस शहर में मनोरंजन के लिए लोग तरस जाते हैं।
पुरानी टिहरी, जिसे गांव का शहर भी कहा जाता था, में हर तरफ चहल-पहल रहती थी। सांस्कृतिक, खेल व अन्य सामाजिक गतिविधियों से गुलजार इस शहर में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चलता था। सांस्कृतिक कार्यक्रम, विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं या मेले शहर में समय-समय पर कोई न कोई आयोजन होता रहता था। रामलीला, बसंतोत्सव, मकर संक्रांति पर लगने वाला मेला शहर की रौनक में चार चांद लगा देते थे। दीपावली या अन्य पर्वों पर सामूहिक कार्यक्रम शहर में होते थे, लेकिन बांध की झाील में पुरानी टिहरी के डूबने के साथ ही शहर की यह पहचान भी खत्म हो गई।
पुरानी टिहरी के बाशिंदों को मास्टर प्लान के तहत बने नई टिहरी शहर में बसाया गया, लेकिन इसमें वह बात कहां, जो उस शहर में थी। न रौनक, न वह मेल- जोल और न ही वे सांस्कृतिक गतिविधियां, जब भी याद आती है, नई टिहरी में बस गए बुजुर्गों की आंखें नम हो जाती हैं। हों भी क्यों नहीं, आखिर नई टिहरी में पनप रही बंद दरवाजे की संस्कृति और आधुनिक रहन-सहन का बढ़ता चलन लोगों के दिलों की दूरियां बढ़ा रहा है।
सांस्कृतिक दृष्टि से शून्य इस शहर में वर्ष 2001 में उत्तरांचल शरदोत्सव हुआ। उसके बाद एकाध बार नगरपालिका द्वारा शरदोत्सव का आयोजन तो किया गया, लेकिन इसके बाद यहां न कोई सांस्कृतिक और न ही कोई सामूहिक कार्यक्रम आयोजित हुए हैं। मास्टर प्लान में कल्चर सेंटर का प्राविधान था, लेकिन इसके लिए भी कोई पहल अब तक नहीं हुई है।
पुरानी टिहरी जैसा मेल-जोल भी यहां नहीं। वहां लोग पैदल घूमने निकलते, तो परिचितों से मुलाकात होती और फिर परिवार, समाज, राजनीति जैसे मसलों पर रायशुमारी भी होती, लेकिन नई टिहरी की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि यहां पैदल चलना भी आसान नहीं है, सीढिय़ों के इस शहर में चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते लोग हांफ जाते हैं। सामाजिक सांस्कृतिक संस्था त्रिहरी से जुड़े महिपाल नेगी कहते हैं कि नई टिहरी में सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए। सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समाज को आगे आना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी निराशा जताई कि अब लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत की जड़ों को भूलने लगे हैं।
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