Wednesday, 16 December 2009
-डैम बनने से पहाड़ी क्षेत्रों की खेती में आएगी क्रान्ति
सब-असिंचित क्षेत्रों में बनाये जाएंगे डैम
-कुमाऊं के लिए 3.64 करोड़ का
पायलट प्रोजेक्ट तैयार
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:::एक डैम, फायदे सिंचाई की समस्या खत्म होगी
-मुर्गी व बत्तख पालन करने से लोगों को स्वरोजगार मिलेगा
-नेपियर घास के उगने से चारे का संकट भी नहीं रहेगा
,हल्द्वानी: राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में खेती जल्द क्रांति लेकर आने वाली है। कृषि विभाग ने बहुद्देश्यीय डैम प्रोजेक्ट बनाने का निर्णय लिया है। इससे किसानों को सिंचाई की समस्या का हल होगा,वहीं जानवरों को चारे के संकट का हल निकल सकेगा।
उत्तराखंड में 793241 हेक्टेअर भूमि पर खेती होती है। 454487 हेक्टेअर क्षेत्रफल पर्वतीय है। इसमें राज्य की कृषि योग्य भूमि के 43.72 प्रतिशत क्षेत्रफल में ही सिंचाई की सुविधा है। मैदानी क्षेत्र में गनीमत है, यहां 87.79 प्रतिशत क्षेत्रफल में पानी पहुंच जाता है, जबकि पर्वतीय क्षेत्र की दशा बेहद खराब है। पर्वतीय क्षेत्र के 49417 हेक्टेअर कृषि भूमि में मात्र 10.87 प्रतिशत खेतों में सिंचाई की सुविधा है। बाकी के लिए किसान भगवान का भरोसा ताकते हैैं। दूसरी स्थिति में भूमि खाली पड़ी रहती है।
पर्वतीय क्षेत्र में शतप्रतिशत भूमि पर खेती कराने के मकसद से कृषि विभाग का डैम प्रोजेक्ट आने वाला है। इसमें जल स्रोतों के अलावा रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के माध्यम से जल संचय किया जायेगा। इसका उपयोग खेती में होगा। इसके अलावा डैम के कई अन्य लाभ भी होंगे। इसके ऊपर मचान बनाकर मुर्गी व बत्तख का पालन किया जायेगा। इनकी बीट पानी में गिरेगी, वहां मछली पालन होगा और बीट मछलियों का भोजन बनेगी। इसके अलावा डैम के आसपास नेपियर घास लगायी जाये और केले के पौधरोपण होगा। फिलहाल कुमाऊं में 3.64 करोड़ का पायलट प्रोजेक्ट तैयार कर लिया गया है जिसे स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार भेजा जाएगा। इसके तहत पिथौरागढ़, भिकियासैण, रानीखेत, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल, हल्द्वानी, लोहाघाट, डीडीहाट, अल्मोड़ा व बागेश्वर में डैम बनाये जाने की योजना है। केंद्र सरकार से हरी झांडी मिलने के बाद योजना शुरू कर दी जायेगी।
::गदरपुर से मिली प्रेरणा::
पर्वतीय क्षेत्र में डैम बनाने की योजना की प्रेरणा गदरपुर से मिली है। बताया जाता है कि भारत सरकार की एक टीम पिछले दिनों जल संरक्षण का जायजा लेने ऊधमसिंह नगर में पहुंची थी। जिले के गदरपुर में बहुद्देशीय डैम की परिकल्पना टीम को बेहद पसंद आयी और टीम ने प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इसको व्यापक स्वरूप देने को कहा था। इसके तहत ही पर्वतीय क्षेत्रों को अलग प्रोजेक्ट बनाया गया है।
:: क्या है नेपियर घास::
कृषि के जानकारों का कहना है कि नेपियर घास दो माह में तैयार हो जाती है। इसे पशु भी काफी पसंद करते हैैं। पर्वतीय क्षेत्र में चारे की समस्या रहती है, जो नेपियर के उगने के बाद काफी हद तक खत्म हो जायेगी।
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