Friday, 18 December 2009

-जिन्हें बिसराया, वे ही संवार सकते हैं रीढ़

- उत्तराखंड में महत्व न मिलने से हाशिये पर गए बेडु, मेलू, घिंघोरा जैसे जंगली फल - स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिकता से भी लबरेज - लोक संस्कृति में रचे-बसे ये फल बन सकते हैं आर्थिकी का जरिया , देहरादून उत्तराखंड में महत्व न मिलने से बेडू, तिमला, काफल, मेलू, घिंघोरा, अमेस, हिंसर, किनगोड़ जैसे जंगली फल हाशिये पर चले गए। स्वादिष्ट एवं सेहत की दृष्टि से महत्वपूर्ण इन फलों को बाजार से जोडऩे पर ये आर्थिकी संवारने का जरिया बन सकते हैं, मगर अभी तक इस दिशा में कोई पहल होती नहीं दीख रही। उत्तराखंड में पाए जाने वाले जंगली फल यहां की लोकसंस्कृति में गहरे तक तो रचे बसे हैं, मगर इन्हें वह महत्व आज तक नहीं मिल पाया, जिसकी दरकार है। अलग राज्य बनने के बाद जड़ीबूटी को लेकर तो खूब हल्ला मचा, मगर इन फलों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझाी गई। देखा जाए तो ये जंगली फल न सिर्फ स्वाद, बल्कि सेहत की दृष्टि से कम अहमियत नहीं रखते। बेडू, तिमला, मेलू, काफल, अमेस, दाडि़म, करौंदा, जंगली आंवला व खुबानी, हिसर, किनगोड़, तूंग समेत जंगली फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा है। विशेषज्ञों के अनुसार इन फलों की इकोलॉजिकल और इकॉनामिकल वेल्यू है। इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि फल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। बात सिर्फ इन जंगली फलों को महत्व देने की है। अमेस (सीबक थार्म) को ही लें तो चीन में इसके दो-चार नहीं पूरे 133 प्रोडक्ट तैयार किए गए हैं और वहां के फलोत्पादकों के लिए यह आय का महत्वपूर्ण स्र्रोत बन गया है। उत्तराखंड में यह फल काफी मिलता है, पर इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। काफल को छोड़ अन्य फलों का यही हाल है। काफल को भी जब लोग स्वयं तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर ही हैं। जबकि, इन फलों को बाजार से जोड़ा जाए तो ये सूबे की आथर््िाकी का महत्वपूर्ण जरिया बन सकते हैं। जंगली फलों में पोषक तत्व काफल अन्य फलों की अपेक्षा 10 गुना ज्यादा विटामिन सी अमेस विटामिन सी खुबानी विटामिन सी, एंटी ऑक्सीडेंट आंवला विटामिन सी, एंटी ऑक्सीडेंट सेब विटामिन ए, एंटी ऑक्सीडेंट तिमला, बेडू विटामिन्स से भरपूर ''उत्तराखंड में मिलने वाले जंगली फल पौष्टिकता की खान हैं, लेकिन इन्हें अब तक महत्व नहीं मिल पाया। प्रयास यह हो कि इन्हें आगे बढ़ाया जाए। जंगली फलों की क्वालिटी डेेवलप कर इनकी खेती की जाए। इसके लिए मिशन मोड में वृहद कार्ययोजना बनाकर कार्य करने की जरूरत है। इससे जहां पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा, वहीं आर्थिकी भी संवरेगी'' - पद्मश्री डा.अनिल जोशी, संस्थापक शोध संस्था हेस्को। ''जंगली फल उपेक्षित जरूर रहे हैं, लेकिन अब इन्हें पर्याप्त महत्व दिया जाएगा। प्रथम चरण में मेलू (मेहल), तिमला, आंवला, जामुन, करौंदा, बेल समेत एक दर्जन जंगली फलों की पौध तैयार कराने का निर्णय लिया गया है। एनजीओ के जरिए यह नर्सरियों में तैयार होगी। आज नहीं तो कल इन फलों को क्रॉप का दर्जा मिलना है। फिर ये तो आर्थिकी के लिए अहम हैं।''- डा.बीपी नौटियाल, निदेशक, उद्यान विभाग उत्तराखंड।

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