Tuesday, 8 December 2009
पहाड़ी मड़ुआ का दीवाना हुआ यूरोप
यहां गरीबों का निवाला वहां अमीरों का स्नेक्स
अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नजर उत्तराखण्ड की पैदावार पर
अब यूरोप को भी पहाड़ी मड़ुआ का स्वाद रास आ गया है। यही कारण है कि नमकीन बनाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की निगाह अब उत्तराखण्ड में मडुआ की पैदावार पर है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गरीबों का मुख्य निवाला मडुआ ही रहा है। मडु़आ की रोटी भले ही काले रंग रंग की दिखती हो पर इसके स्वाद व पोषक तत्व के बूते इसने यूरोप के बाजार में भी जगह बना ली है। मगर हैरत की बात यह है कि जहां की यह पैदावार हैं उस क्षेत्र में आज तक व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सका।
बताते हैं कि एक मल्टीनेशनल कम्पनी ने महराष्ट्र व गुजरात में पैदा होने वाले मडुआ (वहां का स्थानीय नाम-नाचनी) के चिप्स, नमकीन, मठरी आदि का निमार्ण कर जब विदेशी बाजार में उतारा तो वहां के लोग इसके स्वाद के दीवाने हो गये। यही कारण है कि अब उत्तराखण्ड में मडुआ की पैदावार पर विदेशी कम्पनियों की नजर गई है। नमकीन बनाने वाली मुम्बई की मल्टीनेशनल कम्पनी सावंत स्नेक्स के प्रतिनिधि राकेश बंदोपाध्याय इन दिनों नैनीताल जिले में मडुआ का प्रबंधन करने आये हैं। वे गांवों में पहुंच कर ग्रामीणों को पैदावार बढ़ाने के प्रति प्रेरित करने के अलावा उनके पास उपलब्ध मडुआ खरीद भी रहे हैं।
समाज कल्याण विभाग में अपने एक जानने वाले के माध्यम से गांवों तक पहुंच बना रहे श्री बंदोपाध्याय ने बताया कि मडुआ के स्नेक्स की मांग विदेशों में काफी बढ़ी है। इसकी पैदावार बढ़ाकर किसानों के सामने अब अच्छी कमाई का रास्ता खुल गया है। उन्होंने बताया कि मडुआ स्वास्थ्य के दृष्टि से भी उत्तम है इसी कारण विदेशों में चाव से खाया जा रहा है। इसमें 71 फीसदी कार्बोहाइड्रेड, 12 फीसदी प्रोटीन तथा 5 फीसदी वसा पाया जाता है। साथ ही फाइबर की मात्रा अधिक होने के कारण मडुआ से कैलौरी अधिक मिलती है।
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