Saturday, 5 December 2009
-सफर में खिल रहीं जीवन की कलियां
-सफर में खिल रहीं जीवन की कलियां - जिसे विपदा का नाम दिए, उसी ने घर-आंगन महकाए
- मुल्क के लिए 'सुरक्षा कवच' भी तैयार कर रही 108 सेवा
'आम' से 'खास' हुए 108 में जन्म लेने वाले नए मेहमान
देहरादून: भले ही उसे विपदा में याद किया जाता हो, लेकिन सबब वह खुशहाली का है। असुविधा, गरीबी और पहाड़ की कठिन जीवनशैली के बीच वह अब तक एक हजार से अधिक घर-आंगन महका चुका है। उसकी घरघराहट के बीच ही गूंजने लगती हैं किलकारियां और कुछ पलों के लिए सही, सारे कष्ट काफूर हो जाते हैं। बड़ी बात तो यह कि वह मुल्क के लिए 'सुरक्षा कवच' भी तैयार कर रहा है। यही नहीं, चलते-चलते जन्म लेने वाले नये मेहमान अब 'खास' भी बनने जा रहे हैं। उसकी इन्हीं खूबियों ने उसे हर किसी का चहेता बना दिया है।
स्वास्थ्य सुविधा का अभाव झोलते उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए वरदान बनी 'पं. दीनदयाल उपाध्याय देवभूमि 108 आपातकालीन सेवा' का यह सफर अनवरत जारी है। 18 माह के शैशवकाल में ही राज्यभर में करीब सवा लाख लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने और ढाई हजार लोगों के जीवन को बचाने वाली यह सेवा चालीस हजार से अधिक माताओं को सुरक्षित प्रसव के लिए अस्पताल पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभा चुकी है।
बात आपदा पीडि़तों की हो या फिर प्रसव वेदना झोल रही धात्री की, उन्हें तुरंत राहत पहुंचाने के लिए सूबेभर में दौडऩे वाली इस सेवा की सभी सुविधाओं से लैस 90 एंबुलेंस हर वक्त तत्पर रहती हैं। इधर फोन की घंटी घनघनाई और उधर एंबुलेंस फर्राटे भरने लगती हैं। फिर चाहे राह कितनी भी पथरीली क्यों न हो।
सूबे में 108 सेवा की इन्हीं एंबुलेंस में अब तक चलते-चलते 1015 बच्चे जन्म ले चुके हैं। उत्तरकाशी, पौड़ी, अल्मोड़ा, देहरादून जनपदों में तो सौ-सौ बच्चों ने इन्हीं एंबुलेंस में आंखें खोली। इस सेवा के अस्तित्व में आने के बाद सूबे में संस्थागत प्रसव बढऩे से जन्म-मृत्यु दर में भी कमी आई है।
बड़ी बात यह कि सैनिक बहुल उत्तराखंड में यह सेवा देश के लिए 'सुरक्षा दीवार' भी तैयार कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक पहाड़ में पैदा होने वाला हर पांचवां बच्चा देश सेवा के लिए सेना में है। ऐसे में 108 सेवा भविष्य के स्वस्थ सैनिकों की खेप भी तैयार कर रही है। इस सबको देखते हुए यह सेवा आमजन के साथ ही सरकार की भी चहेती बन गई है।
सरकार ने भी 108 सेवा की एंबुलेंस में जन्मे लेने वाले बच्चों पर इनायत बख्शी है। घोषणा की गई है कि इन बच्चों की शिक्षा के साथ ही उन्हें रोजगार देने के मामले में प्राथमिकता दी जाएगी। यानी ये बच्चे 'आम' से 'खास' होने वाले हैं, जिसका उन्हें भान भी नहीं है। अच्छा हो कि सरकार अपनी इस घोषणा को भूले नहीं और भविष्य में इसे अमलीजामा पहनाए।
108 सेवा की एंबुलेंस में जन्मे बच्चे
जिला संख्या
उत्तरकाशी 103
पौड़ी 100
देहरादून 98
टिहरी 87
हरिद्वार 84
चमोली 49
रुद्रप्रयाग 34
अल्मोड़ा 100
ऊधमसिंहनगर 90
नैनीताल 73
पिथौरागढ़ 56
चंपावत 51
बागेश्वर 33
(स्रोत: 108 सेवा। सूची में वे 57 बच्चे शामिल नहीं हैं, जिनका डाटा पूर्व में फीड नहीं हो पाया था)
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