Saturday, 16 April 2011
Golden Forest, Government of the land now Significant case to the Supreme Court, High Court reversed the decision
गोल्डन फारेस्ट की भूमि अब सरकार की
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, पलटा हाईकोर्ट का निर्णय
हजारों एकड़ बेशकीमती जमीन पर थी भ्रष्ट अफसरों व भू-माफिया की नजर राष्ट्रीय सहारा ने उठाया था जमीन खुर्द- बुर्द करने का मामला
देहरादून - सुप्रीम कोर्ट ने गोल्डन फारेस्ट जमीन के मामले में राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है। उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2005 में दिए गए एक फैसले को खारिज कर दिया है। इस फैसले में हाई कोर्ट ने बेशकीमती जमीन पर गोल्डन फारेस्ट, सवरेदय रिट्रीट व अन्य कंपनियों का मालिकाना हक दे दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस जमीन पर राज्य सरकार का हक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से इस केस की पैरवी कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता रचना श्रीवास्तव ने इस फैसले की पुष्टि की है। टेलीफोन पर उन्होंने बताया कि इस फैसले से उत्तराखंड राज्य को बहुत फायदा होगा। इस फैसले से भू-माफिया व भ्रष्ट अफसरों को करारा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को उत्तराखंड सरकार बनाम गोल्डन फारेस्ट, सवरेदय रिट्रीट व अन्य कंपनियों के मामले में फैसला सुनाया गया। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व अशोक गांगुली की बेंच ने इस फैसले में हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2005 में गोल्डन फारेस्ट और सवरेदय रिट्रीट के पक्ष में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। केस की पैरवी कर रही अधिवक्ता रचना ने बताया कि पूरे मामले को मुख्य राजस्व आयुक्त को रिमांड कर दिया गया है, ताकि कई स्थानों की जमीन पर कब्जे लेने के लिए कार्रवाई की जा सके। इस फैसले से भू- माफिया की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। भू-माफिया ने शीशमबाड़ा स्थित इस बेशकीमती जमीन को खुर्द-बुर्द करने के लिए बड़े स्तर से प्रयास किए थे, लेकिन राष्ट्रीय सहारा ने समय रहते इस मामले का भांडा फोड़ दिया था। (शेष पेज 15)
गोल्डन फारेस्ट..
भू-माफिया ने 2006 में तत्कालीन उपजिलाधिकारी राशिद अली से फर्जी तरीके से इस जमीन का परवाना जारी कराया था और एक बार फिर कोर्ट द्वारा फैसला सुरक्षित रखने के बाद भी कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से इसी फर्जी परवाने के आधार पर परवाना अमल दरामद करने का कुत्सित प्रयास किया था। खबर प्रकाशित होने के बाद इसी मकसद से वहां तैनात किए गए तहसीलदार व एसडीएम ने भी परवाना चढ़ाने में असमर्थता जताने से यह बेशकीमती जमीन भू- माफिया के हाथ में जाने से बच गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिसम्बर 2010 में ही फैसला सुरक्षित कर लिया था। सरकार बनाम सवरेदय रिट्रीट के बीच हाईकोर्ट में वाद संख्या 34/96-97 चला था। दिसम्बर 2005 में राज्य सरकार यह मुकदमा हार ग थी। इससे बाद राज्य सरकार ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी इस जमीन का परवाने को चढ़ाने की कोशिश हुई। तत्कालीन एसडीएम विकासनगर झरना कमठान व तहसीलदार शालिनी नेगी हटा दिया गया था। रजिस्ट्रार कानूनगो द्वारा मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण परवाना चढ़ाने में असमर्थता जताने पर इन दोनों अधिकारियों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। जबकि इस मामले में डीजीसी ने कानूनी अड़चन न होने की बात कही थी।मामला खुलने के बाद सचिव राजस्व राकेश कुमार ने जिलाधिकारी से इस मामले की फाइल भी तलब की थी और जांच चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकार को बहुत बड़ी राहत मिली है। देहरादून में ही सरकारी उपयोग के लिए जमीनों की बहुत अधिक आवश्यकता होने के कारण जिला प्रशासन सरकारी जमीनों का चिह्नीकरण कर रहा है।
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