Tuesday, 5 April 2011
..जहां छतरी में विदा होती है दुल्हन
युवाओं के पलायन व कहारों की कमी के कारण निकाला विकल्प
चम्बा। गढ़वाल में परंपरागत रूप से जब दुल्हन की विदाई होती है तो उसे पालकी में बिठाकर विदा किया जाता है। पालकी को कहार उठाकर ले जाते हैं, लेकिन चंबा का एक गांव ऐसा है जहां दुल्हन को सजी-धजी छतरी के नीचे विदा होती है। धारकोट गांव में यह परंपरा सत्तर के दशक में शुरू हुई। इस परंपरा की शुरूआत के लिए भी पलायन को ही जिम्मेदार है। कारण, अब गांवों में डोली ले जाने वाले कहार मिलते ही नहीं हैं। विकासखंड चम्बा के धारकोट गांव कुछ ऐसी ही अलग पहचान के लिए जाना जाता है। यहां शादी में जब दूल्हा-दुल्हन अपने ससुराल जाते हैं तो वह डोली या पालकी में नहीं, बल्कि सजी-धजी छतरी में विदाई लेते हैं।
ग्रामीणों के अनुसार सन 70 के दशक में जब यातायात की सुविधाएं नहीं होती थी और गांव से बारात मीलों पैदल चलकर दूसरे गांव जाती थी तो डोली उठाने वाले कहारों की संख्या कम थी और कहारों को डोली ले जाने के एवज में रुपया नहीं अनाज दिया जाता था। इस कारण अधिकतर लोगों ने इस काम को छोड़ दिया। कारण गांवों से युवाओं का पलायन होना भी है। इस समस्या से निजात पाने के लिए गांव के बुजुगरे ने इसका विकल्प छतरी को बनाया। इसमें न तो किसी कहार की आवश्यकता होती है और न ही किसी शारीरिक परिश्रम की। पहली बार महिलाओं व युवतियों ने इसका विरोध भी किया था, लेकिन फिर धीरे-धीरे समझने लगे और इस तरह की परम्परा कायम होने लगी। धारकोट गांव की कविता बताती है कि वह अपनी शादी में छतरी ओढ़कर आई थी। हालांकि उस समय उसे काफी बुरा लगा लेकिन अब यह परम्परा बन चुकी है। गांव के एसएस तोपवाल का कहना है कि उन्हें खुशी भी होती है कि इस तरह की परम्परा से गांव को एक अलग पहचान मिली है। गांव के लोगों का कहना है कि कई बार दूसरे गांववालों ने भी बिना डोली के बारात लाने पर लड़की को विदा करने से मना किया, लेकिन अब सभी इस परम्परा का निर्वहन करने लगे हैं। गांव की लड़कियां भी खुश है कि इस तरह की परम्परा केवल उनके गांव में ही है।
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