Tuesday, 17 November 2009
-'बैल' नहीं अब 'झब्बू' खींचेगा हल
-याक और गाय की क्रास ब्रीड है झब्बू
-बैल से चार गुना अधिक होती है ताकत
-पशुपालन विभाग ने तैयार की योजना
-स्थानीय पशुपालकों का रहेगा सहयोग
गोपेश्वर
आने वाले दिनों में पहाड़ के सीढ़ीनुमा खेतों में आपको बैल की बजाय कोई अजीबोगरीब जानवर हल खींचता दिखाई दे तो हैरत में मत पडि़एगा। 'झब्बू' नाम का यह जानवर बैल से चार गुना अधिक ताकतवर तो होता ही है, इसका स्टेमिना भी गजब का होता है। दरअसल, याक और गाय के क्रास ब्रीडिंग से पैदा होने वाली संतति को झब्बू कहा जाता है। पशुपालन विभाग ने स्थानीय काश्तकारों की मदद से झब्बू की वंशवृद्धि की योजना तैयार की है। झब्बू की उपयोगिता को पर्यटन से जोड़े जाने की योजना है।
इस खबर को आगे बढ़ाने से पहले 'याक' का जिक्र करना जरूरी होगा। याक एक दुर्लभ गोवंशीय पशु है, जो बर्फीले इलाकों में पाया जाता है। ग्लोबल वार्मिग और लोकसंस्कृति में आए बदलाव के कारण यह जानवर अब दुर्लभ की श्रेणी में पहुंच गया है। एक समय था जब याक का उपयोग व्यापार और दूध उत्पादन में किया जाता था। सीमांत जनपद चमोली के नीती-माणा क्षेत्र से भारत-चीन व्यापार का सारा सामान याक के कंधों पर ही ढोया जाता था। इस सीमा पर व्यापार बंद होने, ग्लोबल वार्मिग के प्रभाव और लोक संस्कृति में आये बदलाव की वजह से न सिर्फ याक की तादात कम होती चली गई, बल्कि पशुपालक भी उससे किनारा करने लगे। वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि नीती-माणा क्षेत्र जहां हजारों याक हुआ करते थे, वहां अब मात्र छह याक ही जीवित रह गए हैं, वे भी पशुपालन विभाग के लाता स्थित याक प्रजनन केन्द्र में।
याक की विलुप्ति की चिंता के मद्देनजर पशुपालन विभाग ने एक नई योजना तैयार की है। इसके तहत याक और गाय का क्रास ब्रीडिंग करवाकर 'झब्बू' पैदा करवाए जाएंगे। दरअसल, झब्बू में प्रजनन क्षमता नहीं होती, लेकिन वह काफी शक्तिशाली होता है। उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चार बैलों का काम सिर्फ एक झब्बू कर लेता है। इसके अलावा ऊंट की तर्ज पर झब्बू की सवारी भी की जा सकती है। खास बात यह कि झब्बू को याक की तरह बर्फीले या ऊंचाई वाले इलाके की जरूरत नहीं होती। वह निचले इलाकों में भी जीवित रह जाता है।
''पशुपालन विभाग झब्बू को याक के विकल्प के तौर पर देख रहा है। कुछ स्थानीय काश्तकारों के सहयोग से याक और गाय की संतति झब्बू की संख्या बढ़ाई जाएगी। इस योजना को सफल बनाने के लिए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान मुक्तेश्वर नैनीताल से तीन याक सांड मंगवाए हैं। झब्बू का उपयोग बदरीनाथ धाम से माणा तक पर्यटकों की सवारी के रूप में भी किया जाएगा''
- डा. पीएस यादव
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, चमोली
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