Thursday, 12 November 2009
-जुड़ेंगी उत्तराखंड के बिखरे इतिहास की कडि़यां
-एएसआई करेगा पुरावशेषों का ब्यौरा संजोते हुए पुस्तिका प्रकाशित
-जुड़ेंगी प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक इतिहास की कडि़यां
देहरादून- प्रदेश में पुरातात्विक अवशेषों के रूप में बिखरे उत्तराखंड के इतिहास की कडि़यां जल्द ही जुड़ जाएंगी। बिखरे इतिहास को एक सूत्र में पिरोने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई)ने पहल की है। एएसआई के देहरादून मंडल ने प्रदेश में अब तक हुए तमाम उत्खननों में पुरावशेषों के ब्योरे को संजोते हुए एक पुस्तिका के प्रकाशन करने की योजना बनाई है। इस पुस्तिका में पुरावशेषों के माध्यम से उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल से ब्रिटिश काल तक का इतिहास दर्ज होगा। यह पुस्तिका विश्व दाय सप्ताह (19 से 26 नवंबर वर्ल्ड हैरिटेज वीक)में लोकार्पित की जाएगी।
देश के इतिहास में अक्सर उत्तराखंड का उल्लेख नहीं के बराबर ही होता है, जबकि एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. देवकी नंदन डिमरी का कहना है कि अल्मोड़ा में सुयाल नदी के दायें तट पर लखु उड्यार में प्रागैतिहासिक गुफा चित्र मिलते हैं। ये मध्य हिमालय में मिले पहले गुफा चित्र हैं। गढ़वाल मंडल की अलकनंदा घाटी के ग्वरख्या उड्यार और पिंडरघाटी के किमनी गांव में मिले गुफाचित्र भी संकेत देते हैं कि यहां प्रागैतिहासिक मानव रहता था। चंपावत के देवीधुरा में महापाषाण कालीन संस्कृति के सबूतों के तौर पर विशाल पत्थरों पर ओखलियां(कप मार्क्स) मिली हैं। द्वारहाट के शैलचित्र और चंद्रेश्वर मंदिर के पास, अल्मोड़ा के नौगांव, मुनिया की ढाई, जोयो गांव, गोपेश्वर के समीप पश्चिमी नयार घाटी में भी ऐसी ही ओखलियां मिली हैं। बहादराबाद में 1953 में उत्तर-प्रस्तरयुगीन या ताम्रयुग के अवशेष मिले हैं। जिनमें कई हड़प्पा से मिलते जुलते हैं। कालसी के पास भी आरंभिक पाषाणयुगीन अवशेष मिले हैं। चमोली गढ़वाल के मलारी गांव में और पश्चिमी रामगंगा घाटी महापाषाणकालीन शवाधान (समाधियां) मिले हैं। डॉ. डिमरी का कहना है कि सातवी सदी ईस्वी पूर्व और चौथी सदी ईस्वी के मध्य हिमालय के आद्य इतिहास का प्रमाण मुख्यत: प्राचीन साहित्य है लेकिन उत्तरकाशी के पुरोला और देहरादून के जगतग्राम में कुणिंद शासक राजा शील वर्मन के अश्वमेध यज्ञ केप्रमाण मिले हैं। पूरे गढ़वाल में जगह-जगह बड़ी संख्या में कुणिंद वंश के सिक्के मिलते हैं। इतना ही नहीं काशीपुर नैनीताल से कुषाण शासकों कनिष्क और वासुदेव की मुनि की रेती (ऋषिकेश) से हविष्क की स्वर्ण मुद्राएं मिली हैं। डॉ. डिमरी के मुताबिक कुषाणों के बाद यौधेय, परवर्ती कुणिंद, छागलेश राजवंश, सिंहपुर का यदुवंश, नागवंश और फिर हर्ष के बाद कत्यूरी राजवंश के प्रमाण भी उत्तराखंड में मिलते रहे हैं। गढ़वाल के पंवार व कुमाऊं के चंद वंश ने तो 18वीं सदी तक राज किया। डॉ. डिमरी का कहना है कि 2003 में स्थापित एएसआई देहरादून मंडल द्वारा इतिहास को श्रृंखलाबद्ध करने का यह पहला प्रयास है। पुस्तिका से इतिहास के विद्यार्थियों को उत्तराखंड के क्रमिक वैज्ञानिक इतिहास का तो पता चलेगा ही। इतिहास के शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तिका संदर्भ पुस्तिका के रूप में लाभप्रद होगी।
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जानकारी सुखद है।
ReplyDeleteऋषिकेश के बारे में ज्यादा जानिए मेरे ब्लाग पर
गंगा के करीब http://sunitakhatri.blogspot.com