Friday, 20 November 2009

उत्तराखंड में बुनियादी शिक्षा बीमार

उत्तराखंड में बुनियादी शिक्षा बीमार है। ऐसा नहीं है कि विद्यालय नहीं हैं। विद्यालय हैं, लेकिन सुदूरवर्ती स्कूलों में शिक्षा देने वाले अध्यापकों का अभाव है। यूं आंकड़े देखे जाएं तो प्राइमरी शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापकों की कहीं कोई कमी नहीं है। सरकार ने इतने शिक्षक नियुक्त कर दिये हैं कि 27 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का अनुपात पहुंच गया है, लेकिन विडंबना तो देखिये कि 1119 स्कूलों में मात्र एक ही शिक्षक है और 210 स्कूल तो मात्र शिक्षा मित्रों के भरोसे चल रहे हैं। सरकार चाहती है कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर निजी और पब्लिक स्कूलों के समकक्ष हो जाए। अगर हालात यही रहे तो शायद ही ऐसा संभव हो पाए। वर्तमान समय प्राइमरी स्कूलों में सरकारी शिक्षक का वेतन इतना हो गया है कि शायद ही निजी या पब्लिक स्कूलों के शिक्षकों का होता हो, लेकिन परिणाम के नाम पर स्थिति शून्य है। बीमारी साफ है, लेकिन इलाज करने वाला कोई नहीं है। न तीमारदार और न ही डाक्टर। बात-बात पर अपने अधिकारों की मांग करने वाला शिक्षक वर्ग ग्र्राम्य अंचल के स्कूलों में जाना नहीं चाहता, खासकर दूरस्थ अंचलों में स्थित स्कूलों में तो कतई नहीं। जब शिक्षक जाएंगे ही नहीं, तो वहां पढ़ायेगा कौन। नियुक्ति भले ही दूरस्थ स्कूलों के लिए हो, नियुक्त होने के बाद शिक्षक येन-केन प्रकारेण अपना स्थानांतरण शहरी या निकट के स्कूलों में कराने का प्रयास करते हैं। गांवों के स्कूलों में वे ही शिक्षक रह जाते हैं, जिनके पास महकमे के आला अफसरों के पास पहुंच के साधन नहीं होते। प्राथमिक शिक्षकों को यह बात अच्छी तरह समझा लेनी चाहिए कि उनके इन प्रयासों के चलते ही सरकारी शिक्षा की बुनियाद कमजोर हो रही है। इसके लिए उन्हें दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। उन्हें अपने दायित्व का निर्वहन ईमानदारी के साथ करना चाहिए। जब वे अपने वेतन भत्तों के लिए बुलंद आवाज उठाते हैं तो अपने जेहन में दायित्वबोध की बात भी रखें। राज्य सरकार को भी इस मामले में सजगता का परिचय देना चाहिए। सुस्पष्ट नीति निर्धारित कर शिक्षकों के लिए सुदूरवर्ती अंचलों में सेवा अनिवार्य की जानी चाहिए। इससे बचने का प्रयास करने वाले शिक्षकों के विरुद्ध समुचित कार्यवाही होनी चाहिए। ऐसा नहीं किया गया तो बीमार हो रही बुनियादी शिक्षा लाइलाज हो जाएगी और विद्यार्थी सरकारी स्कूलों से नाता तोडऩे लगेंगे।

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