रविवार की सुबह बेंगलुरू में हुआ निधन
देहरादून -पहाड़ों में घूम- घूमकर क्रांति की अलख जगाने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल का रविवार की सुबह लंबी बीमारी के बाद बेंगलुरू के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 78 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि उनके पार्थिव शरीर को देहरादून लाया जा रहा है। सोमवार को हरिद्वार में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। देहरादून के नेहरू कालोनी स्थित उनके निवास पर दिनभर लोगों का तांता लगा रहा। उनके दोनों बेटे व बेटी सहित पूरा परिवार उनके साथ बेंगलुरू में ही था। कला और साहित्य जगत से जुड़े लोगों ने ‘पहाड़ की दहाड़’ कहे जाने वाले मार्शल के निधन पर गहरा दुख जताया। हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर सितारों सा चमकने वाले प्रख्यात साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल नहीं रहे। कभी अपने क्रांतिकारी तेवरों से टिहरी रियासत की चूलें हिलाने वाले नौटियाल काफी समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार, प्रजामंडली छात्र नेता, विधायक और आंदोलनकारी यह महज कुछ चंद अल्फाज नहीं उनका व्यक्तित्व बयां करने के लिए। बल्कि अपने आप में एक समय का पूरा इतिहास है। 29 सितम्बर 1933 को श्री नारायण दत्त और श्रीमती रत्ना के घर टिहरी जिले के मालीदेवल गांव (अब टिहरी झील में डूब चुका) में जन्में विद्यासागर नौटियाल टिहरी के सामंती दौर में 18 अगस्त 1947 को गिरफ्तार हुए। कम उम्र में ही बनारस हिन्दू विविद्यालय के छात्रसंघ तथा छात्र संसद के पदाधिकारी चुने गए। 1958 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद वह पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए और 1980 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक चुने गए। ‘
देहरादून -पहाड़ों में घूम- घूमकर क्रांति की अलख जगाने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल का रविवार की सुबह लंबी बीमारी के बाद बेंगलुरू के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 78 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है।
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि उनके पार्थिव शरीर को देहरादून लाया जा रहा है। सोमवार को हरिद्वार में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। देहरादून के नेहरू कालोनी स्थित उनके निवास पर दिनभर लोगों का तांता लगा रहा। उनके दोनों बेटे व बेटी सहित पूरा परिवार उनके साथ बेंगलुरू में ही था। कला और साहित्य जगत से जुड़े लोगों ने ‘पहाड़ की दहाड़’ कहे जाने वाले मार्शल के निधन पर गहरा दुख जताया। हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर सितारों सा चमकने वाले प्रख्यात साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल नहीं रहे। कभी अपने क्रांतिकारी तेवरों से टिहरी रियासत की चूलें हिलाने वाले नौटियाल काफी समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार, प्रजामंडली छात्र नेता, विधायक और आंदोलनकारी यह महज कुछ चंद अल्फाज नहीं उनका व्यक्तित्व बयां करने के लिए। बल्कि अपने आप में एक समय का पूरा इतिहास है। 29 सितम्बर 1933 को श्री नारायण दत्त और श्रीमती रत्ना के घर टिहरी जिले के मालीदेवल गांव (अब टिहरी झील में डूब चुका) में जन्में विद्यासागर नौटियाल टिहरी के सामंती दौर में 18 अगस्त 1947 को गिरफ्तार हुए। कम उम्र में ही बनारस हिन्दू विविद्यालय के छात्रसंघ तथा छात्र संसद के पदाधिकारी चुने गए। 1958 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद वह पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए और 1980 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक चुने गए। ‘
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