शहीद भूपेन्द्र सिंह मेहरा को वीर चन्द्र्र सिंह गढ़वाली पुरस्कार, उदघाटन संध्या पर डॉ.चन्द्रशेखर नौटियाल को पर्वत गौर व सम्मान से अलंकृत भी किया गया।
लखनऊ- पर्वतीय महापरिषद की ओर से 14-16 जनवरी को आयोजित उत्तरायणी मेले के तीनों दिन खासी भीड रही। बच्चों ने चित्रकारी और नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन प्रतियोगिताओं में किया तो मट की फोड ने की प्रतिस्पर्धा आकर्षण का केन्द्र रही। महानगर रामलीला मैदान में आयोजित इस तृतीय वार्षिक अनुष्ठान में रविवार को वीर शहीद भूपेन्द्र सिंह मेहरा को वीर चन्द्र्र सिंह गढवाली पुरस्कार से अलंकृत किया गया। यह पुरस्कार उनके पिता पूर्वविंग कमाण्डर धाम सिंह और मां गीता ने प्राप्त किया। इस अवसर पर पर्वतीय ‘पर्वतीयमहापरिषद एलकेओ. ओआर जी’ नाम से वेब साइट भी लांच की गई । सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत ‘जै बोला जै भगवती नंदा नंदा ऊंचा कैलाशा की जै’ भजन पर नंदा देवी की डोली संग नाचते गाते कलाकारों ने आंरभ में नंदा देवी राज जात यात्रा का मनोरम दृश्य उपस्थित किया। ‘उत्तराखण्ड त्वै नमामी’ समूह गीत के बाद दीपावली के अवसर पर कि या जाने वाला जौनसारी नृत्य महापरिषद के कलाकारों ने ‘ले भूजी जलाले चूड’ गीत पर किया। झांसी के शाकुंतलम लोक कला संस्थान के कलाकारों ने जे.के .शर्मा के निर्देशन में बुन्देली राई सेरा नृत्य ‘गोरी घुंघटा न घाल’ गीत पर किया। धोती कर्ता, कली का घाघरा संग चोली, झमेल, चूरा, गेंद गजरा, छ ह ल की कर धोनी पह ने क लाकारों ने जोशीला नृत्य किया। देवेन्द्र डोलिया ने ‘म्यरो कुमाऊं
गढवाला भल’ और दर्शन सिंह परिहार ने ‘अधिला कैक मला बोजी’ गीत सुनाकर प्रशंसा हासिल की। अरुणा उपाध्याय ने ‘फूल फूलो बुरु शी डाना’ गाने में विर ही नायिका का वर्णन किया। मोह न पाण्डे य ने ‘पहाड की चेली’ और हीरा सिंह विष्ट ने ‘हरि या साड़ी वाई ’ गीत गाया। सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि ‘हिन्दुस्तान’ के कार्यकारी संपादक नवीन जोशी ने कहा कि कोई भी समाज तभी पल्लवित होता है जब वह जड से जुड है । उत्तरायणी मेले का वह दौर उत्रैणी या खिचड़ियां घुघुतिया का उत्तराखण्ड में खासा महत्व है। कुमाऊं में यह लोकोक्ति बड़ी प्रचलित है कि ‘गंग नाड बागिसर और धाप्त देखण जागिसर’ अर्थात गंगा स्नान का लुत्फ लेना है तो सरयू और गोमती के संगम बागेश्वर जाइए। मैंने 1956 में बागेश्वर मेले की यात्रा की थी। वहां के लोगों ने बताया कि पहले वहां एक महीने तक का मेला लगता था। लोग बागेश्वर में जगह जगह आग जलाक र उसके चारों ओर रात भर झोड़ा खेलते थे। यह मेला, वहां का मुख्य बाजार हुआ करता था। पूरन चन्द पाण्डेय, महानगर रामलीला समिति के अध्यक्ष
उत्तरायणी मेले में उत्तराखण्ड और स्थानीय लोगों ने शिरकत की। इसे सफल बनाने में दिलीप सिंह बाफिला, मोहन सिंह बिष्ट, दीवान सिंह अधिकारी, राम सिंह खोलिया, के .एन.चंदोला, ललित मोहन जोशी, रमेश चन्द्र पाण्डेय, गणेश चन्द्र जोशी, एन.के .पाठक का सहयोग उल्लेखनीय रहा। पर्वतीय महापरिषद वेबसाइट के माध्यम से देश-विदेश में बसे उत्तराखण्ड के लोगों को एक मंच पर लाने का प्रयास करेगी। लुप्त होती कलाओं के संरक्षण का प्रयास भी कि या जाएगा। टी.एस.मनराल , अध्यक्ष,पर्वतीय महापरिषद
लखनऊ- पर्वतीय महापरिषद की ओर से 14-16 जनवरी को आयोजित उत्तरायणी मेले के तीनों दिन खासी भीड रही। बच्चों ने चित्रकारी और नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन प्रतियोगिताओं में किया तो मट की फोड ने की प्रतिस्पर्धा आकर्षण का केन्द्र रही। महानगर रामलीला मैदान में आयोजित इस तृतीय वार्षिक अनुष्ठान में रविवार को वीर शहीद भूपेन्द्र सिंह मेहरा को वीर चन्द्र्र सिंह गढवाली पुरस्कार से अलंकृत किया गया। यह पुरस्कार उनके पिता पूर्वविंग कमाण्डर धाम सिंह और मां गीता ने प्राप्त किया। इस अवसर पर पर्वतीय ‘पर्वतीयमहापरिषद एलकेओ. ओआर जी’ नाम से वेब साइट भी लांच की गई । सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत ‘जै बोला जै भगवती नंदा नंदा ऊंचा कैलाशा की जै’ भजन पर नंदा देवी की डोली संग नाचते गाते कलाकारों ने आंरभ में नंदा देवी राज जात यात्रा का मनोरम दृश्य उपस्थित किया। ‘उत्तराखण्ड त्वै नमामी’ समूह गीत के बाद दीपावली के अवसर पर कि या जाने वाला जौनसारी नृत्य महापरिषद के कलाकारों ने ‘ले भूजी जलाले चूड’ गीत पर किया। झांसी के शाकुंतलम लोक कला संस्थान के कलाकारों ने जे.के .शर्मा के निर्देशन में बुन्देली राई सेरा नृत्य ‘गोरी घुंघटा न घाल’ गीत पर किया। धोती कर्ता, कली का घाघरा संग चोली, झमेल, चूरा, गेंद गजरा, छ ह ल की कर धोनी पह ने क लाकारों ने जोशीला नृत्य किया। देवेन्द्र डोलिया ने ‘म्यरो कुमाऊं
गढवाला भल’ और दर्शन सिंह परिहार ने ‘अधिला कैक मला बोजी’ गीत सुनाकर प्रशंसा हासिल की। अरुणा उपाध्याय ने ‘फूल फूलो बुरु शी डाना’ गाने में विर ही नायिका का वर्णन किया। मोह न पाण्डे य ने ‘पहाड की चेली’ और हीरा सिंह विष्ट ने ‘हरि या साड़ी वाई ’ गीत गाया। सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि ‘हिन्दुस्तान’ के कार्यकारी संपादक नवीन जोशी ने कहा कि कोई भी समाज तभी पल्लवित होता है जब वह जड से जुड है । उत्तरायणी मेले का वह दौर उत्रैणी या खिचड़ियां घुघुतिया का उत्तराखण्ड में खासा महत्व है। कुमाऊं में यह लोकोक्ति बड़ी प्रचलित है कि ‘गंग नाड बागिसर और धाप्त देखण जागिसर’ अर्थात गंगा स्नान का लुत्फ लेना है तो सरयू और गोमती के संगम बागेश्वर जाइए। मैंने 1956 में बागेश्वर मेले की यात्रा की थी। वहां के लोगों ने बताया कि पहले वहां एक महीने तक का मेला लगता था। लोग बागेश्वर में जगह जगह आग जलाक र उसके चारों ओर रात भर झोड़ा खेलते थे। यह मेला, वहां का मुख्य बाजार हुआ करता था। पूरन चन्द पाण्डेय, महानगर रामलीला समिति के अध्यक्ष
उत्तरायणी मेले में उत्तराखण्ड और स्थानीय लोगों ने शिरकत की। इसे सफल बनाने में दिलीप सिंह बाफिला, मोहन सिंह बिष्ट, दीवान सिंह अधिकारी, राम सिंह खोलिया, के .एन.चंदोला, ललित मोहन जोशी, रमेश चन्द्र पाण्डेय, गणेश चन्द्र जोशी, एन.के .पाठक का सहयोग उल्लेखनीय रहा। पर्वतीय महापरिषद वेबसाइट के माध्यम से देश-विदेश में बसे उत्तराखण्ड के लोगों को एक मंच पर लाने का प्रयास करेगी। लुप्त होती कलाओं के संरक्षण का प्रयास भी कि या जाएगा। टी.एस.मनराल , अध्यक्ष,पर्वतीय महापरिषद
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