pahar1news-इस गणतंत्र दिवस समारोह पर राजपथ से निकलने वाली वाली झाकियों से उत्तराखंड की “चिपको आन्दोलन” की झांकी बाहर हो गयी है,वजह जो भी रही हो पर जिस चिपको पर देश विदेश के लोग इतना ध्यान दे रहे हों उस का जन्मदाता राज्य ही उसे ढंग से देश के सामने ही नहीं रख पा रहा है | चिपको आन्दोलन(1974) में सुन्दर लाल बहुगुणा, और चंडी प्रसाद भट्ट का नाम मुख्य रहा पर कौन इस का प्रणेता है इस बात पर आज भी आम राय नहीं है,यहाँ तक की चंडी प्रसाद भट्ट और बहुगुणा जी भी इस पर एक मत नहीं हैं,श्रेय लेने की होड़ दोनों में ही है | उत्तराखंड का रेहड़ी गांव जहाँ से “चिपको आन्दोलन” की शुरुवात हुई वहाँ के लोगों का कहना है,गांव की एक अनपढ़ महिला “गौरा देवी” जिसे न हिंदी बोलनी आती थी ढंग से और न ही मीडिया को कैसे इक्कठा किया जाये वो आता था,उसे बस काम करना आता था और अपने जल,जंगल,जमीन के लिए सोचना आता था वो ही चिपको की मुख्य कार्यकर्ती और या यूँ कहें की प्रणेता थी |
रेहड़ी गांव का कहना है की अगर वाकई चंडी प्रसाद भट्ट और सुन्दर लाल बहुगुणा जमीन से जुड़े नेता हैं तो बताएं की उन्होंने चिपको के नाम पर पुरुस्कार ग्रहण, मीडिया में फोटो खिचवाने और जगह जगह भाषण देने के अलावा क्या काम किया ? क्यूँ दोनों ही नेता अपने अपने कर्मछेत्र में जाने से डरते हैं,जहाँ चंडी प्रसाद भट्ट ने दिल्ली को बसेरा बना लिया है वहीं बहुगुणा जी टिहरी में मिली आलिशान कोठी का उपभोग कर रहे हैं |
इन दोनों ने ही नाम कमाने के चक्कर में “गौरा देवी” का वो ही हाल किया जो टीम अन्ना ने “अन्ना हजारे” का किया,पोस्टर में एक जगह दी और कभी किसी भी स्टेज से श्रेय का एक शब्द नहीं दिया
चिपको के नाम पर जहाँ बहुगुणा “भारत रत्न” तो वहीं भट्ट “नोवेल पुरुस्कार” की तैयारी कर रहे हैं इस वक़्त इन दोनों नेताओं की हालत ये है की चाहे भले ही इन दोनों ने देश विदेश में कितना भी नाम कमाया हो पर दोनों ही नेताओं के गांव वाले इन का नाम लेने तक के लिए तैयार नहीं है | ग्रामीणों का तो सिर्फ एक ही प्रश्न है दोनों से की उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए क्या किया? क्यूँ इन का कद पुरुस्कार लेते वक़्त बढ़ जाता है और काम करते वक़्त घट जाता है क्यूंकि न ही भट्ट के अपने ही गृहनगर का विकास हुआ और न ही बहुगुणा टिहरी बाँध की ही ऊंचाई घटा पाए | सवाल तो काफी हैं जनता के पर जवाब देहि के लिए भी तो कोई चाहिए,क्यूंकि आज भट्ट और बहुगुणा दोनों ही वी.आई.पी बन के आम जनता से बहुत दूर हो चुके हैं , आज उत्तराखंड की पहचान चिपको की झांकी हटाई गयी है , देखते हैं आगे चिपको के साथ क्या क्या होता है पर एक सवाल तो छूटता ही है,”चिपको किसका?”
रेहड़ी गांव का कहना है की अगर वाकई चंडी प्रसाद भट्ट और सुन्दर लाल बहुगुणा जमीन से जुड़े नेता हैं तो बताएं की उन्होंने चिपको के नाम पर पुरुस्कार ग्रहण, मीडिया में फोटो खिचवाने और जगह जगह भाषण देने के अलावा क्या काम किया ? क्यूँ दोनों ही नेता अपने अपने कर्मछेत्र में जाने से डरते हैं,जहाँ चंडी प्रसाद भट्ट ने दिल्ली को बसेरा बना लिया है वहीं बहुगुणा जी टिहरी में मिली आलिशान कोठी का उपभोग कर रहे हैं |
इन दोनों ने ही नाम कमाने के चक्कर में “गौरा देवी” का वो ही हाल किया जो टीम अन्ना ने “अन्ना हजारे” का किया,पोस्टर में एक जगह दी और कभी किसी भी स्टेज से श्रेय का एक शब्द नहीं दिया
चिपको के नाम पर जहाँ बहुगुणा “भारत रत्न” तो वहीं भट्ट “नोवेल पुरुस्कार” की तैयारी कर रहे हैं इस वक़्त इन दोनों नेताओं की हालत ये है की चाहे भले ही इन दोनों ने देश विदेश में कितना भी नाम कमाया हो पर दोनों ही नेताओं के गांव वाले इन का नाम लेने तक के लिए तैयार नहीं है | ग्रामीणों का तो सिर्फ एक ही प्रश्न है दोनों से की उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए क्या किया? क्यूँ इन का कद पुरुस्कार लेते वक़्त बढ़ जाता है और काम करते वक़्त घट जाता है क्यूंकि न ही भट्ट के अपने ही गृहनगर का विकास हुआ और न ही बहुगुणा टिहरी बाँध की ही ऊंचाई घटा पाए | सवाल तो काफी हैं जनता के पर जवाब देहि के लिए भी तो कोई चाहिए,क्यूंकि आज भट्ट और बहुगुणा दोनों ही वी.आई.पी बन के आम जनता से बहुत दूर हो चुके हैं , आज उत्तराखंड की पहचान चिपको की झांकी हटाई गयी है , देखते हैं आगे चिपको के साथ क्या क्या होता है पर एक सवाल तो छूटता ही है,”चिपको किसका?”
This is an important issue that the Department of Information of Uttarakahnd or any other Department of our state who was responsible of preparation of -Tabloid or Jhaanki of the state for republic day,have been shown a neglegence - And our political leaders are busy in vote bank now a days.
ReplyDeleteYes Chipko was started from Uttarakhand and Goura Devi of A Bhotia tribal village of Joshimath Block Called- Raini able to organise the women of Raini village and the term Chipko derived.But apart from Gaura Devi many of the other women were also actively involved in this movement.The enviroment conservation movement was begun in the district head quarter of Tehri and Chamoli and the leader ship was of Sri Chandi Prasad Bhatt ji and SUndar Lal Bahuguna ji, they help in mass media awareness at that time and were able to write in news papers and radio that time.They contributed in adoption of Chipko thought and may be taken the advantage but not up to taht wy as you mentioned in your article critically.
Neither Sri Chandi Prasad Bahtt ji left Gopeshwar and neither Sundar Lal ji left Deharadun , as the health of Bahuguna ji is not good and he is in Deharadun, and Bhatt ji have orgnised few Environemt Camps in Chamoli in recent past. Thsi is true that they were not able to percolate the knowledge and unable to make this peoples moment but rejection of JHAANKI for Republic day is not related to Bahuguna ji and Bhatt ji.This is the duty of state govt either of these 2 personalities to whom you are blamming.By writting this you may say that - I am agent of Bhatt ji and Bahuguna ji,I am ready to accept that- as they were able to do for raising th eawareness in the hill community in Seventies ( 1970 onwards) now no one else can do this.But we all can do good things in this direction if your community can initiate palntation in 2 Hectare land in any place in Uttarakhand Himalaya- with the Help of PAHAR NEWS.
Best wishes- J.P.Maithani
thansk j.p .maithani ji
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