Sunday, 8 January 2012

रोजगार को तरसा पहाड़




  नैनीताल -   राज्य बने 11 वर्ष हो चुके हंै। इस बीच भाजपा ने दो बार व कांग्रेस ने एक बार सत्ता संभाली और क ई वादे किये। इस बार भी विधानसभा चुनावों में यही दो दल अधिकांश जगहों पर आमने-सामने होंगे। पहाड़ में रोजगार का सवाल आज तक ज्यों का त्यों बना हुआ है।  राज्य निर्माण की अवधारणा के पीछे पहाड़ों पर रोजगार के अवसर बढ़ाने, पलायन रोकने, घर-घर विकास की किरण पहुंचाने सहित उन ज्वलंत समस्याओं का निराकरण करना था, जो अविभाजित उत्तर प्रदेश में नहीं हो पा रहा था। राज्य निर्माण हुआ, चुनी हुई सरकारें आई। चुनाव के समय जनता से वादे किये गये, लेकिन समस्याएं जस की तस ही बनीं रहीं। बेरोजगार युवा रोजगार की तलाश में ही भटकते रहे। इस बार चुनावों में भी यही मुद्दे हावी रहेंगे। नेताओं को इन मुद्दों से फिर जूझना पड़ेगा। स्थानीय समस्याओं पानी, बिजली, शिक्षा जैसे मुद्दे भी इन चुनावों में उठेंगे। अलग राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में राज्य निर्माण की अवधारणा में जो मुद्दे शामिल थे, उन्हें राजनैतिक दलों ने अपने एजेंडे में शामिल किया। यह मुद्दे खासतौर पर रोजगार, पलायन रोकने, उद्योग लगाने सहित भ्रष्टाचार, सड़क, बिजली, बागवानी, पर्यटन, स्वास्थ्य सेवा आदि थे। इसके बाद भी रोजगार नीति, सिडकुल में स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता देने को लेकर आज तक कोई नियम नहीं बन सके हैं। इसके विपरीत पहाड़ों में पर्यटन के नाम पर जमीनों की लूट मची।
  राज्य में बिल्डर्स हावी हो गए। रोजगार के लिए पलायन तेजी से बढ़ा। अब बेरोजगारी की स्थिति विकट हो गई है, उद्योगों के अवसर ऊधमसिंह नगर व हरिद्वार तक सिमट गए। शेष पर्वतीय क्षेत्रों में एक भी उद्योग नहीं लग सका। पर्वतीय जनपदों में बेरोजगारी, उद्योग व पलायन की स्थिति आज भी 11 वर्ष पूर्व की भांति बनी हुई है। पर्यटन स्थलों का विकास नहीं होने से लोगों को इसका भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। कुमाऊं मंडल विकास निगम ने कई बार प्रस्ताव भेजे भी तो शासन स्तर पर ही लटक गए। इस बार चुनाव में बेरोजगार युवा जनप्रतिनिधियों से इसका जवाब पूछेंगे। (
चंद्रेक बिष्ट -दैनिक जागऱण)
 
  

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