Sunday, 27 November 2011

आस्था ने बदल दी सोच

समय के साथ सोच भी बदली और बदल गई बलि देने की परंपरा। 500 सालों से मन्नत पूरी होने पर लोग बलि देते रहे हैं, आज उस बूंखाल मेले में एक भी पशुबलि नहीं दी गई।
अपने इतिहास में पहली बार बिना पशुबलि के संपन्न हो गया बुंखाल मेला

पौड़ी। बुंखाल मेले में इस बार निरीह पशुओं का खून नहीं बहा। पशुबलि के लिए विख्यात इस मेले के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि मेले के दिन बुंखाल की धरती निरीह पशुओं के खून से लाल नहीं हुई और मेला शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। कहा जा सकता है कि पशुबलि के खिलाफ विभिन्न संस्थाओं और प्रशासन द्वारा दशकों से चलाई जा रही मुहिम आखिरकार इस बार रंग ला ही गई।
राठ क्षेत्रवासियों की आराध्य देवी मां कालिंका बुंखाल के दरबार में शनिवार को भव्य मेला लगा। चौरीखाल से करीब 250 सौ मीटर दूर बने मां कालिंका बुंखाल के मंदिर में देवी के दर्शन के लिए सुबह से ही हजारों भक्तों का सैलाब उमड़ना शुरू हो गया। मेले में अन्य सालों की तरह इस बार भी चौरीखाल से लेकर मंदिर परिसर तक कौथिगेरों और भक्तों की भीड़ उमड़ी थी। चौरीखाल से मंदिर तक पहुंचने में लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसे विभिन्न संस्थाओं और प्रशासन द्वारा दशकों से की जा रही पशुबलि विरोधी मुहिम का नतीजा मानें या फिर लोगों में आई जागरूकता का परिणाम। मेले के इतिहास में पहली बार इस मेले का स्वरूप बदला हुआ दिखा।
इस बार मंदिर परिसर में न तो बलि देने के लिए लोगों द्वारा लाए जाने वाले बकरे नजर आए और न ही लोग पशुबलि हेतु ढोल नगाड़ों के साथ बागी यानी नर भैंसे लाते दिखे। मेले में हर साल सौ से अधिक नर भैसों और सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती थी। इसे देखते हुए प्रशासन ने इस बार मेला परिसर समेत बुंखाल को आने वाले विभिन्न रास्तों पर बैरियर बनाकर बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स और राजस्व पुलिस की तैनाती की हुई थी। जिसके चलते मंदिर परिसर में बलि देने के लिए कोई भी बागी या बकरे नहीं ला पाया। डीएम एमसी उप्रेती, एसपी अनंत शंकर ताकवाले समेत कई अधिकारी देर शाम तक चौरीखाल में मौजूद रहे।


अब नहीं लगती है देवी मां की ‘धै’
पौड़ी। राठ क्षेत्र की आराध्य देवी बूंखाल कालिंका का इतिहास करीब 500 साल पुराना बताया जाता है। संकट के समय रक्षा करने वाली यह देवी गोरखा आक्रमण के समय अपने भक्तों को आवाज लगाकर सचेत करती थीं। पशुबलि की प्रथा भी यहां सदियों से चल रही थी। किवदंतियों के मुताबिक चोपड़ा क्षेत्र में गाय चराने वाले अबोध बच्चों ने साथ की एक हरिजन परिवार की बालिका को खेल-खेल में गड्ढे में गाड़ दिया था। इस घटनाक्रम से क्षेत्र में आपदाएं आने लगीं। काफी पूजा अर्चना के बाद उसे देवी का रूप बनाकर बुंखाल में स्थापित किया गया। तबसे इसे बुंखाल की कालिंका के नाम से पूजा जाता है।
मेला परिसर समेत विभिन्न स्थानों पर बनाए गए बैरियरों पर प्रशासन ने लोगों द्वारा बलि देने के लिए लाए जा रहे दर्जन भर से अधिक बागियों को कब्जे में लिया है। सैकड़ों बकरों को भी लौटा दिया गया। मंदिर परिसर में इस बार एक भी पशुबलि नहीं हुई है।
- एमसी उपे्रती
जिलाधिकारी, पौड़ी

No comments:

Post a Comment