Thursday, 6 October 2011

अब पहाड़ को एक पहाड़ी की जरूरत

संतोष बिष्ट
उत्तराखंड को सच में एक माई का लाल चाहिए जो कि इस नन्हे उत्तराखंड को भ्रष्टाचार के दानव से बचाने की जुरत करे। देव भूमि को दानव भूमि बनाने के लिए
उत्तराखंड़ के मंत्रियों और अफसरों ने जो कसम खाई है, उससे तो यही लगता है कि काश एक अन्ना उत्तराखंड में भी जन्मा होता तो कम से कम अपने उत्तराखंड के लिए तो एक छोटा सा अनशन तो कर ही सकता था। लेकिन दुर्भाग्य उत्तराखंड का भी है कि उसने इन भ्रष्ट मंत्रियों और अफसरों को ही अपनी गोद में जन्म दिया है। आज भ्रष्टाचार का ताज पहनकर उत्तराखंड जो नाम कमा रहा है और जमकर तालियां बटोर रहा है तो हमें तो गर्व हो रहा है उन उत्तराखंडियों पर जिन्होंने अपने इस पहाड़ को चमकीला ताज पहनाया है। उत्तराखंड के इस चमकीले ताज से तो अन्य राज्यों की भी चमक-धमक पर फीका पन आ गया है। एक समय था जब लोग उत्तराखंड को देव भूमि के स्वरों से लहराते थे, और आज खबरों में उत्तराखंड दानव भूमि के नाम से अपना परचम लहरा रहा है। इस राज्य में कई साहब आए और कई गए, सबने जमकर माल पर हाथ साफ किया और पहाड़ की तरफ मुंह दिखाकर मुस्काराकर चले भी गए जब तक यहां बाहर के साहब रहे तब तक तो अपने मंत्री साहब चुपचाप मुंह देखते रहे और बाद में उनको मौका मिलते ही उन्होंने बचा हुआ खीर भी हजम कर लिया। कहते हैं कि जब कोई घर में मेहमान आता है तो बच्चे मेहमान का बैग को ध्यान से देखते रहते हैं कि कब अंकल चॉकलेट निकाले बैग से और बच्चों को चॉकलेट मिलने के बाद बच्चे भी मेहमान के साथ खूब घुलमिल जाते हैं। वैंसा ही हाल है अपने पहाड़ के साहबों के अब अपने निशंक साहब को ही ले लो दादा ने तो उसी गंगा में डुबकी लगाई और उसी गंगा में अपने कपडेÞ भी निचोड़ दिए। जब दादा का अत्याचार नेगी दा से देखा नहीं गया तो उनका मुंह तो खुलना ही था। अब देखों अपने मेजर साहब ने बंदूक तानी है भ्रष्टाचार के कनपटी पर देखते हैं। यह बंदूक कितने दिन तक ताने रखते हैं। दाद देनी पड़ेगी मेजर साहब की कुछ तो खौफ है उनकी ईमानदारी की, लेकिन पहाड़ का दुर्भाग्य है कि उस ईमानदारी में मजा नहीं आता है। निशंक साहब ने जो दादागिरी दिखाई है तो भले उसके सामने ईमानदारी की क्या मजाल कि वो किसी के सिरचढ़ कर बोले। अब निशंक साहब ने इतना प्यार दिखा ही दिया था इस कमजोर पहाड़ पर तो भाजपा सरकार को थोड़ा ओर इंतजार करना था निशंक साहब ने पहाड़ के युवाओं के बारे में भी सोच रखा था अभी हाल में निशंक साहब ने भर्तियों का पिटारा खोला, लेकिन दुर्भाग्य देखिए निशंक साहब ने पिटारा तो खोल दिया पर उन युवाओं की लाइन देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। बहुत लोगों की और अफसरों की आस थी निशंक साहब पर और होगी भी क्यों नहीं दादा ने पहाड़ को जो हिला दिया था। अब देखते हैं कि कहीं इस भर्ती पर किसी की नजर न लग जाए और उसी नजर से गरीब युवक न झुलस जाए। अब मेजर साहब को अपनी दो नाले वाली बंदूक पकड़नी पड़ेगी जो कि इन युवाओं को रिश्वतखोरों से बचाने का काम करे। मेजर साहब बहुत लोगों की उम्मीद है आप पर आज भी गांव के दादियों के चेहरे पर आपकी ईमानदारी रौनक ला देती है। बस आप से उम्मीद है कि आप इस भ्रष्टाचार उत्तराड़ियों से अपनी ईमानदारी को लहराकर रखना। मेजर साहब आज के उत्तराखंड के युवा सिर्फ इसी बात से लाईन में लगने से कांपते हैं कि उनके आंखों के सामने रिश्वतखोरों का वो काला चेहरा चमक मारता रहता है। सिर्फ कुछ ही महीने बचे हैं चुनाव होने में एक डर यह भी है कि अगर मेजर साहब की ईमानदारी ने बीजेपी सरकार को एक बार फिर से उत्तराखंड की सेवा करने का मौका दे भी दिया तो फिर वही खेल तो शुरू नहीं हो जाएगा कि मेहनत करे मेजर साहब और फूलों की खुशबू मिले किसी और को वैसा हो भी सकता है। राजनीति है भाई क्या-क्या करवा देती है। दुआ है उत्तराखंड देवता से कि ऐसी राजनीति से इस गिरते हुए पहाड़ को बचाए।

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