ज्यादातर लोग अपनी मौजूदा बीमा कंपनी की खराब सर्विस इसलिए बर्दाश्त करते रहते हैं, क्योंकि वे अपनी पॉलिसी की मौजूदा सुविधाओं से हाथ नहीं धोना चाहते।
अभी तक बीमा कंपनी बदलने का सीधा मतलब यह होता है कि आपको नए ग्राहक के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में पहले से मौजूद बीमारियों के लिए एक से चार साल (वेटिंग पीरियड) तक इंतजार करना पड़ता है।
हालांकि, पहली अक्टूबर से हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी लागू हो जाने से आप पुरानी बीमा कंपनी को छोड़कर नई बीमा कंपनी का दामन थाम सकते हैं और इसमें आपको अपनी मौजूदा पॉलिसी की सुविधाओं से हाथ भी नहीं धोना पड़ेगा। इसलिए, अगर आपको पहले से कोई बीमारी है, जिसे तीन साल के बाद कवर मिल सकता है और आपने एक बीमा कंपनी के साथ पहले ही दो साल का वेटिंग पीरियड पूरा कर लिया है तो नई बीमा कंपनी के साथ आपको उस बीमारी को कवर के दायरे में लाने के लिए सिर्फ एक साल और इंतजार करना पड़ेगा।
किस चीज की है अनुमति
पोर्टेबिलिटी सिर्फ गैर-जीवन बीमा कंपनियों की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पर लागू होगी। यदि आप ग्रुप मेडीक्लेम के तहत कवर्ड हैं तो इसे व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी या फैमिली फ्लोटर प्लान में भी बदल सकते हैं। हालांकि, यह तभी मुमकिन होगा जब आप उस बीमा कंपनी के साथ कम से कम एक साल का वक्त बिता चुके हों। यह फीचर उन कर्मचारियों के लिए फायदेमंद है, जिनके पास कंपनी द्वारा मुहैया कराए मेडीक्लेम के अलावा कोई दूसरा हेल्थ प्लान नहीं है। ये कर्मचारी जब अपनी नौकरी बदलते हैं तो इस सुविधा का सही तरीके से लाभ उठाया जा सकता है।
आप किसी भी वक्त अपनी बीमा कंपनी नहीं बदल सकते हैं। अपनी मौजूदा पॉलिसी को रीन्यू कराने के 45 दिन पहले ही आप पोर्टेबिलिटी के लिए आवेदन कर सकते हैं। नई बीमा कंपनी आपको एक पोर्टेबिलिटी फॉर्म देगी, जिसे आपको प्रपोजल फॉर्म के साथ जमा करना होगा। मौजूदा बीमा कंपनी और नई बीमा कंपनी एक वेब पोर्टल के जरिए आपसे जुड़ी जानकारियां बांटेंगी। बीमा नियामक इरडा जल्द ही यह वेब पोर्टल लॉन्च करने वाला है। उन विवरणों के आधार पर नई बीमा कंपनी इस प्रस्ताव को अंडरराइट करेगी और आपको 15 दिनों के भीतर अपने फैसले की जानकारी देगी। यदि बीमा कंपनी इस अवधि के भीतर आपको इस बात की सूचना नहीं देती है कि आपका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया है तो उसे आपका यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ेगा।
हालांकि, नई बीमा कंपनी के पास अपनी अंडरराइटिंग पॉलिसी के आधार पर आपका आवेदन खारिज करने का अधिकार है। उदाहरण के तौर पर यदि नई बीमा कंपनी की हेल्थ पॉलिसी के तहत अधिकतम 60 साल के नए ग्राहकों को जोड़ा जा सकता है और बीमा धारक की उम्र 65 साल है तो पोर्टेबिलिटी का आवेदन रद्द हो सकता है। इसके अलावा अगर आप पहले बहुत ज्यादा क्लेम कर चुके हैं या हाई-रिस्क कैटिगरी यानी वरिष्ठ नागरिक हैं तो भी आपको अपनी पुरानी बीमा कंपनी के साथ ही रहना पड़ सकता है। साथ ही, एक नई बीमा कंपनी अपने दिशानिर्देशों के आधार पर प्रस्ताव लिख सकती है। कुछ मामलों में इसका प्रीमियम बहुत ज्यादा हो सकता है और हो सकता है कि आप उसका भुगतान नहीं करना चाहें।
यदि मौजूदा पॉलिसी के रीन्यूअल की तारीख तक आपको नई बीमा कंपनी के प्रपोजल नहीं मिलते हैं तो आप प्रो-राटा प्रीमियम का भुगतान करके इसे छोटी अवधि तक के लिए बढ़ा सकते हैं। इस तरह से आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपकी पॉलिसी रद्द न हो।
किन चीजों का रखें ध्यान
इंश्योरेंस पोटेर्बिलिटी का विकल्प चुनने से पहले आपको सजगता से तमाम विवरण पढ़ना चाहिए क्योंकि एक बार यह विकल्प चुनने के बाद आप इससे बाहर नहीं निकल सकते हैं। भारती एक्सा जनरल इंश्योरेंस के वाइस प्रेसिडेंट एवं हेड (हेल्थ वर्टिकल) सुब्रह्माण्यम स्वामी ने कहा, 'किसी दूसरी बीमा कंपनी में स्विच करने से पहले बीमाधारक को इस बात की जांच करनी चाहिए कि उसे जो पॉलिसी ऑफर की जा रही है, वह पुरानी पॉलिसी की तरह है या नहीं। फिलहाल, बाजार में पॉलिसी के लिए कोई मानक नहीं है।' उदाहरण के तौर पर यदि आप एक बीमा कंपनी को छोड़कर दूसरी बीमा कंपनी को चुनते है और पुरानी कंपनी आपको एक लाख रुपए का बीमा कवर दे रही है जबकि नई कंपनी 2 लाख रुपए से कम का कवर नहीं देती है तो आपको ज्यादा प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है। इसीलिए ऐसी बीमा कंपनी का हाथ थामना चाहिए जिसके पास छोटे इंक्रीमेंटल स्लैब में कवर की पूरी रेंज उपलब्ध हो।
टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ गौरव गर्ग ने कहा, 'ग्राहकों को सिर्फ लागत के पैमाने पर बीमा कंपनियों और प्रोडक्ट का आकलन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी मौजूदा और भविष्य की जरूरतों, उम्र के साथ बढ़ती कीमतों, सविर्स स्टैंडर्ड, स्थायित्व और बीमा कंपनी की ब्रांड इक्विटी के आधार पर भी उनका आकलन करना चाहिए।'
अगर आपने नो-क्लेम बोनस इकट्ठा किया है तो पोर्टेबिलिटी से आपको इसका नुकसान हो सकता है। हालांकि, अगर आप नो-क्लेम बोनस को नई पॉलिसी के साथ हासिल करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए ज्यादा प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है। मान लीजिए, एक लाख रुपए के हेल्थ प्लान के लिए आप 1,000 रुपए का प्रीमियम चुका रहे हैं।
आपने पिछले पांच साल से कोई दावा नहीं किया है और आपका कवर बढ़कर 1.3 लाख रुपए हो गया है, लेकिन आप अभी भी 1000 रुपए का प्रीमियम चुका रहे हैं। ऐसे में अगर आप अपनी बीमा कंपनी बदलते हैं तो आपका कवर 1.3 लाख रुपए रहेगा, लेकिन आपका प्रीमियम बढ़ जाएगा। यानी अब आपको 1,300 रुपए का प्रीमियम चुकाना होगा। इसका मतलब है कि आपको नो-क्लेम बोनस पर मिल रहे डिस्काउंटेट प्रीमियम की सुविधा खत्म हो जाएगी।
क्या है फायदा
बीमा कंपनियों का मानना है कि खरीदारी की आसान प्रक्रिया, पॉलिसी डॉक्यूमेंट की डिलीवरी में तेजी और झंझट मुक्त दावों जैसे पोर्टेबिलिटी से कस्टमर सर्विस स्टैंडर्ड में सुधार होगा। गर्ग ने कहा, 'बीमा कंपनियां कस्टमाइज प्रोडक्ट बेचने की शुरुआत कर सकती हैं। ठीक इसके साथ ही कुछ फीचर ज्यादा स्टैंडर्डाइज हो सकते हैं क्योंकि ग्राहक अपनी जरूरतों को देखते हुए एक कंपनी को छोड़कर दूसरी कंपनी को चुन सकते हैं।' एचडीएफसी एरगो जनरल इंश्योरेंस के स्टैटेजिक प्लानिंग हेड मुकेश कुमार ने कहा, 'इस बात की भी संभावना है कि इस सेक्टर की नई कंपनियां ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कम कीमत पर प्रोडक्ट उपलब्ध कराने लगें।' इसमें कई तरह की सुविधा है, लेकिन स्विच करने से पहले पोर्टेबिलिटी से होने वाले नुकसानों पर भी गौर करना जरूरी है।
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