सुखद : देवभूमि की यादें संजोने के लिए अखिल गढ़वाल सभा ने तैयार किया संग्रहालय
देहरादून- यादें संजोकर रखी जाएं तो धरोहर बन जाती हैं,
उस पीढ़ी के लिए जो अपने अतीत के बारे में बहुत कुछ या यूं कहें कि कुछ भी नहीं जानती। जो आगे बढ़ने की होड़ में यह तक भूल गई्र कि उसकी जड़ें कहां हैं। जिस परिवेश में वह आज है, वहां तक पहुंचने के लिए पूर्वजों को किन-किन रास्तों से होकर गुजरना पड़ा। इसी को ध्यान में रखते हुए अखिल गढ़वाल सभा ऐसा संग्रहालय तैयार कर रहा है, जहां देवभूमि की यादें चिर स्थाई रह सकेंगी।
ग्लोबल होती दुनिया में हम आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन पीछे देखना भूल गए। शायद हमें इसका भी भान नहीं कि इतिहास को भूलने वाला समाज अपना अस्तित्व भी खो बैठता है। जिस इतिहास पर हमें गौरव होना चाहिए था, उसे हमने झेंप का कारण बना दिया। यही वजह है कि नई पीढ़ी को अपने अतीत की कुछ भी जानकारी नहीं। इसी चिंता ने अखिल गढ़वाल सभा को ऐसा संग्रहालय तैयार करने की प्रेरणा दी, जहां देवभूमि की यादें सुरक्षित रहें। नेशविला रोड स्थित अखिल गढ़वाल भवन में तैयार इस संग्रहालय ने अभी पूरी तरह आकार नहीं लिया है, लेकिन यहां ऐसी दर्जनों वस्तुएं मौजूद हैं, जो एक दौर में पहाड़ की समृद्धि का प्रतीक रहीं। इनमें जंदरी (हाथ चक्की), उरख्याली (ओखली), गंजेली (कूटने का यंत्र), हल, दंदाला, निसुड़ा, कूटी (कुदाल), दरांती, थमाली, ज्यूड़े, म्वाले, हुक्का, पर्या, रै, डखुला, पाथा, भड्डू, तांबे व पीतले के तौले, गागर, बंठा, परात, ग्याड़ा, मोर-संगाड़, पठाल, अणसलो, पीतल व तांबे के ढोल-दमौ, डौंर-थाली, अलगोजा, कांसे व पीतल के बर्तन, बांस के सूप, ड्वारा, नरेला, देवी के निसाण आदि प्रमुख हैं। कोशिश यह भी है कि देवभूमि के इतिहास पर शोध करने वाले युवाओं को भी संग्रहालय का लाभ मिले। अखिल गढ़वाल सभा के महासचिव रोशन धस्माना बताते हैं कि अतीत से वर्तमान को परिचित कराने के लिए ऐसा किया जाना नितांत जरूरी है। संग्रहालय को समृद्ध बनाने के लिए उन सभी लोगों से इसमें सहयोग करने की अपील की गई है, जिनके पास अतीत की यादें हैं।
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