Friday, 1 July 2011
चिपको आंदोलन का दूसरा नाम बचनी देवी
ठेकेदारों के हथियार छीन, पेड़ों पर बांधी राखियां चम्बा: विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के कार्यकर्ताओं में भले ही पुरुष कार्यकर्ताओं के नाम लोग अधिक जानते हैं, लेकिन इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका भी कम नहीं है। हालांकि, महिलाओं में गौरा देवी या सुदेशा बहन को ही लोग अधिकतर जानते हैं, लेकिन ऐसी कई महिलाओं ने इस आंदोलन के प्रसार में अपनी पूरी ताकत झाोंक दी थी, जिन्हें अब तक पर्याप्त सम्मान या पहचान नहीं मिल पाई है। टिहरी जिले के हेंवलघाटी क्षेत्र के अदवाणी गांव की बचनी देवी भी उन महिलाओं में एक है, जिन्होंने चिपको आंदोलन (पेड़ों को कटने से बचाने के लिए ग्रामीण उनसे चिपक जाते थे, इसे चिपको आंदोलन नाम दिया गया) में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बचनी देवी का जन्म अगस्त 1929 में पट्टी धार अक्रिया के कुरगोली गांव में हुआ। उनकी शादी अदवाणी गांव निवासी बख्तावर सिंह के साथ हुई। 30 मई 1977 को जब चिपको नेता सुंदरलाल बहुगुणा, धूम सिंह नेगी और कुंवर प्रसून अदवाणी पहुंचे, तो वहां वन निगम के ठेकेदार पेड़ों पर आरियां चला रहे थे। बहुगुणा, नेगी व प्रसून के आह्वान पर बचनी देवी गांव की महिलाओं को साथ लेकर आंदोलन में कूद पड़ी। उन्होंने पेड़ों से चिपककर ठेकेदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें वहां से भगा दिया। उस दौर में गांव के अधिकांश लोग पेड़ों के कटान के समर्थक थे, क्योंकि वन विभाग द्वारा गठित श्रमिक समितियां ठेकेदारों के माध्यम से कार्य करती थी और लोग इसे रोजगार के रूप में देखते थे। बचनी देवी से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि उनके पति बख्तावर सिंह खुद निगम के लीसा ठेकेदार थे। ऐसे में बचनी देवी ने साहस और सूझाबूझा से परिवार का विरोध भी झोला और आंदोलन में भी भागेदारी की। पति के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी जंगल कटने के समर्थक थे, क्योंकि इससे उनकी आजीविका जुड़ी हुई थी, लेकिन चिपको आंदोलन की विचारधारा को भलीभांति समझाने वाली बचनी देवी ने सार्वजनिक हित को महत्वपूर्ण समझाा। यहां यह भी बता दें कि चिपको आंदोलन की शुरूआत अदवाणी के जंगलों से ही हुई थी। यहां साल भर आंदोलन चला, जिसमें बचनी देवी पूर्ण रूप से सक्रिय रहीं और उन्होंने घर-घर जाकर दूसरी महिलाओं को संगठित व जागरूक किया। खास बात यह है कि सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने के साथ उसने घर-परिवार की जिम्मेदारी, चूल्हा, चौका, घास-लकड़ी का काम भी बखूबी निभाया। इस दौरान उन्हें अनेक कष्ट भी झोलने पड़े। एक साल के संघर्ष के दौरान ठेकेदारों को खाली हाथ वापस जाना पड़ा तथा इस क्षेत्र में पेड़ों की नीलामी व कटान पर वन विभाग को रोक लगानी पड़ी। बचनी देवी धीरे-धीरे अपने पति व परिवार जनों को समझााने में भी कामयाब रही। आज उनकी उम्र 80 वर्ष है और उन दिनों की याद ताजा कर वह कहती है कि आंदोलन के दौरान कई बार उनके पति उनसे बात तक नहीं करते थे, फिर भी उन्होंने संयम से काम लिया और दोनों मोर्चों पर सफलता पाई। आंदोलन में उनके साथ रहे धूम सिंह नेगी व सुदेशा बहन का कहना है कि उनमें साहस और हिम्मत के कारण अदवाणी की दूसरी महिलाएं भी आंदोलन में शामिल हुई थी। बचनी देवी का आज भरा-पूरा परिवार है। वह चाहती हैं कि लोग अपने संसाधनों के प्रति जागरूक रहें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment