रामनगर:
पहाड़ों से शिक्षित युवाओं के पलायन की समस्या बेहद गंभीर है। बात जब दुर्गम क्षेत्रों के विद्यालयों में गुरुजनों के अभाव में छात्रों के पलायन की हो तो स्थिति और भी दुर्भाग्यपूर्ण हो जाती है।
छात्र व उनके अभिभावक राह तक रहे हैं, पर द्रोण हैं कि पहाड़ी सफर तय कर स्कूलों में मेहनत से ही कतरा रहे हैं। अंतरजनपदीय सीमा पर नए शिक्षा सत्र में कुछ ऐसे ही हालात बन पड़े हैं।
यहां जिक्र हो रहा है क्षेत्र से सटे सल्ट (अल्मोड़ा) स्थित जीआईसी भौनखाल का है। बीते वर्ष यहां तमाम शिक्षकों ने मनमाफिक स्थानों पर तबादले करा लिए। नतीजतन विज्ञान वर्ग के साथ ही अर्थ व नागरिक शास्त्र तथा गणित विषय के शिक्षकों का टोटा हो गया। इससे पढ़ाई चौपट हो गई है। पहले विद्यालय में जहां 22 शिक्षक थे। इस सत्र में छह गुरुजनों के सहारे जैसे-तैसे गाड़ी खींची जा रही है। हालांकि इस बाबत विभागीय अफसरों से लेकर शिक्षा मंत्री तक गुरुजनों की तैनाती को गुहार लगाई जा चुकी है पर सुनवाई नहीं हो रही। इधर शिक्षा व शिक्षकों की कमी से परेशान हाईस्कूल पास छात्रों ने 11वीं में जीआईसी भौनखाल में दाखिले के बजाय पलायन को ज्यादा तवज्जो दी है। ग्रामीणों के अनुसार 11 छात्रों ने तो बाकायदा बाहरी विद्यालयों में प्रवेश भी ले लिया है। बहरहाल, गुरुओं के अभाव में छात्रों के बाहरी जिलों में पलायन गंभीर मसला है।
Sunday, 31 July 2011
Appointment of teachers will be Urdu उर्दू शिक्षकों की होगी नियुक्ति
हल्द्वानी: मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि राज्य सरकार मुस्लिमों के हितों के लिए निरंतर प्रयत्नशील है।
कांग्रेस ने उन्हें केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है, उनकी मूलभूत समस्याओं को दूर करने का प्रयास तक नहीं हुआ। भाजपा जल्द ही प्रदेश में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति करने के साथ ही मदरसा बोर्ड व अल्पसंख्यक निदेशालय बनाने के लिए संकल्पबद्ध है।
शनिवार को ताज चौराहे पर आयोजित भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के मुस्लिम सम्मेलन को संबोधित करते हुए डा. निशंक ने हल्द्वानी कब्रिस्तान की चाहरदीवारी के लिए 10 लाख रुपये देने की भी घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने हज कोटा 1200 करने, अल्पसंख्यक निदेशालय बनाने और मदरसा बोर्ड का गठन करने का आश्वासन दिया। उन्होंने विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि कांग्रेस मुस्लिमों को भाजपा का डर दिखाकर केवल वोट बैंक की राजनीति करते आयी है। अब मुस्लिमों को यह समझना होगा। कांग्रेस के छल-कपट से दूर रहना होगा। स्वयं निर्णय करते हुए वोट का इस्तेमाल करना होगा। प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने कहा कि राज्य सरकार मुस्लिमों के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। निश्चित तौर पर 2012 में राज्य में फिर भाजपा की सरकार बनेगी। स्वास्थ्य मंत्री बंशीधर भगत ने कहा कि अभी तक कांगे्रस ने मुस्लिमों को केवल वोटर तक ही सीमित रखा। भाजपा दो तिहाई बहुमत से सरकार बनायेगी। वन मंत्री गोविन्द सिंह बिष्ट ने कहा कि भाजपा निरंतर विकास कार्य कर रही है। अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष व कार्यक्रम के आयोजक मजहर नईम नवाब ने कहा कि कांग्रेस केवल झूठा प्रचार करने में विश्वास रखती है,
कांग्रेस ने उन्हें केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है, उनकी मूलभूत समस्याओं को दूर करने का प्रयास तक नहीं हुआ। भाजपा जल्द ही प्रदेश में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति करने के साथ ही मदरसा बोर्ड व अल्पसंख्यक निदेशालय बनाने के लिए संकल्पबद्ध है।
शनिवार को ताज चौराहे पर आयोजित भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के मुस्लिम सम्मेलन को संबोधित करते हुए डा. निशंक ने हल्द्वानी कब्रिस्तान की चाहरदीवारी के लिए 10 लाख रुपये देने की भी घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने हज कोटा 1200 करने, अल्पसंख्यक निदेशालय बनाने और मदरसा बोर्ड का गठन करने का आश्वासन दिया। उन्होंने विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि कांग्रेस मुस्लिमों को भाजपा का डर दिखाकर केवल वोट बैंक की राजनीति करते आयी है। अब मुस्लिमों को यह समझना होगा। कांग्रेस के छल-कपट से दूर रहना होगा। स्वयं निर्णय करते हुए वोट का इस्तेमाल करना होगा। प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने कहा कि राज्य सरकार मुस्लिमों के लिए तमाम योजनाएं चला रही है। निश्चित तौर पर 2012 में राज्य में फिर भाजपा की सरकार बनेगी। स्वास्थ्य मंत्री बंशीधर भगत ने कहा कि अभी तक कांगे्रस ने मुस्लिमों को केवल वोटर तक ही सीमित रखा। भाजपा दो तिहाई बहुमत से सरकार बनायेगी। वन मंत्री गोविन्द सिंह बिष्ट ने कहा कि भाजपा निरंतर विकास कार्य कर रही है। अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष व कार्यक्रम के आयोजक मजहर नईम नवाब ने कहा कि कांग्रेस केवल झूठा प्रचार करने में विश्वास रखती है,
Will honor to the brave soldiers शहीद सैनिकों को मिलेगा सम्मान
देहरादून, -स्वतंत्रता पूर्व वीरता पदक 364। स्वतंत्रता पश्चात वीरता पदक 943। हजारों शहीद। सशस्त्र सेनाओं में तकरीबन 63 हजार सैनिक सेवारत। एक लाख से अधिक पूर्व सैनिक एवं 29 हजार से अधिक सैनिक विधवाएं।
यह तस्वीर है सैन्य बहुल प्रदेश उत्तराखंड की। विडंबना यह कि सूबे में अभी तक एक अदद शहीद स्मारक नहीं बन पाया है। तकरीबन एक दशक की कवायद के बाद अब न्यू कैंट रोड हाथीबड़कला में शहीद स्मारक बनने की राह खुलती नजर आ रही है। इसके लिए शासन को अनुमोदन के लिए पत्र भेजा जा रहा है।
राज्य में विभिन्न युद्धों के दौरान शहीदों के लिए वार मेमोरियल बनाने को लेकर लंबे समय से कवायद चल रही है। इसके लिए पहले विजय कॉलोनी के निकट सेना की भूमि पर इस स्मारक को बनाने की कवायद शुरू हुई। इसके लिए उत्तराखंड सब एरिया की ओर से भूमि का लैंड यूज चेंज करने के लिए मध्यकमान को पत्र भेजा गया, लेकिन लंबे समय तक यह प्रस्ताव लंबित पड़ा रहा।
इसके बाद प्रदेश सरकार और सेना के बीच इस दिशा में कई बार वार्ता हुई, लेकिन इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पाया। वहीं पूर्व सैनिक संगठनों की ओर से लगातार सरकार पर शहीद स्मारक बनाने का दबाव भी पड़ रहा था। गत वर्ष मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने शहीद स्मारक के लिए सरकार की ओर से एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। इसके अलावा सांसद तरुण विजय भी शहीद स्मारक के लिए दस लाख रुपये देने की घोषणा कर चुके हैं। इस वर्ष शुरू से ही शहीद स्मारक के लिए जमीन खोजने की कवायद तेज हो गई थी। इसके तहत प्रशासन ने कई स्थानों पर जमीन देखी। अंत में न्यू कैंट में श्री चंद्र मंदिर के पीछे इसके लिए जमीन चिह्नीत की गई। यह जमीन ग्राम समाज की बताई जा रही है। अब प्रशासन की ओर से वार मेमोरियल बनाने के लिए यहां पर दस हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। जिलाधिकारी सचिन कुर्वे ने इसकी पुष्टि की है।
यह तस्वीर है सैन्य बहुल प्रदेश उत्तराखंड की। विडंबना यह कि सूबे में अभी तक एक अदद शहीद स्मारक नहीं बन पाया है। तकरीबन एक दशक की कवायद के बाद अब न्यू कैंट रोड हाथीबड़कला में शहीद स्मारक बनने की राह खुलती नजर आ रही है। इसके लिए शासन को अनुमोदन के लिए पत्र भेजा जा रहा है।
राज्य में विभिन्न युद्धों के दौरान शहीदों के लिए वार मेमोरियल बनाने को लेकर लंबे समय से कवायद चल रही है। इसके लिए पहले विजय कॉलोनी के निकट सेना की भूमि पर इस स्मारक को बनाने की कवायद शुरू हुई। इसके लिए उत्तराखंड सब एरिया की ओर से भूमि का लैंड यूज चेंज करने के लिए मध्यकमान को पत्र भेजा गया, लेकिन लंबे समय तक यह प्रस्ताव लंबित पड़ा रहा।
इसके बाद प्रदेश सरकार और सेना के बीच इस दिशा में कई बार वार्ता हुई, लेकिन इस दिशा में कुछ खास नहीं हो पाया। वहीं पूर्व सैनिक संगठनों की ओर से लगातार सरकार पर शहीद स्मारक बनाने का दबाव भी पड़ रहा था। गत वर्ष मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने शहीद स्मारक के लिए सरकार की ओर से एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। इसके अलावा सांसद तरुण विजय भी शहीद स्मारक के लिए दस लाख रुपये देने की घोषणा कर चुके हैं। इस वर्ष शुरू से ही शहीद स्मारक के लिए जमीन खोजने की कवायद तेज हो गई थी। इसके तहत प्रशासन ने कई स्थानों पर जमीन देखी। अंत में न्यू कैंट में श्री चंद्र मंदिर के पीछे इसके लिए जमीन चिह्नीत की गई। यह जमीन ग्राम समाज की बताई जा रही है। अब प्रशासन की ओर से वार मेमोरियल बनाने के लिए यहां पर दस हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। जिलाधिकारी सचिन कुर्वे ने इसकी पुष्टि की है।
Saturday, 30 July 2011
ON LINE Registration of your name for Employment Exchang in uttarakhand
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Thursday, 28 July 2011
Thursday, 21 July 2011
विलुप्त हो रही प्रजातियों की टटोल रहे नब्ज
विलुप्ति के अन्तिम कगार पर खड़ी चार वनस्पति प्रजातियां उत्तराखंड की
pahar- वैसे तो हर पौधे का पर्यावरण में अपना महत्व होता है, लेकिन जब पौधे औषधीय प्रयोग वाले हों तो उनकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। चिंता की बात यह है कि उत्तराखंड में ऐसी चार पादप प्रजातियां अस्तित्व के गंभीर खतरे से जूझ रही हैं। यह खतरा ढाई दशक से इन्हें चपेट में ले रहा है। इनमें एक वनस्पति तो ऐसी है जो देशभर में सिर्फ उत्तराखंड में ही पाई जाती है। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुट गए हैं कि आखिर किन कारणों से यह पौधे एक-एक कर मर रहे हैं।
मुनस्यारी में पाए जाने वाले जरक (टेरिकॉर्पस टेरिल) के पौधे देशभर में सिर्फ इसी जगह पाए जाते हैं। यह सेहत के लिए मुफीद लोकल मठ्ठा बनाने के काम आता है। इसके पौधों की संख्या वर्ष 1985 से लगातार कम हो रही है। मोहंड देहरादून में पाई जाने वाली वनमूली (एरिमो सेटिक्स) भी विलुप्ति की कगार पर है। जौनसार में लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर उगने वाले खोरू (मैहूनिया जानसारासिस) की जड़ों से दवा बनाई जाती है। पिछले 10 सालों में इसकी संख्या में रिकार्ड गिरावट आई है। इसी तरह चंपावत का लोकल तेजपत्ता कहा जाने वाला सिनामोमम ग्लैंडुलिफेरम भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इस संकट को देखते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आदेश पर एफआरआइ की बॉटनी डिविजन इन पौधों के जीवन पर आए संकट का अध्ययन कर रह रही है। डिविजन की कार्यवाह हेड डॉ. वीना चंद्र ने बताया कि स्थल पर जाकर विभिन्न पर्यावरणीय व पौधों से जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है। समस्या पता लगते ही समाधान के प्रयास किए जाएंगे।
pahar- वैसे तो हर पौधे का पर्यावरण में अपना महत्व होता है, लेकिन जब पौधे औषधीय प्रयोग वाले हों तो उनकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। चिंता की बात यह है कि उत्तराखंड में ऐसी चार पादप प्रजातियां अस्तित्व के गंभीर खतरे से जूझ रही हैं। यह खतरा ढाई दशक से इन्हें चपेट में ले रहा है। इनमें एक वनस्पति तो ऐसी है जो देशभर में सिर्फ उत्तराखंड में ही पाई जाती है। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुट गए हैं कि आखिर किन कारणों से यह पौधे एक-एक कर मर रहे हैं।
मुनस्यारी में पाए जाने वाले जरक (टेरिकॉर्पस टेरिल) के पौधे देशभर में सिर्फ इसी जगह पाए जाते हैं। यह सेहत के लिए मुफीद लोकल मठ्ठा बनाने के काम आता है। इसके पौधों की संख्या वर्ष 1985 से लगातार कम हो रही है। मोहंड देहरादून में पाई जाने वाली वनमूली (एरिमो सेटिक्स) भी विलुप्ति की कगार पर है। जौनसार में लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर उगने वाले खोरू (मैहूनिया जानसारासिस) की जड़ों से दवा बनाई जाती है। पिछले 10 सालों में इसकी संख्या में रिकार्ड गिरावट आई है। इसी तरह चंपावत का लोकल तेजपत्ता कहा जाने वाला सिनामोमम ग्लैंडुलिफेरम भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इस संकट को देखते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आदेश पर एफआरआइ की बॉटनी डिविजन इन पौधों के जीवन पर आए संकट का अध्ययन कर रह रही है। डिविजन की कार्यवाह हेड डॉ. वीना चंद्र ने बताया कि स्थल पर जाकर विभिन्न पर्यावरणीय व पौधों से जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है। समस्या पता लगते ही समाधान के प्रयास किए जाएंगे।
उत्तराखंड की धरोहर संजो रही गढ़वाल सभा
सुखद : देवभूमि की यादें संजोने के लिए अखिल गढ़वाल सभा ने तैयार किया संग्रहालय
देहरादून- यादें संजोकर रखी जाएं तो धरोहर बन जाती हैं,
उस पीढ़ी के लिए जो अपने अतीत के बारे में बहुत कुछ या यूं कहें कि कुछ भी नहीं जानती। जो आगे बढ़ने की होड़ में यह तक भूल गई्र कि उसकी जड़ें कहां हैं। जिस परिवेश में वह आज है, वहां तक पहुंचने के लिए पूर्वजों को किन-किन रास्तों से होकर गुजरना पड़ा। इसी को ध्यान में रखते हुए अखिल गढ़वाल सभा ऐसा संग्रहालय तैयार कर रहा है, जहां देवभूमि की यादें चिर स्थाई रह सकेंगी।
ग्लोबल होती दुनिया में हम आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन पीछे देखना भूल गए। शायद हमें इसका भी भान नहीं कि इतिहास को भूलने वाला समाज अपना अस्तित्व भी खो बैठता है। जिस इतिहास पर हमें गौरव होना चाहिए था, उसे हमने झेंप का कारण बना दिया। यही वजह है कि नई पीढ़ी को अपने अतीत की कुछ भी जानकारी नहीं। इसी चिंता ने अखिल गढ़वाल सभा को ऐसा संग्रहालय तैयार करने की प्रेरणा दी, जहां देवभूमि की यादें सुरक्षित रहें। नेशविला रोड स्थित अखिल गढ़वाल भवन में तैयार इस संग्रहालय ने अभी पूरी तरह आकार नहीं लिया है, लेकिन यहां ऐसी दर्जनों वस्तुएं मौजूद हैं, जो एक दौर में पहाड़ की समृद्धि का प्रतीक रहीं। इनमें जंदरी (हाथ चक्की), उरख्याली (ओखली), गंजेली (कूटने का यंत्र), हल, दंदाला, निसुड़ा, कूटी (कुदाल), दरांती, थमाली, ज्यूड़े, म्वाले, हुक्का, पर्या, रै, डखुला, पाथा, भड्डू, तांबे व पीतले के तौले, गागर, बंठा, परात, ग्याड़ा, मोर-संगाड़, पठाल, अणसलो, पीतल व तांबे के ढोल-दमौ, डौंर-थाली, अलगोजा, कांसे व पीतल के बर्तन, बांस के सूप, ड्वारा, नरेला, देवी के निसाण आदि प्रमुख हैं। कोशिश यह भी है कि देवभूमि के इतिहास पर शोध करने वाले युवाओं को भी संग्रहालय का लाभ मिले। अखिल गढ़वाल सभा के महासचिव रोशन धस्माना बताते हैं कि अतीत से वर्तमान को परिचित कराने के लिए ऐसा किया जाना नितांत जरूरी है। संग्रहालय को समृद्ध बनाने के लिए उन सभी लोगों से इसमें सहयोग करने की अपील की गई है, जिनके पास अतीत की यादें हैं।
देहरादून- यादें संजोकर रखी जाएं तो धरोहर बन जाती हैं,
उस पीढ़ी के लिए जो अपने अतीत के बारे में बहुत कुछ या यूं कहें कि कुछ भी नहीं जानती। जो आगे बढ़ने की होड़ में यह तक भूल गई्र कि उसकी जड़ें कहां हैं। जिस परिवेश में वह आज है, वहां तक पहुंचने के लिए पूर्वजों को किन-किन रास्तों से होकर गुजरना पड़ा। इसी को ध्यान में रखते हुए अखिल गढ़वाल सभा ऐसा संग्रहालय तैयार कर रहा है, जहां देवभूमि की यादें चिर स्थाई रह सकेंगी।
ग्लोबल होती दुनिया में हम आगे तो बढ़ रहे हैं, लेकिन पीछे देखना भूल गए। शायद हमें इसका भी भान नहीं कि इतिहास को भूलने वाला समाज अपना अस्तित्व भी खो बैठता है। जिस इतिहास पर हमें गौरव होना चाहिए था, उसे हमने झेंप का कारण बना दिया। यही वजह है कि नई पीढ़ी को अपने अतीत की कुछ भी जानकारी नहीं। इसी चिंता ने अखिल गढ़वाल सभा को ऐसा संग्रहालय तैयार करने की प्रेरणा दी, जहां देवभूमि की यादें सुरक्षित रहें। नेशविला रोड स्थित अखिल गढ़वाल भवन में तैयार इस संग्रहालय ने अभी पूरी तरह आकार नहीं लिया है, लेकिन यहां ऐसी दर्जनों वस्तुएं मौजूद हैं, जो एक दौर में पहाड़ की समृद्धि का प्रतीक रहीं। इनमें जंदरी (हाथ चक्की), उरख्याली (ओखली), गंजेली (कूटने का यंत्र), हल, दंदाला, निसुड़ा, कूटी (कुदाल), दरांती, थमाली, ज्यूड़े, म्वाले, हुक्का, पर्या, रै, डखुला, पाथा, भड्डू, तांबे व पीतले के तौले, गागर, बंठा, परात, ग्याड़ा, मोर-संगाड़, पठाल, अणसलो, पीतल व तांबे के ढोल-दमौ, डौंर-थाली, अलगोजा, कांसे व पीतल के बर्तन, बांस के सूप, ड्वारा, नरेला, देवी के निसाण आदि प्रमुख हैं। कोशिश यह भी है कि देवभूमि के इतिहास पर शोध करने वाले युवाओं को भी संग्रहालय का लाभ मिले। अखिल गढ़वाल सभा के महासचिव रोशन धस्माना बताते हैं कि अतीत से वर्तमान को परिचित कराने के लिए ऐसा किया जाना नितांत जरूरी है। संग्रहालय को समृद्ध बनाने के लिए उन सभी लोगों से इसमें सहयोग करने की अपील की गई है, जिनके पास अतीत की यादें हैं।
Wednesday, 20 July 2011
बदरीनाथ में तैयार हो रहा मिनी इंडिया
श्री बदरीनाथ धाम में ‘मिनी इंडिया’ तैयार हो रहा है। महज आठ वर्ष के इस नन्हे भारत की आबादी अब तक 1652 हो चुकी है।
आस्था और विश्वास से सींचे जा रहे इस भारत में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भूखंड आरक्षित हैं, जिनमें चार प्रजातियों की वंश वृद्धि की जा रही है। यह नया भारत न सिर्फ अनेकता में एकता का प्रतीक है, बल्कि देश और दुनिया को पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट होने का संदेश भी दे रहा है।
बात हो रही है भू-बैकुंठ धाम श्री बदरीनाथ में तैयार किए जा रहे एक अनूठे वन की, जिसे बदरीश एकता वन नाम दिया गया है। 23 जून 2002 को वन महकमे ने श्री बदरीनाथ धाम में पर्यावरण संरक्षण को आस्था से जोड़ने की एक अनोखी पहल की। देश के सीमांत गांव माणा और बामणी के सहयोग से बदरीनाथ में देवदर्शनी के पास नौ हेक्टेअर भूमि का चयन किया गया, जिसे 35 हिस्सों में बांटकर सभी 28 राज्यों व सात केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भूमि आरिक्षत की गई। देश के सभी राज्यों के लोगों की भागीदारी से यहां बदरीश एकता वन की स्थापना करना इसका मकसद था। यानि देश के कोने-कोने से श्री बदरीनाथ आने वाले यात्रियों को इस बात के लिए प्रेरित करना कि वे अपने पूर्वजों, परिजनों, मित्रों अथवा यात्रा की स्मृति में अपने-अपने राज्यों के लिए आवंटित भूमि पर एक-एक पौधा रोपित करें।
इसके लिए पेड़ लगाने वाले प्रत्येक यात्री को वन विभाग को सौ रुपये देने होते हैं, जिसमें पौधे की कीमत और उसके रखरखाव का खर्च शामिल है।
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन यह योजना रंग लाने लगी है। अब तक देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आए तीर्थयात्री 1652 पौधों का रोपण कर चुके हैं, जिनमें भोजपत्र, कैल, देवदार, जमनोई प्रजातियां शामिल हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रचार-प्रसार के अभाव में बदरीश एकता वन तेजी से नहीं फलफूल पाया है। हालांकि, अब इस वन पर सूबे के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की नजरें इनायत हुई हैं। गत माह बदरीनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने न सिर्फ बदरीश एकता वन के कांसेप्ट की सराहना की, बल्कि उसके रखरखाव और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम का जिम्मा टास्क फोर्स को सौंपने की घोषणा भी की।
अब इस वन को कैम्पा प्रोजेक्ट के तहत संवारा जाएगा। वन क्षेत्र पर लगे पौधे पर उसे रोपित करने वाले व्यक्ति की नेम प्लेट लगाई जाएगी।
पर्यावरण संरक्षण को आस्था से जोड़कर शुरू की गई अनूठी पहल सभी राज्यों के लिए आरक्षित है भूमि पौधरोपण कर रहे हैं तीर्थयात्री बदरीश एकता वन को कैम्पा प्रोजेक्ट के तहत विकसित करने के निर्देश राज्य सरकार से मिले हैं। योजना के प्रचार- प्रचार के लिए विभिन्न राज्यों में प्रचार सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाएगा।
सनातन, डीएफओ, अलकनंदा वन प्रभाग, चमोली
आस्था और विश्वास से सींचे जा रहे इस भारत में सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भूखंड आरक्षित हैं, जिनमें चार प्रजातियों की वंश वृद्धि की जा रही है। यह नया भारत न सिर्फ अनेकता में एकता का प्रतीक है, बल्कि देश और दुनिया को पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट होने का संदेश भी दे रहा है।
बात हो रही है भू-बैकुंठ धाम श्री बदरीनाथ में तैयार किए जा रहे एक अनूठे वन की, जिसे बदरीश एकता वन नाम दिया गया है। 23 जून 2002 को वन महकमे ने श्री बदरीनाथ धाम में पर्यावरण संरक्षण को आस्था से जोड़ने की एक अनोखी पहल की। देश के सीमांत गांव माणा और बामणी के सहयोग से बदरीनाथ में देवदर्शनी के पास नौ हेक्टेअर भूमि का चयन किया गया, जिसे 35 हिस्सों में बांटकर सभी 28 राज्यों व सात केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भूमि आरिक्षत की गई। देश के सभी राज्यों के लोगों की भागीदारी से यहां बदरीश एकता वन की स्थापना करना इसका मकसद था। यानि देश के कोने-कोने से श्री बदरीनाथ आने वाले यात्रियों को इस बात के लिए प्रेरित करना कि वे अपने पूर्वजों, परिजनों, मित्रों अथवा यात्रा की स्मृति में अपने-अपने राज्यों के लिए आवंटित भूमि पर एक-एक पौधा रोपित करें।
इसके लिए पेड़ लगाने वाले प्रत्येक यात्री को वन विभाग को सौ रुपये देने होते हैं, जिसमें पौधे की कीमत और उसके रखरखाव का खर्च शामिल है।
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन यह योजना रंग लाने लगी है। अब तक देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आए तीर्थयात्री 1652 पौधों का रोपण कर चुके हैं, जिनमें भोजपत्र, कैल, देवदार, जमनोई प्रजातियां शामिल हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रचार-प्रसार के अभाव में बदरीश एकता वन तेजी से नहीं फलफूल पाया है। हालांकि, अब इस वन पर सूबे के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की नजरें इनायत हुई हैं। गत माह बदरीनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री डा. निशंक ने न सिर्फ बदरीश एकता वन के कांसेप्ट की सराहना की, बल्कि उसके रखरखाव और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम का जिम्मा टास्क फोर्स को सौंपने की घोषणा भी की।
अब इस वन को कैम्पा प्रोजेक्ट के तहत संवारा जाएगा। वन क्षेत्र पर लगे पौधे पर उसे रोपित करने वाले व्यक्ति की नेम प्लेट लगाई जाएगी।
पर्यावरण संरक्षण को आस्था से जोड़कर शुरू की गई अनूठी पहल सभी राज्यों के लिए आरक्षित है भूमि पौधरोपण कर रहे हैं तीर्थयात्री बदरीश एकता वन को कैम्पा प्रोजेक्ट के तहत विकसित करने के निर्देश राज्य सरकार से मिले हैं। योजना के प्रचार- प्रचार के लिए विभिन्न राज्यों में प्रचार सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाएगा।
सनातन, डीएफओ, अलकनंदा वन प्रभाग, चमोली
Monday, 18 July 2011
General Hospital, Health Department office in Dehradun, computer programmers, computer operator recruitment - lest date 09/08/2011
कार्यालय महानिदेशक चिकित्सालय स्वास्थ विभाग देहरादून मे कम्पयूटर प्रोगामर, कम्पयूटर आपरेटर की भर्ती-अंतिम तिथि 9/8/2011
फिल्मकारों को लुभाने में सरकार फेल
हल्द्वानी- खूबसूरत वादियां, हिमालय की चोटियां, ऊंचे-नीचे पर्वतों की अनूठी श्रृंखला के बीच बसे उत्तराखंड में फिल्मांकन की अपार संभावनाएं हैं,
लेकिन राज्य सरकार का नकारात्मक रवैया फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों में आक्रोश पैदा कर रहा है। यहां तक कि भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार के फिल्मों को अनुदान देने के शासनादेश को भी कूड़े में फेंक दिया।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार में क्षेत्रीय फिल्म विकास परिषद का गठन किया गया था। महेश शर्मा को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था। 15 दिसंबर 2006 को सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के अपर सचिव सुवर्द्धन ने शासनादेश जारी किया था। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को अनुदान दिये जाने का प्रावधान था। इसमें उल्लेख था कि गढ़वाली व कुमाऊंनी बोलियों में बनी फीचर फिल्मों के निर्माण के लागत का 30 प्रतिशत अथवा अधिकतम 10 लाख रुपये का अनुदान दिया जाएगा। इसके लिए फिल्म को सेंसर प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। इन फिल्मों का 75 प्रतिशत फिल्मांकन राज्य में ही करना होगा। साथ ही शूटिंग स्थलों का नाम उनके वर्तमान नाम के अनुरुप ही रखना होगा। स्थानीय कलाकारों को अधिक प्रतिनिधित्व देना होगा। इसके साथ ही डाक्यूमेंट्री फिल्मों व सेलूलाइड पर निर्मित फीचर फिल्मों के अतिरिक्त वीडियो तथा सीडी पर निर्मित फिल्मों को भी अनुदान दिया जाएगा। लोक फिल्मकारों ने फिल्में बनायी और अनुदान के लिए आवेदन किया। विडंबना यह है कि जब तक अनुदान मिलने की प्रक्रिया पूरी होती, तब तक सरकार बदल गयी। राज्य में भाजपा की सरकार बनी। साढ़े चार साल पूरे होने को हैं, लेकिन दु:खद यह है कि इस शासनादेश को कूड़े में ही फेंक दिया गया। लोक फिल्मों को बढ़ावा देने की कोई पहल नहीं हुई। फिल्म निर्माता व निर्देशक विक्की योगी का कहना है कि राज्य में फिल्म ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिससे राज्य की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो सकती है, लेकिन राज्य सरकार इसे बढ़ावा नहीं दे रही है। मीडिया सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष डा. अनिल डब्बू का कहना है कि प्रदेश सरकार लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
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कांग्रेस शासनकाल में राज्य में फिल्मी माहौल था। हजारों युवा इसमें भाग्य आजमा रहे थे। राज्य में कई नामचीन फिल्मों की शूटिंग हुई थी। फिल्म परिषद का कार्यालय बना, लेकिन भाजपा सरकार ने यहां के कलाकारों के अरमानों में पानी फेर दिया। साढ़े चार वर्ष तक कुछ भी नहीं किया।
महेश शर्मा
पूर्व उपाध्यक्ष, क्षेत्रीय फिल्म सलाहकार परिषद
राज्य में संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अनुदान दिया जाता है। सरकार प्रयासरत है। फिल्में कामर्शियल श्रेणी में आ जाती है। इसलिए अनुदान नहीं मिलता है।
बीना भट्ट
निदेशक, संस्कृति विभाग
विडंबना
6कांग्रेस शासन के समय के शासनादेश को भी कूड़े में फेंका
6नई नीति बनाने की नहीं हुई पहल
610 लाख रुपये तक के अनुदान देने का था प्रावधान
उपेक्षा : सरकार के रवैये से आक्रोशित हैं कलाकार
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लेकिन राज्य सरकार का नकारात्मक रवैया फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों में आक्रोश पैदा कर रहा है। यहां तक कि भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार के फिल्मों को अनुदान देने के शासनादेश को भी कूड़े में फेंक दिया।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार में क्षेत्रीय फिल्म विकास परिषद का गठन किया गया था। महेश शर्मा को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया था। 15 दिसंबर 2006 को सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के अपर सचिव सुवर्द्धन ने शासनादेश जारी किया था। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को अनुदान दिये जाने का प्रावधान था। इसमें उल्लेख था कि गढ़वाली व कुमाऊंनी बोलियों में बनी फीचर फिल्मों के निर्माण के लागत का 30 प्रतिशत अथवा अधिकतम 10 लाख रुपये का अनुदान दिया जाएगा। इसके लिए फिल्म को सेंसर प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। इन फिल्मों का 75 प्रतिशत फिल्मांकन राज्य में ही करना होगा। साथ ही शूटिंग स्थलों का नाम उनके वर्तमान नाम के अनुरुप ही रखना होगा। स्थानीय कलाकारों को अधिक प्रतिनिधित्व देना होगा। इसके साथ ही डाक्यूमेंट्री फिल्मों व सेलूलाइड पर निर्मित फीचर फिल्मों के अतिरिक्त वीडियो तथा सीडी पर निर्मित फिल्मों को भी अनुदान दिया जाएगा। लोक फिल्मकारों ने फिल्में बनायी और अनुदान के लिए आवेदन किया। विडंबना यह है कि जब तक अनुदान मिलने की प्रक्रिया पूरी होती, तब तक सरकार बदल गयी। राज्य में भाजपा की सरकार बनी। साढ़े चार साल पूरे होने को हैं, लेकिन दु:खद यह है कि इस शासनादेश को कूड़े में ही फेंक दिया गया। लोक फिल्मों को बढ़ावा देने की कोई पहल नहीं हुई। फिल्म निर्माता व निर्देशक विक्की योगी का कहना है कि राज्य में फिल्म ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिससे राज्य की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हो सकती है, लेकिन राज्य सरकार इसे बढ़ावा नहीं दे रही है। मीडिया सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष डा. अनिल डब्बू का कहना है कि प्रदेश सरकार लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
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कांग्रेस शासनकाल में राज्य में फिल्मी माहौल था। हजारों युवा इसमें भाग्य आजमा रहे थे। राज्य में कई नामचीन फिल्मों की शूटिंग हुई थी। फिल्म परिषद का कार्यालय बना, लेकिन भाजपा सरकार ने यहां के कलाकारों के अरमानों में पानी फेर दिया। साढ़े चार वर्ष तक कुछ भी नहीं किया।
महेश शर्मा
पूर्व उपाध्यक्ष, क्षेत्रीय फिल्म सलाहकार परिषद
राज्य में संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अनुदान दिया जाता है। सरकार प्रयासरत है। फिल्में कामर्शियल श्रेणी में आ जाती है। इसलिए अनुदान नहीं मिलता है।
बीना भट्ट
निदेशक, संस्कृति विभाग
विडंबना
6कांग्रेस शासन के समय के शासनादेश को भी कूड़े में फेंका
6नई नीति बनाने की नहीं हुई पहल
610 लाख रुपये तक के अनुदान देने का था प्रावधान
उपेक्षा : सरकार के रवैये से आक्रोशित हैं कलाकार
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जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया..
हल्द्वानी: जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया, स्यावे जै बुद्धि हो, स्यूं जस तराण, दुबै जसि जड़ है जो, धरती जास चकाव है जाया,
आकाश जास उकाव। बड़े-बुजुर्गो के इन्हीं आशीर्वचनों में निहित है हरेला पर्व का गूढ़ महत्व। अनूठी परंपरा वाला यह पर्व सुख समृद्घि का प्रतीक भी है।
श्रावण मास के प्रथम दिन कर्क संक्रांति के रूप में मनाए जाने वाला हरेला पर्व उत्तराखंड के पौराणिक पर्वो में है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए इसे कर्क संक्रान्ति व श्रावण संक्रान्ति भी कहा जाता है। श्रावण मास का हरेला पर्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रीष्मकाल के बाद बरसात में चारों ओर हरियाली नजर आने लगती है। परिवार के मुखिया सावन मास शुरू होने के 10 दिन पूर्व टोकरियों में मिट्टी भर गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों आदि सात प्रकार के अनाज को बोते हैं। पूजा स्थल में सुबह-शाम इसकी पूजा के समय बोए गए अनाज को पानी दिया जाता है। संक्रांति के एक दिन पूर्व हरेले की गुड़ाई की जाती है। शिव एवं पार्वती तथा लोक देवताओं की मूर्तियां (डिकारे) हरेले के पौधों के साथ रखकर पूजे जाते हैं। संक्रांति के दिन तक हरेले के पौधे 20 से 30 सेंटीमीटर ऊंचे व पीले रंग के हो जाते हैं।
संक्रांति सुबह टोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा कर पत्तियां देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती हैं। फिर घर के सदस्यों के सिर पर रख घर के बड़े-बुजुर्ग जी रया जागि रया.. सरीखे दीर्घायु व बुद्धिमान होने का आशीर्वाद देते हैं।
आकाश जास उकाव। बड़े-बुजुर्गो के इन्हीं आशीर्वचनों में निहित है हरेला पर्व का गूढ़ महत्व। अनूठी परंपरा वाला यह पर्व सुख समृद्घि का प्रतीक भी है।
श्रावण मास के प्रथम दिन कर्क संक्रांति के रूप में मनाए जाने वाला हरेला पर्व उत्तराखंड के पौराणिक पर्वो में है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए इसे कर्क संक्रान्ति व श्रावण संक्रान्ति भी कहा जाता है। श्रावण मास का हरेला पर्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रीष्मकाल के बाद बरसात में चारों ओर हरियाली नजर आने लगती है। परिवार के मुखिया सावन मास शुरू होने के 10 दिन पूर्व टोकरियों में मिट्टी भर गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों आदि सात प्रकार के अनाज को बोते हैं। पूजा स्थल में सुबह-शाम इसकी पूजा के समय बोए गए अनाज को पानी दिया जाता है। संक्रांति के एक दिन पूर्व हरेले की गुड़ाई की जाती है। शिव एवं पार्वती तथा लोक देवताओं की मूर्तियां (डिकारे) हरेले के पौधों के साथ रखकर पूजे जाते हैं। संक्रांति के दिन तक हरेले के पौधे 20 से 30 सेंटीमीटर ऊंचे व पीले रंग के हो जाते हैं।
संक्रांति सुबह टोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा कर पत्तियां देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती हैं। फिर घर के सदस्यों के सिर पर रख घर के बड़े-बुजुर्ग जी रया जागि रया.. सरीखे दीर्घायु व बुद्धिमान होने का आशीर्वाद देते हैं।
Saturday, 16 July 2011
अब 2200 पदों पर भर्ती की सौगात
देहरादून- हाल ही में पुलिस महकमे में लगभग डेढ़ हजार पदों पर भर्ती के बाद सरकार राज्य के युवा बेरोजगारों को फिर जल्द ही पुलिस कांस्टेबल के दो हजार से ज्यादा पदों पर नियुक्ति का तोहफा देने जा रही है।
पुलिस मुख्यालय ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजकर भर्ती की अनुमति मांगी है। संभावना है कि जल्द ही इसकी प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। शासन के सूत्रों के मुताबिक दो दिन पूर्व ही पुलिस
मुख्यालय ने शासन को पुलिस भर्ती के संबंध में एक प्रस्ताव भेजा है। इसमें कांस्टेबल के कुल 2191 पदों पर भर्ती की शासन से अनुमति मांगी गई है। इनमें सिविल पुलिस के 1997, पीएसी के 144 और फायर सर्विस के 50 पद शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक यह भर्ती उन रिक्त पदों के सापेक्ष की जा रही है, जो उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से मिले हैं। इस क्रम में हाल ही कांस्टेबल के 1450 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पूर्ण हुई है और अब जो 2191 पदों पर भर्ती का प्रस्ताव है, इसमें भी अधिकांश पद उत्तर प्रदेश वाले ही हैं। माना जा रहा है कि नई भर्ती के बाद सूबे में पुलिस-पब्लिक का मानक प्रतिशत काफी हद तक सुधर जाएगा। मालूम हो कि, गत वर्ष मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने पुलिस महकमे में कांस्टेबल के 1450 पदों को हरी झंडी दिखाई थी। इसमें 1350 पद सिविल व सशस्त्र पुलिस, जबकि सौ पद फायर कर्मियों के थे। दिसंबर में इन पदों पर भर्ती प्रक्रिया आरंभ हुई और फरवरी में शारीरिक मापदंड व लिखित परीक्षा के बाद मार्च में परिणाम घोषित हो गए। इन सभी अभ्यर्थियों का नरेंद्रनगर पीटीसी में प्रशिक्षण चल रहा है। ऐसे में 2200 नए पद सृजित करने का महकमे का प्रस्ताव सूबे के बेरोजगार युवाओं के लिए सौगात माना जा रहा है।
पुलिस मुख्यालय ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजकर भर्ती की अनुमति मांगी है। संभावना है कि जल्द ही इसकी प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। शासन के सूत्रों के मुताबिक दो दिन पूर्व ही पुलिस
मुख्यालय ने शासन को पुलिस भर्ती के संबंध में एक प्रस्ताव भेजा है। इसमें कांस्टेबल के कुल 2191 पदों पर भर्ती की शासन से अनुमति मांगी गई है। इनमें सिविल पुलिस के 1997, पीएसी के 144 और फायर सर्विस के 50 पद शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक यह भर्ती उन रिक्त पदों के सापेक्ष की जा रही है, जो उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से मिले हैं। इस क्रम में हाल ही कांस्टेबल के 1450 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पूर्ण हुई है और अब जो 2191 पदों पर भर्ती का प्रस्ताव है, इसमें भी अधिकांश पद उत्तर प्रदेश वाले ही हैं। माना जा रहा है कि नई भर्ती के बाद सूबे में पुलिस-पब्लिक का मानक प्रतिशत काफी हद तक सुधर जाएगा। मालूम हो कि, गत वर्ष मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने पुलिस महकमे में कांस्टेबल के 1450 पदों को हरी झंडी दिखाई थी। इसमें 1350 पद सिविल व सशस्त्र पुलिस, जबकि सौ पद फायर कर्मियों के थे। दिसंबर में इन पदों पर भर्ती प्रक्रिया आरंभ हुई और फरवरी में शारीरिक मापदंड व लिखित परीक्षा के बाद मार्च में परिणाम घोषित हो गए। इन सभी अभ्यर्थियों का नरेंद्रनगर पीटीसी में प्रशिक्षण चल रहा है। ऐसे में 2200 नए पद सृजित करने का महकमे का प्रस्ताव सूबे के बेरोजगार युवाओं के लिए सौगात माना जा रहा है।
Thursday, 14 July 2011
फूलों से महकेगा असी गंगा का आंचल
उत्तरकाशी
सब कुछ ठीक ठाक रहा तो पर्यटकों को जल क्रीड़ा के लिये मशहूर असी गंगा का आंचल फूलों की खुशबू से भी महक उठेगा।
वन विभाग ने असी गंगा के तटों पर फैली बंजर वन भूमि का आकलन कर पुष्प तथा नव गृह वाटिका विकसित करने की योजना तैयार कर ली है। प्रस्ताव पर शासन की स्वीकृति मिलते ही कार्य शुरू हो जाएंगे।
असी गंगा घाटी अपनी नैसर्गिक सुंदरता के चलते हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। डोडीताल से निकलने वाली इस नदी की लहरों में जलक्रीड़ा के लिये अनेक पसंदीदा जगहे खुद ब खुद विकसित हो गई। अब पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए वन विभाग इसे व्यवस्थित रूप देने की तैयारी कर रहा है। नदी तट की बंजर पड़ी वन भूमि के सौंदर्यीकरण के सुध लेते हुए विभाग ने योजना तैयार की है। इसके मुताबिक असी गंगा के तटों पर बंजर पड़ी भूमि पर मुख्यमंत्री हरित विकास योजना के तहत नव गृह वाटिका, पुष्प वाटिका तथा पिकनिक स्पॉट बनाये जाएंगे। जल क्रीड़ा करने के शौकीनों के लिए वाटर स्पोर्ट्स को खास तरीके से विकसित करने की भी योजना है, ताकि किसी भी पर्यटक को जलक्रीड़ा करते समय कोई परेशानी का सामना न करना पड़े। बाड़ाहाट रेंज के वनाक्षेत्राधिकारी आशीष डिमरी के मुताबिक असी गंगा के 10 किलोमीटर के क्षेत्र में बंजर पड़ी वन भूमि पर यह सभी कार्य किए जाएंगे। इसके लिए शासन से अनुमति का इंतजार है।
स्थानीय लोग उठा सकेंगे लाभ
उत्तरकाशी: वन विभाग की असी गंगा घाटी की इस योजना को शासन स्तर से स्वीकृति मिलती है तो इसमें नवगृह वाटिका बनाने के साथ ही कैंपिंग साइट तथा छोटे-छोटे पार्क बनाए जाएंगे। इन्हें सामुदायिक विकास योजना के आधार पर संचालित किया जाएगा, ताकि पर्यटन से स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सके। असी गंगा घाटी के बाद अगोड़ा डोडीताल ट्रैक पर वन विभाग की गतिविधियां सामुदायिक स्तर पर ही संचालित हो रही हैं।
'असी गंगा क्षेत्र में नवगृह वाटिका योजना बनाई है नवगृह वाटिका का प्रस्ताव स्वीकृति के लिए शासन को भेज दिया है। मंजूरी मिलते ही इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया जाएगा'
डॉ.आईपी सिंह
प्रभागीय वनाधिकारी।
सब कुछ ठीक ठाक रहा तो पर्यटकों को जल क्रीड़ा के लिये मशहूर असी गंगा का आंचल फूलों की खुशबू से भी महक उठेगा।
वन विभाग ने असी गंगा के तटों पर फैली बंजर वन भूमि का आकलन कर पुष्प तथा नव गृह वाटिका विकसित करने की योजना तैयार कर ली है। प्रस्ताव पर शासन की स्वीकृति मिलते ही कार्य शुरू हो जाएंगे।
असी गंगा घाटी अपनी नैसर्गिक सुंदरता के चलते हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। डोडीताल से निकलने वाली इस नदी की लहरों में जलक्रीड़ा के लिये अनेक पसंदीदा जगहे खुद ब खुद विकसित हो गई। अब पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए वन विभाग इसे व्यवस्थित रूप देने की तैयारी कर रहा है। नदी तट की बंजर पड़ी वन भूमि के सौंदर्यीकरण के सुध लेते हुए विभाग ने योजना तैयार की है। इसके मुताबिक असी गंगा के तटों पर बंजर पड़ी भूमि पर मुख्यमंत्री हरित विकास योजना के तहत नव गृह वाटिका, पुष्प वाटिका तथा पिकनिक स्पॉट बनाये जाएंगे। जल क्रीड़ा करने के शौकीनों के लिए वाटर स्पोर्ट्स को खास तरीके से विकसित करने की भी योजना है, ताकि किसी भी पर्यटक को जलक्रीड़ा करते समय कोई परेशानी का सामना न करना पड़े। बाड़ाहाट रेंज के वनाक्षेत्राधिकारी आशीष डिमरी के मुताबिक असी गंगा के 10 किलोमीटर के क्षेत्र में बंजर पड़ी वन भूमि पर यह सभी कार्य किए जाएंगे। इसके लिए शासन से अनुमति का इंतजार है।
स्थानीय लोग उठा सकेंगे लाभ
उत्तरकाशी: वन विभाग की असी गंगा घाटी की इस योजना को शासन स्तर से स्वीकृति मिलती है तो इसमें नवगृह वाटिका बनाने के साथ ही कैंपिंग साइट तथा छोटे-छोटे पार्क बनाए जाएंगे। इन्हें सामुदायिक विकास योजना के आधार पर संचालित किया जाएगा, ताकि पर्यटन से स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सके। असी गंगा घाटी के बाद अगोड़ा डोडीताल ट्रैक पर वन विभाग की गतिविधियां सामुदायिक स्तर पर ही संचालित हो रही हैं।
'असी गंगा क्षेत्र में नवगृह वाटिका योजना बनाई है नवगृह वाटिका का प्रस्ताव स्वीकृति के लिए शासन को भेज दिया है। मंजूरी मिलते ही इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया जाएगा'
डॉ.आईपी सिंह
प्रभागीय वनाधिकारी।
नैनीताल में सिटी बस संचालन को जनहित याचिका दायर
-परिवहन निगम को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश
नैनीताल: नैनीताल में सिटी बस संचालन के लिए हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने परिवहन निगम को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
अधिवक्ता गोपाल वर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि भारत सरकार की जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के तहत उत्तराखंड परिवहन निगम को नैनीताल शहर में सिटी बसों के संचालन के लिए धनराशि आवंटित हुई थी, लेकिन परिवहन निगम द्वारा आवंटित धनराशि से 20 सिटी बसें खरीदी गई। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि केंद्र सरकार से राज्य सरकार को इस मद में 1.43 करोड़ मिले। राज्य सरकार ने बसों की खरीद के लिए परिवहन निगम को नोडल एजेंसी नामित करते हुए उक्त धनराशि दी गई थी। उन्होंने बताया कि उक्त धनराशि से 27 सीटर 25 बसें खरीदनी थी, लेकिन परिवहन निगम द्वारा केवल 20 बसें ही खरीदी गई। उन्होंने अदालत को बताया कि परिवहन निगम द्वारा 20 बसों में से एक भी बस नैनीताल शहर में नहीं चलाई जा रही है। मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष व न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त पीठ ने मामले को सुनने के बाद परिवहन निगम को दो सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए
नैनीताल: नैनीताल में सिटी बस संचालन के लिए हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने परिवहन निगम को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
अधिवक्ता गोपाल वर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि भारत सरकार की जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के तहत उत्तराखंड परिवहन निगम को नैनीताल शहर में सिटी बसों के संचालन के लिए धनराशि आवंटित हुई थी, लेकिन परिवहन निगम द्वारा आवंटित धनराशि से 20 सिटी बसें खरीदी गई। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि केंद्र सरकार से राज्य सरकार को इस मद में 1.43 करोड़ मिले। राज्य सरकार ने बसों की खरीद के लिए परिवहन निगम को नोडल एजेंसी नामित करते हुए उक्त धनराशि दी गई थी। उन्होंने बताया कि उक्त धनराशि से 27 सीटर 25 बसें खरीदनी थी, लेकिन परिवहन निगम द्वारा केवल 20 बसें ही खरीदी गई। उन्होंने अदालत को बताया कि परिवहन निगम द्वारा 20 बसों में से एक भी बस नैनीताल शहर में नहीं चलाई जा रही है। मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष व न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त पीठ ने मामले को सुनने के बाद परिवहन निगम को दो सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए
स्वतंत्रता सेनानी आश्रित कहलाएंगे उत्तराधिकारी
सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों की मुराद पूरी कर दी। आश्रित अब उत्तराधिकारी माने जाएंगे। सेनानियों की विवाहित पुत्रियों को भी परिचय पत्र दिए जाएंगे। शिक्षण संस्थाओं में क्षैतिज (हॉरिजंटल) आरक्षण के लिए परिचय पत्र ही बतौर सर्टिफिकेट मान्य होंगे। उन्हें निजी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा मुहैया होगी।
मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में बुधवार को सचिवालय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मांगों के संबंध में बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। यह तय हुआ कि सरकारी गेस्टहाउस और इंस्पेक्शन हाउस में सेनानियों की पहली पीढ़ी के उत्तराधिकारी को ठहरने की सुविधा होगी। सरकारी योजनाओं और समितियों में उन्हें नामित किया जाएगा। दून में जोगीवाला बाईपास पर स्वतंत्रता संग्राम सदन बनेगा। बैठक में मुख्य सचिव ने डीएम सचिन कुर्वे को तलब किया। डीएम के दो में से एक विकल्प जोगीवाला बाईपास पर एक बीघा जमीन पर सदन के निर्माण का निर्णय हुआ।
सरकार के निर्णय की कड़ी में विद्यालयी शिक्षा महकमा सेनानियों के परिचय पत्र को क्षैतिज आरक्षण के लिए प्रमाण पत्र मनाने संबंधी शासनादेश जारी कर चुका है। मुख्य सचिव ने उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा को उक्त आदेश जारी करने के निर्देश दिए। अब सेनानियों के उत्तराधिकारियों की पहली पीढ़ी सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेगी। इस बाबत परिवहन महकमे को शासनादेश जारी करने को कहा गया। स्वतंत्रता सेनानियों की विधवाओं को भी राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के बारे में पखवाड़े के भीतर फैसला होगा।
मुख्य सचिव के मुताबिक सेनानियों के उत्तराधिकारियों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा के बारे मे जल्द फैसला होगा। साथ ही राज्य के विभिन्न स्थानों पर गली-चौराहों का नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखने के बारे में सभी जिलाधिकारियों को शासन से निर्देश जारी किए जाएंगे। आवासहीन स्वतंत्रता सेनानियों और उनके उत्तराधिकारियों को आवास के लिए भूमि मुहैया कराने के प्रस्ताव का परीक्षण होगा। बैठक में गृह प्रमुख सचिव राजीव गुप्ता, गृह अपर सचिव भास्करानंद, तकनीकी शिक्षा अपर सचिव (स्वतंत्र प्रभार) आरके सुधांशु, अपर सचिव उषा शुक्ला, विनोद रतूड़ी, उप सचिव जेपी जोशी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनके उत्तराधिकारी मौजूद थे।
मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में बुधवार को सचिवालय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मांगों के संबंध में बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। यह तय हुआ कि सरकारी गेस्टहाउस और इंस्पेक्शन हाउस में सेनानियों की पहली पीढ़ी के उत्तराधिकारी को ठहरने की सुविधा होगी। सरकारी योजनाओं और समितियों में उन्हें नामित किया जाएगा। दून में जोगीवाला बाईपास पर स्वतंत्रता संग्राम सदन बनेगा। बैठक में मुख्य सचिव ने डीएम सचिन कुर्वे को तलब किया। डीएम के दो में से एक विकल्प जोगीवाला बाईपास पर एक बीघा जमीन पर सदन के निर्माण का निर्णय हुआ।
सरकार के निर्णय की कड़ी में विद्यालयी शिक्षा महकमा सेनानियों के परिचय पत्र को क्षैतिज आरक्षण के लिए प्रमाण पत्र मनाने संबंधी शासनादेश जारी कर चुका है। मुख्य सचिव ने उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा को उक्त आदेश जारी करने के निर्देश दिए। अब सेनानियों के उत्तराधिकारियों की पहली पीढ़ी सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेगी। इस बाबत परिवहन महकमे को शासनादेश जारी करने को कहा गया। स्वतंत्रता सेनानियों की विधवाओं को भी राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के बारे में पखवाड़े के भीतर फैसला होगा।
मुख्य सचिव के मुताबिक सेनानियों के उत्तराधिकारियों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा के बारे मे जल्द फैसला होगा। साथ ही राज्य के विभिन्न स्थानों पर गली-चौराहों का नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखने के बारे में सभी जिलाधिकारियों को शासन से निर्देश जारी किए जाएंगे। आवासहीन स्वतंत्रता सेनानियों और उनके उत्तराधिकारियों को आवास के लिए भूमि मुहैया कराने के प्रस्ताव का परीक्षण होगा। बैठक में गृह प्रमुख सचिव राजीव गुप्ता, गृह अपर सचिव भास्करानंद, तकनीकी शिक्षा अपर सचिव (स्वतंत्र प्रभार) आरके सुधांशु, अपर सचिव उषा शुक्ला, विनोद रतूड़ी, उप सचिव जेपी जोशी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनके उत्तराधिकारी मौजूद थे।
Tuesday, 12 July 2011
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Monday, 11 July 2011
Saturday, 9 July 2011
उत्तराखंड में बीएड हुआ महंगा
सूबे में बीएड की पढ़ाई तकरीबन 40 फीसदी महंगी हो गई है। सरकार ने निजी बीएड कालेजों में सरकारी कोटे की फीस सालाना 30 हजार रुपये से बढ़ाकर 42 हजार रुपये की है। मैनेजमेंट कोटे की फीस में 15 हजार रुपये प्रति सीट बढ़ाई गई है। अलबत्ता, सेल्फ फाइनेंस बीएड चला रहे 17 सरकारी कालेजों की फीस में फिलहाल बढ़ोत्तरी नहीं की गई है।
प्रदेश के दस निजी बीएड कालेजों में सरकारी, मैनेजमेंट के साथ ही एनआरआइ कोटे की फीस में भी वृद्धि की गई है। उक्त कालेजों ने फीस बढ़ाने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। शासन स्तर पर गठित फीस निर्धारण समिति ने उक्त प्रस्ताव को मंजूर किया। उक्त कालेजों के लिए तीन वर्ष की अवधि के लिए फीस तय की गई है। शिक्षा सचिव मनीषा पंवार ने इस बाबत शासनादेश जारी किया। इसके तहत सरकारी कोटे की फीस 42 हजार, मैनेजमेंट कोटे की फीस 55 हजार और एनआरआइ कोटे की फीस 75 हजार तय की गई।
इन कालेजों में सूरजमल अग्रवाल प्राइवेट कन्या महाविद्यालय बीएड, किच्छा, चंद्रावती तिवारी कन्या महाविद्यालय काशीपुर, श्री गुरु नानक प्राइवेट कन्या पीजी कालेज नानकमत्ता, देवभूमि
इंस्टीट्यूट आफ वोकेशनल एजुकेशन फार वूमेन, रुद्रपुर, द्रोण बीएड कालेज फार वूमेन, रुद्रपुर (उधमसिंहनगर), जय अरिहंत कालेज आफ टीचर एजुकेशन हल्दूचौड़, प्रजेंटेशन कालेज आफ टीचर एजुकेशन तुलसीनगर दमुआढुंगा काठगोदाम व लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय हल्दूचौड़ (नैनीताल) और सल्ट इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट सल्ट (अल्मोड़ा) शामिल हैं। शासनादेश में उक्त फीस के अलावा अन्य फीस नहीं लेने की सख्त हिदायत दी गई है। अन्य फीस को कैपिटेशन फीस मानकर संबंधित कालेज के खिलाफ कार्रवाई होगी। फीस निर्धारण संबंधी शासनादेश दाखिला लेने वाले सभी छात्र-छात्राओं को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराया जाएगा।
इग्नू: बीएड के लिए स्नातक में 50 प्रतिशत अंकों की नहीं है बाध्यता
pahar1-
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि (इग्नू) ने शिक्षकों को बीएड में प्रवेश के लिए निर्धारित योग्यता में इन सर्विस शिक्षकों को छूट दी है। सामान्य अभ्यर्थियों के लिए जहां स्नातक स्तर पर न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता है, वहीं इन सर्विस शिक्षकों को इस बाध्यता से मुक्त रखा गया है, लेकिन इसके लिए कम से कम दो वर्ष का अनुभव जरूरी होगा। आवेदन की अंतिम तिथि 15 जुलाई है और प्रवेश परीक्षा 21 अगस्त को होगी।
इग्नू के बीएड पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के इच्छुक शिक्षकों के लिए अच्छी खबर है। विवि ने दो वर्ष से ज्यादा के अनुभव वाले इन सर्विस टीचर्स के लिए न्यूनतम अंकों की बाध्यता समाप्त कर दी है। विवि के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अनिल डिमरी ने बताया कि वर्तमान सत्र में प्रवेश के लिए 21 अगस्त को होने वाली वाली प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन प्रक्रिया जारी है। इच्छुक शिक्षक 15 जुलाई तक आवेदन कर सकते हैं। विवि ने इन सर्विस टीचर्स को बीएड में प्रवेश के लिए राहत दी है। इससे सैकड़ों शिक्षकों का बीएड करने का सपना पूरा हो सकेगा।
Friday, 8 July 2011
समूह ‘ग’ सीधी भर्ती में देना होगा रिक्त पदो का ब्योरा
रिक्त पदों का ब्योरा न देने वाले अधिकारी नपेंगे
मुख्यमंत्री ने दिए कार्रवाई के निर्देश, सीएम कार्यालय में देनी होगी रिक्त पदों की सूचना लोक सेवा आयोग को भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश
pahar1- सरकारी विभागों में रिक्त पदों के बावजूद लोक सेवा आयोग को भर्ती के लिए प्रस्ताव न भेजने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ऐसे विभागों और अधिकारियों को चिह्नित किया जा रहा है। यही नहीं सभी विभागों से रिक्त पदों की जानकारी मुख्यमंत्री ने सीधे अपने कार्यालय को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। सरकार ने विगत दिनों बेरोजगारों को सरकारी सेवाओं में भर्ती करने का ऐलान किया था। इसके तहत समूह ‘ग’ के सीधी भर्ती के करीब 20 हजार पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई। लोक सेवा आयोग के अधिकार क्षेत्र में आने वाले पदों पर भर्ती शुरू नहीं हो सकी। इसकी वजह यह है कि विभागों की ओर से आयोग को न तो रिक्त पदों की जानकारी दी गई और न भर्ती का प्रस्ताव भेजा गया। बृहस्पतिवार को इस बारे में उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों ने मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक से भेंट कर उन्हें आयोग की प्रगति से अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक सेवा आयोग के समक्ष राज्य को होनहार मानव संसाधन देने की जिम्मेदारी है। लोक सेवा आयोग और शासन के मध्य संवादहीनता नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कार्मिक विभाग को निर्देश दिए कि लोक सेवा आयोग की परिधि के सभी रिक्त पदों का विवरण उनके कार्यालय को उपलब्ध कराया जाय। उन्होंने लोक सेवा आयोग को भर्ती के लिए प्रस्ताव भेजने में शिथिलता बरतने वाले विभागों को चिह्नित कर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि नया राज्य होने के चलते कार्मिकों की कमी की वजह से विकास योजनाओं को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आयोग को जल्द से जल्द चयन प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने आयोग में तत्काल परीक्षा नियंत्रक नियुक्त करने के निर्देश भी दिए। आयोग के अध्यक्ष डा. डीपी जोशी ने बताया कि आयोग द्वारा पीसीएस और पीसीएस (जे) की परीक्षा का कैलेण्डर लगभग ठीक कर लिया गया है। वर्ष 2010 की रिक्तियों के विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि 241 समीक्षा अधिकारी एवं सहायक समीक्षा अधिकारी के पदों के भर्ती परिणाम तीन दिन के भीतर आ जाएंगे। उन्होंने बताया कि न्यायालय में लम्बित वाद की सीमा में आने वाले पदों को छोड़कर जूनियर इंजीनियर के पदों पर भर्ती के परिणाम भी एक सप्ताह के भीतर घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस अवसर पर आयोग के सदस्य डा. टीएन सिंह, डा. मंजुला बिष्ट, प्रो. मंजुला राणा, केआर आर्य और अपर सचिव कार्मिक अरविन्द सिंह ह्यांकी भी उपस्थित थे।
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मुख्यमंत्री ने दिए कार्रवाई के निर्देश, सीएम कार्यालय में देनी होगी रिक्त पदों की सूचना लोक सेवा आयोग को भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश
pahar1- सरकारी विभागों में रिक्त पदों के बावजूद लोक सेवा आयोग को भर्ती के लिए प्रस्ताव न भेजने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ऐसे विभागों और अधिकारियों को चिह्नित किया जा रहा है। यही नहीं सभी विभागों से रिक्त पदों की जानकारी मुख्यमंत्री ने सीधे अपने कार्यालय को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। सरकार ने विगत दिनों बेरोजगारों को सरकारी सेवाओं में भर्ती करने का ऐलान किया था। इसके तहत समूह ‘ग’ के सीधी भर्ती के करीब 20 हजार पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई। लोक सेवा आयोग के अधिकार क्षेत्र में आने वाले पदों पर भर्ती शुरू नहीं हो सकी। इसकी वजह यह है कि विभागों की ओर से आयोग को न तो रिक्त पदों की जानकारी दी गई और न भर्ती का प्रस्ताव भेजा गया। बृहस्पतिवार को इस बारे में उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों ने मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक से भेंट कर उन्हें आयोग की प्रगति से अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक सेवा आयोग के समक्ष राज्य को होनहार मानव संसाधन देने की जिम्मेदारी है। लोक सेवा आयोग और शासन के मध्य संवादहीनता नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कार्मिक विभाग को निर्देश दिए कि लोक सेवा आयोग की परिधि के सभी रिक्त पदों का विवरण उनके कार्यालय को उपलब्ध कराया जाय। उन्होंने लोक सेवा आयोग को भर्ती के लिए प्रस्ताव भेजने में शिथिलता बरतने वाले विभागों को चिह्नित कर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि नया राज्य होने के चलते कार्मिकों की कमी की वजह से विकास योजनाओं को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आयोग को जल्द से जल्द चयन प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने आयोग में तत्काल परीक्षा नियंत्रक नियुक्त करने के निर्देश भी दिए। आयोग के अध्यक्ष डा. डीपी जोशी ने बताया कि आयोग द्वारा पीसीएस और पीसीएस (जे) की परीक्षा का कैलेण्डर लगभग ठीक कर लिया गया है। वर्ष 2010 की रिक्तियों के विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि 241 समीक्षा अधिकारी एवं सहायक समीक्षा अधिकारी के पदों के भर्ती परिणाम तीन दिन के भीतर आ जाएंगे। उन्होंने बताया कि न्यायालय में लम्बित वाद की सीमा में आने वाले पदों को छोड़कर जूनियर इंजीनियर के पदों पर भर्ती के परिणाम भी एक सप्ताह के भीतर घोषित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस अवसर पर आयोग के सदस्य डा. टीएन सिंह, डा. मंजुला बिष्ट, प्रो. मंजुला राणा, केआर आर्य और अपर सचिव कार्मिक अरविन्द सिंह ह्यांकी भी उपस्थित थे।
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अंग्रेजी बोलना सीखेंगी प्राथमिक स्कूलों की छात्राएं
लगभग 21 हजार 625 छात्राओं को अंग्रेजी सिखाई जाएगी 663 स्कूलों के बच्चों को 14 हफ्ते का कोर्स कराया जाएगा
pahar1- अगले कुछ वर्षो में अगर सरकारी स्कूलों की बच्चियां भी पब्लिक स्कूलों के बच्चों की तरह अंग्रेजी में गिट-पिट करती और कॉन्वेंट की बच्चियों से मुकाबला करती दिखाई दें तो आपको अचरज नहीं होना चाहिए। इस योजना पर अमल करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान उत्तराखंड ने एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था प्रथम फाउंडेशन के साथ करार किया है। योजना के तहत फाउंडेशन सभी जिलों में स्कूलों को चिह्नित कर वहां के बच्चों को अंग्रेजी बोलना सिखाएंगे। केंद्र सरकार के नेशनल प्रोग्राम फॉर एजुकेशनल ऑफ गल्र्स एट एलिमेंट्री लेवल (एनपीईजीईएल) के तहत अंग्रेजी भाषा के इस विशेष कार्यक्रम में प्राथमिक स्कूलों के लगभग 21 हजार 625 बच्चों को अंग्रेजी सिखाई जाएगी। उत्तराखंड में सभी के लिए शिक्षा परियोजना की राज्य परियोजना निदेशक व अपर सचिव विद्यालयी शिक्षा सौजन्या का कहना है कि इसके लिए प्रदेश में सभी 13 जिलों के उन 19 विकासखंडों के स्कूलों का भी चिह्नीकरण किया गया है जहां महिला साक्षरता का अनुपात राष्ट्रीय साक्षरता अनुपात से कम है। योजना में 663 स्कूल शामिल किए जाएंगे। इसके तहत प्रथम प्रदेश के चिह्नित विद्यालयों के बच्चों को 14 हफ्ते का अंग्रेजी बोलने का कोर्स कराएगा। इस कोर्स के जरिए पहले उन्हें कुछ सवाल करने और फिर उनके जवाब देना सिखाया जाएगा। इसके बाद उनका शब्द ज्ञान बढ़ाने के लिए उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का इस्तेमाल सिखाया जाएगा। बाद में उन्हें अंग्रेजी के साधारण पैराग्राफ पढ़ना और लिखना भी सिखाया जाएगा। प्रथम संस्था देश में गुजरात, मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में अपना इंग्लिश प्रोग्राम चला रही है। इसके तहत आठ से 14 साल के बच्चों में अंग्रेजी बोलने की क्षमता का विकास किया जाता है और शुरुआती अंग्रेजी बोलना व लिखना व पढ़ना सिखाया जाता है। वैसे यह कार्यक्रम आठ महीने चलाया जाता है, लेकिन उत्तराखंड में यह साढ़े तीन माह का ही कोर्स कराया जा रहा है ताकि बच्चे अंग्रेजी वर्णमाला सीखने के साथ ही शब्दों का सही उच्चारण करे और उनका शब्द ज्ञान कम से कम 750 शब्द आौर वाक्य ज्ञान करीब 1000 वाक्यों तक पहुंच जाए। इसी तरह उन्हें अंग्रेजी में करीब 15 प्रकार ऐसे सवाल करने और उनके अंग्रेजी में ही जवाब देने आ जाएं जो आम तौर पर इस्तेमाल होते हैं। प्रथम अपना यह कार्यक्रम 2006-07 से देश के विभिन्न ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में चला रही है। इसके तहत बच्चों को हर दिन एक घंटा अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। जिसमें तीन चौथाई समय सुनने बोलने में 25 प्रतिशत समय पढ़ने में लगाया जाता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है यह प्रतिशत उलट जाता है। बच्चों को अंग्रेजी बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और बच्चों की प्रगति जांचने के लिए परीक्षा भी ली जाती है।
pahar1- अगले कुछ वर्षो में अगर सरकारी स्कूलों की बच्चियां भी पब्लिक स्कूलों के बच्चों की तरह अंग्रेजी में गिट-पिट करती और कॉन्वेंट की बच्चियों से मुकाबला करती दिखाई दें तो आपको अचरज नहीं होना चाहिए। इस योजना पर अमल करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान उत्तराखंड ने एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था प्रथम फाउंडेशन के साथ करार किया है। योजना के तहत फाउंडेशन सभी जिलों में स्कूलों को चिह्नित कर वहां के बच्चों को अंग्रेजी बोलना सिखाएंगे। केंद्र सरकार के नेशनल प्रोग्राम फॉर एजुकेशनल ऑफ गल्र्स एट एलिमेंट्री लेवल (एनपीईजीईएल) के तहत अंग्रेजी भाषा के इस विशेष कार्यक्रम में प्राथमिक स्कूलों के लगभग 21 हजार 625 बच्चों को अंग्रेजी सिखाई जाएगी। उत्तराखंड में सभी के लिए शिक्षा परियोजना की राज्य परियोजना निदेशक व अपर सचिव विद्यालयी शिक्षा सौजन्या का कहना है कि इसके लिए प्रदेश में सभी 13 जिलों के उन 19 विकासखंडों के स्कूलों का भी चिह्नीकरण किया गया है जहां महिला साक्षरता का अनुपात राष्ट्रीय साक्षरता अनुपात से कम है। योजना में 663 स्कूल शामिल किए जाएंगे। इसके तहत प्रथम प्रदेश के चिह्नित विद्यालयों के बच्चों को 14 हफ्ते का अंग्रेजी बोलने का कोर्स कराएगा। इस कोर्स के जरिए पहले उन्हें कुछ सवाल करने और फिर उनके जवाब देना सिखाया जाएगा। इसके बाद उनका शब्द ज्ञान बढ़ाने के लिए उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का इस्तेमाल सिखाया जाएगा। बाद में उन्हें अंग्रेजी के साधारण पैराग्राफ पढ़ना और लिखना भी सिखाया जाएगा। प्रथम संस्था देश में गुजरात, मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में अपना इंग्लिश प्रोग्राम चला रही है। इसके तहत आठ से 14 साल के बच्चों में अंग्रेजी बोलने की क्षमता का विकास किया जाता है और शुरुआती अंग्रेजी बोलना व लिखना व पढ़ना सिखाया जाता है। वैसे यह कार्यक्रम आठ महीने चलाया जाता है, लेकिन उत्तराखंड में यह साढ़े तीन माह का ही कोर्स कराया जा रहा है ताकि बच्चे अंग्रेजी वर्णमाला सीखने के साथ ही शब्दों का सही उच्चारण करे और उनका शब्द ज्ञान कम से कम 750 शब्द आौर वाक्य ज्ञान करीब 1000 वाक्यों तक पहुंच जाए। इसी तरह उन्हें अंग्रेजी में करीब 15 प्रकार ऐसे सवाल करने और उनके अंग्रेजी में ही जवाब देने आ जाएं जो आम तौर पर इस्तेमाल होते हैं। प्रथम अपना यह कार्यक्रम 2006-07 से देश के विभिन्न ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में चला रही है। इसके तहत बच्चों को हर दिन एक घंटा अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। जिसमें तीन चौथाई समय सुनने बोलने में 25 प्रतिशत समय पढ़ने में लगाया जाता है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है यह प्रतिशत उलट जाता है। बच्चों को अंग्रेजी बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और बच्चों की प्रगति जांचने के लिए परीक्षा भी ली जाती है।
Thursday, 7 July 2011
(टीईटी) की संशोधित तिथि 21अगस्त 2011
देहरादून।8-9 जुलाई से नए फार्म जारी करने पर एक राय बन पाई। 22-23 जुलाई तकफार्म बिकेगा और
25 जुलाई तक फार्म जमा करने की अंतिम तिथि
शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की संशोधित तिथि लगभग तय हो गई है। अगस्त के तीसरे रविवार को यह परीक्षा कराने का फैसला हुआ है। इसके लिए नए फार्म इसी सह्रश्वताह से बिकने शुरू हो जाएंगे। पूर्व में
आवेदन कर चुके अभ्यर्थियों को नया फार्म भरने की जरूरत नहीं है। महकमे की बुधवार को हुई
मैराथन बैठक में टीईटी पर लंबी चर्चा हुई। सूत्रों के मुताबिक इस परीक्षा को इसी महीने कराने को लेकर हुई बहस-मुबाहिसे के बाद 8-9 जुलाई से नए फार्म जारी करने पर एक राय बन पाई। 22-23 जुलाई तकफार्म बिकेगा और
२५ जुलाई तक फार्म जमा करने की अंतिम तिथि तय करने पर सहमति बनी है। अधिकारियों ने अगस्त मध्य तक
परीक्षा की तिथि तय करने की बात कही। इस संबंध में एकाध दिन में शासनादेश जारी कर दिया जाएगा।
एनसीटीई की नई व्यवस्था में 31 अगस्त 2009 तक बीएड में प्रवेश ले चुके 45 प्रतिशत में ग्रेजुएट अभ्यर्थी इस परीक्षा में
शामिल हो सकते हैं। इसके बाद के बीएड धारको के लिए ग्रेजुएट में 50 प्रतिशत अंक अनिवार्य है।
25 जुलाई तक फार्म जमा करने की अंतिम तिथि
शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की संशोधित तिथि लगभग तय हो गई है। अगस्त के तीसरे रविवार को यह परीक्षा कराने का फैसला हुआ है। इसके लिए नए फार्म इसी सह्रश्वताह से बिकने शुरू हो जाएंगे। पूर्व में
आवेदन कर चुके अभ्यर्थियों को नया फार्म भरने की जरूरत नहीं है। महकमे की बुधवार को हुई
मैराथन बैठक में टीईटी पर लंबी चर्चा हुई। सूत्रों के मुताबिक इस परीक्षा को इसी महीने कराने को लेकर हुई बहस-मुबाहिसे के बाद 8-9 जुलाई से नए फार्म जारी करने पर एक राय बन पाई। 22-23 जुलाई तकफार्म बिकेगा और
२५ जुलाई तक फार्म जमा करने की अंतिम तिथि तय करने पर सहमति बनी है। अधिकारियों ने अगस्त मध्य तक
परीक्षा की तिथि तय करने की बात कही। इस संबंध में एकाध दिन में शासनादेश जारी कर दिया जाएगा।
एनसीटीई की नई व्यवस्था में 31 अगस्त 2009 तक बीएड में प्रवेश ले चुके 45 प्रतिशत में ग्रेजुएट अभ्यर्थी इस परीक्षा में
शामिल हो सकते हैं। इसके बाद के बीएड धारको के लिए ग्रेजुएट में 50 प्रतिशत अंक अनिवार्य है।
अदवानी के रानीगढ़ में छुपा है गढ़वाल राजघराने का खजाना !
पौड़ी। त्रावनकोर के पद्मनाभमन मंदिर से बेशकीमती खजाना मिला तो यहां भी गढ़वाल रियासत के दौर के खजाने की चर्चा छिड़ जाएगी।
गढ़वाल में ऐसे अनेक स्थान चिह्नित किए जाने लगे हैं जहां राजशाही के दौरान खजाने को सुरक्षित रखे जाने का जिक्र किया जा रहा है। मंडल मुख्यालय से 18 किमी की दूरी पर पौड़ी- कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर अदवानी के घने जंगलों के बीच एक ऐतिहासिक पौराणिक स्थल को इसी तरह रेखांकित किया जा रहा है। यहां भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी है, जिसे आदेर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यहीं गढ़वाल के तत्कालीन नरेशों द्वारा ऐतिहासिक धरोहर को संजो कर रखे जाने का इन दिनों खूब जिक्र हो रहा है। हालांकि पुरातत्व विभाग इस संदर्भ में अभी भी अनभिज्ञ है लेकिन प्रसिद्ध इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट उल्लेख किया है कि गढ़वाल राजघराने के शासन के दौरान जब श्रीनगर में राजधानी थी तब पति की असमय मृत्यु के बाद मंत्रिमंडल के सरदारों ने चार वर्षीय राजकुमार प्रदीप शाह की हत्या का षड़यंत्र रचा था, तब रानी मंत्री पूरिया नैथानी की सलाह पर उनके गांव नैथाणा के निकट अदवानी के जंगलों में राजकुमार की जान बचाने के लिए कुछ वफादार सैनिकों के साथ यहां आयी। बताया जाता है कि राजकुमार के साथ खेलने के लिए एक हाथी का बच्चा भी यहां पर लाया गया था और इसी स्थल पर यह चार वर्षीय राजकुमार हाथी के साथ खेला-कूदा करता था, तब से अब तक यह मैदान हाथी मैदान के नाम से प्रसिद्धि पाये हुए है। इतिहासकारों का कहना है कि इसी स्थल पर राजघराने का खजाना रखा गया था। पौड़ी के पास घने जंगलों के बीच रानीगढ़ नामक यह जगह गढ़वाल रियासत के इतिहास को छिपाये हुए है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह पुष्टि होती है कि 19वीं सदी के प्रारम्भ में रानी द्वारा यहां ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखा गया था। कोटद्वार अदवानी पौड़ी से होकर जाने वाला यह मार्ग पुराने समय में बदरी- केदार जाने का मार्ग भी था। गढ़वाल रियासत का खजाना यहां पर होने पर जब चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो स्थानीय लोगों ने इस स्थल की खुदाई शुरू की तो खुदाई के दौरान लाल रंग के सांप निकलने लगे। दो बार खुदाई का यह दौरा जारी रहा और जब इस संदर्भ में भारतीय पुरातत्वीय सव्रेक्षण विभाग (एएसआई) को जब यह जानकारी मिली तो विभाग के अधिकारियों ने इस स्थल पर पहुंचकर इस स्थान को चहारदीवारी में कैद कर दिया लेकिन दु:खदायी पहलू यह कि पुरातत्व विभाग को इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है और न ही यह जानकारी है कि विभाग यहां कब पहुंचा और कब चहारदीवारी कर चला गया। रानी 1720 में प्रदीप शाह को ले गई थी रानीगढ़ पौड़ी। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अवधकिशोर पटवाल नरोत्तम सिंह नेगी कहते हैं कि मुख्यालय से 18 किमी दूर इस स्थान पर जहां ऐतिहासिक धरोहर स्थित हैं, वहीं यह क्षेत्र बदरी-केदार यात्रा का भी मुख्य मार्ग था। सड़क मार्ग से एक किमी पैदल चलने के बाद घने जंगलों के बीच रानीगढ़ नामक स्थान पर इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल के अनुसार 1720 के आसपास टिहरी राजघराने की रानी छजैला अपने चार वर्षीय पुत्र प्रदीप शाह की जान बचाने अपने वफादारों के साथ यहां पहुंची थी और इस प्रसिद्ध स्थल के प्राचीन शिव मंदिर आदेर महादेव में पूजा-अर्चना किया करती थी। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं और यह भी मान्यता है कि यहां पर टिहरी राजघराने का खजाना भी दफन है।
क्षेत्रीय लोगों ने की खुदाई तो निकले थे लाल नाग भारतीय पुरातत्व सव्रेक्षण विभाग ने किया इस ऐतिहासिक स्थल को चहारदीवारी में कैद
गढ़वाल में ऐसे अनेक स्थान चिह्नित किए जाने लगे हैं जहां राजशाही के दौरान खजाने को सुरक्षित रखे जाने का जिक्र किया जा रहा है। मंडल मुख्यालय से 18 किमी की दूरी पर पौड़ी- कांसखेत-सतपुली मोटर मार्ग पर अदवानी के घने जंगलों के बीच एक ऐतिहासिक पौराणिक स्थल को इसी तरह रेखांकित किया जा रहा है। यहां भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी है, जिसे आदेर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यहीं गढ़वाल के तत्कालीन नरेशों द्वारा ऐतिहासिक धरोहर को संजो कर रखे जाने का इन दिनों खूब जिक्र हो रहा है। हालांकि पुरातत्व विभाग इस संदर्भ में अभी भी अनभिज्ञ है लेकिन प्रसिद्ध इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट उल्लेख किया है कि गढ़वाल राजघराने के शासन के दौरान जब श्रीनगर में राजधानी थी तब पति की असमय मृत्यु के बाद मंत्रिमंडल के सरदारों ने चार वर्षीय राजकुमार प्रदीप शाह की हत्या का षड़यंत्र रचा था, तब रानी मंत्री पूरिया नैथानी की सलाह पर उनके गांव नैथाणा के निकट अदवानी के जंगलों में राजकुमार की जान बचाने के लिए कुछ वफादार सैनिकों के साथ यहां आयी। बताया जाता है कि राजकुमार के साथ खेलने के लिए एक हाथी का बच्चा भी यहां पर लाया गया था और इसी स्थल पर यह चार वर्षीय राजकुमार हाथी के साथ खेला-कूदा करता था, तब से अब तक यह मैदान हाथी मैदान के नाम से प्रसिद्धि पाये हुए है। इतिहासकारों का कहना है कि इसी स्थल पर राजघराने का खजाना रखा गया था। पौड़ी के पास घने जंगलों के बीच रानीगढ़ नामक यह जगह गढ़वाल रियासत के इतिहास को छिपाये हुए है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह पुष्टि होती है कि 19वीं सदी के प्रारम्भ में रानी द्वारा यहां ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखा गया था। कोटद्वार अदवानी पौड़ी से होकर जाने वाला यह मार्ग पुराने समय में बदरी- केदार जाने का मार्ग भी था। गढ़वाल रियासत का खजाना यहां पर होने पर जब चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो स्थानीय लोगों ने इस स्थल की खुदाई शुरू की तो खुदाई के दौरान लाल रंग के सांप निकलने लगे। दो बार खुदाई का यह दौरा जारी रहा और जब इस संदर्भ में भारतीय पुरातत्वीय सव्रेक्षण विभाग (एएसआई) को जब यह जानकारी मिली तो विभाग के अधिकारियों ने इस स्थल पर पहुंचकर इस स्थान को चहारदीवारी में कैद कर दिया लेकिन दु:खदायी पहलू यह कि पुरातत्व विभाग को इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है और न ही यह जानकारी है कि विभाग यहां कब पहुंचा और कब चहारदीवारी कर चला गया। रानी 1720 में प्रदीप शाह को ले गई थी रानीगढ़ पौड़ी। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अवधकिशोर पटवाल नरोत्तम सिंह नेगी कहते हैं कि मुख्यालय से 18 किमी दूर इस स्थान पर जहां ऐतिहासिक धरोहर स्थित हैं, वहीं यह क्षेत्र बदरी-केदार यात्रा का भी मुख्य मार्ग था। सड़क मार्ग से एक किमी पैदल चलने के बाद घने जंगलों के बीच रानीगढ़ नामक स्थान पर इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल के अनुसार 1720 के आसपास टिहरी राजघराने की रानी छजैला अपने चार वर्षीय पुत्र प्रदीप शाह की जान बचाने अपने वफादारों के साथ यहां पहुंची थी और इस प्रसिद्ध स्थल के प्राचीन शिव मंदिर आदेर महादेव में पूजा-अर्चना किया करती थी। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं और यह भी मान्यता है कि यहां पर टिहरी राजघराने का खजाना भी दफन है।
क्षेत्रीय लोगों ने की खुदाई तो निकले थे लाल नाग भारतीय पुरातत्व सव्रेक्षण विभाग ने किया इस ऐतिहासिक स्थल को चहारदीवारी में कैद
Tuesday, 5 July 2011
दुलर्भ आय के छात्रों को निशंक का तोहफा -सूबे के सभी राजकीय और निजी तकनीकी शिक्षण संस्थाओं फीस फ्री
राज्य में ट्यूशन फी वेवर स्कीम अनिवार्य रूप से लागू की गई है। इसके तहत प्रत्येक पाठ्यक्रम में स्वीकृत प्रवेश क्षमता की पांच फीसदी अतिरिक्त सीटें राज्य के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित की गई हैं। इसका लाभ उन अभ्यर्थियों को मिलेगा, जिनकी पारिवारिक सालान आय 2.50 लाख से कम है।
राज्य कोटे की बीटेक और डिप्लोमा कोर्स की सीटों में दाखिले के इच्छुक छात्र-छात्राओं की बल्ले-बल्ले होगी। सरकार ने सूबे के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए प्रत्येक कोर्स में निर्धारित से अतिरिक्त पांच फीसदी सीटें बढ़ाई हैं। दाखिले को आनलाइन काउंसिलिंग दो चरणों में होगी। पहला चरण 11 से 17 जुलाई और दूसरा चरण 28 से 31 जुलाई तक चलेगा।
राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में बीटेक और डिप्लोमा कोर्स में दाखिले आनलाइन काउंसिलिंग से ही होंगे। काउंसिलिंग को तकनीकी रूप से ज्यादा सुव्यवस्थित किया जाएगा। तकनीकी शिक्षा अपर सचिव (स्वतंत्र प्रभार) आरके सुधांशु ने बताया कि सूबे के सभी राजकीय और निजी तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में ट्यूशन फी वेवर स्कीम अनिवार्य रूप से लागू की गई है। इसके तहत प्रत्येक पाठ्यक्रम में स्वीकृत प्रवेश क्षमता की पांच फीसदी अतिरिक्त सीटें राज्य के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित की गई हैं। इसका लाभ उन अभ्यर्थियों को मिलेगा, जिनकी पारिवारिक सालान आय 2.50 लाख से कम है। इस संबंध में जानकारी तकनीकी विवि की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
बीटेक और डिप्लोमा की काउंसिलिंग11 से 17 जुलाई और दूसरा चरण 28 से 31 जुलाई
देहरादून, -दाखिले को आनलाइन काउंसिलिंग दो चरणों में होगी। पहला चरण 11 से 17 जुलाई और दूसरा चरण 28 से 31 जुलाई तक चलेगा। राज्य कोटे की बीटेक और डिप्लोमा कोर्स की सीटों में दाखिले के इच्छुक छात्र-छात्राओं की बल्ले-बल्ले होगी। सरकार ने सूबे के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए प्रत्येक कोर्स में निर्धारित से अतिरिक्त पांच फीसदी सीटें बढ़ाई हैं।
राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में बीटेक और डिप्लोमा कोर्स में दाखिले आनलाइन काउंसिलिंग से ही होंगे। काउंसिलिंग को तकनीकी रूप से ज्यादा सुव्यवस्थित किया जाएगा। तकनीकी शिक्षा अपर सचिव (स्वतंत्र प्रभार) आरके सुधांशु ने बताया कि सूबे के सभी राजकीय और निजी तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में ट्यूशन फी वेवर स्कीम अनिवार्य रूप से लागू की गई है। इसके तहत प्रत्येक पाठ्यक्रम में स्वीकृत प्रवेश क्षमता की पांच फीसदी अतिरिक्त सीटें राज्य के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित की गई हैं। इसका लाभ उन अभ्यर्थियों को मिलेगा, जिनकी पारिवारिक सालान आय 2.50 लाख से कम है। इस संबंध में जानकारी तकनीकी विवि की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
उन्होंने बताया कि दो चरणों में आनलाइन काउंसिलिंग के संबंध में सभी दिशा-निर्देश उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की वेबसाइट में प्रदर्शित किए जाएंगे। काउंसिलिंग में छात्र-छात्राओं को दिक्कत न हो, इसके लिए विवि एक काल सेंटर स्थापित करेगा। सेंटर में काउंसिलिंग प्रक्रिया के जानकार कार्मिकों की तैनाती की जाएगी। इन कार्मिकों को युक्तिसंगत मानदेय विवि देगा। काउंसिलिंग के प्रत्येक चरण में अभ्यर्थियों को सीटें आवंटित होने के बाद फीस जमा करने को हफ्तेभर का समय दिया जाएगा।
राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में बीटेक और डिप्लोमा कोर्स में दाखिले आनलाइन काउंसिलिंग से ही होंगे। काउंसिलिंग को तकनीकी रूप से ज्यादा सुव्यवस्थित किया जाएगा। तकनीकी शिक्षा अपर सचिव (स्वतंत्र प्रभार) आरके सुधांशु ने बताया कि सूबे के सभी राजकीय और निजी तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में ट्यूशन फी वेवर स्कीम अनिवार्य रूप से लागू की गई है। इसके तहत प्रत्येक पाठ्यक्रम में स्वीकृत प्रवेश क्षमता की पांच फीसदी अतिरिक्त सीटें राज्य के स्थायी अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित की गई हैं। इसका लाभ उन अभ्यर्थियों को मिलेगा, जिनकी पारिवारिक सालान आय 2.50 लाख से कम है। इस संबंध में जानकारी तकनीकी विवि की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।
उन्होंने बताया कि दो चरणों में आनलाइन काउंसिलिंग के संबंध में सभी दिशा-निर्देश उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय की वेबसाइट में प्रदर्शित किए जाएंगे। काउंसिलिंग में छात्र-छात्राओं को दिक्कत न हो, इसके लिए विवि एक काल सेंटर स्थापित करेगा। सेंटर में काउंसिलिंग प्रक्रिया के जानकार कार्मिकों की तैनाती की जाएगी। इन कार्मिकों को युक्तिसंगत मानदेय विवि देगा। काउंसिलिंग के प्रत्येक चरण में अभ्यर्थियों को सीटें आवंटित होने के बाद फीस जमा करने को हफ्तेभर का समय दिया जाएगा।
Monday, 4 July 2011
महिला आंदोलनकारी के आश्रित को आरक्षण लाभ
देहरादून- उत्तराखंड सरकार ने राज्य आंदोलन में उत्पीड़न का शिकार महिला आंदोलनकारियों को राहत दी है। मुजफ्फरनगर कांड में राहत बांड प्राप्त आंदोलनकारी महिलाओं के एक आश्रित को अन्य राज्य आंदोलनकारियोंकी भांति आरक्षण का लाभ मिलेगा। इस संबंध में शासनादेश जारी किया गया है।
राज्य आंदोलन में अभी तक जेल गए आंदोलनकारियों के लिए तो आरक्षण की व्यवस्था की गई, लेकिन उत्पीड़न का शिकार महिलाओं की सुध नहीं ली गई। इस मामले को राज्य मीडिया सलाहकार समिति उपाध्यक्ष अजेंद्र अजय ने मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक के समक्ष उठाया। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर कांड में उत्पीड़न का शिकार महिला आंदोलनकारियों को राहत मिलनी चाहिए। कोर्ट के आदेश पर उन्हें राहत बांड तो दिया गया, लेकिन राज्य सरकार ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर गृह विभाग ने इस संबंध में प्रस्ताव तैयार कर अनुमोदन के लिए उनके समक्ष प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री का अनुमोदन मिलते ही गृह विभाग ने उक्त संबंध में शासनादेश जारी कर दिया। अजेंद्र अजय ने शासनादेश जारी होने की पुष्टि की।
उन्होंने बताया कि मुजफ्फरनगर कांड में राहत बांड प्राप्त आंदोलनकारी महिलाओं के एक आश्रित को राज्य आंदोलनकारियों की तर्ज पर दस फीसदी क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिलेगा।
यूपीएमटी काउंसिलिंग 12 से 16 जुलाई तक
देहरादून, -राज्य के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस, बीडीएस व नर्सिग की स्टेट कोटे की सीटों के लिए यूपीएमटी काउंसिलिंग बोर्ड 12 से 16 जुलाई के बीच काउंसिलिंग आयोजित कर रहा है।
बीते वर्ष की तरह इस साल भी सीटों की स्थिति को लेकर असमंजस बरकरार है। निजी कॉलेज जहां अपनी मर्जी से सीटें भर चुके हैं, वहीं सरकारी कॉलेजों में सीटों की वृद्धि व एलओपी को लेकर तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। काउंसिलिंग बोर्ड की माने तो 12 जुलाई तक शासन से प्राप्त ब्योरे के अनुसार ही सीटों के आवंटन किया जाएगा।
पंतनगर कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा 12 जून को आयोजित उत्तराखंड प्री मेडिकल टेस्ट में सफल हुए छात्र-छात्राओं को राज्य के निजी व शासकीय मेडिकल कॉलेजों की सीटें आवंटित की जाएंगी। राज्य में पहली बार यूपीएमटी काउंसिलिंग के लिए शासन ने अलग से बोर्ड गठित किया है। इससे पूर्व चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशालय काउंसिलिंग कराता था। 12 से 16 जून तक चलने वाली काउंसिलिंग के लिए फिलहाल राजकीय मेडिकल कॉलेज श्रीनगर व हल्द्वानी की 85-85 सीटें, एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज की 10 सीटें व सीमा डेंटल, उत्तरांचल डेंटल कॉलेज की 50-50 सीटों व राजकीय नर्सिग कॉलेज की 60 सीटों पर तस्वीर साफ नजर आती है। हालांकि, शासन ने एसजीआरआर कॉलेज की 35(100 में से) सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा कराई है, लेकिन कॉलेज पहले ही 90 सीटों पर प्रवेश कर चुका है।
बीते वर्ष की तरह इस साल भी सीटों की स्थिति को लेकर असमंजस बरकरार है। निजी कॉलेज जहां अपनी मर्जी से सीटें भर चुके हैं, वहीं सरकारी कॉलेजों में सीटों की वृद्धि व एलओपी को लेकर तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं है। काउंसिलिंग बोर्ड की माने तो 12 जुलाई तक शासन से प्राप्त ब्योरे के अनुसार ही सीटों के आवंटन किया जाएगा।
पंतनगर कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा 12 जून को आयोजित उत्तराखंड प्री मेडिकल टेस्ट में सफल हुए छात्र-छात्राओं को राज्य के निजी व शासकीय मेडिकल कॉलेजों की सीटें आवंटित की जाएंगी। राज्य में पहली बार यूपीएमटी काउंसिलिंग के लिए शासन ने अलग से बोर्ड गठित किया है। इससे पूर्व चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशालय काउंसिलिंग कराता था। 12 से 16 जून तक चलने वाली काउंसिलिंग के लिए फिलहाल राजकीय मेडिकल कॉलेज श्रीनगर व हल्द्वानी की 85-85 सीटें, एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज की 10 सीटें व सीमा डेंटल, उत्तरांचल डेंटल कॉलेज की 50-50 सीटों व राजकीय नर्सिग कॉलेज की 60 सीटों पर तस्वीर साफ नजर आती है। हालांकि, शासन ने एसजीआरआर कॉलेज की 35(100 में से) सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा कराई है, लेकिन कॉलेज पहले ही 90 सीटों पर प्रवेश कर चुका है।
रतन को भाया पहाड़ का रत्न
-आखिरकार रतन ने गढ़वाल के अभिनव शर्मा को अपना हमसफर चुना। अभिनव के इस सफर से सबसे ज्यादा रोमांचित हैं वे लोग, जिनकी गोद में पल बढ़कर वह बड़ा हुआ। जहां उसने अपना बचपन बिताया। मूल रूप से गांव अमोला अंसारी पौड़ी निवासी अभिनव शर्मा का जन्म
ढाई दशक पूर्व ऋषिकेश बंगाली मंदिर मार्ग रस्तोगी नर्सिग होम में हुआ था। अभिनव के पिता भगवती प्रसाद शर्मा ऋषिकेश में जेजी ग्लास कांच फैक्ट्री में स्टोर मैनेजर के रूप में तैनात थे।
राखी के स्वयंवर में मनमोहन तिवारी व खतरों के खिलाड़ी में सुमित सूरी के पहुंचने के बाद तीर्थनगरी ऋषिकेश फिर से चर्चा में है। हो भी क्यों ना इस बार इमेजिन टीवी पर रियलिटी शो रतन का रिश्ता में रतन के हमसफर बने अभिनव ऋषिकेश के जो हैं। अभिनव के इस सफर से सबसे ज्यादा रोमांचित हैं उनके पुराने मकान मालिक और पड़ोसी।
अभिनव के पिता भगवती प्रसाद शर्मा और माता कृष्णा ऋषिकेश में आशुतोष नगर स्थित डीके नवानी के घर में बतौर किराएदार रहते थे। इसके बाद उन्होंने गिरधारी लाल रयाल के मकान सरस्वती निवास के एक कमरे में कई दिन गुजारे। इसी मकान में अभिनव का जन्म हुआ। मूलतया गांव अमोला अंसारी पौड़ी के रहने वाले भगवती प्रसाद शर्मा ने 1985 तक का समय तीर्थनगरी में बिताया। बाद में पत्नी कृष्णा की सलाह पर वे दिल्ली चले गए। वहां उन्होंने निजी कंपनियों में काम किया। वर्तमान में मयूर विहार नई दिल्ली निवासी भगवती प्रसाद शर्मा कई कंपनियों के कंसलटेंट हैं। अभिनव की माता कृष्णा वहीं के निजी विद्यालय में उप प्रधानाचार्य हैं। अभिनव का बड़ा भाई बबलू भी है।
रतन द्वारा अभिनव को वर चुने जाने के बाद आशुतोषनगर निवासी नवानी परिवार के आंखों में आंसू छलक आए। डीके नवानी, उनकी माता दमयंती नवानी, पत्नी पूनम व पुत्र रक्षित इमेजिन टीवी पर रियलिटी शो रतन का रिश्ता को देखने के लिए टीवी पर चिपके रहे। जैसे ही तीन दूल्हों में से एक अभिनव के गले में लाडो यानि रतन ने वरमाला डाली तो नवानी परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। इस मौके पर दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में नवानी दंपति ने कहा कि जिस तरह रतन पटना (बिहार) में रहकर संघर्ष करते हुए मुंबई पहुंची और उसने अगले जनम मोहे बिटिया कीजो के जरिए मुकाम हासिल किया है। उसी तरह पर्दे के पीछे रहकर बीके शर्मा (गौनियाल) दंपति ने ऋषिकेश से अपने कॅरियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में रहकर अभिषेक व अभिनव को पढ़ाया और पैरों पर खड़ा किया। आज रतन ने अभिनव को अपना हमसफर चुना, हकीकत में ये गरीब परिवारों का मिलन है। नवानी दंपति का कहना है कि वह तो भगवान से यही कामना करते हैं कि अभिनव और रतन का वैवाहिक जीवन सुखमय हो।
ढाई दशक पूर्व ऋषिकेश बंगाली मंदिर मार्ग रस्तोगी नर्सिग होम में हुआ था। अभिनव के पिता भगवती प्रसाद शर्मा ऋषिकेश में जेजी ग्लास कांच फैक्ट्री में स्टोर मैनेजर के रूप में तैनात थे।
राखी के स्वयंवर में मनमोहन तिवारी व खतरों के खिलाड़ी में सुमित सूरी के पहुंचने के बाद तीर्थनगरी ऋषिकेश फिर से चर्चा में है। हो भी क्यों ना इस बार इमेजिन टीवी पर रियलिटी शो रतन का रिश्ता में रतन के हमसफर बने अभिनव ऋषिकेश के जो हैं। अभिनव के इस सफर से सबसे ज्यादा रोमांचित हैं उनके पुराने मकान मालिक और पड़ोसी।
अभिनव के पिता भगवती प्रसाद शर्मा और माता कृष्णा ऋषिकेश में आशुतोष नगर स्थित डीके नवानी के घर में बतौर किराएदार रहते थे। इसके बाद उन्होंने गिरधारी लाल रयाल के मकान सरस्वती निवास के एक कमरे में कई दिन गुजारे। इसी मकान में अभिनव का जन्म हुआ। मूलतया गांव अमोला अंसारी पौड़ी के रहने वाले भगवती प्रसाद शर्मा ने 1985 तक का समय तीर्थनगरी में बिताया। बाद में पत्नी कृष्णा की सलाह पर वे दिल्ली चले गए। वहां उन्होंने निजी कंपनियों में काम किया। वर्तमान में मयूर विहार नई दिल्ली निवासी भगवती प्रसाद शर्मा कई कंपनियों के कंसलटेंट हैं। अभिनव की माता कृष्णा वहीं के निजी विद्यालय में उप प्रधानाचार्य हैं। अभिनव का बड़ा भाई बबलू भी है।
रतन द्वारा अभिनव को वर चुने जाने के बाद आशुतोषनगर निवासी नवानी परिवार के आंखों में आंसू छलक आए। डीके नवानी, उनकी माता दमयंती नवानी, पत्नी पूनम व पुत्र रक्षित इमेजिन टीवी पर रियलिटी शो रतन का रिश्ता को देखने के लिए टीवी पर चिपके रहे। जैसे ही तीन दूल्हों में से एक अभिनव के गले में लाडो यानि रतन ने वरमाला डाली तो नवानी परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। इस मौके पर दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में नवानी दंपति ने कहा कि जिस तरह रतन पटना (बिहार) में रहकर संघर्ष करते हुए मुंबई पहुंची और उसने अगले जनम मोहे बिटिया कीजो के जरिए मुकाम हासिल किया है। उसी तरह पर्दे के पीछे रहकर बीके शर्मा (गौनियाल) दंपति ने ऋषिकेश से अपने कॅरियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में रहकर अभिषेक व अभिनव को पढ़ाया और पैरों पर खड़ा किया। आज रतन ने अभिनव को अपना हमसफर चुना, हकीकत में ये गरीब परिवारों का मिलन है। नवानी दंपति का कहना है कि वह तो भगवान से यही कामना करते हैं कि अभिनव और रतन का वैवाहिक जीवन सुखमय हो।
Saturday, 2 July 2011
परीक्षा न कराई तो आंदोलन को बाध्य होंगे आवेदक
देहरादून,- तीन वर्ष पूर्व विज्ञापित ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के पदों के लिए आज तक नियुक्ति परीक्षा आयोजित न होने से आवेदकों में आक्रोश गहराता जा रहा है।
विभाग के उपेक्षापूर्ण रवैए से खफा आवेदकों ने शुक्रवार को निदेशक पंचायतीराज से मुलाकात कर दो माह के भीतर परीक्षा कराने का आग्रह किया, साथ ही चेतावनी दी कि इसके बाद वह आंदोलन के लिए विवश होंगे।
पंचायतीराज निदेशालय ने ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के 1923 पदों के लिए 18 जून 2008 को विज्ञप्ति जारी की थी। पदों के लिए प्रदेशभर से एक लाख 19 हजार 401 युवाओं ने आवेदन किया, लेकिन नियुक्ति के लिए आज तक परीक्षा नहीं हो पाई है। इस बीच आवेदक बीसियों बार तमाम मंचों पर अपनी पीड़ा बयां कर चुके हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। शुक्रवार को दर्जनभर आवेदनकर्ता युवाओं ने निदेशालय में निदेशक पंचायतीराज से मुलाकात कर दो महीने के भीतर परीक्षा आयोजित कराने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि विभाग की इस बेरुखी से आवेदकों में निराशा का भाव है। उन्होंने चेतावनी दी कि दो माह के भीतर परीक्षा न होने की दशा में वह सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे। इस मौके पर निदेशक को ज्ञापन भी सौंपा गया।
Friday, 1 July 2011
चिपको आंदोलन का दूसरा नाम बचनी देवी
ठेकेदारों के हथियार छीन, पेड़ों पर बांधी राखियां चम्बा: विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के कार्यकर्ताओं में भले ही पुरुष कार्यकर्ताओं के नाम लोग अधिक जानते हैं, लेकिन इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका भी कम नहीं है। हालांकि, महिलाओं में गौरा देवी या सुदेशा बहन को ही लोग अधिकतर जानते हैं, लेकिन ऐसी कई महिलाओं ने इस आंदोलन के प्रसार में अपनी पूरी ताकत झाोंक दी थी, जिन्हें अब तक पर्याप्त सम्मान या पहचान नहीं मिल पाई है। टिहरी जिले के हेंवलघाटी क्षेत्र के अदवाणी गांव की बचनी देवी भी उन महिलाओं में एक है, जिन्होंने चिपको आंदोलन (पेड़ों को कटने से बचाने के लिए ग्रामीण उनसे चिपक जाते थे, इसे चिपको आंदोलन नाम दिया गया) में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बचनी देवी का जन्म अगस्त 1929 में पट्टी धार अक्रिया के कुरगोली गांव में हुआ। उनकी शादी अदवाणी गांव निवासी बख्तावर सिंह के साथ हुई। 30 मई 1977 को जब चिपको नेता सुंदरलाल बहुगुणा, धूम सिंह नेगी और कुंवर प्रसून अदवाणी पहुंचे, तो वहां वन निगम के ठेकेदार पेड़ों पर आरियां चला रहे थे। बहुगुणा, नेगी व प्रसून के आह्वान पर बचनी देवी गांव की महिलाओं को साथ लेकर आंदोलन में कूद पड़ी। उन्होंने पेड़ों से चिपककर ठेकेदारों के हथियार छीन लिए और उन्हें वहां से भगा दिया। उस दौर में गांव के अधिकांश लोग पेड़ों के कटान के समर्थक थे, क्योंकि वन विभाग द्वारा गठित श्रमिक समितियां ठेकेदारों के माध्यम से कार्य करती थी और लोग इसे रोजगार के रूप में देखते थे। बचनी देवी से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि उनके पति बख्तावर सिंह खुद निगम के लीसा ठेकेदार थे। ऐसे में बचनी देवी ने साहस और सूझाबूझा से परिवार का विरोध भी झोला और आंदोलन में भी भागेदारी की। पति के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी जंगल कटने के समर्थक थे, क्योंकि इससे उनकी आजीविका जुड़ी हुई थी, लेकिन चिपको आंदोलन की विचारधारा को भलीभांति समझाने वाली बचनी देवी ने सार्वजनिक हित को महत्वपूर्ण समझाा। यहां यह भी बता दें कि चिपको आंदोलन की शुरूआत अदवाणी के जंगलों से ही हुई थी। यहां साल भर आंदोलन चला, जिसमें बचनी देवी पूर्ण रूप से सक्रिय रहीं और उन्होंने घर-घर जाकर दूसरी महिलाओं को संगठित व जागरूक किया। खास बात यह है कि सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने के साथ उसने घर-परिवार की जिम्मेदारी, चूल्हा, चौका, घास-लकड़ी का काम भी बखूबी निभाया। इस दौरान उन्हें अनेक कष्ट भी झोलने पड़े। एक साल के संघर्ष के दौरान ठेकेदारों को खाली हाथ वापस जाना पड़ा तथा इस क्षेत्र में पेड़ों की नीलामी व कटान पर वन विभाग को रोक लगानी पड़ी। बचनी देवी धीरे-धीरे अपने पति व परिवार जनों को समझााने में भी कामयाब रही। आज उनकी उम्र 80 वर्ष है और उन दिनों की याद ताजा कर वह कहती है कि आंदोलन के दौरान कई बार उनके पति उनसे बात तक नहीं करते थे, फिर भी उन्होंने संयम से काम लिया और दोनों मोर्चों पर सफलता पाई। आंदोलन में उनके साथ रहे धूम सिंह नेगी व सुदेशा बहन का कहना है कि उनमें साहस और हिम्मत के कारण अदवाणी की दूसरी महिलाएं भी आंदोलन में शामिल हुई थी। बचनी देवी का आज भरा-पूरा परिवार है। वह चाहती हैं कि लोग अपने संसाधनों के प्रति जागरूक रहें।
टीईटी स्थगित,अब जुलाई आखिर में
अब 50 प्रतिशत अंकों के स्थान पर 45 प्रतिशत अंकों की अर्हता कर दी गई है। अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़ी जाति एवं विकलांगों के लिए 40 प्रतिशत अंकों अर्हता रखी गई है। जिन अभ्यर्थियों को आवेदन पत्र नहीं मिल पाए हैं ऐसे पात्र अभ्यर्थी भी आवेदन कर पाएंगे। वर्ष 2009 से पहले बीएड करने वाले अभ्यर्थियों को इसका लाभ मिल सकेगा।
देहरादून-शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह बिष्ट ने बताया कि 10 जुलाई को आयोजित होने वाली टीईटी परीक्षा को स्थगित कर दिया गया है। अब जुलाई के अंतिम सप्ताह में यह परीक्षा आयोजित की जाएगी। अप्रैल से शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है, लेकिन कक्षा एक से लेकर आठवीं तक पाठ्य पुस्तकों का अभी प्रकाशन नहीं हो पाया है। दूसरी तरफ, इसी सत्र से मान्यता प्राप्त 81 विद्यालय संचालित नहीं हो पा रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने इन हालात पर नाराजगी जताई है। विधानसभा में आयोजित बैठक में श्री बिष्ट ने कहा कि संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए। पुस्तकों का प्रकाशन न करने वाले प्रकाशकों पर सिर्फ पेनाल्टी लगाना काफी नहीं है। उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने आश्चर्य जताया कि अप्रैल में शिक्षण सत्र प्रारंभ हो गया है, पाठ्य पुस्तकें अभी तक उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं। उन्होंने कहा कि मान्यता प्राप्त 81 विद्यालयों का संचालन अप्रैल से शुरू हो जाना चाहिए, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है। अधिकारी बार-बार बहानेबाजी कर गुमराह कर रहे हैं। ऐसी गैरजिम्मेदाराना कार्यप्रणाली को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ समीक्षा करते हुए श्री बिष्ट ने निर्देश दिए कि 263 बंद विद्यालयों के संचालन की कार्यवाही की जाए। उन्होंने अध्यापक विहीन, तालाबंद स्कूलों की जानकारी भी तलब की। श्री बिष्ट ने कहा कि टीईटी परीक्षा स्थगित कर दी गई है। इसका शासनादेश कर दिया गया है। अब जुलाई के अंतिम सप्ताह में परीक्षा आयोजित की जाएगी। इसके लिए अब 50 प्रतिशत अंकों के स्थान पर 45 प्रतिशत अंकों की अर्हता कर दी गई है। अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़ी जाति एवं विकलांगों के लिए 40 प्रतिशत अंकों अर्हता रखी गई है। जिन अभ्यर्थियों को आवेदन पत्र नहीं मिल पाए हैं ऐसे पात्र अभ्यर्थी भी आवेदन कर पाएंगे। वर्ष 2009 से पहले बीएड करने वाले अभ्यर्थियों को इसका लाभ मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के अंदर प्रधानाध्यापकों के रिक्त पदों पर प्रोन्नति से तैनाती कर दी जाएगी। कार्यालयों में रिक्त 170 लिपिक वर्गीय तृतीय श्रेणी पदों की पदोन्नति सूची जारी कर दी गई है तथा शेष पदों पर सीआर प्राप्त होने के बाद पदोन्नति की जाएगी। उन्होंने शिक्षाधिकारियों को स्कूलों का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। उन्हें दुर्गम क्षेत्रों में जाकर अध्यापकों, छात्रों की उपस्थिति, मिड डे मील की स्थिति की रिपोर्ट प्रति माह देने को कहा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा 2007 से 2011 तक की गई 277 घोषणाओं में से 151 पूर्ण की जा चुकी हैं। 126 को शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिए। बैठक में अपर सचिव श्रीमती सौजन्या, महानिदेशक श्रीमती निधि पांडे, निदेशक सीएस ग्वाल आदि मौजूद थे।
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