Tuesday, 28 September 2010

उत्तराखंड में एक और महाकुंभ की तैयारी

देहरादून। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में चल रहा सदी का सबसे बड़ा कुंभ अभी समाप्त नहीं हुआ है और दूसरी आ॓र पहाड़ के दूसरे महाकुंभ ’नंदा राजजात यात्रा’ की तैयारी शुरू कर दी गयी है। उत्तराखंड में प्रत्येक बारह वर्ष पर मनाये जाने वाली नंदा राजजात को ’पहाड़ के महाकुंभ’ के नाम से जाना जाता है। करीब एक महीने तक चलने वाले इस महोत्सव में हजारों की संख्या में लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ हिस्सा लेते हैं। यह महाकुंभ वर्ष 2012 में आयोजित होने वाला है लेकिन इसकी तैयारी अभी से ही शुरू कर दी गयी है। इस बार आयोजित होने वाले इस पहाड़ के कुंभ नंदा राजजात आयोजन समिति के सचिव भुवन नौटियाल ने गोपेश्वर में बताया कि मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड के इष्टदेव भगवान शंकर ने मां पार्वती से विवाह करने के बाद अपने निवास कैलाश जाने के लिये जिस दुर्गम रास्ते को चुना था, हजारों की संख्या में लोग प्रत्येक 12 वर्ष पर उसी रास्ते की परिक्रमा करते हुये जाते हैं और मां पार्वती को तरह तरह की भेंट चढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में मां पार्वती को नंदा देवी के नाम से जाना जाता है। नौटियाल ने बताया कि लोग उस स्थान तक यह यात्रा करते हैं जहां तक के लिये मान्यता है कि वह इलाका देवी पार्वती के मायके के क्षेत्र में आता है। उस इलाके के बाद विशेष रूप से जन्मा चार सींग वाला भेड़ नंदा देवी के सारे सामानों को लेकर ससुराल क्षेत्र में प्रवेश करता है जो करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई से शुरू होता है और 23 हजार फुट की ऊंचाई वाले नंदा घुंघटी तक जाता है जहां आज भी लोगों के लिये पहुंचना लगभग असंभव है। उन्होंने बताया कि मान्यताओं के अनुसार, इस महाकुंभ के लिये नौटी के राजपरिवार के लोग आज भी मायके वालों की भूमिका में रहते हैं और जिस प्रकार से एक बेटी को पूरे सामान के साथ घर से विदा किया जाता है उसी प्रकार से नंदा देवी के लिये बडे़-बडे़ छत्र चंवर के साथ अन्य सामानों को लेकर यह यात्रा की जाती है। नौटियाल ने बताया कि इस यात्रा के दौरान जहां हजारों लोगों को हिमालय के दुर्गम ग्लेशियरों से गुजरना पड़ता है वहीं रास्ते में एक जगह सबसे खतरनाक ज्यूरांगली दर्रे से भी यह यात्रा गुजरती है जिसे आज भी मौत की गली कहा जाता है। नौटियाल ने कहा कि इस बार इस खतरनाक और दुरूह यात्रा में करीब एक लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है। पिछली बार जब वर्ष 2000 में यह महाकुंभी यात्रा आयोजित हुई थी तो मौत की गली से गुजरते समय कुछ लोगों को मौत का सामना भी करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि इस पहाड़ी महाकुंभ के लिये अभी से तैयारी शुरू कर दी गयी है और सरकार से आग्रह किया गया है कि इसकी सफलता के लिये राजजात प्राधिकरण का गठन अभी से कर दिया जाये। नौटियाल स्वयं नौटी के राजपुरोहित परिवार से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया का सबसे रहस्यमयी रूपकुंड भी इसी यात्रा के दौरान पड़ता है जहां आज भी हजारों नरकंकालों को पडे़ देखा जा सकता है। आज तक कोई भी नहीं जान पाया है कि ये नरकंकाल कहां से आये हैं और कितने पुराने हैं। यह स्थान 18 हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है और बारहों महीने बर्फ से ढका रहता है। उन्होंने कहा कि इस यात्रा में पूरे राज्य से, गढ़वाल और कुमायूं मंडलों से हजारों लोग चंवर और छत्र लेकर अलग अलग स्थानों से आते हैं और इस पहाड़ी महाकुंभ में शामिल होते हैं। इस यात्रा के दौरान यात्री कुल 21 स्थानों पर रात में अपना पड़ाव डालते हैं। करीब एक महीने तक चलने वाले इस महाकुंभ का समापन करीब 23 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित नंदा घुंघटी के बेस नंदी कुंड में होता है जो करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। उन्होंने कहा कि यह महाकुंभ गढ़वाल के राजपरिवारों द्वारा शुरू किया गया था और इसीलिये आज भी इसमें राजपरिवार के ही लोग मायके वालों की भूमिका में प्रमुख रूप से शामिल होते हैं और पूरी यात्रा में चलते हैं। नौटियाल ने बताया कि इस महाआयोजन को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने के लिये पहली तैयारी गत दिनों उपरायीं देवी मंदिर में मांडवी मनौती पूजा के साथ सम्पन्न हुई जिसमें नंदा देवी से इस यात्रा को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने की मनौती मानी गयी। देहरादून में पर्यटन विभाग के सूत्रों ने बताया कि राज्य में अभी इस पर्वतीय महाकुंभ की तैयारी के लिये योजना बनायी जा रही है और मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल स्वयं इस महाकुंभ की सफलता के लिये कार्ययोजना पर विचार कर रहे हैं।

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