Wednesday, 22 September 2010
किसकी नजर लगी मेरे पहाड़ को
शनिवार रातभर खबरें आती रहीं और डराती रहीं। कभी श्रीनगर में मकान ढहने की खबर आई, तो कभी अल्मोड़ा में लगातार मलबा गिरने की। हरिद्वार और ऋषिकेश से लगातार गंगा का जलस्तर बढ़ने के साथ ही बांध के धंसने की जानकारियां आती रहीं। कोई फोन पर मदद मांग रहा था, तो कोई एसएमएस कर रहा था। भोर मौत की खबरों से शुरू हुई, और दोपहर होते-होते ऐसा लगने लगा मानो प्रलय करीब हो। कुमाऊं में तो मौत साक्षात तांडव कर रही है। यहां तक कि जो रिपोर्टर जिलों से जानकारी दे रहे थे, उनकी आवाज में दर्द और रुआंसापन था। कुछ ने तो यह भी कहा कि यह क्या हो रहा है मेरे पहाड़ में। देव कहां सोए हैं। कोई तो बचाए। यह हालात हैं उत्तराखंड के। कहीं 72 घंटे से तो कहीं 60 घंटे से लगातार बारिश हो रही है। पहाड़ धंस रहा है। सड़कें बह रही हैं। भूस्खलन जारी है। मलबा सड़कों और मकानों पर आ रहा है। घरों में फर्श फोड़कर पानी की धार बह रही है। मकान बहे जा रहे हैं। पेड़ ध्वस्त हो रहे हैं। पिछले 150 सालों में ऐसे हालात न देखे, न सुने। ऐसा सूबे के बड़े-बुजुर्गों का कहना है।
चमोली, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर सहित गढ़वाल के सभी जिले एक दूसरे से कटे हुए हैं। देहरादून, हरिद्वार से कट गया तो दिल्ली से भी। कुमाऊं में भी अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल और ऊधमसिंहनगर के कई इलाके एक दूसरे से पूरी तरह कट गए हैं। कई जिलों में 48 घंटे से बिजली नहीं है, तो कई जगह पीने का पानी भी मयस्सर नहीं है। बिजली के खंभे सड़कों पर हैं। पाइप लाइनें बह गई हैं। घरों में बंद लोग कांप रहे हैं। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि यह पानी बरस रहा है या फिर काल। सिर्फ अल्मोड़ा में ही 34 से अधिक मौतों की खबर दिल दहला रही है। कितने मलबे में दबे पड़े हैं यह पक्का नहीं है। देवली, बाड़ी, पिलखी और धुरा जैसे गांवों में रूदन, बारिश की आवाज में खो गया है। मौत के आंकड़े 60 को पार कर रहे हैं। सरकार मदद पहुंचाए तो कैसे। हेलीकॉप्टर भी नहीं उड़ पा रहे हैं। पायलटों ने इनकार कर दिया है कि दुर्घटना हो जाएगी। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। सब्जी, दूध, दवा, खाद्य सामग्रियों, मिट्टी तेल, रसोई गैस की आपूर्ति ठप पड़ी है। यहां तक कि खबरों को जानने के लिए समाचार पत्र भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। संचार साधन ध्वस्त पड़े हैं। कुमाऊं और गढ़वाल के बीच ट्रेन संपर्क भी टूट गया है। अब जरूरत है क्षेत्र, राजनीति और वैमनस्य सबकुछ भूलकर एक दूसरे की मदद करने की और सूबे में विपदा में फंसे लोगों को बचाने की। आइए हम सब जुट जाएं, इस अभियान में।
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जरूरत है क्षेत्र, राजनीति और वैमनस्य भूलकर एक दूसरे की मदद करने की
निशीथ जोशी, देहरादून।
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