Friday, 17 September 2010
मेरे गीत रहेगें ना तुम्हारे साथ - गिरीश तिवारी 'गिर्दा'
22 अगस्त 2010 उत्तराखण्ड लोक और रंगमंच इतिहास के लिए एक दुःखद दिन रहा है। इस दिन उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध रंगकर्मी-जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' हमारे बीच नहीं रहे। यह सुनने पर विश्वाश तो नहीं होता,लेकिन यह सच है। अभी जुलाई माह की तो बात हैं,जब गिर्दा से मुलाकात हुई थी। काफी दिनों से उन्हें वरिष्ठ चित्र बी.मोहन नेगी जी के जीवन परिवेश को लेकर एक लेख लिखने का मैने निवेदन किया था। लेकिन 'गिर्दा' लिख नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा था,'बबा तुम आ जाओ,मैं बोल दूगां तो लिख लेना',। बस इसी बहाने 'गिर्दा' से मिलने का मुझे शायद यह सौभाग्य प्राप्त हुआ।
'गिर्दा' से इससे पहले जब मेरी मुलाकात हुई थी,या फोन पर बातचीत हुई थी तो तब के मुकाबले गिर्दा इस बार मुझे काफी थके हुए और कमाजोर दिख रहे थे। इसकी वजह शायद यह भी रही हो की वह कुछ देर पहले ही अल्मोड़ा से लौटकर आएं थे। फिर भी 'गिर्दा' से मिलना मेरे लिए सुखद ही था। वह थके जरूर थे,लेकिन रूके नहीं थे। उनकी आवाज़ में जो मिठास थी,वह हमेशा की तरह अपनी माटी की खुशबू लिए थी। नैनीताल स्थित कैलाखान का वह घर मुझे अब रह-रहकर याद आता हैं। 'गिर्दा' का अतिथि निवेदन मेरे लिए निसंदेह बहुत बड़ा आशीर्वाद था। मुझे उनके वह शब्द बार-बार याद आते हैं कि,अब लगता हैं,समय कम रह गया है। दवाईयां भी साथ नहीं दे रही हैं,देखो बबा क्या होता है? कुछ देरे आराम करने के बाद 'गिर्दा' ने बीं.मोहन नेगी जी पर बातचीत शुरू की और इसी दौरान उनसे कुछ दूसरे विषयों पर भी बातचीत हुई। 'गिर्दा' वर्तमान लोक-सांस्कृति और रंगमंच में हो रहे बदवाल को लेकर काफी चिंतित जरूर दिख रहे थे। आख़िर क्यों इन तमाम मुद्दो पर एक अनऔपचारिक बातचीत हुई थी,उसी के कुछ अंशः-
1- 'गिर्दा' आप पहले के मुकाबले अभी काफी थके हुए लग रहे मुझे?
- नहीं-नहीं ऐसा नहीं है,गांव गया था ना। वहां बहुत सारे काम थे,उन्हें पूरा करना था। काफी भाग-दौड़ करनी पड़ी,शायद इसलिए थका सा लग रहा हूं बबा,.हंसते हुए.और अब बूढ़ा भी तो हो गया ना बबा.।
2- अभी कहां बूढ़े हैं दादा आप,अभी तो आपको एक लंबी यात्रा तय करनी है। हमारे साथ?
- हां.हां.क्यों नहीं,और नहीं भी कर पाया तो क्या। तुम लोगों के साथ मेरे गीत तो रहेगें ही ना बबा,कहते है ना व्यक्ति चला जाता है,लेकिन उसकी यादें उसकी सौगात हमारे पास हमेशा रह जाती है। इन्हें हमें हमेशा अपने पास संभाल कर रखना चाहिए।
3- इस उम्र में भी आप इतना भागा-दौड़ी इतना काम कर रहे है। कैसे कर पाते हैं,इतना कुछ?
- में संघर्ष करने में विश्वास रखता हूं.बबा.। यही मेरी शक्ति हैं,मैं निरंतर चलते रहने में विश्वास रखता हूं। क्योंकि इससे मेरे सामने नये आयाम खुलते हैं। लेकिन आज ऐसा नहीं हैं,आज बाजारवाद की डिमाण्ड के चक्कर में मानवीय गरिमा,मानवीय मूल्य,मानवीय संवेदनायें रिमाण्ड में जा रही है,नीलाम हो रही है। मैं इनसे लड़ने की क्षमता हमेशा खुद में रखता हूं। गाता हूं गुनगुनाता और आगे बढ़ता चला जाता हूं। मुझे लगता हैं,तुम जैसे युवा भी इस संघर्ष को खुद में समाहित कर एक नये दिन की शुरूआत करेगें। मुझे ऐसा लगता हैं,यह दिन जरूर आयेगा।
4- 'तो जैंता एक दिन त आलो ऊ दिन यो दुनीं में'.?
- जैंता एक दिन त आवो ऊ दिन यो दुनी में,गीत के मनुष्य के मनुष्य होने की यात्रा का गीत है। मनुष्य द्वारा जो सुंदरतम् समाज भविष्य में निर्मित होगा उसकी प्रेरणा का गीत है,यह उसका खाका भर है। इसमें अभी और कई रंग भरे जाने हैं,मनुष्य की विकास यात्रा के लिए। इसलिए वह दिन इतनी जल्दी कैसे आ जायेगा,इस वक्त तो घोर संकटग्रस्त-संक्रमणकाल से गुज़र रहे है नां हम सब,लेकिन एक दिन यह गीत-कल्पना जरूर साकार होगी,इसका विश्वास हैं और इसी विश्वास की सटीक अभिव्यक्ति वर्तमान में चाहिए।
5- गिर्दा ईश्वर को मानते है आप?
- थोड़ी देर चुप रहने के बाद.हां मानता हूं,जैसे गीत-संगीत को पूजता हूं वैसे ही ईश्वर को भी। लेकिन मैं अंधविश्वासी नहीं हूं। पहाड़ से हूं,जैसे देव भूमि कहा जाता है। फिर देवा से कैसे हम दूर हो सकते है। वो तो है ना बबा हमारे साथ.।
6- तो पूर्नजन्म में भी विश्वास करते होगें.यदि आपका पूर्नजन्म हो तो कहां जन्म लेना चाहेगें?
- जोर से हसते हुए.ऐसा हो सकता हैं क्या.यदि हां तो मैं तो बबा,इन्हीं पहाड़ की वादियों में जन्म लेना चाहूंगा.और अगर ऐसा हो ही गया तो.मैं किसी लोक गीत के धुन तो जरूर बनना चाहूंगा।
7- कुछ ऐसा,जो करने की चाहत हो.लेकिन अभी तक कर नहीं पाए हो?
- बकौल गालिब,'हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि,हर ख्वाहिश पै दम निकले' सो मेरे भाई किसी भी आदमी की हर चाहत तो कभी पूरी नहीं हो सकती,और मैं भी एक सामान्य आदमी हूं। मगर वास्तविकता यह है कि जब मानव विकास यात्रा का मर्म समझ में आ जायें तो फिर व्यक्तिगत चाहतों की कामी-नाकामी का कोई ख़ास महत्व नहीं रह जाता।
8- गिर्दा आप पुरानी पीढ़ी के कलाकारों समेत नवांकुरों तक के साथ आत्मीयता से अभी अनवरत कार्य कर रहे हैं.नई पीढ़ी के काम को कैसा मानते हैं और उसे क्या सीख देंगे आप?
- किसी भी सचेत संस्कृतिकर्मी को सभी 'वय' के लोगों के साथ काम करना ही चाहिए। दरअसल नये-पुराने वाली बात ज्यादा माने नहीं रखती बल्कि काम करने का मूल उद्देश्य महत्वपूर्ण होता हैं और नये लोगों के साथ काम करने में तो और अच्छा लगता है। कई नई-नई चीजें मिलती है। नये आयाम खुलते है। ख़ास तौर पर रंगमंच संदर्भ में कोशिश करता हूं कि बच्चों के बीच अधिक से अधिक भागीदारी हो सके। नये लोगों से इतना ही कहना चाहता हूं कि बाजारवाद के इस खतरनाक दौर को विश्लेषित करते हुए सांस्कृति कार्य का महत्व समझें और सामाजिक-ऐतिहासिक-वैज्ञानिक चेतना के साथ रतना कार्य करें।
जगमोहन आज़ाद ,दिल्ली
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जगमोहन जी बहुत सुंदर लिखा है
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