Tuesday, 28 September 2010
कानकून में लहराएगा उत्तराखंड का परचम
इस बार कानकून (मेक्सिको) विश्व वातावरण महासम्मेलन में उत्तराखंड का परचम लहराने वाला है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने इसकी मजबूत बुनियाद रख दी है। तब तक उत्तराखंड अकूत वन संपदा एवं पर्यावरण संतुलन के लिए किये गये तमाम अभिनव प्रयोगों में एक मुकाम हासिल कर लेगा। इन दिनों इन अभिनव प्रयोगों की उच्चस्तर पर समीक्षा हो रही है और धरातल पर परिणाम दिखाई देने लगे हैं।
मुख्यमंत्री हरित योजना, स्पर्श गंगा, हर्बल गार्डन और पिरूल के व्यावसायिक दोहन के लिए राज्य के तमाम इलाकों में तेजी से काम हो रहा है। इससे महासम्मेलन तक उत्तराखंड 50 लाख टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन को कम कर भारत समेत दुनिया के तमाम राज्यों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर देेगा। यही नहीं ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए भोज के जंगल विकसित करने की पहल भी महासम्मेलन में उत्तराखंड को वाहवाही मिल सकती है।
उत्तराखंड के 53 हजार 657 वर्ग किमी क्षेत्रफल में 35 हजार 651 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जंगल का है। निर्विवाद रूप से दुनिया के पर्यावरण संतुलन के लिए उत्तराखंड की महत्वपूर्ण भूमिका है। अब मुख्यमंत्री डा. निशंक इस भूमिका में एक नये 'हरित अध्याय' जोड़ने जा रहे हैं। यह अध्याय उत्तराखंड को राष्ट्रीय फलक पर एक नया मुकाम देने जा रहा है।
पर्यावरण एवं वन सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी ने इस संबंध में बताया कि राज्य के सभी जनपदों में उनकी मौलिक पहचान के तहत पौधरोपण किया जा रहा है। इसमें हल्दू, देवदार, बांज से लेकर तमाम छायादार पौधे लगाये जा रहे हैं। अब तक 65 लाख पौधे रोपे जा चुके हैं। सीएम की महत्वाकांक्षी 'स्पर्श गंगा' योजना यूरोप की 'राइन' और इंग्लैंड की 'थेम्स' नदी में चले अभियान से आगे निकल गई है।
उन्होंने बताया कि यूरोप और इंग्लैंड में नदियों को साफ सुथरा करने के लिए केवल सरकारी अभियान चला था, जबकि उत्तराखंड में महिला और युवक मंगल दलों की भागीदारी से स्पर्श गंगा अभियान एक जनांदोलन के रूप में सामने आया है। इससे लोगों में गंगा में मिलने वाली हजारों नदी-नाले-गदेरों को साफ-सुथरा रखने की संस्कृति विकसित हुई है। गंगा के किनारे रीवर वन विकसित किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में देहरादून, पौड़ी, चंपावत, चमोली और अल्मोड़ा में हर्बल गार्डन तैयार किये जा रहे हैं। इन जनपदों के 5 से 10 हेक्टेयर-भूमि में हर्बल गार्डन एक अभिनव प्रयोग है जबकि राज्य भर के सबसे खतरनाक दुर्घटना क्षेत्र में 'बायो फे सिंग' किया जा रहा है। रानीबाग-भीमताल, नैनीताल-भीमताल, दुगड्डा तथा सतपुली में यह सपना साकार रूप लेने लगा है। पर्यावरण मंत्रालय पिरूल के व्यावसायिक दोहन की रूपरेखा पर भी काम कर रहा है।
राज्य सरकार इस योजना को मनरेगा की तर्ज पर शुरू कर रही है जबकि पिरूल से बिजली बनाने के लिए अगले साल फरवरी तक बेरीनाग (पिथौरागढ़) में एक 100 किलोवाट का पावर प्लांट लगाने का काम अंतिम चरण में है। पिरूल से महिलाओं को सीधा रोजगार मिल रहा है। पिछले साल हजारों महिलाओं ने केवल पिरूल एकत्र करने पर लाखों रुपये की आय अर्जित की।
श्री बलूनी के अनुसार पूरे राज्य में 12 हजार से अधिक वन पंचायत हैं। पिरूल से इन वन पंचायतों को सीधा लाभ मिलेगा। पिरूल से ऊर्जा तैयार होने से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख टन कार्बन उत्सर्जन वातावरण में कम हो जाएगा। श्री बलूनी ने दावा किया कि मेक्सिको सम्मेलन में इन तमाम अभिनव प्रयोगों से उत्तराखंड को पर्यावरण संरक्षण और संतुलन के लिए चौतरफा शाबाशी मिलेगी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय योजना आयोग पहले ही उत्तराखंड की पीठ थपथपा चुका है। इस बीच उच्च सरकारी सूत्रों के अनुसार मेक्सिको सम्मेलन की उत्तराखंड ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। इस सम्मेलन की तिथि अभी तय नहीं है।
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