Saturday, 18 September 2010

बेटी ने घाट पर पिता की चिता को दी मुखाग्नि

तोड़ीं वर्जनाएं: देहरादून जिले के भानियावाला गांव निवासी गढ़वाल राइफल के पूर्व सैनिक प्रेम सिंह तोमर का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। उनकी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार बेटी ही करे। उनकी बेटी श्वेता ने रूढि़यों की जकड़न को तोड़कर बेटे का कर्तव्य निभाया। पार्थिव शरीर को पूर्णानंद घाट ऋषिकेश पर उसने न सिर्फ चिता को मुखाग्नि दी, बल्कि सिर मुंडवाकर कपाल क्रिया भी की। श्वेता ने दिखा दिया कि वंश का निशान सिर्फ बेटे से ही नहीं, बेटी से भी घर का चिराग रोशन है। सच तो यह है कि अपने ही खून में फर्क क्यों और कैसा। ऋषिकेश। हिंदू धर्म में महिलाओं को अंतिम यात्रा में शामिल होने की स्पष्ट इजाजत नहीं है और न ही चिता को मुखाग्नि देने और क्रियाकर्म पर बैठने की शास्त्राज्ञा है। मगर भानियावाला निवासी एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी पुत्रियों ने अंतिम यात्रा में शामिल होकर इन वर्जनाओं को तोड़ दिया। यह घटना चर्चा की विषय बनी रही। भानियावाला निवासी पूर्व सैनिक प्रेम सिंह तोमर की अस्वस्थता के कारण शुक्रवार सुबह निधन हो गया। सगे-संबंधी, नाते रिश्तेदार अंतिम यात्रा के लिए निकले तो दिवंगत तोमर की चारों पुत्रियां भी शवयात्रा में निकल पड़ीं। लोगों ने समझाया मगर वह नहीं मानी। उत्तराखंड पूर्व सैनिक संगठन के केंद्रीय उपाध्यक्ष बुद्धि प्रकाश शर्मा ने बताया कि मुनिकीरेती श्मशानघाट पर चिता बनाई गई, जब मुखाग्नि देने की बात आई तो दिवंगत प्रेम सिंह के भाई बलराम तोमर और शैलेंद्र तोमर के अलावा भतीजे तैयार हुए, साथ ही उनकी बेटियां भी मुखाग्नि देने के लिए आगे आ गईं। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक रिश्तेदारों और परिजनों से उन्हें समझाने की कोशिश की मगर वह नहीं मानी। बेटियों का कहना था कि उनके दिवंगत पिता की ऐसी ही इच्छा थी, लिहाजा वह उनकी इच्छा के संकल्प को पूरा करेंगी। उनके इस तर्क पर वहां मौजूद अन्य लोगों ने भी मूक सहमति दे दी। इस मौके पर दिवंगत तोमर की तीसरी बेटी श्वेता ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और कपालक्रिया के बाद मुंडन भी कराया। श्वेता ही क्रियाकर्म करेंगी। पिता की अंतिम इच्छा पूरी की : श्वेता ऋषिकेश। दिवंगत प्रेम सिंह तोमर के अग्निदाह संस्कार में उनकी चार पुत्रियों समेत पांच महिलाओं ने भाग लिया। पुत्रियों में ममता और संगीता (दोनों विवाहित) के अलावा श्वैता और शिवानी शामिल हैं। इनमें से तीसरे नम्बर की पुत्री श्वेता ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और कपालक्रिया के साथ ही मुंडन कराया। जानकारी के अनुसार बताया गया कि वही संपूर्ण क्रियाकर्म सम्पन्न कराएंगी। बकौल श्वेता मेरे पिता की अंतिम इच्छा थी कि भाई नहीं बेटी ही अंतिम संस्कार करे। श्वेता के अनुसार चाचा लोग क्रियाकर्म के लिए तैयार थे, मगर हमें अपने पिता की की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी।

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