Wednesday, 29 September 2010
कॉमनवेल्थ गेम्स में बिखरेगी उत्तराखंड की संस्कृति
जोशीमठ। उत्तराखंड में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवा चुके उत्तराखंड के लोग अब कॉमनवेल्थ गेम्स में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।
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कामनवेल्थ गेम्स में ‘बीटस आफ उत्तराखंड’ के कार्यक्रम के दौरान सीमांतवासी वाद्य यंत्रों की प्रस्तुतियां देंगे। भोटिया सांस्कृतिक कला मंच के प्रमुख प्रेम हिंदवाल उत्तराखंड की ओर से लीड रोल करेंगे।
कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान नौ अक्तूबर को उत्तराखंड बीट्स के दौरान जहां पौड़ी के कलाकार बाबा केदार नृत्य, कुमाऊं से छपेली नृत्य और जौनसार के कलाकार हारूल नृत्य का प्रदर्शन करेंगे तो चमोली जनपद के सीमांत ब्लाक जोशीमठ के लोक कलाकार वाद्ययंत्रों की शानदार प्रस्तुति देकर विश्व समुदाय को उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों की झलक से रूबरू कराएंगे।
उत्तराखंड की ओर से वाद्य यंत्रों में लीड रोल करने जा रहे लोक कलाकार प्रेम हिंदवाल के अनुसार उत्तराखंड बीट्स में उनके कलाकारों द्वारा ढोल, दमांऊ, भंकूर, भांणू, डौंर, हुडका, थाली, मुछंग, रणसिम्हा और मसक बीन आदि के वादन के साथ शानदार प्रस्तुतियां दी जाएंगी। उत्तराखंड संस्कृति विभाग के रंग मंडल संयोजक बलराज नेगी ने बताया कि 9 अक्तूबर को दिल्ली में होने वाले इस कार्यक्रम में सीमांत कलाकार न केवल वाद्य यंत्रों का बल्कि प्रसिद्ध पौंणा नृत्य का भी प्रदर्शन करेंगे। प्रख्यात लोक गायक दरबार नैथवाल, किसन महिपाल ने इस बुलावे को विश्व पटल पर उत्तराखंड की संस्कृति को पहुंचाने का शानदार अवसर बताया है।
वाद्य यंत्रों के साथ पौणा नृत्य की प्रस्तुति देंगे कलाकार
दो हजार शिक्षक 600 हेडमास्टर के नए पद बनेंगे
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देहरादून। राज्य में बेसिक शिक्षकों के करीब दो हजार और हेडमास्टर के 600 से ज्यादा नए पद सृजित किए जा रहे हैं। इससे रोजगार तो बढ़ेगा ही, प्राइमरी शिक्षकों की पदोन्नति के अवसर भी बढ़ेंगे। ये पद शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के अंतर्गत बनाए जा रहे हैं।
आरटीई के तहत हर किमी पर प्राथमिक, तीन किमी. पर जूनियर हाईस्कूल खोलने के प्रावधान के तहत राज्य में बड़ी संख्या में नए स्कूल खोले जाने हैं। खुलने वाले स्कूलों की संख्या 600 से ज्यादा आंकी गई है। इससे विद्यालयी शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों का स्ट्रक्चर भी बढ़ाया जा रहा है। प्रभारी निदेशक सौजन्या के मुताबिक करीब 2047 सहायक अध्यापक व 648 प्रधान अध्यापक के नए पद बनाए जाएंगे। केंद्र व राज्य सरकार की सैद्धांतिक सहमति मिल गई है। राज्य की ओर से केंद्र को भेजे गए 140 करोड़ के प्रस्ताव में इन शिक्षकों और स्कूलों का विवरण व इन पर खर्च होने वाली राशि का आगणन है। इन पदों पर भर्ती खुलने से जहां राज्य के 2047 युवाओं को रोजगार मिलने के साथ ही 648 शिक्षकों की पदोन्नति की भी राह बनेगी।
Tuesday, 28 September 2010
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित इंटर कालेजों में प्रवक्ता परिक्षा २००९ का परिणाम २७.९.१० को घोषित- देखे -
गंगा की कहानी बयां करेगा 'संग्रहालय'
हिमालय की गोद 'गंगोत्री' से निकलकर 'गंगासागर'
तक कल-कल बहने वाली पतित पावन गंगा की यात्रा की कहानी के रहस्य को एक स्थान पर समाहित करने के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने एक अनोखा संग्रहालय बनाने का फैसला किया है।
लगभग चालीस करोड़ की लागत से बनने वाला यह संग्रहालय हरिद्वार के हर की पैडी के ठीक सामने चण्डी द्वीप में बनाया जाएगा। इसमें गंगा के उद्गम से लेकर उसके अंतिम प्रवाह तक के रहस्य समाहित होंगे।
हरिद्वार के जिलाधिकारी आर. मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि प्रस्तावित गंगा संग्रहालय हर की पैडी के ठीक सामने चण्डी द्वीप में बनेगा। उन्होंने बताया कि जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत यह योजना मंजूरी के लिए राज्य के शहरी विकास मंत्रालय को भेजी गई है।
सुदंरम ने बताया कि प्रस्तावित योजना के तहत एक बड़ा संग्रहालय बनेगा। जिसमें गंगा के धार्मिक महत्वों सहित उसका ऐतिहासिक विवरण इस संग्रहालय में रहेगा।
उन्होंने बताया कि प्रस्तावित संग्रहालय हर की पैडी के सामने दीनदयाल पार्किग स्थल से उस पार चण्डी द्वीप में स्थित होगा। यहां जाने के लिए एक पुल बनाने की भी योजना है।
उधर, राज्य के शहरी विकास मंत्रालय की मानें तो सरकार ने इस योजना को मंजूरी दे दी है। हालांकि इसके मूर्त रूप लेने में अभी भी दो वर्ष का समय लगेगा।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि गंगा संग्रहालय एक अनूठा म्यूजियम होगा। जहां एक साथ बैठकर गंगा की महिमा को जाना जा सकेगा। प्रस्तावित संग्रहालय में हजार से अधिक लोगों के बैठने की क्षमता वाला आधुनिक व वातानुकूलित थियेटर भी रहेगा।
जिसमें देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालु राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर पावन गंगा की महिमा को जान सकेंगे।
इस संग्रहालय में गंगा की गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा का मनोहारी वर्णन होगा। उम्मीद जताई जा रही है तीर्थ नगरी में बनने वाला यह संग्रहालय अपने आप में अनोखा होगा जिसे देख कर लोग अचरज में रह जाएंगे।
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों में विकास के लिए जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत राज्यों को अलग से धन मुहैया कराया जाता है। इसी योजना के तहत हरिद्वार प्रशासन ने प्रस्तावित गंगा संग्रहालय को बनाने का निर्णय लिया है।
उत्तराखंड में एक और महाकुंभ की तैयारी
देहरादून। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में चल रहा सदी का सबसे बड़ा कुंभ अभी समाप्त नहीं हुआ है और दूसरी आ॓र पहाड़ के दूसरे महाकुंभ ’नंदा राजजात यात्रा’ की तैयारी शुरू कर दी गयी है।
उत्तराखंड में प्रत्येक बारह वर्ष पर मनाये जाने वाली नंदा राजजात को ’पहाड़ के महाकुंभ’ के नाम से जाना जाता है। करीब एक महीने तक चलने वाले इस महोत्सव में हजारों की संख्या में लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ हिस्सा लेते हैं। यह महाकुंभ वर्ष 2012 में आयोजित होने वाला है लेकिन इसकी तैयारी अभी से ही शुरू कर दी गयी है।
इस बार आयोजित होने वाले इस पहाड़ के कुंभ नंदा राजजात आयोजन समिति के सचिव भुवन नौटियाल ने गोपेश्वर में बताया कि मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड के इष्टदेव भगवान शंकर ने मां पार्वती से विवाह करने के बाद अपने निवास कैलाश जाने के लिये जिस दुर्गम
रास्ते को चुना था, हजारों की संख्या में लोग प्रत्येक 12 वर्ष पर उसी रास्ते की परिक्रमा करते हुये जाते हैं और मां पार्वती को तरह तरह की भेंट चढ़ाते हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में मां पार्वती को नंदा देवी के नाम से जाना जाता है। नौटियाल ने बताया कि लोग उस स्थान तक यह यात्रा करते हैं जहां तक के लिये मान्यता है कि वह इलाका देवी पार्वती के मायके के क्षेत्र में आता है। उस इलाके के बाद विशेष रूप से जन्मा चार सींग वाला भेड़ नंदा देवी के सारे सामानों को लेकर ससुराल क्षेत्र में प्रवेश करता है जो करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई से शुरू होता है और 23 हजार फुट की ऊंचाई वाले नंदा घुंघटी तक जाता है जहां आज भी लोगों के लिये पहुंचना लगभग असंभव है।
उन्होंने बताया कि मान्यताओं के अनुसार, इस महाकुंभ के लिये नौटी के राजपरिवार के लोग आज भी मायके वालों की भूमिका में रहते हैं और जिस प्रकार से एक बेटी को पूरे सामान के साथ घर से विदा किया जाता है उसी प्रकार से नंदा देवी के लिये बडे़-बडे़ छत्र चंवर के साथ अन्य सामानों को लेकर यह यात्रा की जाती है।
नौटियाल ने बताया कि इस यात्रा के दौरान जहां हजारों लोगों को हिमालय के दुर्गम ग्लेशियरों से गुजरना पड़ता है वहीं रास्ते में एक जगह सबसे खतरनाक ज्यूरांगली दर्रे से भी यह यात्रा गुजरती है जिसे आज भी मौत की गली कहा जाता है।
नौटियाल ने कहा कि इस बार इस खतरनाक और दुरूह यात्रा में करीब एक लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है। पिछली बार जब वर्ष 2000 में यह महाकुंभी यात्रा आयोजित हुई थी तो मौत की गली से गुजरते समय कुछ लोगों को मौत का सामना भी करना पड़ा था।
उन्होंने कहा कि इस पहाड़ी महाकुंभ के लिये अभी से तैयारी शुरू कर दी गयी है और सरकार से आग्रह किया गया है कि इसकी सफलता के लिये राजजात प्राधिकरण का गठन अभी से कर दिया जाये। नौटियाल स्वयं नौटी के राजपुरोहित परिवार से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया का सबसे रहस्यमयी रूपकुंड भी इसी यात्रा के दौरान पड़ता है जहां आज भी हजारों नरकंकालों को पडे़ देखा जा सकता है। आज तक कोई भी नहीं जान पाया है कि ये नरकंकाल कहां से आये हैं और कितने पुराने हैं। यह स्थान 18 हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है और बारहों महीने बर्फ से ढका रहता है।
उन्होंने कहा कि इस यात्रा में पूरे राज्य से, गढ़वाल और कुमायूं मंडलों से हजारों लोग चंवर और छत्र लेकर अलग अलग स्थानों से आते हैं और इस पहाड़ी महाकुंभ में शामिल होते हैं। इस यात्रा के दौरान यात्री कुल 21 स्थानों पर रात में अपना पड़ाव डालते हैं। करीब एक महीने तक चलने वाले इस महाकुंभ का समापन करीब 23 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित नंदा घुंघटी के बेस नंदी कुंड में होता है जो करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
उन्होंने कहा कि यह महाकुंभ गढ़वाल के राजपरिवारों द्वारा शुरू किया गया था और इसीलिये आज भी इसमें राजपरिवार के ही लोग मायके वालों की भूमिका में प्रमुख रूप से शामिल होते हैं और पूरी यात्रा में चलते हैं।
नौटियाल ने बताया कि इस महाआयोजन को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने के लिये पहली तैयारी गत दिनों उपरायीं देवी मंदिर में मांडवी मनौती पूजा के साथ सम्पन्न हुई जिसमें नंदा देवी से इस यात्रा को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने की मनौती मानी गयी।
देहरादून में पर्यटन विभाग के सूत्रों ने बताया कि राज्य में अभी इस पर्वतीय महाकुंभ की तैयारी के लिये योजना बनायी जा रही है और मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल स्वयं इस महाकुंभ की सफलता के लिये कार्ययोजना पर विचार कर रहे हैं।
कानकून में लहराएगा उत्तराखंड का परचम
इस बार कानकून (मेक्सिको) विश्व वातावरण महासम्मेलन में उत्तराखंड का परचम लहराने वाला है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने इसकी मजबूत बुनियाद रख दी है। तब तक उत्तराखंड अकूत वन संपदा एवं पर्यावरण संतुलन के लिए किये गये तमाम अभिनव प्रयोगों में एक मुकाम हासिल कर लेगा। इन दिनों इन अभिनव प्रयोगों की उच्चस्तर पर समीक्षा हो रही है और धरातल पर परिणाम दिखाई देने लगे हैं।
मुख्यमंत्री हरित योजना, स्पर्श गंगा, हर्बल गार्डन और पिरूल के व्यावसायिक दोहन के लिए राज्य के तमाम इलाकों में तेजी से काम हो रहा है। इससे महासम्मेलन तक उत्तराखंड 50 लाख टन से अधिक कार्बन उत्सर्जन को कम कर भारत समेत दुनिया के तमाम राज्यों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर देेगा। यही नहीं ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए भोज के जंगल विकसित करने की पहल भी महासम्मेलन में उत्तराखंड को वाहवाही मिल सकती है।
उत्तराखंड के 53 हजार 657 वर्ग किमी क्षेत्रफल में 35 हजार 651 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जंगल का है। निर्विवाद रूप से दुनिया के पर्यावरण संतुलन के लिए उत्तराखंड की महत्वपूर्ण भूमिका है। अब मुख्यमंत्री डा. निशंक इस भूमिका में एक नये 'हरित अध्याय' जोड़ने जा रहे हैं। यह अध्याय उत्तराखंड को राष्ट्रीय फलक पर एक नया मुकाम देने जा रहा है।
पर्यावरण एवं वन सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी ने इस संबंध में बताया कि राज्य के सभी जनपदों में उनकी मौलिक पहचान के तहत पौधरोपण किया जा रहा है। इसमें हल्दू, देवदार, बांज से लेकर तमाम छायादार पौधे लगाये जा रहे हैं। अब तक 65 लाख पौधे रोपे जा चुके हैं। सीएम की महत्वाकांक्षी 'स्पर्श गंगा' योजना यूरोप की 'राइन' और इंग्लैंड की 'थेम्स' नदी में चले अभियान से आगे निकल गई है।
उन्होंने बताया कि यूरोप और इंग्लैंड में नदियों को साफ सुथरा करने के लिए केवल सरकारी अभियान चला था, जबकि उत्तराखंड में महिला और युवक मंगल दलों की भागीदारी से स्पर्श गंगा अभियान एक जनांदोलन के रूप में सामने आया है। इससे लोगों में गंगा में मिलने वाली हजारों नदी-नाले-गदेरों को साफ-सुथरा रखने की संस्कृति विकसित हुई है। गंगा के किनारे रीवर वन विकसित किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में देहरादून, पौड़ी, चंपावत, चमोली और अल्मोड़ा में हर्बल गार्डन तैयार किये जा रहे हैं। इन जनपदों के 5 से 10 हेक्टेयर-भूमि में हर्बल गार्डन एक अभिनव प्रयोग है जबकि राज्य भर के सबसे खतरनाक दुर्घटना क्षेत्र में 'बायो फे सिंग' किया जा रहा है। रानीबाग-भीमताल, नैनीताल-भीमताल, दुगड्डा तथा सतपुली में यह सपना साकार रूप लेने लगा है। पर्यावरण मंत्रालय पिरूल के व्यावसायिक दोहन की रूपरेखा पर भी काम कर रहा है।
राज्य सरकार इस योजना को मनरेगा की तर्ज पर शुरू कर रही है जबकि पिरूल से बिजली बनाने के लिए अगले साल फरवरी तक बेरीनाग (पिथौरागढ़) में एक 100 किलोवाट का पावर प्लांट लगाने का काम अंतिम चरण में है। पिरूल से महिलाओं को सीधा रोजगार मिल रहा है। पिछले साल हजारों महिलाओं ने केवल पिरूल एकत्र करने पर लाखों रुपये की आय अर्जित की।
श्री बलूनी के अनुसार पूरे राज्य में 12 हजार से अधिक वन पंचायत हैं। पिरूल से इन वन पंचायतों को सीधा लाभ मिलेगा। पिरूल से ऊर्जा तैयार होने से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख टन कार्बन उत्सर्जन वातावरण में कम हो जाएगा। श्री बलूनी ने दावा किया कि मेक्सिको सम्मेलन में इन तमाम अभिनव प्रयोगों से उत्तराखंड को पर्यावरण संरक्षण और संतुलन के लिए चौतरफा शाबाशी मिलेगी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय योजना आयोग पहले ही उत्तराखंड की पीठ थपथपा चुका है। इस बीच उच्च सरकारी सूत्रों के अनुसार मेक्सिको सम्मेलन की उत्तराखंड ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। इस सम्मेलन की तिथि अभी तय नहीं है।
इस दैवीय आपदा से हम उत्तराखंड को बहुत जल्द उभार देगें- 'निशंक'
ये राजनिति करने का समय नहीं,मिलकर चलने का समय है- 'निशंक'
पिछले दिनों उत्तराखंड में आयी बारिश की तबाही ने उत्तराखंड को हिलाकर रख दिया है। यही नहीं राज्य में बारिश और बादल फटने की अलग-अलग घटनाओं में इस साल करीब 150 लोग मारे जा चुके हैं। पिछले कुछ दिनों में ही 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। राजधानी देहरादून में बारिश ने पिछले 44 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। बादल जिस तरह से इस देव भूमि पर कहर बनकर बरसे,उन्होंने पहाड़ के आसुओं को रोके नहीं रूकने दिया। यहां कोई मार्ग-खेत-खलिहान और मकान ऐसा नहीं बचा जिसने इस बार आई इस प्राकृतिक आपदा की त्रासदी को ना झेला हो। बिजली,पानी,संचार,संपर्क,खाद्यान्न,दवाओं का अभाव इस बाढ़ की चपेट में आए। राज्य के ज्यादातर हिस्सों में लोग मुख्यालय से कट गए तो चारों ओर तबाही का मंजर ही मंजर नज़र आया।
उत्तराखंड में आयी इस प्राकृतिक विपदा से घिरे लोग कई बार टापू पर खडे होकर मदद की गुहार लगाते रहे। ऐसे कुदरती दुर्दिन में राज्य सरकार जहां पूरी संजीदगी के साथ इस आपदा का मुकाबला करती दिखायी दी। वहीं कांग्रेस का हात आम आदमी के साथ नारा देने वाली कांग्रेस ऐसे भीषणतम् समय में भी राजनिति करती हुई दिखायी दी। जहां उत्तराखंड के युवा और कर्मठ मुख्यमंत्री खुद जान जोखिम में डालकर दूर-दराज आपदाग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचकर,विषम परिस्थियों में भी राहत एवं बचाव कार्यों की निगरानी करने में लगे है।
उत्तराखंड को केंद्र से मिली थोड़ी सी राहत को कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री हरीश रावत इस आपदा से ग्रस्त लोगों के घाव भरने की जगह,उनको मदद पहुंचाने जगह,पत्रकारों की बड़ी मंडली को अपने साथ घुमा-घुमाकर इस दैवीय आपदा को तराजू में तौल रहे है। यही नहीं उत्तराखंड में विपक्ष के नेता भी रावत के शुर में शुर मिलाकर कह रहे हैं कि केंद्र ने राज्य को इस आपदा से निपटने के लिए भारी धन उपलब्ध कराया है। जबकि सच्चायी सब के सामने है। आज उत्तराखंड को जिस तरह से इस प्राकृतिक आपदा से घेरा है। उसे विश्व के मानचित्र पर साफ-साफ देखा जा सकता है। लेकिन विपक्ष को इस सब की जगह खुद के लिए राजनैतिक रोटियां सैकने का ज्यादा उचित समय लग रहा है। लेकिन इसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री इन तमाम नेताओं से निवेदन कर रहे हैं कि कृपया,ये राजनिति करने का समय नहीं,मिलकर चलने का समय है।
वर्षों बाद उत्तराखंड में आयी इस दैवीय आपदा ने पहाड़ों को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है। इसे देखते हुए डॉ.निशंक ने केंद्र से 21 हजार करोड़ रूपये की सहायता और राज्य को आपदाग्रस्त राज्य घोषित करने का अनुरोध भी किया है। साथ ही राहत कार्यों में सहयोग हेतु सैन्य बलों को भेजने की बात भी कही। मुख्यमंत्री ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी राज्य के हालातों से अवगत कराया है। भारी वर्षा,बाढ़ एवं भू-स्खलन के कारण राज्य में उत्पन्न हुई विकट स्थिति से नई दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी,लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने राज्य के हालात को मजबूती से प्रधानमंत्री के समक्ष रखा। मुख्यमंत्री डॉ.निशंक के इन प्रयासों के परिणाम भी निश्चित तौर पर सामने आएं और केंद्र द्वारा तत्काल प्रभाव से 100 एन.डी.आर.एफ. के जवान उत्तराखंड के लिए रवाना किए गए और भूस्खलन एवं आपदा में मृत लोगों के परिजनों के लिए एक-एक लाख रूपये तथा घायलों को 50-50 हजार रूपये की सहायता प्रधानमंत्री द्वारा स्वीकृत की गयी। जबकि राज्य सरकार द्वारा भी मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रूपये मुआवजे के रूप में स्वीकृत किए गए। इस बारे में हमने जब अल्मोडा,उत्तरकाशी और यमुनोत्री-गंगोत्री राजमार्ग में फंसे लोगों से बात की तो,इन लोगों का कहना था कि,'उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री खुद अपनी जान की परवा किए बगैर,विषम परिस्थियों में भी हमारे गांव आएं,हमसे मिले और हमें दि जाने वाली तमाम सुविधाओं के बारे में जानकारी भी ली,साथ ही उन्होंने सभी उचअधिकारियों को निर्देश दिए की जल्द से जल्द राहत सामग्री उन लोगों तक पहुंचनी चाहिए। जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है'।
मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से हैं कि उन्होंने 18 सितंबर 10 को प्रदेश में दैवीय आपदा से हुए भारी नुकसान को देखते हुए तत्काल जिलाधिकारियों और शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को राहत और बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश जारी किए। 19 सितंबर 10 को मुख्यमंत्री सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों से इस आपदा पर एक अहम बैठक कर वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से सभी जिलाधिकारियों के साथ चर्चा की और उन्हें निर्देश दिया कि वे बचाव एवं रहात कार्यों में तेजी लाए। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि आपदा राहत के लिए धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा। साथ ही मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों को आवश्यकता पड़ने पर हैलीकाप्टर के माध्यम से बचाव व राहत कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने का निर्देश दिए है। मुख्यमंत्री खुद इस अधिकारियों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं,और पल-पल की जानकारी ले रहे है।
और तेज हुआ दैवीय आपदा से निपटने का 'मिशन राहत'
सोमवार को मौसम थोड़ा साफ होते ही उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से निपटने के लिए मिशन राहत और तेज हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरिया निशंक ने हैलीकाप्टर औप पैदल चलकर आपदाग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण किया और अफसरों को राहत कार्य में तत्परता बरतने के निर्देश भी दिए। उन्होंने तमाम अधिकारियों को निर्देश दिए कि सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित बचाना और उन्हें फौरी राहत मुहैया कराना है। इस बारे में जब हमने आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र से सूचना प्राप्त की तो,हमें प्राप्त सूचना के आधार पर, मुख्यमंत्री की अगवाही में उच्च हिमालयी क्षेत्र में फंसे पर्यटकों की खोज का कार्य राज्य सरकार द्वारा भारतीय थल सेना के दो चीता हैलीकॉप्टरों के मदद से जारी है। गंगोत्री-कालिन्दीखाल मार्ग पर फंसे पर्यटक दल की खोज के लिए 25 सिंतबर 10 से भारतीय थल सेना के चीता हैलीकॉप्टरों को लगाया गया है। जिनके द्वारा उस क्षेत्र का लगातार सर्वेक्षण किया जा रहा है। जहां यह पर्यटक हो सकते हैं,लेकिन पिछले दिनों ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इन क्षेत्रों में इन पर्यटकों के होने के कोई चिन्ह नहीं पाये गए है। दूसरी तरफ पिथौरागढ़ जनपद के गुंजी में फंसे लोगों को हैलीकाप्टर की मदद से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। गुंजी में फंसे मीडिया के पांच लोगों को धारचुला तथा तीन घायलो को हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल लाया गया है। जहां पर इन का उपचार किया जा रहा है। इसके साथ ही मरतोली में फंसे एक महाराज को मुंस्यारी लाया गया है।
इसी के साथ मुख्यमंत्री द्वारा उत्तराखंड के कई दूसरे आपदाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया गया है। अल्मोड़ा जनपद में आपदा से प्रभावित क्षेत्रों के 5593 लोगों को ठहराने के लिए 204 राहत कैंप स्थापित किए गए है। इसके अंतर्गत तहसील अल्मोड़ा में 57,रानीखेत में 60,द्वाराहाट में 03,जैंती में 60,सोमेश्वर में 02,भनौली में 17 एवं सल्ट में 05 राहत कैंप स्थापित किए गये है। मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने का काम तेजी से किया जा रहा है। सभी राहत शिविरों में आवश्यक खाद्य सामग्री पहुंचा दी गया है और संबंधित क्षेत्र के उपजिलाधिकारी के माध्यम से उसका वितरण भी सुनिश्चित् कर दिया गया है। जनपद में रसोई गैस की आपूर्ति का प्राथमिकता के आधार पर कराए जाने के साथ ही पेट्रोल,डीजल का स्टॉक प्रर्याप्त मात्रा में रख दिया गया हैं,ताकि किसी प्रकार की असुविधा न हो। क्षतिग्रस्त सड़कों के सुधारीकरण का कार्य तेजी से किया जा रहा है। आपदा के कारण जो भी मार्ग क्षतिग्रस्त हुए हैं,उन्हें ठीक करने का काम युद्धस्तर पर जारी है। इसी के साथ उत्तराखंड को जोड़ने वाले मार्ग एवं सभी अवरुद्ध हुए मार्गों को खोलने के लिए भी युद्धस्तर पर काम किया जा रहा है।
इसी के साथ मुख्यमंत्री भी पूरे प्रदेश की स्थिति को जानने के लिए खुद दौरा भी कर रहे है। जिससे प्रदेश की जनता काफी राहत महसूस कर रही है कि उनकी समस्याओं को जानने के लिए मुख्यमंत्री स्वयं पैदल चलकर उनके पास आ रहे है। निश्चित तौर पर डॉ.निशंक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों से व्यक्तिगत तौर से मिलकर उन्हें ढांढस बंधा रहे कि इस दुःख की घड़ी में सरकार उनके साथ खड़ी है। जिससे लोगों में आशा जगी,साथ ही जिला प्रशासन भी हरकत में और प्रभावितों को तत्काल सहायता पहुंचाने में ओर तेजी लायी जा रही है। डॉ.निशंक ने शासन स्तर पर भी मुख्य सचिव को आपदा कार्यो की निगरानी के लिए कमान सौंपी है। मुख्य सचिव प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों से भली-भांती परिचित है। उन्होंने मुख्यमंत्री के निर्देश पर देर शाम तक शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की और राहत एवं बचाव की समीक्षा की
इस दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में लगातार मुख्यमंत्री जा रहे है। पिछले दिनों प्रभावित क्षेत्रों में बीमार लोगों को हैलीकॉप्टर से देहरादून लाने की व्यवस्था और उत्तरकाशी जनपद के नैटवार से 22 वर्षीय आशाराम,पुरोला से 65 वर्षीय लालचंद तथा पुरोला के ही ग्राम कण्डियाल से गंभीर रूप से बीमार 4 वर्षीय बच्चे धर्मेंद्र को हेलीकॉप्टर से देहरादून पहुंचाना मुख्यमंत्री का एक सराहनीय प्रयास रहा है। जहां दून अस्पताल में इन सभी का ईलाज चल रहा है। डॉ.निशंक प्रत्येक जनपद और गांव-गांव जाकर खुद देख रहे है कि इस दैवीय आपदा में घायल हुए लोगों और पशुओं को बेहतर चिकित्सा सुविधा प्रदान की जा रही हैं कि नहीं। इस बारे में जब हमने निशंक जी से जानना चाह की अभी उत्तराखंड के हालत कैसे है तो उन्होंने बताया कि, धीरे-धीरे जीवन खुद को संवारने की कोशिश कर रहा है। हम केवल उसे एक राह से जोड़ रहे है। क्योंकि उत्तराखंड पर इतनी भयभीत कर देने वाली दैवीय आपदा पहली बार आयी हैं,लेकिन हम अपना सब कुछ झोंक कर इस आपदा से निपटने का प्रयास कर रहे है। हमें उम्मीद हैं कि हम इस स्वर्ग में फिर से फूल खिला देगें। जहां तक इस आपदा में घायलों की बात हैं तो उनके उपचार में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी और उनका पूरा ध्यान रखा जायेगा। मैं आपको अवगत करना चाहूंगा की बड़कोट में राहत सामग्री लेकर गए हैलीकॉप्टर से 13 लोगों को देहरादून लाया गया हैं,जिनमें सात फ्रांसीसी पर्यटक है। इसके साथ ही कई अन्य लोगों में एक गर्भवती महिला और एक बीमार बच्चे को यहां लाया गया है। पुरोला से सात लोगो को और चिन्यालीसौढ़ से 22 लोगों को हैलीकॉप्टर से सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। इसी के साथ चिन्यालीसौढ़ में चार अतिरिक्त नौकाएं भी लगा दी गयी और प्रारम्भिक चरण में लगभग सौ से ज्यादा लोगों सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया गया है। कुमाऊं में बहुत से स्थानों पर सड़क मार्ग खुल जाने से कई ट्रकों से राहत सामग्री अल्मोडा़,बागेश्वर और पिथौरागढ़ के निकटतम स्थानों तक पहुंचायी दी गयी है। तीन ट्रक गैस सिलेण्डर भी कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों के लिए भेज दिए गए है। जहां तक मानसरोवर यात्रा की बात हैं तो इसके 16वें समूह के 31 पुरूष एवं छः महिला समेत कुल 37 यात्रियों को गुंजी से धारचूला पहुंचाया गया। गुंजी में फंसे कैलाश मानसरोवर यात्रा के 37 यात्रियों को वायु सेना के एमआई-17 हैलीकॉप्टर से तीन चक्रों में सुरक्षित धारचूला तक लाया गया हैं और फिर टनकपुर पहुंचाया गया। जब हमने मुख्यमंत्री से इस आपदा के समय कांग्रेस के बयानों के बारे में जानना चाहा तो,डॉ.निशंक ने साफ किया की यह वक्त इस विपादा से निपटने का हैं,हमें इस पर ध्यान देना है। ये राजनिति करने का समय नहीं हैं बल्कि मिलकर चलने का प्रदेश की जनता के दुःखों को दूर करने का उन्हें राहत पहुंचाने का समय है'।
निश्चित तौर पर यह मिलकर काम करने का समय है। मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक जिस प्रकार से दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों का हवाई एवं स्थलीय निरीक्षण कर रहे है। वह अपने आप में सराहनीय है। मुख्यमंत्री के एक दिन में कई जनपदों का दौर करना और राहत कार्यों का निरीक्षण करने से आम लोगों में सरकार के प्रति और अधिक विश्वास बढ़ा है। साथ ही मुख्यमंत्री की कार्यशैली की सभी सभी सराहना कर रहे है,और उनकी इस कर्मठता और अपने राज्य के प्रति,राज्य की जनता के प्रति खुद के संर्पण को देखते हुए अब कई सामाजिक और स्वयंसेवी संगठन में अपनी ओर से हर संभव मदद के लिए आगे आ रहे है।
- जगमोहन 'आज़ाद'
Monday, 27 September 2010
सभी उत्तराखंडवासियों से एक अपील
उत्तराखंड में बारिश ने इस बार किस तरह की तबाही मचायी है...इस आपदा से निपटने के लिए हम सब को आगे आना है...क्योंकि यह हम सबके लिए बहुत जरूरी ही नहीं...बल्कि हमारा यह फ़र्ज भी है कि,हम इस आपदा के समय अपने पहाड़ों के लिए कुछ करें...इसी के लिए माननीय मुख्यमंत्री जी उत्तराखंड डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक जी ने देश-विदेश और उत्तराखंड में बसे सभी उत्तराखंडवासियों से एक अपील की है। आप सभी लोग इस समय पहाड़ की मदद के लिए आगे आएं
Wednesday, 22 September 2010
देवभूमि में बाढ़ से बिगड़े हालात का ताजा हाल-२२ सिंतबर
देहरादून
दूसरे दिन भी कटा रहा दून का रेल संपर्क
थम नहीं रहा दैवीय आपदा से नुकसान का सिलसिला
प्रदेश में गहराया बिजली संकट
दून स्टेशन में यात्रियों की सुविधा के इंतजाम
हरिद्वार
गुस्से में है शिवालिक का यंग पर्वत
नहीं खुला हरिद्वार-देहरादून रेलवे ट्रैक
सीबीसीआईडी टीम फिर पहुंची हरिद्वार
नॉन पोस्टल स्टांप का मुख्य डिपो बनेगा हरिद्वार
पौड़ी
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम करने का आह्वान
पेड़ गिरने से एनएच रहा बाधित
चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी में संचार सेवा ठप
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज भी खतरे की जद में
रूद्रप्रयाग
बीआरओ के वाहनों को रोका, कैंप हटाने की मांग
डेढ़ करोड़ की लागत से निर्मित टैक्सी पार्किंग पर खतरा!
अतिक्रमण के तहत जिले के १४ धार्मिक स्थल चिह्नित
हेलीकॉप्टर से लाया जा सकता है जवान का शव
टिहरी
कोटेश्वर डैम के पावर हाउस में घुसा पानी
राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता में शामिल हुई कुल दो टीम
राज्यपाल ने लिया टिहरी बांध से हुए नुकसान का जायजा
झील का जलस्तर अब ८३१ मीटर पर स्थिर ः शाह
उत्तर काशी
यमुना के कटाव से सैकड़ों नाली कृषि भूमि बही
मेजर मनीष के निधन पर उत्तरकाशी में शोक
टिहरी झील से मनेरी भाली स्टेज टू में उत्पादन ठप
टिहरी झील से मनेरी भाली स्टेज टू में उत्पादन ठप
अल्मोड़ा
नगर में चौथे दिन भी पेयजल आपूर्ति ठप
देवली॒गांव में दो और शव निकाले गए॒
सड़क खुलने तक हैलीकाप्टरों॒से आएगा राशन
अब भी फंसे पड़े हैं प्रभावित परिवार
बागेश्वर
सरयू के कटाव से खतरा बढ़ा
बारिश के बाद गहराया पानी का संकट
बारिश ने तबाह की फसल
तेल के लिए॒मची रही रेलमपेल
चंपावत
बैराज में पांचवें दिन भी रहा रेड अलर्ट
१.८॒किलोग्राम चरस के साथ नेपाली गिरफ्तार
परीक्षण कराए बगैर बकरे काटे तो खैर नहीं
नाकाफी है प्रभावितों की मिलने वाली राहत राशि
नैनीताल
अयोध्या फैसले के मद्देनजर चौकसी
कट्टरपंथियों और मिश्रित बस्तियों की सूची तैयार
गुंजी॒से आगे नहीं बढ़ पाए कैलास यात्री
खैरना-रानीखेत॒रोड खुलने से मिली यात्रियों को राहत
पिथौरागढ़
आंवलाघाट॒से बन सकती है नई पेयजल योजना
समस्या समाधान को गांवों का दौरा करें अफसर
कांगे्रसियों ने फूंके मंत्रियों के पुतले
मुनस्यारी तहसील की संचार सेवाएं चौपट
ऊधम सिंह नगर
बारिश के बाद अब रसोई गैस की मार
अल्मोड़ा के पीड़ितों को हैलीकाप्टर से जाएगी खाद्य सामग्री
कैंटर॒ने बाइक सवारों को रौंदा, दो युवकों की मौत
भू-कटाव॒से सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि नदियों में समाई
रामपुर
जमीन धंसने से खनोटू स्कूल का भवन क्षतिग्रस्त
आधे किन्नौर में तीन दिन से बत्ती गुल
तीन माह से बंद पड़ी सड़क खोली जाए
पंद्रह बीस क्षेत्र में ठप रहा यातायात
चमोली
नंदाकिनी घाटी में बारिश और भूस्खलन से तबाही
निजमुला-पाणा ईराणी पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त
अब तो हद हो गइ, कब मिलेगी राहत
सड़क न खुलने से खाद्य वस्तुओं के लिए हाहाकार
किसकी नजर लगी मेरे पहाड़ को
शनिवार रातभर खबरें आती रहीं और डराती रहीं। कभी श्रीनगर में मकान ढहने की खबर आई, तो कभी अल्मोड़ा में लगातार मलबा गिरने की। हरिद्वार और ऋषिकेश से लगातार गंगा का जलस्तर बढ़ने के साथ ही बांध के धंसने की जानकारियां आती रहीं। कोई फोन पर मदद मांग रहा था, तो कोई एसएमएस कर रहा था। भोर मौत की खबरों से शुरू हुई, और दोपहर होते-होते ऐसा लगने लगा मानो प्रलय करीब हो। कुमाऊं में तो मौत साक्षात तांडव कर रही है। यहां तक कि जो रिपोर्टर जिलों से जानकारी दे रहे थे, उनकी आवाज में दर्द और रुआंसापन था। कुछ ने तो यह भी कहा कि यह क्या हो रहा है मेरे पहाड़ में। देव कहां सोए हैं। कोई तो बचाए। यह हालात हैं उत्तराखंड के। कहीं 72 घंटे से तो कहीं 60 घंटे से लगातार बारिश हो रही है। पहाड़ धंस रहा है। सड़कें बह रही हैं। भूस्खलन जारी है। मलबा सड़कों और मकानों पर आ रहा है। घरों में फर्श फोड़कर पानी की धार बह रही है। मकान बहे जा रहे हैं। पेड़ ध्वस्त हो रहे हैं। पिछले 150 सालों में ऐसे हालात न देखे, न सुने। ऐसा सूबे के बड़े-बुजुर्गों का कहना है।
चमोली, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर सहित गढ़वाल के सभी जिले एक दूसरे से कटे हुए हैं। देहरादून, हरिद्वार से कट गया तो दिल्ली से भी। कुमाऊं में भी अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल और ऊधमसिंहनगर के कई इलाके एक दूसरे से पूरी तरह कट गए हैं। कई जिलों में 48 घंटे से बिजली नहीं है, तो कई जगह पीने का पानी भी मयस्सर नहीं है। बिजली के खंभे सड़कों पर हैं। पाइप लाइनें बह गई हैं। घरों में बंद लोग कांप रहे हैं। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि यह पानी बरस रहा है या फिर काल। सिर्फ अल्मोड़ा में ही 34 से अधिक मौतों की खबर दिल दहला रही है। कितने मलबे में दबे पड़े हैं यह पक्का नहीं है। देवली, बाड़ी, पिलखी और धुरा जैसे गांवों में रूदन, बारिश की आवाज में खो गया है। मौत के आंकड़े 60 को पार कर रहे हैं। सरकार मदद पहुंचाए तो कैसे। हेलीकॉप्टर भी नहीं उड़ पा रहे हैं। पायलटों ने इनकार कर दिया है कि दुर्घटना हो जाएगी। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। सब्जी, दूध, दवा, खाद्य सामग्रियों, मिट्टी तेल, रसोई गैस की आपूर्ति ठप पड़ी है। यहां तक कि खबरों को जानने के लिए समाचार पत्र भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। संचार साधन ध्वस्त पड़े हैं। कुमाऊं और गढ़वाल के बीच ट्रेन संपर्क भी टूट गया है। अब जरूरत है क्षेत्र, राजनीति और वैमनस्य सबकुछ भूलकर एक दूसरे की मदद करने की और सूबे में विपदा में फंसे लोगों को बचाने की। आइए हम सब जुट जाएं, इस अभियान में।
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जरूरत है क्षेत्र, राजनीति और वैमनस्य भूलकर एक दूसरे की मदद करने की
निशीथ जोशी, देहरादून।
Tuesday, 21 September 2010
त्तराखंड में लगातार बढ़ रही हैं निशंक की लोकप्रियता
त्तराखंड में लगातार बढ़ रही हैं निशंक की लोकप्रियता
और...कैमरे-कलम तैयार कर विपक्ष ने बैठा दिए है निशंक के खिलाफ...'दलाल'
डा0 रमेश पोखरियाल 'निशंक' यानि ज़मीन से जुड़ते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचने वाला एक ऐसा नाम जिसने खुद के हितों को दरकिनारे कर आम आदमी के भाषा
में आम आदमी से जुड़ कर,एक छोटे से कार्यकाल में स्थापित करके दिखा दिया कि विकास की भयार किस तरह बहती है। उन्होंने सिर्फ विकास ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के जन-मानस के चेहरे पर जो मुस्कान बिखेर दि है। इसे शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति कर पाता है। यह हम नहीं बल्कि प्रदेश का जन-मानस और युवा स्वर कह रहा है।
इन पंक्तियों के लेखक ने पिछले दिनों उत्तराखंड के तमाम गांवों का दौरा किया। ऐसे गांव जहां आज तक न बिजली-पानी की सुविधाएं थी। ना ही किसी को बुद्धु बक्से पर देश-विदेश के चेहरे दिखायी देते थे। ऐसे गांव जिन्होंने कभी विकास की राह देखी ही नहीं थी। जिन्हें सड़क के मायने ही मालूम नहीं थे। जो विश्व के मानचित्र पर खुद को सिर्फ और सिर्फ एक पहाड़ की तरह स्थिर मानते थे। जिनके लिए विकास की कोई परिभाषा ही नहीं थी। जिनके नौनिहालों ने दो कदम विकास की दौड़ तक नहीं देखी थी। लेकिन रमेश पोखरियाल 'निशंक' के लोकप्रिय फैसलों ने,इन गांवों को गांव होने का महत्व दिया है। नौनिहालों को विकास के दौड़ में शामिल किया है। ग्राम पंचायतों और प्रधानों के माध्यम से इन गांवों में निशंक सरकार ने जो विकास के नींव रखी है। वह यकीनन निशंक सरकार की लोकप्रियता के लिए कई मायने दिखाती है। सरकार के कई लोकप्रिय फैसलो ने आज जिस तरह से कई गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है। वह किसी से आज छुप्पी नहीं है। विकास के धरातल पर प्रकृति ने भले है कहर बरपाया हो,लेकिन निशंक ने इस कहर को भी चुनौती पूर्ण स्वीकार करते हुए। इसक कहर को पिछे हटने को मजबूर कर दिया है। फिर चाहे वह सुमगढ़ का बादल हो,या उत्तकाशी की तबाही या फिर अल्मोड़ा-पौड़ी गढ़वाल के भयानक हादसे। निशंक सरकार ने हर हादसे का डट कर मुकाबला किया हैं,और इन हादसों में मारे लोगों को इनसे बाहर निकालने का बरस्क प्रयास किया है।
उत्तराखंड के गांव की जो तस्वीर आज के समय में है। निश्चित तौर पर ऐसा पहले कभी नहीं था। यहां के सुसजित रास्ते,जल-जगल और बिजली-पानी के व्यवस्था के जो मायने आज के समय में पहाड़ों में मौजूद है। उसे प्रदेश की जनता स्वयं के लिए एक बड़ा विस्तार मानती है। जिसका श्रेय वह निशंक सरकार को देने से नहीं चुकती है। उत्तराखंड के बेरोजगारों के चेहरो पर जो मुस्कान आज है वह आप रोजगार कार्यलयों में खुद का नाम लिखवाते चेहरों पर साफ तौर पर देख सकते है। फिर चाहे वह समुह 'ग' के पद हो या बीटीसी शिक्षकों के,यह अब सभी जानते हैं कि शिक्षा विभाग 4400 शिक्षकों को नियुक्ति देने जा रहा है, इसमें 18 सौ एलटी शिक्षकों के पद शामिल हैं। नियुक्तियां एनसीईटी के मानकों पर होगी। इसके लिए मंत्रालयों से हरी झंडी मिल गई है। इससे साफ है कि इससे एक ओर तो शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे विद्यालयों को राहत मिलेगी वहीं राज्य सरकार के इस कदम से भाजपा सरकार की लोकप्रियता में बढोत्तरी होगी। क्योंकि इससे पहले उत्तराखंड में कितनी सरकारें आयी और गयी लेकिन ऐसा कभी पहले नहीं हुआ। जैसा निशंक सरकार ने कर दिखाया है। कौन नहीं जानता की विकास के क्षेत्र में आज उत्तराखंड देश के 28 राज्यों में तीसरे स्थान पर हैं। केंद्रीय वित्त आयोग ने मुख्यमंत्री के प्रयासों को सराहा है और इसलिए एक हजार करोड़ की प्रोत्साहन राशि भी राज्य को अनुमोदित की, राज्य की प्रति व्यक्ति आय जो राज्य गठन के समय 14 हजार वार्षिक थी,बढ़कर आज लगभग तीन गुना हो गई है। यह देश का पहला राज्य है जिसने केंद्रीय कर्मियों की तरह सबसे पहले अपने राज्य कर्मियों को छठे वेतनमान का लाभ दिया है।
साहित्य-संस्कृति-शिक्षा की बात हो तो,इस क्षेत्र में भी निशंक सरकार तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। खुद एक पत्रकार-साहित्याकार होने पर डॉ.निशंक द्वारा जिस तरह से उत्तराखंड के लेखक-पत्रकारों को सम्मानित करने उनकी पुस्तकों को प्रकाशित करने को जो ऐतिहासिक निर्णय लिया गया यह अपने आप श्रेय कर ही नहीं बल्कि डॉ.निशक की उपलब्धियों का एक नया आयाम है। राज्य आंदोलनकारियों की बात की जाए तो सरकार ने पूर्ण विकलांग आंदोलनकारियों को प्रतिमाह दस हजार की पेंशन सम्मान रूप में दिए जाने का फैसला भी लिया,जो अपने आप में सरकार का एक श्रेयकर फैसला है। जिसकी चौतरफा चर्चाएं हो रही है।
उत्तराखंड के दूर-दराज क्षेत्रों के बात की जाएं तो इन दिनों यहां के गांव में 'काम करों,गांव को साफ रखों और मेहनताना लेकर खुशी-खुशी घर को जाओं' जैसे अभियान चालाए जा रहे है। पिछले लगातार कई दिनों से उत्तराखंड में बारिश का प्रकोप जारी है। जिसके चलते यहां के रास्तों-सड़कों में खर-पतवार फैल गया है। इसे तुरंत हटाने के लिए सरकार के माध्यम से गांव के लोगों के सहयोग से खर-पतवार हटाओं अभियान चलाया जा रहा है। जिसके लिए गांव के लोगों को मेहनताना भी दिया जा रहा है। इस योजना से गांव के लोगों को एक तो काम मिल रहा है। दूसरी तरफ उनके गांव की सड़के और रास्ते साफ सुथरे भी हो रहे है। निशंक सरकार के इन लोकप्रिय प्रयासों से गांव के लोगों-युवाओं में जोश भरा हैं और इस जोश की चलते गांव के लोग इन कार्यों में बढ़चढ़ का अपनी भागीदारी निभा रहे हैं,साथ नार भी लगा रहे है। हमारी विकास की राह,निशंक सरकार के हाथ...और मिशन 2012,निशंक के साथ होगा वोट हमारा। जिसके सुन निश्चित तौर पर विपक्ष ही नहीं बल्कि बीजेपी के कुछ वरिष्ठ चेहरे भी घबरा गए हैं.और इन्होंने निशंक के खिलाफ मीडिया से लेकर कुछ ऐसे दलाल भी लगा दिए हैं कि जो कैमरों और कलम के माध्यम से निशंक को घेरने की तैयारी में देहरादून की चोर गलियों में दुबके के अपने कैमरों की लाईटें ओन कर बैठे है...कि किसी तरह तो निशंक के खिलाफ इन्हें कोई ख़बर मिलें...या स्टिंग मिले...जिससे यह निशंक की विकास यात्रा को रोक सकें...अब देखने वाली बात ये हैं...कि विकास रूकता है...या इन दुश्मनों की लाईटें फ्यूज होती है...।
- धन्यवाद...जगमोहन आज़ाद,दिल्ली
Saturday, 18 September 2010
बेटी ने घाट पर पिता की चिता को दी मुखाग्नि
तोड़ीं वर्जनाएं: देहरादून जिले के भानियावाला गांव निवासी गढ़वाल राइफल के पूर्व सैनिक प्रेम सिंह तोमर का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। उनकी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार बेटी ही करे। उनकी बेटी श्वेता ने रूढि़यों की जकड़न को तोड़कर बेटे का कर्तव्य निभाया। पार्थिव शरीर को पूर्णानंद घाट ऋषिकेश पर उसने न सिर्फ चिता को मुखाग्नि दी, बल्कि सिर मुंडवाकर कपाल क्रिया भी की। श्वेता ने दिखा दिया कि वंश का निशान सिर्फ बेटे से ही नहीं, बेटी से भी घर का चिराग रोशन है। सच तो यह है कि अपने ही खून में फर्क क्यों और कैसा।
ऋषिकेश। हिंदू धर्म में महिलाओं को अंतिम यात्रा में शामिल होने की स्पष्ट इजाजत नहीं है और न ही चिता को मुखाग्नि देने और क्रियाकर्म पर बैठने की शास्त्राज्ञा है। मगर भानियावाला निवासी एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी पुत्रियों ने अंतिम यात्रा में शामिल होकर इन वर्जनाओं को तोड़ दिया। यह घटना चर्चा की विषय बनी रही।
भानियावाला निवासी पूर्व सैनिक प्रेम सिंह तोमर की अस्वस्थता के कारण शुक्रवार सुबह निधन हो गया। सगे-संबंधी, नाते रिश्तेदार अंतिम यात्रा के लिए निकले तो दिवंगत तोमर की चारों पुत्रियां भी शवयात्रा में निकल पड़ीं। लोगों ने समझाया मगर वह नहीं मानी। उत्तराखंड पूर्व सैनिक संगठन के केंद्रीय उपाध्यक्ष बुद्धि प्रकाश शर्मा ने बताया कि मुनिकीरेती श्मशानघाट पर चिता बनाई गई, जब मुखाग्नि देने की बात आई तो दिवंगत प्रेम सिंह के भाई बलराम तोमर और शैलेंद्र तोमर के अलावा भतीजे तैयार हुए, साथ ही उनकी बेटियां भी मुखाग्नि देने के लिए आगे आ गईं।
पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक रिश्तेदारों और परिजनों से उन्हें समझाने की कोशिश की मगर वह नहीं मानी। बेटियों का कहना था कि उनके दिवंगत पिता की ऐसी ही इच्छा थी, लिहाजा वह उनकी इच्छा के संकल्प को पूरा करेंगी। उनके इस तर्क पर वहां मौजूद अन्य लोगों ने भी मूक सहमति दे दी।
इस मौके पर दिवंगत तोमर की तीसरी बेटी श्वेता ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और कपालक्रिया के बाद मुंडन भी कराया। श्वेता ही क्रियाकर्म करेंगी।
पिता की अंतिम इच्छा पूरी की : श्वेता
ऋषिकेश। दिवंगत प्रेम सिंह तोमर के अग्निदाह संस्कार में उनकी चार पुत्रियों समेत पांच महिलाओं ने भाग लिया। पुत्रियों में ममता और संगीता (दोनों विवाहित) के अलावा श्वैता और शिवानी शामिल हैं। इनमें से तीसरे नम्बर की पुत्री श्वेता ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और कपालक्रिया के साथ ही मुंडन कराया। जानकारी के अनुसार बताया गया कि वही संपूर्ण क्रियाकर्म सम्पन्न कराएंगी। बकौल श्वेता मेरे पिता की अंतिम इच्छा थी कि भाई नहीं बेटी ही अंतिम संस्कार करे। श्वेता के अनुसार चाचा लोग क्रियाकर्म के लिए तैयार थे, मगर हमें अपने पिता की की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी।
पत्रकार शंकर सिंह भाटिया की पुस्तक नन्दा राजजात का विमोचन
नन्दा राजजात यात्रा का देश और दुनिया में प्रचार-प्रसार करने के लिए एक फिल्म भी तैयार कराई जाएगी।
: मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने आज पत्रकार शंकर सिंह भाटिया की पुस्तक नन्दा राजजात का विमोचन किया।इस मौके पर सीएम ने नन्दा राजजात यात्रा समिति को इस मेले की व्यवस्थाओं के लिए पांच करोड़ रुपये देने की घोषणा की।
सचिवालय परिसर स्थित मीडिया सेंटर में पुस्तक का विमोचन करने के बाद सीएम ने कहा कि नन्दा राजजात यात्रा का देश और दुनिया में प्रचार-प्रसार करने के लिए एक फिल्म भी तैयार कराई जाएगी। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश की जा रही है। इस बारे में शासन स्तर पर एक समिति का गठन करने के साथ ही आयोजन समिति को पांच करोड़ रुपये दिए जाएंगे। यात्रा मार्ग में बेदनी बुग्याल समेत अन्य स्थानों पर हैलीपैड निर्माण की संभावनाओं पर भी सरकार विचार कर रही है। सीएम ने कहा कि नारी सम्मान हिमालयी सांस्कृतिक धरोहर है। नन्दा देवी की विदाई इसी परंपरा का एक प्रासंगिक दृश्य है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने तय किया है कि रचनात्मक कार्य करने वालों के साथ ही सृजनशील पत्रकारों को हर साल सम्मानित किया जाएगा। कार्यक्रम में मौजूद पर्यटन मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि सदियों से चली आ रही नन्दा राजजात यात्रा की इस अनूठी परंपरा से दुनियाभर को अवगत कराया जाएगा। इस मौके पर पुस्तक के लेखर शंकर सिंह भाटिया ने इस यात्रा से जुड़े संस्मरण भी सुनाए। इस कार्यक्रम में पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा समेत मीडिया जगत के तमाम लोग मौजूद रहे। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो.डीआर पुरोहित ने किया।
Friday, 17 September 2010
मेरे गीत रहेगें ना तुम्हारे साथ - गिरीश तिवारी 'गिर्दा'
22 अगस्त 2010 उत्तराखण्ड लोक और रंगमंच इतिहास के लिए एक दुःखद दिन रहा है। इस दिन उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध रंगकर्मी-जनकवि गिरीश तिवारी 'गिर्दा' हमारे बीच नहीं रहे। यह सुनने पर विश्वाश तो नहीं होता,लेकिन यह सच है। अभी जुलाई माह की तो बात हैं,जब गिर्दा से मुलाकात हुई थी। काफी दिनों से उन्हें वरिष्ठ चित्र बी.मोहन नेगी जी के जीवन परिवेश को लेकर एक लेख लिखने का मैने निवेदन किया था। लेकिन 'गिर्दा' लिख नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा था,'बबा तुम आ जाओ,मैं बोल दूगां तो लिख लेना',। बस इसी बहाने 'गिर्दा' से मिलने का मुझे शायद यह सौभाग्य प्राप्त हुआ।
'गिर्दा' से इससे पहले जब मेरी मुलाकात हुई थी,या फोन पर बातचीत हुई थी तो तब के मुकाबले गिर्दा इस बार मुझे काफी थके हुए और कमाजोर दिख रहे थे। इसकी वजह शायद यह भी रही हो की वह कुछ देर पहले ही अल्मोड़ा से लौटकर आएं थे। फिर भी 'गिर्दा' से मिलना मेरे लिए सुखद ही था। वह थके जरूर थे,लेकिन रूके नहीं थे। उनकी आवाज़ में जो मिठास थी,वह हमेशा की तरह अपनी माटी की खुशबू लिए थी। नैनीताल स्थित कैलाखान का वह घर मुझे अब रह-रहकर याद आता हैं। 'गिर्दा' का अतिथि निवेदन मेरे लिए निसंदेह बहुत बड़ा आशीर्वाद था। मुझे उनके वह शब्द बार-बार याद आते हैं कि,अब लगता हैं,समय कम रह गया है। दवाईयां भी साथ नहीं दे रही हैं,देखो बबा क्या होता है? कुछ देरे आराम करने के बाद 'गिर्दा' ने बीं.मोहन नेगी जी पर बातचीत शुरू की और इसी दौरान उनसे कुछ दूसरे विषयों पर भी बातचीत हुई। 'गिर्दा' वर्तमान लोक-सांस्कृति और रंगमंच में हो रहे बदवाल को लेकर काफी चिंतित जरूर दिख रहे थे। आख़िर क्यों इन तमाम मुद्दो पर एक अनऔपचारिक बातचीत हुई थी,उसी के कुछ अंशः-
1- 'गिर्दा' आप पहले के मुकाबले अभी काफी थके हुए लग रहे मुझे?
- नहीं-नहीं ऐसा नहीं है,गांव गया था ना। वहां बहुत सारे काम थे,उन्हें पूरा करना था। काफी भाग-दौड़ करनी पड़ी,शायद इसलिए थका सा लग रहा हूं बबा,.हंसते हुए.और अब बूढ़ा भी तो हो गया ना बबा.।
2- अभी कहां बूढ़े हैं दादा आप,अभी तो आपको एक लंबी यात्रा तय करनी है। हमारे साथ?
- हां.हां.क्यों नहीं,और नहीं भी कर पाया तो क्या। तुम लोगों के साथ मेरे गीत तो रहेगें ही ना बबा,कहते है ना व्यक्ति चला जाता है,लेकिन उसकी यादें उसकी सौगात हमारे पास हमेशा रह जाती है। इन्हें हमें हमेशा अपने पास संभाल कर रखना चाहिए।
3- इस उम्र में भी आप इतना भागा-दौड़ी इतना काम कर रहे है। कैसे कर पाते हैं,इतना कुछ?
- में संघर्ष करने में विश्वास रखता हूं.बबा.। यही मेरी शक्ति हैं,मैं निरंतर चलते रहने में विश्वास रखता हूं। क्योंकि इससे मेरे सामने नये आयाम खुलते हैं। लेकिन आज ऐसा नहीं हैं,आज बाजारवाद की डिमाण्ड के चक्कर में मानवीय गरिमा,मानवीय मूल्य,मानवीय संवेदनायें रिमाण्ड में जा रही है,नीलाम हो रही है। मैं इनसे लड़ने की क्षमता हमेशा खुद में रखता हूं। गाता हूं गुनगुनाता और आगे बढ़ता चला जाता हूं। मुझे लगता हैं,तुम जैसे युवा भी इस संघर्ष को खुद में समाहित कर एक नये दिन की शुरूआत करेगें। मुझे ऐसा लगता हैं,यह दिन जरूर आयेगा।
4- 'तो जैंता एक दिन त आलो ऊ दिन यो दुनीं में'.?
- जैंता एक दिन त आवो ऊ दिन यो दुनी में,गीत के मनुष्य के मनुष्य होने की यात्रा का गीत है। मनुष्य द्वारा जो सुंदरतम् समाज भविष्य में निर्मित होगा उसकी प्रेरणा का गीत है,यह उसका खाका भर है। इसमें अभी और कई रंग भरे जाने हैं,मनुष्य की विकास यात्रा के लिए। इसलिए वह दिन इतनी जल्दी कैसे आ जायेगा,इस वक्त तो घोर संकटग्रस्त-संक्रमणकाल से गुज़र रहे है नां हम सब,लेकिन एक दिन यह गीत-कल्पना जरूर साकार होगी,इसका विश्वास हैं और इसी विश्वास की सटीक अभिव्यक्ति वर्तमान में चाहिए।
5- गिर्दा ईश्वर को मानते है आप?
- थोड़ी देर चुप रहने के बाद.हां मानता हूं,जैसे गीत-संगीत को पूजता हूं वैसे ही ईश्वर को भी। लेकिन मैं अंधविश्वासी नहीं हूं। पहाड़ से हूं,जैसे देव भूमि कहा जाता है। फिर देवा से कैसे हम दूर हो सकते है। वो तो है ना बबा हमारे साथ.।
6- तो पूर्नजन्म में भी विश्वास करते होगें.यदि आपका पूर्नजन्म हो तो कहां जन्म लेना चाहेगें?
- जोर से हसते हुए.ऐसा हो सकता हैं क्या.यदि हां तो मैं तो बबा,इन्हीं पहाड़ की वादियों में जन्म लेना चाहूंगा.और अगर ऐसा हो ही गया तो.मैं किसी लोक गीत के धुन तो जरूर बनना चाहूंगा।
7- कुछ ऐसा,जो करने की चाहत हो.लेकिन अभी तक कर नहीं पाए हो?
- बकौल गालिब,'हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि,हर ख्वाहिश पै दम निकले' सो मेरे भाई किसी भी आदमी की हर चाहत तो कभी पूरी नहीं हो सकती,और मैं भी एक सामान्य आदमी हूं। मगर वास्तविकता यह है कि जब मानव विकास यात्रा का मर्म समझ में आ जायें तो फिर व्यक्तिगत चाहतों की कामी-नाकामी का कोई ख़ास महत्व नहीं रह जाता।
8- गिर्दा आप पुरानी पीढ़ी के कलाकारों समेत नवांकुरों तक के साथ आत्मीयता से अभी अनवरत कार्य कर रहे हैं.नई पीढ़ी के काम को कैसा मानते हैं और उसे क्या सीख देंगे आप?
- किसी भी सचेत संस्कृतिकर्मी को सभी 'वय' के लोगों के साथ काम करना ही चाहिए। दरअसल नये-पुराने वाली बात ज्यादा माने नहीं रखती बल्कि काम करने का मूल उद्देश्य महत्वपूर्ण होता हैं और नये लोगों के साथ काम करने में तो और अच्छा लगता है। कई नई-नई चीजें मिलती है। नये आयाम खुलते है। ख़ास तौर पर रंगमंच संदर्भ में कोशिश करता हूं कि बच्चों के बीच अधिक से अधिक भागीदारी हो सके। नये लोगों से इतना ही कहना चाहता हूं कि बाजारवाद के इस खतरनाक दौर को विश्लेषित करते हुए सांस्कृति कार्य का महत्व समझें और सामाजिक-ऐतिहासिक-वैज्ञानिक चेतना के साथ रतना कार्य करें।
जगमोहन आज़ाद ,दिल्ली
हिंदू-मुस्लिम एकता का गवाह है डांगी और बेडूबगड़ गांव
सौहार्द के साथ मनाया रमजान का महीना
अगस्त्यमुनि। हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए मंदाकिनी घाटी के डांगी सिनघटा और बेडूबगड़ गांव में इन दिनों रमजान का पवित्र महीना सौहार्द के साथ मनाया गया। वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए ग्रामीण धर्म के नाम पर देश को बांटने वालों के सामने एक मिसाल कायम कर रहे हैं।
सिनघटा और बेडूबगड़ गांव में हिन्दू-मुस्लिम परिवार कई वर्षों से साथ-साथ रह रहे हैं। इतना ही नहीं सभी तीज-त्यौहार को ग्रामीण मिलजुल कर मनाते हैं। आजादी से पहले गढ़वाल के राजाओं ने यहां पर कु छ मुस्लिम परिवारों को बसाया था, जो आज भरे-पूरे गांव के रूप में विकसित हो गए हैं। ये परिवार न केवल मुस्लिम सभ्यताओं को संजोए हुए हैं, बल्कि साथ ही गढ़वाल की संस्कृति का भी निर्वहन कर रहे हैं। लोक संस्कृति के बीच रचे-बसे इन गांवों में मुस्लिम लोग ठेठ स्थानीय गढ़वाली बोली बोलते हैं।
गढ़वाल की पारंपरिक तिबारी, पठालों (पत्थर) की छत और खान-पान यहां तक की रिश्ते-नाते भी आम गांवों की तरह हैं। ये लोग हिंदुओं के देवी-देवताओं के साथ ही त्योहारों का भी ये पूरी तरह से सम्मान करते हैं। जिस उत्साह से स्थानीय निवासी ईद और रमजान मनाते हैं, उसी उत्साह से होली, दीपावली, श्रावण व बसंत का आगमन भी मनाते हैं।
डांगी और सिनघटा गांवों में हिंदुओं और मुस्लिम परिवारों के मकान आस-पास ही हैं। दोनों बस्तियों के बीच गांव की कुल देवी शाकुंभरी देवी मंदिर और इसके ऊपर मस्जिद और ईदगाह स्थित है। इन दिनों जहां गांव में शारदीय नवरात्रों की तैयारियां चल रही हैं, वहीं मुस्लिम परिवार क्षेत्र की खुशहाली के लिए नेम्मते मांगते हुए रमजान के पवित्र महीने में रोजा अदा किया।
पंचायती कार्यों में मुस्लिम परिवार भी देते हैं साथ
अगस्त्यमुनि। गांव के प्रत्येक पंचायती कार्य में सभी अपनी हिस्सेदारी निभाते हैं। मां भगवती के मंदिर में यज्ञ के अवसर पर मुस्लिम परिवार भी अपनी फाट (हिस्सा) देते हैं। गांव के प्रत्येक परिवार के जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर संस्कार में इनकी सहभागिता देखने लायक है।
दिलों में बसता है प्यार
अगस्त्यमुनि। ग्राम पंचायत सिनघटा की मुस्लिम प्रधान सबाना और प्रधान डांगी मोहम्मद यूसुफ कहते हैं कि दुनिया चाहे कितनी भी मजहब की दीवारें खड़ी कर दे, इसका असर ग्रामीणों पर नहीं पड़ेगा। क्योंकि यहां पर हर किसी के दिल में मजहब से बढ़कर प्यार बसता है। दीवाली में अली और रमजान में राम का नाम मिला हुआ है।
देश-विदेश के लोग उत्तराखंड की संस्कृति से परिचित होंगे।
दिल्ली कामनवेल्थ गेम्स में देश-विदेश के लोग उत्तराखंड की संस्कृति से परिचित होंगे।
भागीरथी कला संगम समिति के कलाकार पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को मंच पर पेश करेंगे। समिति के कलाकार दो अक्टूबर को दिल्ली पहुंच रहे हैं।
आगामी तीन अक्टूबर को कामनवेल्थ गेम्स की दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में रंगारंग शुरुआत होगी। 13 अक्तूबर तक रविंद्र भवन में विभिन्न प्रदेशों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। संस्कृति मंत्रालय ने संगीत नाटक अकादमी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है।
उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व भागीरथी कला संगम समिति से जुड़े कलाकार करेंगे। इसके लिए समिति को संगीत नाटक अकादमी का निमंत्रण प्राप्त हो गया है। इस मौके पर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को शानदार तरीके से प्रस्तुत करने के लिए तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं।
समिति के अध्यक्ष नत्थी लाल नौटियाल ने कहा कि समिति की 16 सदस्यीय कलाकारों की टीम दो अक्टूबर को दिल्ली पहुंचेगी। इससे पहले भी समिति से जुड़े कलाकार कई जगह प्रस्तुति दे चुके है। उन्होंने कहा कि कलाकार घस्यारी नृत्य और गान प्रस्तुत करेंगे। यह नृत्य संयोग और वियोग श्रृंगार से ओतप्रोत हैं।
सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में इन लोकगीतों को प्रमुखता से गाया जाता है। इसके माध्यम से यहां की सांस्कृतिक विरासत को शानदार तरीके से उकेरा जाएगा। उन्होंने बताया कि अंतराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत शानदार हो इसके लिए कलाकार रात-दिन तैयारियों में जुटे हैं। इसके अलावा सीमांत पिथौरागढ़ जिले की पारंपरिक लोक संस्कृति के प्रमुख उत्सव 'हिलजात्रा' का मंचन भी राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान किया जाएगा।
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