Saturday, 27 February 2010
सहकारिता गढ़ रही महिलाओं की कामयाबी की कहानी
-'रवाईंज नेचर प्योरÓ और 'स्विच आनÓ ब्रांड के जैविक उत्पाद विभिन्न प्रदेशों में चमक बिखेर रहे
-सरकार महिलाओं को मदद दे तो सफल उद्यमी साबित हो सकती है, पहाड़ की महिलाएं-
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उत्तरकाशी की रवाईं घाटी के सुदूरवर्ती कालेश्वर गांव की 45 वर्षीय दमयंती देवी जैसी उत्तराखंड में सैकड़ों महिलाएं हैं, जो सहकारिता के जरिए लहसुन, अदरक, मिर्च और मिक्स अचार, जैम, चटनी, बडिय़ां बनाकर उद्यमिता की ंिमसाल बन चुकी हैं। दमयंती देवी भले ही अनपढ़ हों, मगर आज प्रसंस्करण केेंद्र में मशीन चलाने और बैंक से जुड़े काम भी बखूबी कर लेती हैं। सहकारिता ने उनमें गजब का आत्मविश्वास पैदा किया है। बैंक का हर कर्मचारी उन्हें पहचानता है।
आज उत्तरकाशी जिले में करीब 22 स्वयं सहायता समूहों की 250 महिलाएं कोआपरेटिव के जरिए अचार,जैम, जैली, फलों की टॉफी उत्पादन के व्यवसाय से जुड़ी हैं। दमयंती देवी एक सीजन में 14,000 रुपये तक कमा लेती हैं। उनसे प्रेरित होकर लोगों ने सब्जियां उगानी शुरू कर दी हैं। फलोत्पादन पर भी ध्यान दिया जाने लगा है। आज दमयंती देवी खुद गांव की महिलाओं बच्चियों को लहसुन, अदरक उगाने के गुर सिखाती हैं। 'रवाईंज नेचर प्योरÓ और 'स्विच आनÓ ब्रांड नाम से कोआपरेटिव के जैविक उत्पाद उत्तराखंड समेत दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश आदि में न सिर्फ चमक बिखेर रहे, बल्कि इन्हें खूब पसंद किया जा रहा है।
हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के सचिव महेंद्र सिंह कुंवर का कहना है कि पहाड़ की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की अहम भूमिका तो है, लेकिन निर्णय लेने में उनकी भागीदारी कम है। इसी को ध्यान में रखते हुए हार्क ने 2002 में महिलाओं को संगठित करने, उनमें क्षमता विकास करने, समूह प्रबंधन, विवाद निपटारे, निर्णय लेने वित्तीय प्रबंधन, सूक्ष्म उद्यम शुरू करने और विपणन दक्षता पैदा करने की योजना शुरू की। गांव के लोगों को उद्यमिता के लिए पे्ररित किया गया। शुरुआत में एक अकेले समूह ने अचार बनाना शुरू किया। जब हर सदस्य को 500-500 रु. का मुनाफा हुआ तो उन्हें स्थानीय फसलों के उत्पादन और अतिरिक्त उत्पाद से नए उत्पाद बनाने को प्रेरित किया गया। अब समस्या थी मार्केटिंग की। वहां उन दिनों पुरुषों का ही एक सहकारी संघ था, जो फल-सब्जी उत्पादन व वितरण का काम करता था।
अब महिलाओं का अलग समूह बनाने की योजना बनाई गई। नवंबर 2003 में 13 स्वयं सहायता समूहों की 160 महिलाओं ने 500-500 रुपये का योगदान कर हार्क माउंटेन वीमन मल्टीपरपज ऑटोनोमस कोऑपरेटिव गठित किया। कोआपरेटिव के सामने उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने की चुनौती थी, जिसमें हार्क ने मदद की।
श्री कुंवर का कहना है कि अगर सरकार महिलाओं को मदद दे तो पहाड़ की महिलाएं सफल उद्यमी साबित हो सकती है, क्योंकि उनमें जोखिम उठाने की हिम्मत पुरुषों से ज्यादा है। कोआपरेटिव की नजीर तो सामने है ही। उत्तराखंड राज्य सहकारी संघ के अध्यक्ष उमेश त्रिपाठी का कहना है कि प्रदेश में करीब 800 सहकारी संघ व समितियां है। उत्तरकाशी की महिलाओं का उदाहरण सहकारिता की कामयाबी की मिसाल है।
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