Thursday, 18 February 2010

अब गांवों में नहीं रहना चाहते लोग

-राज्य गठन के बाद तेजी से बढ़ा शहरीकरण -नगरों में बढ़ीं समस्याएं, गांव हो रहे हैं खाली पिथौरागढ़: प्रदेश से हो रहे पलायन के साथ ही बढ़ता शहरीकरण भी गंभीर समस्या बनता जा रहा है। शहरों से नाममात्र की दूरी पर रहने वाले ग्रामीण भी अब गांव छोड़ रहे हैं, बढ़ते शहरीकरण से जहां शहरों में तमाम समस्याएं बढ़ रही हैं, वहीं ग्रामीण विकास योजनाओं पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। उत्तराखण्ड गांवों का ही प्रदेश है, पूरे प्रदेश में 16826 गांव हैं। नगरों की संख्या 70 के आस-पास है। राज्य गठन की अवधारणा के पीछे गांवों का विकास तेज करना था, लेकिन धरातल पर हुआ उल्टा है। इसकी पुष्टि खुद सरकारी आंकड़े करते हैं। प्रदेश के सीमांत जिले पिथौरागढ़ को उदाहरण के रुप में देखे तो वर्ष 2001 में जिले की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत गांवों में रह रहा था। पिछले नौ वर्षो में इस आंकड़ें में भारी बदलाव आया है। पिथौरागढ़ नगर की जनसंख्या 2001 में 59000 थी आज यह संख्या 80 हजार से ऊपर पहुंच चुकी हैं। दूरदराज के गांवों के साथ ही छोटे-छोटे कस्बों से भी लोगों शहर में आ रहे हैं। इससे नगरों में तमाम समस्यायें पैदा हो रही हैं। नगर के आस-पास के गांव आज नगर के वार्डो में बदल गये हैं। बढ़ते शहरीकरण से तमाम समस्यायें खड़ी हुई हैं। नगर और उसके आस-पास के गांवों में जमीन के दाम पिछले दस वर्षो में दस गुने से भी ऊपर चले गये हैं। इन गांवों में रहने वाले लोग आज भूमिहीन होने की स्थिति में हैं। नगर में सफाई, सड़क, रास्ते, पानी, बिजली जैसी तमाम दिक्कतें जन दबाव के चलते खड़ी हुई हैं। नये विकसित मोहल्लों में आवागमन के लिए न रास्ते हैं और पानी की व्यवस्था। सीवर निस्तारण बड़ी समस्या बना हुआ है। तमाम समस्याओं के बावजूद गंावों से नगरों में हो रहा पलायन जारी है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं समाजसेवी प्रो.प्रभात उप्रेती कहते हैं यह अनियोजित विकास का परिणाम है। गांवों में शिक्षा, चिकित्सा, संचार, यातायात जैसी सुविधाओं की कमी लोगों को शहरों में आने के लिए मजबूर करती हैं। उनका कहना है गांवों को छोड़ कस्बों तक में भी शिक्षा की सुविधायें नहीं हैं। आम आदमी अन्य समस्यायें झेल भी ले लेकिन बच्चों की पढ़ाई से वह समझौता नहीं चाहता है, इसी के चलते आर्थिक रुप से थोड़ी सी सम्पन्नता होने पर ही गांव के लोग शहरों की और रुख कर लेते हैं। बढ़ते शहरीकरण से नगरों में तो समस्यायें पैदा हो ही रही हैं गांव भी लगातार खाली हो रहे हैं। गांवों में आज आर्थिक रुप से कमजोर परिवार या फिर बुजुर्ग ही शेष रह गये हैं। सर्वोदयी मोहन सिंह रावत का कहना है इस समस्या का समाधान महात्मा गांधी के विचारों से ही संभव है। गांवों को शिक्षा, चिकित्सा, यातायात जैसी मजबूत बुनियादी सुविधायें देकर ही बढ़ते शहरीकरण पर रोक लगायी जा सकती है। आंकड़ों की नजर में शहरीकरण गांव कुल परिवार शहरों में ---- -------- बसे परिवार बीसाबजेड़ 431 111 टोटानौला 317 120 खर्कदौली 21 14 सटगल 480 80 बुंगाछीना 392 76 देवलथल 427 119 बिसौनाखान 485 113 मोडी 120 90

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