Friday, 12 February 2010
संस्कृत को प्रोत्साहन
सूबे में संस्कृत को दूसरी राजभाषा का दर्जा देने के बाद सरकार ने इस भाषा के प्रचार-
प्रसार के लिए बहु आयामी कदम उठाने के संकेत दिए हैं। देवभूमि उत्तराखंड में देववाणी समझी जाने वाली संस्कृत के उत्थान के लिए माहौल उपयुक्त है, ऐसा सरकार का मानना है। दो साल की अवधि में संस्कृत के लिए अलग महकमा, निदेशालय का गठन तो किया ही गया, दूसरी राजभाषा का दर्जा देकर सरकार ने रोजगार के नए अवसर मुहैया कराने के संकेत भी दिए हैं। संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन सिर्फ नई योजनाएं बनाने से ही नहीं मिल सकता। योजनाओं को जमीन पर उतारने के साथ ही इस क्षेत्र में रोजगार के नए मौके पैदा करने की जरूरत है। संस्कृत भाषा फिलवक्त पूजा-अर्चना व कर्मकांड तक सीमित है। वेद अध्ययन, शोध व आयुर्वेद के ज्ञान के लिए संस्कृत भाषा में दीक्षित होना जरूरी है। आमतौर पर संस्कृत महाविद्यालयों में अध्ययन करने वालों को पंडिताई या शिक्षक के तौर पर रोजगार उपलब्ध हो रहा है। उच्च रोजगार के मौके बेहद सीमित हैं। इस वजह से आम अभिभावक अपने बच्चों को संस्कृत में अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करने से बचता ही है। राज्य सरकार ने संस्कृतपाठियों को आईएएस व पीसीएस की परीक्षा की तैयारी के लिए प्रोत्साहित करने का बीड़ा उठाया है, उससे इस भाषा में अध्ययन करने वालों को पिछड़ेपन की मनोभावना से निजात मिलेगी। इस नजरिए से उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा, जहां संस्कृत पर इसतरह फोकस किया गया है। एक प्राचीनतम भाषा के रूप में संस्कृत के विकास उसके प्रचार-प्रसार के लिए उठाए जा रहे कदमों से संस्कृत के गर्भ में छिपे ज्ञान के भंडार के साथ भाषा व संस्कृति की जड़ों को टटोलने का मौका नई पीढ़ी को मिल सकता है। वैश्वीकरण व बाजारीकरण के इस दौर में नई पीढ़ी ने हौसलों से नई उड़ानें तो भरी हैं, लेकिन सांस्कृतिक क्षरण व नैतिकता के बोध का ह्रास तेजी से हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि संस्कृत में सामाजिकता व नैतिकता के बोध से ओतप्रोत शिक्षा देश के भावी कर्णधारों में सांस्कृतिक चेतना का विकास करेगी।
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