Tuesday, 2 February 2010
यहां सरकंडा की कलम से होता है लेखन
होल्डर, पेन व पेंसिल का नहीं किया जाता है प्रयोग
1974 में खुला था प्राथमिक विद्यालय अपर छरबा
विकासनगर(देहरादून):पछवादून में एक ऐसा भी विद्यालय है, जहां न होल्डर, न पेन और न ही पेंसिल का प्रयोग होता है। यहां केवल लकड़ी (सरकंडा) की कलम से लेखन होता है। जब से यह विद्यालय खुला है, तब से यहां यही परिपाटी चलती आ रही है। लकड़ी की कलम के प्रयोग से विद्यार्थियों का लेख सुंदर बनता है, वहीं अभिभावकों को पैसे भी खर्च नहीं करने पड़ते।
सहसपुर विकासखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय अपर छरबा में लकड़ी की कलम के सिवा लेखन में और किसी चीज का प्रयोग नहीं किया जाता है। विद्यालय की स्थापना वर्ष 1974 में हुई थी। स्कूल के पहले हेडमास्टर ने यहां छात्रों से लकड़ी की कलम से लेखन शुरू कराया था, उसके बाद से लगातार यही परंपरा चलती आ रही है। कक्षा एक से लेकर पांच तक हर बच्चा लेखन में लकड़ी की ही कलम का प्रयोग करता है। अन्य विद्यालयों में छात्र लेखन में होल्डर, पेन व पेंसिल का प्रयोग करते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां अध्ययनरत विद्यार्थियों का लेखन भी काफी साफ-सुथरा है। इस विद्यालय में विभिन्न कक्षाओं में 105 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। बच्चों को लेखन में कोई दिक्कत न आए, इसके लिए विद्यालय में हर विद्यार्थी के लिए डेस्क की व्यवस्था है। छात्र टाट-पल्ली पर बैठकर डेस्क पर कॉपी रखकर लिखते हैं। स्कूल में कक्षा पांच में अध्ययनरत अनुजा व तनुजा का कहना है कि उन्होंने विद्यालय में तीसरी कक्षा में दाखिला लिया था। इससे पूर्व, उन्होंने जौनसार में एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई की। जब वे यहां आई तो उनका लेखन साफ नहीं था, लेकिन जब से उन्होंने लकड़ी की कलम से लिखना शुरू किया, उनकी राइटिंग काफी सुंदर हो गई है। विद्यालय की अध्यापिका सावित्री भटनागर का कहना है कि लकड़ी की कलम से अक्षर साफ-साफ और बढि़या ढंग से लिखे जाते हैं। कक्षा पांच तक लेखन में जितना सुधार हो गया, वही आगे चलता है। इसके बाद लेखन में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो पाता। उनका कहना है कि विद्यालय में साफ-सुथरे लेखन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अन्य विद्यालयों से जो छात्र आते हैं, लकड़ी की कलम से लेखन करने से उनकी राइटिंग भी सुधर जाती है। छात्रों द्वारा लेखन में प्रयुक्त की जाने वाली कलम सरकंडा की लकड़ी से बनाई जाती है, जो गांव में काफी अधिक मात्रा में पाई जाती है। एक लकड़ी की कलम एक साल से अधिक चल जाती है। इससे अभिभावकों को पेन व पेंसिल पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं।
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