Tuesday, 2 February 2010

पंचायतीराज में भी 'शक्ति' बनेगी नारी

पहाड़ी सूबे में पंचायतीराज व्यवस्था की रीढ़ बन चुकी है मातृशक्ति -नारी सशक्तीकरण के चौतरफा प्रयासों से मजबूत होंगी पहाड़ी सूबे की पंचायतें -महिला बाल विकास, समाज कल्याण व शिक्षा विभाग से बंधी उम्मीदें - लंबे संघर्ष के बूते पहाड़ी राज्य का सपना साकार करने वाली मातृशक्ति अब उत्तराखंड में पंचायतीराज व्यवस्था की रीढ़ बन चुकी हैं। सितंबर 2008 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में पहली दफा सूबे की नारीशक्ति को 50 फीसदी प्रतिनिधित्व मिला। वर्ष 2009 'आधी-आबादी' को मिले इस सम्मान की खुमारी में गुजरा, तो अब नूतन वर्ष 2010 में नारी-सशक्तीकरण की मुहिम को सही मायने में अमलीजामा पहनाने के लिए सरकारी महकमे नए जोश के साथ जुट गये हैं। सितंबर 2008 में हरिद्वार को छोड़कर बाकी सभी 12 जनपदों में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में कुल 61011 में से 30473 सीटों पर महिला प्रत्याशी निर्वाचित हुई। इनमें 3817 ग्राम प्रधान, 24831 ग्राम पंचायत सदस्य, 1622 क्षेत्र पंचायत सदस्य व 203 जिला पंचायत सदस्य शामिल हैं। साफ है कि राज्य सरकार द्वारा लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे में 'आधी-आबादी' को 50 फीसदी आरक्षण दिए जाने के बाद पहाड़ी सूबे की पंचायतों की कमान मातृशक्ति के हाथों में आ गई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 59.6 प्रतिशत महिला साक्षरता (जनगणना 2001) वाले राज्य की यह पंचायतें वास्तव में कितनी शिक्षित, जागरूक व सक्षम होंगी। सचाई यह भी है कि 2008 पंचायत चुनावों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में 17 फीसदी अशिक्षित व तकरीबन 17 फीसदी ही कहने भर को साक्षर हैं। यही कारण है, कि लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे से शुरू हुई नारी-सशक्तीकरण की इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा। खासतौर पर दूर-दराज व ग्रामीण अंचलों में निरक्षरता इसमें बड़ी बाधा बनकर सामने आ रही है, लेकिन सरकार ने महिलाओं को साक्षर बनाकर विकास की नई इबारत लिखने की जो योजनाएं गढ़ी हैं, उससे नववर्ष की नई उमंगों व उम्मीदों को पंख लगते दिख रहे हैं। कन्याओं को सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक रूप से बराबरी का दर्जा दिलाने में महिला एवं बाल विकास विभाग की नंदादेवी कन्या योजना उम्मीद की किरण जगाती है। इसके तहत बीपीएल परिवार में जन्म लेने वाली दो बालिकाओं को 5000 रुपये दीर्घावधि जमा योजना के रूप में दी जाएगी। इसे कन्या के 18 वर्ष पूर्ण होने व हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद ही भुनाया जा सकेगा। समाज कल्याण विभाग की गौरादेवी कन्या धन योजना के तहत वित्त वर्ष 209-10 में इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली बीपीएल परिवार की कन्याओं को 25000 रु. की वित्तीय सहायता दी जाएगी। पिछड़ी जाति के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, आश्रम पद्वति विद्यालयों के जरिए भी महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। शिक्षा विभाग ने भी इस दिशा में कई उम्मीदें जगाई हैं। सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा गारंटी केंद्र, वैकल्पिक शिक्षा केंद्र, निशुल्क पाठ्य पुस्तक, मध्याह््न भोजन, बालिकाओं की प्रारंभिक शिक्षा के राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ-साथ कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय भी इस दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। निदेशक, विद्यालयी शिक्षा पुष्पा मानस बताती हैं कि इस वर्ष शासकीय विद्यालयों में छात्राओं की सुविधा के लिए कॉमन-रूम, शौचालय निर्माण के साथ ही बालिकाओं को छात्रवृत्ति भी दी जानी हैं। इंटरमीडिएट तक निशुल्क बालिका शिक्षा के अलावा कक्षा 8 में की शत-प्रतिशत छात्राओं को कक्षा 9 में प्रवेश दिलाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। जाहिर है, अलग-अलग मोर्चे पर होने वाले इन प्रयासों के बूते नारी-सशक्तीकरण की उम्मीदें धरातल पर नजर आएंगी। जिसके फलस्वरूप त्रिस्तरीय पंचायतों की कमान शिक्षित, जागरूक व समक्ष नारीशक्ति के हाथों में होगी। -

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