Tuesday 11 October 2011

छड़ी तो घुमाई पर जादू अभी नहीं चला

विजय त्रिपाठी-
नैनीताल स्थित पाषाण देवी में गहरी आस्था रखने वाले खंडूरी साहब ने चार दिन पहले भाजपा में अपने आने के पीछे एक दिव्य कहानी सुनाई थी कि जब सेना से रिटायर होकर राजनीति में जाने का मन बनाया तो कांग्रेस ज्वाइन करने जा रहे थे लेकिन एक रात पाषाण देवी ने सपने में दर्शन देकर उन पर कमल का फूल गिराया और वे रास्ता बदलकर भाजपा में आ गए। उन्होंने बताया कि देवी मां ने उनकी हर मन्नत पूरी की, बेटे-बेटी के लिए जैसा वर-करिअर मांगा, मां ने सब वैसा ही दिया।अब भाजपा सरकार के अवसान काल में मुख्यमंत्री का पद और प्रदेश की दुर्दशा दूर करने को लेकर देवी केआगे उनकी मुराद-मन्नत प्रकट हुई थी या नहीं, ये वे जाने या फिर देवी, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने पर जनता ने जरूर कई सपने देख डाले, उसके सपने में निर्माण- विकास के तमाम काम होते दिखे, सरकारी मशीनरी जिम्मेदार और चुस्त दिखी और भय-भूख-भ्रष्टाचार से मुक्ति भी। कभी-कभी सपने हकीकतों से दूर होते हैं। उसकी आंखें खुली तो सपना दरक रहा है। कांपते पहाड़, टूटी सड़कें, सूने अस्पताल आदि आदि.. अपनी शक्लें नहीं बदल सके थे। नई सरकार ने सुशासन की स्पष्ट मंशा तो दिखाई, इस दिशा में कई फैसले भी लिए गए लेकिन वे जनजीवन पर और जनता की बदहाली पर फिलहाल कोई असर नहीं डाल सके हैं। फर्क डालने के लिए एक महीने का वक्त नाकाफी होता है-इसे मान भी लिया जाए पर पूत के पांव पालने में देखने वालों को क्या जवाब दिया जाए। हालांकि सपना पूरा होने में अभी वक्त है। और सपने पूरे न हों, तब भी सपने देखने नहीं छोड़ने चाहिए।कहने को तो महीना भर का समय कुछ नहीं होता और करने को कहें तो बहुत कुछ। खास बात है तो पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार की शासन शैली केफर्क महसूस कराने की और इस मोर्चे पर जनरल साहब की परीक्षा अभी बाकी है। ईमानदार और जिम्मेदार शासन देने की दिशा में ठोस पहल जरूर हुई है, सुराज जैसे प्रयोगधर्मी महकमे इजाद हुए हैं लेकिन इन फैसलों-कोशिशों की गर्माहट कंपकंपाती जनता तक अभी नहीं पहुंची है। जानने वाले बताते हैं कि जनरल साहब ने कार्य व्यवहार में इस बार पहले जितनी फौजी कड़क तो नहीं दिखाई, लेकिन कई कड़क फैसले किए हैं। भ्रष्टाचार पर चोट है पर सच ये है कि चप्पे-चप्पे तक धंसा भी है। चार-पांच महीने में उन्हें जादू की छड़ी घुमानी है, छड़ी तो घुमाई जा रही है लेकिन जादू अभी नहीं चला है, और जो सिर चढ़कर न बोले तो जादू ही क्या है। महीना पूरा हो आया और खंडूरी जी उम्मीदवार जनता से मिलने, उसकी दिक्कत-दुश्वारियां समझने के एकमात्र एजेंडे के साथ बेहाल सूबे के दौरे पर नहीं निकले हैं, अब शायद अगले महीने के एजेंडे में जनता दर्शन जैसे कार्यक्रम हैं, जनता को चाहिए कि वो सब्र करे। यह लेखक इस आशंका को फिर दोहरा रहा है कि जनता संतोषी है पर इतनी भी नहीं कि जनरल साहब की स्वच्छ छवि की छाया में तुष्ट और चमत्कृत होकर बैठी रहे, इस छवि को वह अपने दैनिक जीवन में साकार होते देखना चाहती है। समय कम और उम्मीदें भारी...संकट को अवसर में बदलने वाले साबित हों...
खंडूरी साहब को शुभकामनाएं।
(लेखक अमर उजाला देहरादून के संपादक है )

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