Saturday, 19 February 2011
तो देववाणी बन जाएगी जनवाणी!
हरिद्वार
देववाणी यानी संस्कृत को जनवाणी बनाने के लिए कवायद शुरू हो गई है। विश्व में देववाणी की सबसे बड़ी संस्था संस्कृत भारती ने जनगणना के जरिए संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने की अनूठी मुहिम शुरू की है।
संस्था के सदस्य मोबाइल संदेश और जनसंपर्क अभियान के जरिए लोगों को इसके लिए जागरूक कर रहे हैं। इनमें देशवासियों से जनगणना में संस्कृत को दूसरी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराने की अपील की जा रही है।
वर्तमान में संस्कृत सिर्फ वर्ग विशेष की भाषा बनकर सीमित हो गई है। आम लोगों के बीच पहचान बनाने में संस्कृत कामयाब नहीं हो पा रही है। संस्कृत भारती ने देववाणी को घर-घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठा रखा है। जनगणना के माध्यम से संस्था ने इसे देशव्यापी मुहिम बना दिया है। संस्था के सदस्य एसएमएस और जनसंपर्क कर देशवासियों से मातृभाषा हिंदी के साथ संस्कृत को दूसरी भाषा के रूप में दर्ज कराने की अपील कर रहे हैं। संस्था का मानना है कि इस कदम से देववाणी संस्कृत को घर-घर में पहचान मिलेगी। इन दिनों संस्था के हजारों कार्यकर्ता इस अभियान में जुटे हैं।
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