Saturday, 26 February 2011
भीम पांव : जहां मंदाकिनी ने ली थी पांडवों की परीक्षा
गुप्तकाशी। केदारघाटी में बिखरे पांडवकालीन कई मठ-मंदिर, तरणताल तथा अस्त्र-शस्त्रों को देखने के लिए प्रतिवर्ष सैकड़ों पर्यटक व तीर्थयात्री आकर वशीभूत होकर अध्यात्म में खो जाते हैं। वहीं कईं ऐसे पांडवकालीन अवशेष भी क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनके बारे में आज तक किसी को भी मालूम नहीं है।
ऐसा ही एक अवशेष मस्ता-कालीमठ पैदलमार्ग के अन्तर्गत रिड़कोट पुल के दोनों ओर स्थित विशाल शिलाखंडों पर भीम पांव है। लगभग डेढ़ फीट लम्बी तथा आधा फीट चौड़ी इन आकृतियों को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये पैर पांडवकालीन किसी मनुष्य के रहे होंगे। पांचों अंगुलियों की आकृतियों को अपने में समेटे इन पैरों के बारे में जनश्रुति है कि जब गोत्र हत्या के पाप से उऋण होने के लिए पांडव केदारनाथ धाम को गमन कर रहे थे तब इसी मार्ग पर बहने वाली पतित पावनी मंदाकिनी नदी पांडवों की परीक्षा लेने के लिए अपने उग्र रूप में आ गयी। भयंकर गर्जना को देखकर पांडवों चिंतित हो गए। तब पांडव नदी पार करने के बारे में विचार करने लगे। नदी के उग्र स्वर तथा वेग को देखकर महाबलि भीम को गुस्सा आ गया और उन्होंने भयंकर गर्जना के साथ ही अपना रौद्र रूप रख दिया। बताया जाता है कि विशालकाय भीम ने द्रोपदी सहित चारों भाइयों को अपने कंधे में बिठाकर नदी के दोनों ओर स्थित विशाल शिलाखंडों पर पैर टिकाकर नदी को पार कर लिया। इस अदम्य साहस को देखकर नदी ने सुंदर स्री का रूप लेकर पांडवों के पैरों में गिरकर उनसे आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात अपने पूर्व वेग में बहने लगी। नदी के दूसरी ओर महाबली भीम ने अपना आकार सूक्ष्म कर चार भाइयों तथा द्रोपदी को सुरक्षित धरती पर उतारा। इसी मार्ग से होते हुए पांडव मोक्ष को प्राप्त करने के लिए केदारनाथ स्थित स्वर्गारोहणी में पहुंच गए। माना जाता है कि तब से लेकर आज तक लगभग दो हजार वर्ष गुजरने के बाद भी दोनों शिलाखंड अपनी जगह पर स्थापित हैं। अंकित महाबलि भीम के पैरों के निशान को देखने के लिए कुछ लोग अवश्य ही इस पैदलमार्ग का रुख करके नतमस्तक होते हैं। प्रधान कालीमठ अब्बल सिंह राणा, पंडित वेंकंठरमरण सेमवाल, आनंदमणी सेमवाल आदि ने कहा कि मस्ता से कालीमठ प्राचीन पैदलमार्ग में पांडवकालीन कई अवशेष स्थित हैं। ऐसे में लोक निर्माण विभाग को इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दशा सुधारने के लिए कारगर उठाने चाहिए। वहीं लोनिवि के अधिशासी अभियंता राजेश कुमार पंत ने बताया कि अलौकिक सुंदरता समेटे प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ तक पहुंचाने वाला मस्ता-कालीमठ पैदलमार्ग की दशा सुधारने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं। जल्द ही इस मार्ग के सुदृढ़ीकरण के लिए पहल की जा रही है, जिससे पर्यटक आकर इस पैदलमार्ग पर स्थित कई पांडवकालीन अवशेषों को देख सकें। गुप्तकाशी : मस्ता-कालीमठ पैदल मार्ग पर स्थित शिलाखंड पर भीम के पैर का निशान
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