Saturday, 19 February 2011

पहाड़ सरीखा पहाड़ पर उद्योग का सपना

देहरादून बिना नौकरी के खाली होते पहाड़ी गांव, बंजर खेत और सूने होते घर-आंगन। इन्हीं को हरा-भरा करने की उम्मीद से हिल पॉलिसी-2008 शुरू की गई थी। उम्मीद थी कि तमाम तरह के रियायती ऑफर उद्यमियों को पहाड़ पर खींच लाएंगे। इंडस्ट्री लगेंगी तो यहां के नौजवानों के खाली हाथों को काम मिलेगा। घर से सैकड़ों मील दूर मैदान का रास्ता नापने से बेहतर घर के पास ही कुछ काम धंधा मिल जाएगा। मगर, न तो यहां उद्यमियों को नीति के अनुसार सपोर्ट मिला और न यहां आशा के अनुरूप उद्योग लगे। हिल पॉलिसी को लागू हुए तीन साल होने जा रहे हैं और इंडस्टि्रयों का पूंजी निवेश 95 फीसदी तक घट गया है। औद्योगिक नीति के अनुरूप सहयोग न मिलने से उद्यमी पहाड़ पर निवेश करने से बच रहे हैं। मेगा प्रोजेक्ट के नाम पर अभी पहाड़ के हिस्से कुछ भी नहीं है। सिर्फ लघु श्रेणी की इंडस्ट्री चल रही हैं। वैसे नीति में उद्योगों को भूखंड लीज पर लेने या खरीदने में स्टांप ड्यूटी से मुक्त रखा है। लैंड यूज चेंज कराने की विधि भी सरल बनाने का वादा पॉलिसी में है। पर हकीकत में जमीन संबंधी तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने में इंडस्ट्रलिस्टों के पसीने छूट जाते हैं। यही वजह बड़े घरानों को पहाड़ चढ़ने से रोक रही है। इस तरह के 300 से अधिक प्रस्ताव लंबित चल रहे हैं।

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