Saturday, 26 February 2011

भीम पांव : जहां मंदाकिनी ने ली थी पांडवों की परीक्षा

गुप्तकाशी। केदारघाटी में बिखरे पांडवकालीन कई मठ-मंदिर, तरणताल तथा अस्त्र-शस्त्रों को देखने के लिए प्रतिवर्ष सैकड़ों पर्यटक व तीर्थयात्री आकर वशीभूत होकर अध्यात्म में खो जाते हैं। वहीं कईं ऐसे पांडवकालीन अवशेष भी क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनके बारे में आज तक किसी को भी मालूम नहीं है। ऐसा ही एक अवशेष मस्ता-कालीमठ पैदलमार्ग के अन्तर्गत रिड़कोट पुल के दोनों ओर स्थित विशाल शिलाखंडों पर भीम पांव है। लगभग डेढ़ फीट लम्बी तथा आधा फीट चौड़ी इन आकृतियों को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये पैर पांडवकालीन किसी मनुष्य के रहे होंगे। पांचों अंगुलियों की आकृतियों को अपने में समेटे इन पैरों के बारे में जनश्रुति है कि जब गोत्र हत्या के पाप से उऋण होने के लिए पांडव केदारनाथ धाम को गमन कर रहे थे तब इसी मार्ग पर बहने वाली पतित पावनी मंदाकिनी नदी पांडवों की परीक्षा लेने के लिए अपने उग्र रूप में आ गयी। भयंकर गर्जना को देखकर पांडवों चिंतित हो गए। तब पांडव नदी पार करने के बारे में विचार करने लगे। नदी के उग्र स्वर तथा वेग को देखकर महाबलि भीम को गुस्सा आ गया और उन्होंने भयंकर गर्जना के साथ ही अपना रौद्र रूप रख दिया। बताया जाता है कि विशालकाय भीम ने द्रोपदी सहित चारों भाइयों को अपने कंधे में बिठाकर नदी के दोनों ओर स्थित विशाल शिलाखंडों पर पैर टिकाकर नदी को पार कर लिया। इस अदम्य साहस को देखकर नदी ने सुंदर स्री का रूप लेकर पांडवों के पैरों में गिरकर उनसे आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात अपने पूर्व वेग में बहने लगी। नदी के दूसरी ओर महाबली भीम ने अपना आकार सूक्ष्म कर चार भाइयों तथा द्रोपदी को सुरक्षित धरती पर उतारा। इसी मार्ग से होते हुए पांडव मोक्ष को प्राप्त करने के लिए केदारनाथ स्थित स्वर्गारोहणी में पहुंच गए। माना जाता है कि तब से लेकर आज तक लगभग दो हजार वर्ष गुजरने के बाद भी दोनों शिलाखंड अपनी जगह पर स्थापित हैं। अंकित महाबलि भीम के पैरों के निशान को देखने के लिए कुछ लोग अवश्य ही इस पैदलमार्ग का रुख करके नतमस्तक होते हैं। प्रधान कालीमठ अब्बल सिंह राणा, पंडित वेंकंठरमरण सेमवाल, आनंदमणी सेमवाल आदि ने कहा कि मस्ता से कालीमठ प्राचीन पैदलमार्ग में पांडवकालीन कई अवशेष स्थित हैं। ऐसे में लोक निर्माण विभाग को इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दशा सुधारने के लिए कारगर उठाने चाहिए। वहीं लोनिवि के अधिशासी अभियंता राजेश कुमार पंत ने बताया कि अलौकिक सुंदरता समेटे प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ तक पहुंचाने वाला मस्ता-कालीमठ पैदलमार्ग की दशा सुधारने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं। जल्द ही इस मार्ग के सुदृढ़ीकरण के लिए पहल की जा रही है, जिससे पर्यटक आकर इस पैदलमार्ग पर स्थित कई पांडवकालीन अवशेषों को देख सकें। गुप्तकाशी : मस्ता-कालीमठ पैदल मार्ग पर स्थित शिलाखंड पर भीम के पैर का निशान

केंद्रीय संस्थानों में राज्य कोटे के अभ्यर्थियों को ही नौकरी

बगैर नोटिफिकेशन ओबीसी के पदों पर दूसरे राज्यों के अभ्यर्थी नौकरी के हकदार नहीं, हाईकोर्ट ने दिया फैसला नैनीताल (-नैनीताल उच्च न्यायालय ने साफ कर दिया कि उत्तराखण्ड में स्थित केंद्रीय संस्थानों में बगैर नोटिफिकेशन के ओबीसी पद पर दूसरे राज्यों के अभ्यर्थी नियुक्ति पाने के हकदार नहीं हैं। न्यायालय ने कहा कि उत्तराखण्ड में स्थित केंद्रीय संस्थानों में केवल अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों में उत्तराखंड के लोग ही नौकरी पाने के हकदार हैं। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बारिन घोष एवं न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की पीठ ने डा. खिलेन्द्र सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा में हुई थी।

अतीत बन गई पहाड़ की जांदरी-उरख्याली

विरासत को खतरा आज के अत्याधुनिक युग में लोप हो गई घरेलू आटा चक्की व ओखल पौष्टिकता से पूर्ण होते थे इससे पीसे गए अनाज पहाड़ में घरेलू संयंत्रों के रूप में जांदरी-उरख्याली अब बीते दौर का किस्सा हो चुकी हैं। पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बदलते रहन-सहन ने कभी घर गांव की इस जरूरत को आज ‘अनावश्यक’ मान लिया है या यूं कहें कि विकास की आंधी ने इसको अब अतीत की वस्तु बना डाला है। आइए..समय के पहिए को थोड़ा पीछे घुमा दें। पहले पहाड़ में जांदरी (घरेलू आटा चक्की) व उरख्याळी (ओखल) घर गांव के हर काम-काज में साझीदार होती थी। सिर्फ मांगलिक कायरे में ही नहीं बल्कि घर की रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी दोनों का उपयोग हर दिन होता था। कोठार (अनाज के संदूक) भरने के बाद भले ही अघा जाते थे, लेकिन जांदरी न पिसते हुए और उरख्याली न कुटते हुए थकती थी। तब जांदरी-उरख्याली को बनाने के लिए खास मजबूती वाला पत्थर चुनने के लिए दूर-दूर तक जाया जाता था। आज ठोस पहाड़ तो यथावत हैं, किंतु घर गांव में इनकी उपयुक्तता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। बदलाव का असर ही है कि अब पहाड़ों में जांदरी व उरख्याली की जगह मिक्सी ने ले ली है। जानकारों की मानें तो जांदरी- उरख्याली में कुटे-पिसे अनाज की पौष्टिकता पूर्णत: जैविक व प्राकृतिक होती थी। यह मानने में अतिशियोक्ति नहीं होगी कि भड़ों की वीरता में भौगोलिक स्थितियों के साथ ही इन घरेलू संयंत्रों का भी योगदान रहा है। तब यह भी घर गांव की एक धुरी होते थे जिनके इर्द-गिर्द उनके प्रयोग के साथ ही बीते और आने वाले कल को लेकर भी बातों का सिलसिला चल पड़ने पर खत्म ही नहीं होता था। दु:ख बांटे जाते थे, खुशियां खिलखिलाती थीं। हम कह सकते हैं कि अनायास ही जिंदगी की कहानियों में रिश्ते गढ़े जाते थे, या कि अपनी-अपनी सुनाकर कु छ हल्का हो लिया जाता था। इसी तरह पीढ़ियों की परंपराएं, सबक, संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाया करते थे। यह किस्सा लगभग दो दशक पुराना, बिजली और डीजल की अफ रात से पहले मोटर रोड से दूर गांवों का था, लेकिन इस दौर में पहाड़ों में बढ़े पलायन, बदलते रहन- सहन, सुविधाओं की चाह, जिंदगी की आपाधापी ने आज घरों से जांदरी तो खलिहानों से उरख्याली को ठिकाने लगा दिया है। कारण कुछ भी हों पुरातन कहे जाने वाले उस दौर में कुछ तो बात थी कि जिसे हम अब शायद ही लौटा पायें

Wednesday, 23 February 2011

घर में खान फिर भी हैं अनजान

देहरादून घर का जोगी जोगटा, आन गांव का सिद्ध। कुछ ऐसी ही दशा उत्तराखंड की जड़ी-बूटियों की हो गई है। लोगों को यहां उगने वाली वनोषधियों की जानकारी तो है, लेकिन इनका इस्तेमाल करते हैं सिर्फ एक फीसदी लोग। बीमारी या अन्य किसी तकलीफ में ज्यादातर लोग अंग्रेजी दवाओं का सेवन करना अधिक पसंद करते हैं। इस बात का पता वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआइआइ) के सर्वे में चला है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने लोगों में जड़ी बूटियों के पारंपरिक ज्ञान का पता लगाने के लिए भागीरथी, यमुना व टौंस घाटी में सर्वे किया। ये वह इलाके हैं, जहां वन औषधियां काफी मात्रा में पाई जाती हैं। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस रावत के निर्देशन में की गई पड़ताल में पता चला कि औसतन 31 फीसदी लोगों को जड़ीबूटियों का ज्ञान है। लेकिन, सिर्फ एक फीसदी ही ऐसे लोग मिले, जो इस ज्ञान का प्रयोग बीमारी ठीक करने में करते हैं। वरिष्ठ शोधार्थी निनाद राऊत ने बताया कि तीनों घाटियों के अधिकतर लोग स्वास्थ्य खराब होने या चोट आदि लगने पर अंग्रेजी दवाओं का सहारा लेते हैं। जबकि यहां 71 बीमारियों को ठीक करने वाली 118 प्रकार की औषधियां उपलब्ध हैं। राज्य में 800 जड़ी बूटियां राज्य में 800 के आसपास जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। जड़ी बूटि शोध संस्थान, गोपेश्वर मुख्य तौर पर वनोषधियों की पौध तैयार कर कृषकों को उपलब्ध कराता है। बावजूद इसके लोगों में जूड़ी बूटियों का ज्ञान सीमित है।

समूह ग भर्ती में तेजी के निर्देश

देहरादून, मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने समूह-ग के रिक्त पदों पर भर्ती में ढुलमुल रवैया छोड़ने की सख्त हिदायत दी। साथ ही पदोन्नति की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक समूह-ग के रिक्त पदों और पदोन्नति की प्रक्रिया तेज करने में महकमों की प्रगति का मुख्य सचिव ने सोमवार को जायजा लिया। अपने सभाकक्ष में आयोजित बैठक में मुख्य सचिव ने अभी तक प्राविधिक शिक्षा परिषद को समूह-ग के रिक्त पदों की तुलना में महकमों से कम पदों का अधियाचन भेजने पर आपत्ति जताई। महकमों को इस मामले में हीलाहवाली नहीं बरतने के निर्देश दिए गए। उन्होंने कहा कि 10 हजार रिक्त पदों पर भर्ती और 10 हजार पदों पर पदोन्नति प्रक्रिया समयबद्ध पूरी की जानी चाहिए। महकमों की ओर से अधियाचन भेजने में नियमावली का अड़ंगा लगने का मुद्दा उठाया गया। उन्होंने प्रमुख सचिवों, सचिवों और विभागाध्यक्षों को नियमावली संबंधी दिक्कतें दूर करने की कार्रवाई के निर्देश दिए। जेल विभाग, महिला सशक्तिकरण, विभिन्न निगमों की ओर से नियमावली का हवाला देते हुए रिक्त पदों का ब्योरा मुहैया नहीं कराया गया। मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि में आने वाले रिक्त और पदोन्नति के पदों का अधियाचन शीघ्र आयोग को भेजा जाए। विभागीय स्तर पर पदोन्नति की प्रक्रिया में रुकावट आने पर संबंधित अफसर की जवाबदेही तय की जाएगी। बैठक में कई महकमों के प्रमुख सचिवों, सचिवों व अपर सचिवों ने शिरकत की।

अस्तित्व को छटपटातीं उत्तराखंड की बोलियां

, हल्द्वानी जिस तरह से राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन बढ़ रहा है और बाजार पर वैश्वीकरण व पाश्चात्यीकरण का प्रभुत्व हो गया है, उससे उत्तराखंड की बोलियां भी अपने अस्तित्व को छटपटाने लगी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कहा है कि कुमाऊंनी व गढ़वाली बोलियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन्हें लिपिबद्ध करने के लिए राज्य गठन के 10 वर्षो में भी सरकार ने ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं समझी। अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस को लेकर उत्तराखंड से जुड़े चंद लोग अपनी मातृ भाषा कुमाऊंनी, गढ़वाली व जौनसारी को बचाने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स में माहौल बनाने का प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में अभी तक इन बोलियों की कोई लिपि तक नहीं बन सकी है। स्थिति यह है कि यह बोलियां अपने अस्तित्व के लिए ही कसमसा रही हैं। चंद कवियों, लेखकों व ब्लागरों के जरिये इन बोलियों को सहेजने के साथ ही युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन इसमें राज्य सरकार कोई विशेष पहल करती हुई नजर नहीं आ रही है। हालांकि उत्तराखंड में दर्जनों बोलियां हैं, जिनमें कुमाऊंनी, गढ़वाली व जौनसारी प्रमुख हैं। इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जा रहा है। धाद संस्था इन बोलियों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। समन्वयक तन्मय ममगई बताते हैं कि इसके लिए समय-समय पर कवि सम्मेलन व भाषा पर विमर्श किया जा रहा है। वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही का कहना है कि क्षेत्रीयता को ध्यान में रखते हुए सरकार का दायित्व बन जाता है कि क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने में योगदान दे। उत्तराखंड में थारुों, वनरावतों व भोटिया जनजातियों की बोलियां अस्तित्व में नहीं हैं तो इसके लिए भी दोषी राज्य सरकार है। संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने के बजाय कुमाऊंनी व गढ़वाली को द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। प्रसिद्ध अनुवादक व कवि अशोक पाण्डे का कहना है कि सबसे पहले कुमाऊंनी व गढ़वाली बोलियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार के अलावा लोग भी उदासीन हैं। साहित्यकार दिनेश कर्नाटक का कहना है कि मातृभाषा को शिक्षा के साथ जोड़ा जाना चाहिये। कुमाऊंनी कवि जगदीश जोशी कहते हैं कि कुमाऊंनी ही नहीं हिन्दी पर ही संकट दिख रहा है। इसे संरक्षित करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

Saturday, 19 February 2011

कपिल ऋषि की तपोस्थली गुमनाम

-ऐतिहासिक विरासतें विलुप्त होने के कगार पर -13वीं सदी में कत्यूरी शासकों ने कराया था भव्य मंदिर का निर्माण -मंदिर के पत्थरों में बनीं हैं देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां नैनीताल: देवभूमि उत्तराखंड में आज भी असंख्य ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल उपेक्षित पड़े हैं। संरक्षण एवं देखरेख के अभाव में कई ऐतिहासिक विरासतें विलुप्त होने के कगार पर जा पहुंची हैं। मंडल मुख्यालय नैनीताल से करीब 60 किमी. की दूरी पर स्थित ऐसा ही बेहद प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है कपिलेश्वर महोदव। कभी कपिल ऋषि की तपोस्थली रहा यह प्राचीन स्थल आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है। कपिलेश्वर महादेव नैनीताल जिले के रामगढ़ विकास खंड के मौना गांव के समीप अल्मोड़ा व नैनीताल जिले की सीमा पर कुमियां व शकुनी नदियों के संगम पर स्थित है। कहा जाता है कि हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने वाले कपिल ऋषि ने यहां भी तपस्या की थी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 13वीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों ने इस स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो आज कपिलेश्वर महोदव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। विशालकाय पत्थरों को सुंदर ढंग से तराश कर बनाए गए इस भव्य मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है। मंदिर के विशालकाय पत्थरों में देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां खुदीं हैं। मंदिर की ऊंचाई लगभग 37 फीट है। हाल ही में इस ऐतिहासिक मंदिर का सर्वेक्षण करने वाले कुमाऊं विवि के पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो.अजय रावत के अनुसार प्राचीन मंदिर के चारों ओर भग्न मंदिरों के अवशेष विद्यमान हैं, जिससे स्पष्टï होता है कि यहां प्राचीन काल में और भी कई मंदिर रहे होंगे। प्रो.रावत के मुताबिक कपिलेश्वर मंदिर का वाह्य स्वरूप दोनों ओर अलंकृत रथिका वाला है, जिन पर पाश्र्व देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां विद्यमान हैं। इनमें चतुर्भुजा, महिषासुर मर्दिनी, द्विभुज लकुलीश (भगवान शिव) और चतुर्भुज गणेश भगवान की मूर्तियां उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण की ओर विराजमान हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्से में लगे पत्थरों में सूरसेन की मूर्ति अलंकृत है और उसके ऊपर त्रिमुखी शिव विराजमान हैं। मंदिर के दरवाजे की चौखट में नाना प्रकार के फूलों की सुंदर आकृतियां भी खुदी हैं। उसके ऊपरी हिस्से में परिचारकों सहित मकर वाहिनी गंगा और कूर्म (कछुवे) पर सवार युमना (देवी) भी चित्रित है। देखरेख के अभाव में प्राचीन स्थापत्य कला की यह बेजोड़ कलाकृतियां धीरे-धीरे नष्टï होते जा रही हैं। मंदिर के उत्तरांग में राहु व केतु को छोड़कर अन्य सभी ग्रहों का उल्लेख मिलता है। मंदिर की शिलाओं में सूर्यमुखी फूल पकड़े सूर्य ग्रह भी विराजमान हैं। कपिलेश्वर मंदिर के पास ही काल भैरव का भी मंदिर है। इनसेट- शिवरात्रि को लगता है मेला नैनीताल: कपिलेश्वर धाम में हर साल शिवरात्रि को मेला लगता है। जिसमें आसपास के करीब दो दर्जन से भी अधिक गांवों से ग्रामीण पहुंचते हैं। कुमियां व शकुनी नदी के संगम पर स्नान करने के बाद श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। शिवरात्रि को यहां भंडारे का आयोजन होता है। इतिहासकार प्रो.अजय रावत के मुताबिक इस स्थल को जागेश्वर की भांति एतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

तो देववाणी बन जाएगी जनवाणी!

हरिद्वार देववाणी यानी संस्कृत को जनवाणी बनाने के लिए कवायद शुरू हो गई है। विश्व में देववाणी की सबसे बड़ी संस्था संस्कृत भारती ने जनगणना के जरिए संस्कृत का प्रचार-प्रसार करने की अनूठी मुहिम शुरू की है। संस्था के सदस्य मोबाइल संदेश और जनसंपर्क अभियान के जरिए लोगों को इसके लिए जागरूक कर रहे हैं। इनमें देशवासियों से जनगणना में संस्कृत को दूसरी मातृभाषा के रूप में दर्ज कराने की अपील की जा रही है। वर्तमान में संस्कृत सिर्फ वर्ग विशेष की भाषा बनकर सीमित हो गई है। आम लोगों के बीच पहचान बनाने में संस्कृत कामयाब नहीं हो पा रही है। संस्कृत भारती ने देववाणी को घर-घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठा रखा है। जनगणना के माध्यम से संस्था ने इसे देशव्यापी मुहिम बना दिया है। संस्था के सदस्य एसएमएस और जनसंपर्क कर देशवासियों से मातृभाषा हिंदी के साथ संस्कृत को दूसरी भाषा के रूप में दर्ज कराने की अपील कर रहे हैं। संस्था का मानना है कि इस कदम से देववाणी संस्कृत को घर-घर में पहचान मिलेगी। इन दिनों संस्था के हजारों कार्यकर्ता इस अभियान में जुटे हैं।

पहाड़ सरीखा पहाड़ पर उद्योग का सपना

देहरादून बिना नौकरी के खाली होते पहाड़ी गांव, बंजर खेत और सूने होते घर-आंगन। इन्हीं को हरा-भरा करने की उम्मीद से हिल पॉलिसी-2008 शुरू की गई थी। उम्मीद थी कि तमाम तरह के रियायती ऑफर उद्यमियों को पहाड़ पर खींच लाएंगे। इंडस्ट्री लगेंगी तो यहां के नौजवानों के खाली हाथों को काम मिलेगा। घर से सैकड़ों मील दूर मैदान का रास्ता नापने से बेहतर घर के पास ही कुछ काम धंधा मिल जाएगा। मगर, न तो यहां उद्यमियों को नीति के अनुसार सपोर्ट मिला और न यहां आशा के अनुरूप उद्योग लगे। हिल पॉलिसी को लागू हुए तीन साल होने जा रहे हैं और इंडस्टि्रयों का पूंजी निवेश 95 फीसदी तक घट गया है। औद्योगिक नीति के अनुरूप सहयोग न मिलने से उद्यमी पहाड़ पर निवेश करने से बच रहे हैं। मेगा प्रोजेक्ट के नाम पर अभी पहाड़ के हिस्से कुछ भी नहीं है। सिर्फ लघु श्रेणी की इंडस्ट्री चल रही हैं। वैसे नीति में उद्योगों को भूखंड लीज पर लेने या खरीदने में स्टांप ड्यूटी से मुक्त रखा है। लैंड यूज चेंज कराने की विधि भी सरल बनाने का वादा पॉलिसी में है। पर हकीकत में जमीन संबंधी तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने में इंडस्ट्रलिस्टों के पसीने छूट जाते हैं। यही वजह बड़े घरानों को पहाड़ चढ़ने से रोक रही है। इस तरह के 300 से अधिक प्रस्ताव लंबित चल रहे हैं।

आमची मुंबई में उत्तराखंड एम्पोरियम

: मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को मुंबई के वासी इलाके में 15 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले उत्तराखंड एम्पोरियम और अतिथिगृह का शिलान्यास किया। वहीं, उन्होंने हिंदी भाषियों के सम्मेलन में भी शिरकत की। करीब चार हजार वर्ग फीट क्षेत्र में प्रस्तावित पांच मंजिला एम्पोरियम व गेस्ट हाउस का निर्माण उत्तराखंड अवस्थापना विकास निगम द्वारा किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश की आर्थिक राजधानी में ऐसे केंद्र की स्थापना उत्तराखंड लंबे समय से महसूस कर रहा था। इससे राज्य में पर्यटन को मजबूती मिलेगी और औद्योगिक क्षेत्र को राज्य से जोड़ने में सहायक भी बनेगा। वहीं, उत्तराखंड के प्रवासी उद्यमी इस एम्पोरियम के माध्यम से अपनी जन्मभूमि के विकास के लिए योगदान दे सकेंगे। राज्य अवस्थापना विकास निगम के सीजीएम परियोजना कर्नल एचपी थपलियाल ने बताया कि एम्पोरियम में 100 कारों की पार्किग, भूतल पर 100 व्यक्तियों की क्षमता का रेस्टोरेंट, 200 लोगों की क्षमता का एम्पोरियम और 500 लोगों की क्षमता का ऑडिटोरियम होगा। प्रथम तल पर 60 लोगों के रुकने के प्रबंध के अलावा जिम और मनोरंजन कक्ष भी होगा। द्वितीय तल पर जीएमवीएन और केएमवीएन के कार्यालय, तृतीय तल पर चार वीआईपी कक्ष व स्थानिक आयुक्त कार्यालय होंगे। चतुर्थ तल पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए अतिविशिष्ट ब्लॉक होंगे। उधर, सोमवार देर शाम मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने मुंबई के सायन (पूर्व) में स्थित सोमैया कालेज मैदान में हिंदी भाषियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश की समृद्धि और खुशहाली में हिंदी भाषियों का बड़ा योगदान है। भारत की संस्कृति वसुधैव कुंटुंबकम की है और इस देश में क्षेत्र, भाषा, वर्ग के भेदभाव से ऊपर उठते हुए हर व्यक्ति पहले भारतीय है। महाराष्ट्र सहित देश के अन्य हिस्सों में हिंदी भाषियों की योग्यता के प्रमाण हैं। अकेले उत्तराखंड के आठ लाख से अधिक प्रवासियों ने महाराष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने प्रवासी उत्तराखंड वासियों की महाराष्ट्र के विकास में दिये जा रहे योगदान की प्रशंसा की। उन्होंने डॉ. निशंक के नेतृत्व में उत्तराखंड के विकास की सराहना करते हुए कहा कि अटल खाद्यान्न योजना के तहत जनता को सस्ता राशन देने की पहल तारीफ के काबिल है। यह राज्य भारत के तेजी से उभरते प्रदेशों में शुमार हो रहा है। कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद, महाराष्ट्र भाजपा के सह प्रभारी डॉ. रमापति राम त्रिपाठी भी मौजूद रहे।

लोक के रंग में झूमेगा पर्यटन

राजस्थानी लोकगीत केसरिया बालम आओ नी, पधारो म्हारे देश के बोल कानों में पड़ते ही मरुभूमि की तस्वीर आंखों में तैरने लगती है। मन करता है दौड़कर वहां चले जाएं। जानते हो इसकी वजह क्या है। वजह है पर्यटन का लोक के रंग में रंग जाना। अब ऐसी ही तस्वीर उत्तराखंड में भी देखने को मिलेगी। हिमालय की कंदराओं से फूटने वाले लोक के सुरों पर सम्मोहित हो सैलानी देवभूमि में खिंचे चले आएंगे। देखा जाए तो देवभूमि के जर्रे-जर्रे में पर्यटन के साथ लोक का रंग भी गहरे तक समाया हुआ है, लेकिन हम इसकी ब्रांडिंग करने में अब तक असफल ही रहे। प्रचार-प्रसार के नाम पर हर साल करोड़ों बहाने के बाद भी पर्यटन के क्षेत्र में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस पर रस्क किया जा सके। पर्यटकों को खींचने का लोकगीतों से बेहतर माध्यम और क्या हो सकता है। यह बात हालांकि बहुत देर से संस्कृति महकमे की समझ में आई, लेकिन इस दिशा में हो रहे प्रयास बताते हैं कि देवभूमि के गीत-संगीत में पूरी दुनिया को खींच लेने की क्षमता है। बेडू पाको बारामासा के बोल केसरिया बालम से कहां कमतर हैं। आज सिर्फ हम कहते हैं, हिमालै का ऊंचा डाना, दूर मेरो गांव, रंगीलो गढ़वाल मेरो सजीलो कुमाऊं (हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच सुदूर बसा मेरा गांव, कैसा रंगीला है मेरा गढ़वाल, कैसा सजीला है मेरा कुमाऊं)। कोशिशें परवान चढ़ीं तो कल यही बात देश-दुनिया से आने वाले सैलानियों की जुबां से भी सुनाई देगी।

-टाटा के लिए रेड कार्पेट

राज्य सरकार ने देश के प्रमुख औद्योगिक घराने टाटा समूह के लिए रेड कार्पेट बिछा दिया है। मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने टाटा समूह द्वारा प्रस्तावित विभिन्न योजनाओं के लिए प्रमुख सचिव एवं प्रबंधन निदेशक सिडकुल एस राामस्वामी को नोडल अफसर नामित करते हुए सिंगल विंडो सिस्टम की तर्ज पर एक कोआर्डिनेशन सेल गठित करने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि टाटा समूह उत्तराखंड में दस हजार करोड़ रुपये का निवेश करेगा जिससे राज्य में करीब पचास हजार रोजगार सृजित होंगे। समूह ने कांट्रेक्ट फार्मिंग, हाइड्रो पावर, हेल्थ टूरिज्म और आईटी के क्षेत्र में रुचि प्रदर्शित की है। टाटा समूह का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को सचिवालय में मुख्यमंत्री से मिला। गत वर्ष राज्य स्थापना दिवस पर आयोजित व्याख्यान माला में मुख्य अतिथि के तौर पर गु्रप के चेयरमैन रतन टाटा आए थे। उन्होंने उत्तराखंड में निवेश में रुचि दिखाई थी। इसी क्रम में समूह के प्रतिनिधि आज मुख्यमंत्री से मिले। मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियाल निशंक ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि सिडकुल के प्रबंध निदेशक एस रामास्वामी को नोडल अधिकारी नामित करते हुए सिंगल विंडो की तर्ज पर कोआर्डिनेशन सेल बनाएं। उन्होंने टाटा समूह द्वारा प्रस्तावित परियोजनाओं का परीक्षण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि वे तात्कालिक एवं दीर्घकालिक योजनाएं बनाकर टाटा समूह के प्रस्तावों पर कार्यवाही करें। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के लिए विशेष रूप से योजनाएं बनाने को कहा। टाटा समूह के वाइस प्रेजिडेंट एएस पुरी ने मुख्यमंत्री को बताया कि समूह को उत्तराखंड में काम करने का अच्छा अनुभव रहा है। पंतनगर प्लांट बेहतर उत्पादन दे रहा है। अभी इस प्लांट की क्षमता ढाई लाख गाडिय़ां प्रति वर्ष उत्पादन की हैं, जिसे दोगुना किया जा रहा है। उन्होंने कांट्रेक्ट फार्मिंग में रुचि दिखाई। इससे पूर्व सचिवालय में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अफसरों का टाटा समूह के प्रतिनिधियों के साथ विचार विमर्श हुआ। बैठक के बाद मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने पत्रकारों को बताया कि हास्पिटेलिटी, आईटी, पावर सेक्टर में समूह ने रुचि दिखाई है। होटल तथा लोकॉस्ट हाउसिंग पर भी काम करने में रुचि दिखाई है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में बेहतर औद्योगिक माहौल से भी समूह रुचि ले रहा है। टाटा समूह के वाइस प्रेसिडेंट एएस पुरी ने बताया कि कांट्रेक्ट फार्मिंग, रन आफ दि रिवर हाइड्रो प्रोजेक्ट, हेल्थ टूरिज्म पर समूह काम करना चाहता है। पर्वतीय क्षेत्र में आईटी तथा साफ्टवेयर के क्षेत्र में काम किया जा सकता है। आईटी पार्क में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश को लेकर आइटी विभाग ने तथा पर्यटन, होटल, रिजार्ट, ईको टूरिज्म पर पर्यटन विभाग ने प्रस्तुतीकरण दिया। ऊर्जा विभाग ने 800 मेगावाट क्षमता की परियोजनाओं का प्रस्तुतीकरण दिया।

Tuesday, 1 February 2011

चंदोला रांई: यहां हर घर में है चित्रकार

पौड़ी गढ़वाल-हिमालय के दूर से नजर आते दृश्य भले ही आम आदमी के लिए श्वेत बर्फ से ढकी पहाडिय़ां हों, लेकिन एक चित्रकार के लिए यह प्रकृति की अनुपम देन है। एक चित्रकार हिमालय में रोज 18 रंग देखता है और वह तूलिका से चित्रों में रंग भरकर उसमें खोया रहता है। पौड़ी-श्रीनगर मोटर मार्ग पर पौड़ी से 7 किमी. की दूर पर चंदोला रांई बसा है। यहां कभी 60 परिवार रहते थे, पर रोजी-रोटी की तलाश में 42 परिवार देश के विभिन्न शहरों में बस गए हैं। अब यहां सिर्फ 18 परिवार ही निवास करते हैं। इन परिवारों में 10 चित्रकार हैं। इनमें से 6 हिमालय के विभिन्न दृश्यों को कूची से कागज पर उकेरते हैं। चंदोला रांई को ये हुनर विरासत में मिला है। 60 के दशक में इस गांव में नामी चित्रकार धरणीधर चंदोला के चित्रों की धूम राष्टï्रीय बाजारों में रही। धरणीधर चंदोला के चित्र आज भी बोलते हुए नजर आते हैं। धरणीधर चंदोला ने न सिर्फ चित्रों में कमाल दिखाया, बल्कि 7 तारों के बैंजों में 21 तार जोड़कर विचित्र वीणा को जन्म दिया। वर्तमान में उनकी पुत्री मालश्री खुगशाल विचित्र वीणा की प्रस्तुतियां देती हैं। इसके अलावा उन्हें चित्रकला में काफी रुचि है। यही वजह भी है कि वर्ष 1991 में धरणीधर चंदोला की इस दुनिया से विदाई के बाद भी लोग उन्हें नहीं भूल पाए हैं। पौड़ी में हर साल धरणीधर चंदोला की स्मृति में चित्रकला स्पर्धा विभिन्न वर्गों में आयोजित होती है। सर्किल आफिस लोक निर्माण विभाग पौड़ी में लिपिक पद पर तैनात प्रमोद चंदोला को ही देखें तो आफिस जाने से पहले वे हिमालय के दृश्यों में रंग भरते हैं और आफिस से लौटने के बाद फिर चित्रों में डूब जाते हैं। उनकी बेटी मालविका चंदोला, श्रीनगर विवि से आर्ट में बीए कर रही हैं। मालविका भी चित्र में रंग भरती है। इसी गांव की गुड्ïडी भी कागजों में रंग भरती हैं। पदमादत्त चंदोला अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक हैं और उनका पूरा दिन रंगों के साथ गुजरता है। पंकज चंदोला, बंसत कुमार चंदोला, पूरण चंद चंदोला, समेत अन्य भी चित्रों में महारत रखते हैं। उधर,चंदोला रांई के चित्रकारों ने तय किया है कि अब वे शरदोत्सव, पंचायत महोत्सव व अन्य अवसरों पर गांव की ओर पेटिंग प्रदर्शनी लगाएंगे। पेटिंग में गांव का सामूहिक योगदान होगा। ''प्रसिद्घ चित्रकार धरणीधर चंदोला की यादों को सजोना निहायत जरूरी है और कोशिश की जा रही है चंदोला रांई के चित्र लोगों के मन को छूए।ÓÓ -प्रमोद चंदोला ''पेटिंग जीवन का लक्ष्य है और यही वजह भी रही है बीए मैंने आर्ट को अपने विषय में शामिल किया है। पौड़ी में आर्ट नहीं है और यही वजह रही श्रीनगर प्रवेश लेना पड़ा।ÓÓ -मालविका चंदोला, बीए तृतीय वर्ष।