Saturday, 22 January 2011

डीएनए बताएगा कहां से आए जौनसारी व बोक्सा

-भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग ने लिए जौनसारी व बोक्सा जनजाति के लोगों के ब्लड सैंपल -करीब 45 गांवों से एकत्रित किए गए नमूने -छह माह में पता चलेगा कहां के हैं इनके वंशज देहरादून: इतिहास के पन्नों को पलटें तो उत्तराखंड की जौनसारी व बोक्सा जनजाति के वंशज को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। मगर, वैज्ञानिक रूप में इस जनजाति के बारे में अब तक कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। पहली बार मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग डीएनए जांच से उनके वंशजों व अन्य जातियों से उनकी भिन्नता आदि का पता लगाने जा रहा है। वैज्ञानिकों ने करीब 35 गांवों से जौनसारी व बोक्सा लोगों के खून के नमूने लिए हैं। मानव विज्ञान सर्वेक्षण विभाग की टीम ने यह सैंपल्स देहरादून के शिमला बाइपास क्षेत्र में रह रहे 100 बोक्सा व चकराता क्षेत्र के 115 जौनसारी जनजाति के परिवारों से एकत्रित किए हैं। विभाग के अधीक्षण मानव विज्ञानी डा. विनोद कौल ने बताया सैंपल्स की डीएनए जांच कराई जा रही है। करीब छह माह में इस बात की वैज्ञानिक पुष्टि हो जाएगी कि दोनों जनजातियों के वंशज कहां के हैं व इनका इतिहास कितना पुराना है। यह भी पता लगेगा कि जौनसारी व बोक्सा अन्य जातियों से किस तरह अलग हैं। इससे किसी रोग के प्रति उनकी शारीरिक क्षमता का आंकलन भी किया जा सकेगा। डा. कौल ने बताया कि दूसरे चरण में गढ़वाली व कुमाउंनी समुदाय सहित गुज्जर व तिब्बती लोगों की भी डीएनए जांच कराई जाएगी। इस तरह हो रही जांच डीएनए जांच के पहले चरण में ब्ल्ड सैंपल्स को डीएनए एक्सट्रेक्ट विधि से गुजारा जाएगा। इसके बाद माइट्रोकॉन्ड्रियल डीएनए व वाई क्रोमोजोमनल जीन्स की प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी। प्रयोग के अन्तिम चरण में डीएनए सीक्वेन्सिंग कराकर पता चल जाएगा कि क्या है संबंधित व्यक्ति की पीढ़ी का इतिहास। शोध के कुछ तथ्य इस तरह की जनजातियां एक ही ग्रुप में रहती हैं, इनके विवाह भी आसपास तक सीमति रहते हैं। डीएनए जैसी जांच को इसमें मदद मिलती है। डीएनए में मिलने वाले नतीजों को वर्ष 2003 में विश्वभर में हुए जीनोम प्रोजेक्ट के रिजल्ट से मिलाया जाएगा। जौनसारी-बोक्सा की डीएनए जांच के जो नमूने जीनोम प्रोजेक्ट के नमूने से मैच करेंगे, उसके आधार पर उनके वंशज आदि का पता लग जाएगा।

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