Thursday, 20 January 2011
-माटी के मोल बिक रही पहाडिय़ां
(पौड़ी गढ़वाल)-अगर आपको कहा जाए कि उत्तराखंड में पहाडिय़ां बिक रही हैं तो क्या आप विश्वास करेंगे। खासकर तब, जबकि पलायन के कारण खाली होते पहाड़ी इलाके सरकार के लिए चिंता का बड़ा सबब हैं। यह सौ फीसदी सच है और इसका उदाहरण है पौड़ी गढ़वाल जिले में ब्रिटिश हुकूमत की ओर से बसाई गई पर्यटन नगरी लैंसडौन।
इसके आसपास सड़क किनारे की जमीनें इन दिनों धनाड्यों के निशाने पर है, जो इन्हें माटी के मोल खरीद रहे हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान लैंसडौन तहसील में दर्ज किए गए इस तरह के चार दर्जन मामले इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं।
पौड़ी गढ़वाल जिले में वर्ष 2008 से लेकर अब तक, यानि पिछले दो सालों में लैंसडौन-गुमखाल, लैंसडौन-दुगड्डा और दुगड्डा-रथुवाढाब मोटर मार्गों के इर्द-गिर्द 49 लोगों के जमीन खरीदने के आंकड़े राजस्व महकमे के पास उपलब्ध हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक लैंसडौन में ही 4.67 हेक्टेयर जमीन के दाखिले खारिज किए जा चुके हैं। जमीन खरीदने वाले लोगों में कुछ बड़े नेता शामिल हैं तो कई व्यापारी भी इस फेहरिस्त का हिस्सा हैं। दरअसल, इस क्रम की शुरुआत हुई वर्ष 2005 में, जब लैंसडौन के निकट डेरियाखाल क्षेत्र में सड़क से सटे पहाड़ के एक टुकड़े को खरीदकर एक शानदार रिजार्ट का निर्माण किया गया। इससे अन्य लोगों का ध्यान भी इस क्षेत्र की जमीन की अहमियत की ओर गया। इसके बाद तो लैंसडौन के नजदीकी गांव डेरियाखाल से लेकर कोटद्वार मार्ग पर स्थित दुगड्डा तक सड़क किनारे की जमीनों की खरीद-फरोख्त में खासी तेजी आ गई। अब आलम यह है कि लैंसडौन को जोडऩे वाली सड़कों के किनारे किसी भी कीमत पर जमीन उपलब्ध नहीं है। राजस्व महकमे से प्राप्त जानकारी के मुताबिक डेरियाखाल में रिजार्ट निर्माण के बाद पंद्रह बीघा, समीपवर्ती गांव पालकोट में पच्चीस बीघा, लैंसडौन-गुमखाल मोटर मार्ग पर 45 बीघा और कोटद्वार-रथुवाढाब मार्ग पर लगभग 47 बीघा जमीन विभिन्न लोगों ने खरीदी है।
इस चौंकाने वाले ट्रेंड को क्या कहें, अफसरों की मानें तो इसके कारण मामूली है, मगर सच यह है कि धनाड्यों को इन्वेस्टमेंट का यह सबसे सुरक्षित जरिया नजर आ रहा है। इस सब में स्थानीय जनता के हित दरकिनार, क्योंकि जमीनों के असल मालिक ग्रामीणों के हाथ महज मामूली रकम ही आ रही है।
पौड़ी के जिलाधिकारी दिलीप जावलकर का कहना है कि कानूनी रूप से तो जमीनों की खरीद-फरोख्त नहीं रोकी जा सकती। अगर कहीं काश्तकार को धोखे में रखकर उसकी जमीन खरीदने का मामला सामने आता है तो जिला प्रशासन जांच के बाद जमीन के दाखिल खारिज को निरस्त कर देता है। रथुवाढाब क्षेत्र में इस तरह के दो-तीन मामलों में भूमि का दाखिल खारिज निरस्त किया भी गया है।
लैैंसडौन के उपजिलाधिकारी एके पांडेय का कहना है कि लैंसडौन नगर में कैंट एक्ट की बाध्यता के कारण यहां लोगों को जमीन उपलब्ध नही हो पाती है, जबकि इस बीच पर्यटन नगरी में पर्यटन व्यवसाय तेजी से बढ़़ा है। इसलिए कैंट क्षेत्र से बाहरी इलाकों में जमीनें तेजी से लोगों द्वारा खरीदी जा रही है।
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