Thursday, 6 May 2010
तंत्र विधान से होती है मां नंदा की पूजा
-चंदवंशीय राज परिवार के वंशज हर वर्ष नंदाष्टमी पर पहुंचते हैं अल्मोड़ा
अल्मोड़ा pahar1-
मां नंदा को शैलपुत्री, तारा व शक्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मान्यता प्रदान है। मां नंदा के प्रति आस्था, श्रद्धा व उनकी महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड के हिमशिखरों का नाम मां नंदा के नाम पर हैं। इसलिए उन्हें पर्वतपुत्री भी कहा जाता है।
मां नंदा की पूजा के अलग-अलग विधान हैं। यूं तो पूरे उत्तराखण्ड की ईष्ट देवी के रूप में मां की मान्यता है। कुमाऊं के चंदवंशीय राजाओं की कुलदेवी के रूप में मां अल्मोड़ा की ऐतिहासिक नगरी नंदादेवी मंदिर में विराजमान है। राज परिवार के वंशज आज भी प्रतिवर्ष भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में तंत्र विधान से मां की पूजा-अर्चना विधि-विधान से करते हैं। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से गणेश पूजा के साथ मां का पूजा-अर्चन शुरू होता है। पूजा के दौरान यज्ञ, हवन, बलिदान किया जाता है।
नगर के जाने-माने शिक्षाविद् सुशील चन्द्र जोशी ने अपने एक लेख में कहा है कि 1670 ईसवी के आसपास राजा बाजबहादुर चंद ने मां नंदा को मल्ला महल में स्थापित किया। 1699 में राजा ज्ञान चंद तथा 1710 में राजा जगत चंद ने पुनरप्रतिष्ठित किया। अंग्रेज कमिश्नर ट्रेल ने 1816 व 1830 में वर्तमान स्थल मल्ला महल में स्थानांतरित किया। स्थापत्य कला की दृष्टि से मंदिरों की शैली उत्तर भारतीय नागरशैली है। नंदादेवी मंदिर की विशेषता यह है कि हर वर्ष लगने वाले नंदादेवी मेले व नंदाष्टमी के पर्व पर तांत्रिक पूजा-अनुष्ठान के लिए चंदवंशीय राज परिवार के नैनीताल लोकसभा के सांसद केसी सिंह बाबा प्रतिवर्ष यहां आते हैं। तांत्रिक विधान से होने वाली इस पूजा में अष्ट बलि दी जाती है। इसमें भैंसा, बकरी, नारियल आदि तंत्र पूजा में उपयोग होने वाली अन्य सामग्री शामिल होती है। अल्मोड़ा में बलिदान के समय भैंसे से निकले रक्त को टीका लगाने की पुरानी परंपरा है, जो आज भी बरकरार है।
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