Friday, 17 October 2008

विरासत-२००८ बेडू पाको बारामासा

देहरादून 12 oct- खुले आकाश में खिलखिलाता चांद, चीड़ के बड़े-बड़े दरख्त और उनके आंचल में अलौकिक आभा बिखेरता प्रभु का ओंकारेश्र्वर धाम। चारों ओर बिखरीं विद्युत रश्मियां परीलोक का-सा आभास दे रही हैं। अचानक ढोल-दमाऊं व मशकबीन की स्वर लहरियां कानों में पड़ती हैं, जो धीरे-धीरे नजदीक आ रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है हम दूर पहाड़ों की कंदराओं में पहुंच गए हैं। इसी आध्यात्मिक अनुभूति के बीच आगाज होता है विरासत-2008 का। रंगमंच पर जय नंदा कला केंद्र अल्मोड़ा के कलाकारों की टोली पहुंच गई है। लोकगायक चंदन सिंह वोरा की अगुवाई में यह टोली लोकधुनें बिखेरती हुई कुमाऊं का नयनाभिराम छोलिया नृत्य प्रस्तुत करती है। टोली की ना बासा घुघुती चैता की, नराई लगीं च मंै मैता की, बेडू पाको बारामासा जैसे गीत-नृत्यों की प्रस्तुति देखते ही बनती थी। लोकगायिका बसंती बिष्ट नंदा देवी जागर व महाभारत की लोकगाथा के कुछ अंशों की प्रस्तुति भौतिकता से आध्यात्मिकता और आनंद से परमानंद की ओर ले जाने वाली है। स्वामी आदित्यानंद के सानिध्य में संस्थान के दो छात्र-छात्राएं रुद्राष्टाध्यायी पाठ करते हैं। प्रथम दिवस की अंतिम प्रस्तुति हिंदुस्तान की जानी-मानी गायिका कविता कृष्णामूर्ति, उनके पति डा.एल.सुब्रमण्यम और उनके पुत्र-पुत्री की रही। आगाज कविता कृष्णामूर्ति ने ओम नम: शिवाय, तीन शब्दों में सृष्टि सारी समाय से की। उन्होंने ठुमरी व मुजरा का समावेश लिए गीत तुम्हारी अदाओं पे मैं मारी-मारी पेश किया। डा.एल.सुब्रमण्यम व उनके पुत्र लक्ष्मी नारायण सुब्रमण्यम ने जब वायलिन की तान छेड़ी तो पूरा अंबेडकर स्टेडियम झंकृत हो उठा।

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