Wednesday, 25 April 2012

व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा

 25 अप्रैल, 1919 को गढ़वाल जिले के बुघाणी गांव में पैदा हुए बहुगुणा ने
वर्ष 1938 में उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद के राजकीय इंटर कॉलेज में दाखिला लिया। तब इलाहाबाद राष्ट्रीय आंदोलन का बड़ा केंद्र था। हेमवतीनंदन बहुगुणा पर भी आजादी के आंदोलन का ज्वार चढ़ा। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में तो उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। उसी आंदोलन के दौरान उनकी मुलाकात युवा आंदोलनकारी कमला त्रिपाठी से हुई, जिनसे बाद में उनका विवाह भी हुआ। ब्रिटिश हुकूमत ने बहुगुणा को जिंदा या मुर्दा पकडऩे वाले को 2,000 रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की थी। तब यह रकम छोटी नहीं थी। आखिरकार फरवरी, 1943 में वह दिल्ली में जॉर्ज पंचम की मूर्ति तोडऩे के प्रयास में बीजू पटनायक व मन्नू भाई शाह के साथ पकड़े गए। दिल्ली से वह नैनी सेंट्रल जेल लाए गए, पर 1945 में गंभीर बीमारी के कारण उनको रिहा कर दिया गया। देश की आजादी के बाद बहुगुणा कांग्रेस की राजनीति मे सक्रिय हो गए। वर्ष 1952 में प्रथम आम चुनाव में वह इलाहबाद संसदीय क्षेत्र के करछना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीते। वर्ष 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बनी सरकार में बहुगुणा जी को पहली बार संचार राज्यमंत्री का दायित्व मिला। लेकिन 1973 में उत्तर प्रदेश में पीएसी ने जब विद्रोह कर दिया, तो जलते हुए प्रदेश को शांत करने के लिए बहुगुणा जी को प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भेजा गया था। आपातकाल के दौरान बहुगुणा व इंदिरा गांधी के बीच सैद्धांतिक मतभेद हुए और 28 अक्तूबर, 1975 को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। वह विपक्षी राजनीति में शामिल हुए और जनता पार्टी सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन वर्ष 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए। इन चुनावों से पूर्व श्रीमती गांधी ने बहुगुणा के घर जाकर उनको कांगे्रस में लौटने का निमंत्रण दिया, तो बहुगुणा जी ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। 1980 के मध्यावधि चुनाव में पूरी शक्ति के साथ चुनाव अभियान संचालित किया। बहुगुणा पहली बार अपनी मातृभूमि गढ़वाल से चुनाव लड़े व जीते। लेकिन जब केंद्र में श्रीमती गांधी के नेतृत्व में कांगे्रस की सरकार गठित हुई, तो उसमें बहुगुणा को स्थान नहीं मिला। इसी दौरान फिर उनके मतभेद श्रीमती गांधी से इतने बढ़े कि मई 1980 को उन्होंने न केवल कांगे्रस से, बल्कि लोकसभा की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया। कांगे्रस छोडऩे के बाद बहुगुणा ने लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का गठन किया। वर्ष 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद बहुगुणा लोकदल के अध्यक्ष बन गए। लोकदल के विभाजन के समय उसके ज्यादातर बड़े नेता, जिनमें बीजू पटनायक, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव आदि बहुगुणा के साथ लामबंद थे। इसी दौरान देश में बोफोर्स का जिन्न बोतल से बाहर आया और विश्वनाथ प्रताप सिंह बिना किसी संघर्ष के विपक्षी राजनीति के हीरो बन गए। बहुगुणा ने उस वक्त स्पष्ट कर दिया कि सांप्रदायिक पार्टियों के साथ वह कभी खड़े नहीं होंगे। लेकिन तब तक बहुगुणा मन व मस्तिष्क से तो नहीं, पर शरीर से थक गए थे। उनको बाईपास सर्जरी के लिए क्वींसलैंड जाना पड़ा, जहां 17 मई, 1989 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। (लेखक सूर्यकांत धस्माना उत्तराखंड के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं) साभार : धस्माना जी का यह लेख 24 अप्रैल को 'अमर उजाला ’ के संपादकीय पृष्ठ से लिया गया है।

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