राज्य सरकार के नियुक्ति में आरक्षण लाभ देने पर लगाई कोर्ट ने रोक
राज्य आंदोलनकारियों की आड़ में सरकार द्वारा चहेतों को नौकरी देने का लिया संज्ञान
नैनीताल: हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति व नियमों पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है जिसके तहत राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत हॉरिजेंटल (क्षैतिज) आरक्षण दिया जा रहा था। सरकार को निर्देशित किया गया है कि अग्रिम आदेशों तक किसी भी सरकारी नौकरी में राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए।1करुणोश जोशी बनाम राज्य सरकार मामले में 10 मई 2011 को उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने याची को सरकारी नौकरी में राज्य आंदोलनकारी आरक्षण का लाभ दिए जाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही यह अनुभव किया था कि सरकार द्वारा राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत हॉरिजेंटल आरक्षण दिया जा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है। एकलपीठ ने सरकार को संपूर्ण तथ्य मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष रखने को कहा था। जिसमें सरकार द्वारा थाना खटीमा, पिथौरागढ़ व लोहाघाट की एफआइआर की प्रतियां व अन्य तथ्य पेश किए गए, जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने पाया कि जिन लोगों ने राज्य आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपति को नुकसान पहुंचाया है और उनके खिलाफ एफआइआर है, उन्हीं को आंदोलनकारी माना जा रहा है। कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि राज्य आंदोलनकारियों की आड़ में सरकार द्वारा अपने चहेतों को नौकरी दी जा रही हंै। मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष व सर्वेश कुमार गुप्ता की खंड पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में आरक्षण दिए जाने पर रोक लगा दी है। साभार-जागरण कार्यालय,
राज्य आंदोलनकारियों की आड़ में सरकार द्वारा चहेतों को नौकरी देने का लिया संज्ञान
नैनीताल: हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति व नियमों पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है जिसके तहत राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत हॉरिजेंटल (क्षैतिज) आरक्षण दिया जा रहा था। सरकार को निर्देशित किया गया है कि अग्रिम आदेशों तक किसी भी सरकारी नौकरी में राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए।1करुणोश जोशी बनाम राज्य सरकार मामले में 10 मई 2011 को उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने याची को सरकारी नौकरी में राज्य आंदोलनकारी आरक्षण का लाभ दिए जाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही यह अनुभव किया था कि सरकार द्वारा राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत हॉरिजेंटल आरक्षण दिया जा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है। एकलपीठ ने सरकार को संपूर्ण तथ्य मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष रखने को कहा था। जिसमें सरकार द्वारा थाना खटीमा, पिथौरागढ़ व लोहाघाट की एफआइआर की प्रतियां व अन्य तथ्य पेश किए गए, जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने पाया कि जिन लोगों ने राज्य आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपति को नुकसान पहुंचाया है और उनके खिलाफ एफआइआर है, उन्हीं को आंदोलनकारी माना जा रहा है। कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि राज्य आंदोलनकारियों की आड़ में सरकार द्वारा अपने चहेतों को नौकरी दी जा रही हंै। मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष व सर्वेश कुमार गुप्ता की खंड पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी में आरक्षण दिए जाने पर रोक लगा दी है। साभार-जागरण कार्यालय,
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