Thursday, 20 September 2012

स्थायी और मूल निवास में कोई अंतर नहीं : हाईकोर्ट

नैनीताल। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि स्थायी निवास, साधारण निवास और मूल निवास एक ही बात है। जो व्यक्ति नौ नवंबर 2000 से यहां रह रहा है, वह उत्तराखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा। साथ ही 20 नवंबर 2001 के शासनादेश की शर्तों में आने वाले भी इसी श्रेणी के पात्र हागे। 
20 नवंबर 2001 के जीओ की शर्तें-स्थायी निवास प्रमाणपत्र उन्हीं को दिया जाएगा, जो भारत के नागरिक हों और उत्तरांचल के सद्भाविक (बोनाफाइड) नागरिक हों, इस श्रेणी में वे लोग भी आएंगे जिनका स्थायी निवास उत्तराखंड में हो या वे 15 साल से अधिक समय से यहां रह रहे हों, अथवा जिनका स्थायी निवास यहां हो और आजीविका (नौकरी आदि) के लिए राज्य से बाहर रह रहे हों। इस श्रेणी में स्थायी निवास का मतलब उत्तराखंड में पैतृक रूप से निवास या पैतृक आवास है।
हाईकोर्ट के इस आदेश से निवास प्रमाणपत्र को लेकर हो रही दिक्‍कतें दूर हो सकेंगी।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने कुमारी प्रीति राज आर्य और अन्य समेत लगभग अलग-अलग दाखिल 39 याचिकाओं पर सुनवाई की। इनमें ग्राम भादरपुर सैनी तहसील रुड़की जिला हरिद्वार निवासी कुमारी प्रीति राज आर्य ने अपनी याचिका में कहा था कि वह वहां की मूल निवासी है। आल इंडिया रेडियो में कार्यरत उसके पिता पिछले वर्ष तक दिल्ली में थे। याची की दसवीं और बारहवीं की शिक्षा दिल्ली में हुई। यूपीएमटी 2011 में उसका चयन हो गया। उसके पास रुड़की के तहसीलदार द्वारा निर्गत स्थायी निवास प्रमाण पत्र था। लेकिन हल्द्वानी मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल ने उससे 2001 के शासनादेश के तहत मूल निवास प्रमाणपत्र देने को कहा। याची ने अदालत में एसडीएम रुड़की की ओर से जारी पत्र की प्रतिलिपि पेश भी की। इसमें कहा गया था कि 2001 के शासनादेश के तहत मूल निवास प्रमाण पत्र
निर्गत नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर याची को मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं दिया गया। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। पूर्व में कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित कर याची को प्रवेश देने के निर्देश दिए थे।
पक्षों को सुनने के बाद सोमवार को एकलपीठ ने इस मामले को अंतिम रूप से निस्तारित किया। अपने आदेश में एकलपीठ ने कहा कि स्थायी निवास, साधारण निवास और मूल निवास एक ही है। इनमें कोई भिन्नता नहीं है। जो व्यक्ति नौ नवंबर 2000 (उत्तराखंड गठन दिवस) से यहां रह रहा है, वह उत्तराखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा। पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 20 नवंबर 2001 के शासनादेश में उल्लिखित शर्तों के तहत आने वाले भी इसी श्रेणी (स्थायी निवासी) के पात्र होंगे।

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