Thursday, 31 March 2011

'गैर' हुआ गैरसैंण

सपनों की राजधानी पर स्वार्थ का ग्रहण माननीयों के दून प्रेम से सकते में आ सकता है 'पहाड़' देहरादून।- वर्षो से स्थायी राजधानी का हवा में तैरता सवाल और उसके बीच माननीयों का रवैया, उत्तराखंड की जनता को निराश करने वाला रहा है। गत दिवस विधानसभा में गैरसैंण का संकल्प लाने वाले उक्रांद विधायक को इसकी उम्मीद भी नहीं रही होगी कि गैरसैंण संकल्प का इतना बुरा हस्र हो जाएगा। दीक्षित आयोग की रपट के बाद एक बार फिर से माननीयों के रुख से राज्य की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर सकती है। पहाड़ की राजनीतिक करके देहरादून में आलीशान बंगले बना चुके विधायकों की गैरसैंण से बेरुखी तो झलकती थी, लेकिन वे अपनी जुबान पर गैरसैंण शब्द को भी नहीं लाएंगे इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था। हालांकि प्रख्यात जनकवि गिर्दा को इसका अंदाजा पहले ही था। इस बात को प्रदेश का बच्चा-बच्चा समझने लगा है कि गैरसैंण में राजधानी बनाने का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने वाला है। दून घाटी में लगातार राजधानी की सुविधाओं के विस्तार से गैरसैंण की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। बावजूद इसके पिछले लोकसभा चुनाव में पहाड़ का वोट झटकने के लिए जिस तरह से पहाड़ में गैरसैंण का राग अलापा गया, उससे इतना तो लग ही रहा था कि पहाड़ की राजनीति करने वाले विधायकगणों के दिलों में गैरसैंण के लिए 'चुनावी प्रेम' तो बचा ही होगा। शुक्रवार को विधानसभा में गैरसैंण के गुब्बारे की हवा निकालने के बाद विधायकों ही नहीं राजनीतिक दलों के लिए पहाड़ का सामना करने की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय राजधानी का मसला प्रमुखता से उठा था। तब आंदोलनकारी ताकतों ने गैरसैंण के पक्ष में अपनी सहमति जताते हुए यह भी नारा दिया था कि 'जो गैरसैंण की बात करेगा, उत्तराखंड पर राज करेगा'। संगठनों के दबाव में सभी राजनीतिक दल गैरसैंण के मसले पर एकमत भी हुए थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार द्वारा गठित एक मंत्रीमंडलीय समिति (रमा शंकर कौशिक) ने रायशुमारी के बाद गैरसैंण के पक्ष में ही रिपोर्ट दी थी। उस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गैरसैंण को 60.21 फीसद अंक मिले थे, जबकि नैनीताल को 3.40, देहरादून को 2.88, रामनगर-कालागढ़ को 9.95, श्रीनगर गढ़वाल को 3.40, अल्मोड़ा को 2.09, नरेंद्रनगर को 0.79, हल्द्वानी को 1.05, काशीपुर को 1.31, बैजनाथ-ग्वालदम को 0.79, हरिद्वार को 0.52, गौचर को 0.26, पौड़ी को 0.26, रानीखेत-द्वाराहाट को 0.52 फीसद अंक मिलने के साथ ही किसी केंद्रीय स्थल को 7.25 फीसद अन्य को 0.79 प्रतिशत ने अपनी सहमति दी थी। गैरसैंण के साथ ही केंद्रीय स्थल के नाम पर राजधानी बनाने के पक्षधर लोग 68.85 फीसद थे। 'राजधानी का मुद्दा जजबाती नहीं होना चाहिए। राजधानी की घोषणा को लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर किया जाना बेहद जरूरी है। सरकार राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। रिपोर्ट पर बहस के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए।' सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:-निर्णय सरकार को करना है। सूर्यकांत धस्माना, कांग्रेस नेता चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही पार्टियों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात पर ही चुनाव जीता है। सदन की कार्यवाही में गैरसैंण को लेकर जिस प्रकार की गतिविधि देखी गयी वह बेहद निराशाजनक है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:- केवल गैरसैंण। कमला पंत, राज्य आंदोलनकारी मैंने अभी पूरी जानकारी हासिल नहीं की है। जहां भी बने शीघ्र बने। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-पता नहीं। रविन्द्र जुगरान, राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष जनता के साथ सदन में एक बार फिर धोखा हुआ है। कांग्रेस और विधायकों ने राजधानी गैरसैण को लेकर जो रवैया अपनाया है बेहद शर्मनाक है। सवाल:- राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-निश्चित रूप से पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। प्रदीप कुकरेती, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी राजधानी का तो कोई मुद्दा ही नहीं है। जब गैरसैंण को लेकर आंदोलन हुआ इसी नाम पर ही राज्य का गठन हुआ तो अब बहस किस बात की हो रही है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां मोहन सिंह रावत, राज्य आंदोलनकारी मंच संगठन मंत्री राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। यदि यूकेडी नेता सदन में राजधानी के मुद्दे पर समर्थन चाहते थे तो उन्हें पहले वार्ता करनी चाहिए थी। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां। लालचंद शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष कांग्रेस राजधानी मुद्दे पर राय

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