Thursday, 31 March 2011
'गैर' हुआ गैरसैंण
सपनों की राजधानी पर स्वार्थ का ग्रहण
माननीयों के दून प्रेम से सकते में आ सकता है 'पहाड़'
देहरादून।- वर्षो से स्थायी राजधानी का हवा में तैरता सवाल और उसके बीच माननीयों का रवैया, उत्तराखंड की जनता को निराश करने वाला रहा है। गत दिवस विधानसभा में गैरसैंण का संकल्प लाने वाले उक्रांद विधायक को इसकी उम्मीद भी नहीं रही होगी कि गैरसैंण संकल्प का इतना बुरा हस्र हो जाएगा। दीक्षित आयोग की रपट के बाद एक बार फिर से माननीयों के रुख से राज्य की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर सकती है। पहाड़ की राजनीतिक करके देहरादून में आलीशान बंगले बना चुके विधायकों की गैरसैंण से बेरुखी तो झलकती थी, लेकिन वे अपनी जुबान पर गैरसैंण शब्द को भी नहीं लाएंगे इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था। हालांकि प्रख्यात जनकवि गिर्दा को इसका अंदाजा पहले ही था। इस बात को प्रदेश का बच्चा-बच्चा समझने लगा है कि गैरसैंण में राजधानी बनाने का ख्वाब कभी पूरा नहीं होने वाला है। दून घाटी में लगातार राजधानी की सुविधाओं के विस्तार से गैरसैंण की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। बावजूद इसके पिछले लोकसभा चुनाव में पहाड़ का वोट झटकने के लिए जिस तरह से पहाड़ में गैरसैंण का राग अलापा गया, उससे इतना तो लग ही रहा था कि पहाड़ की राजनीति करने वाले विधायकगणों के दिलों में गैरसैंण के लिए 'चुनावी प्रेम' तो बचा ही होगा। शुक्रवार को विधानसभा में गैरसैंण के गुब्बारे की हवा निकालने के बाद विधायकों ही नहीं राजनीतिक दलों के लिए पहाड़ का सामना करने की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उल्लेखनीय है कि 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के समय राजधानी का मसला प्रमुखता से उठा था। तब आंदोलनकारी ताकतों ने गैरसैंण के पक्ष में अपनी सहमति जताते हुए यह भी नारा दिया था कि 'जो गैरसैंण की बात करेगा, उत्तराखंड पर राज करेगा'। संगठनों के दबाव में सभी राजनीतिक दल गैरसैंण के मसले पर एकमत भी हुए थे। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार द्वारा गठित एक मंत्रीमंडलीय समिति (रमा शंकर कौशिक) ने रायशुमारी के बाद गैरसैंण के पक्ष में ही रिपोर्ट दी थी। उस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गैरसैंण को 60.21 फीसद अंक मिले थे, जबकि नैनीताल को 3.40, देहरादून को 2.88, रामनगर-कालागढ़ को 9.95, श्रीनगर गढ़वाल को 3.40, अल्मोड़ा को 2.09, नरेंद्रनगर को 0.79, हल्द्वानी को 1.05, काशीपुर को 1.31, बैजनाथ-ग्वालदम को 0.79, हरिद्वार को 0.52, गौचर को 0.26, पौड़ी को 0.26, रानीखेत-द्वाराहाट को 0.52 फीसद अंक मिलने के साथ ही किसी केंद्रीय स्थल को 7.25 फीसद अन्य को 0.79 प्रतिशत ने अपनी सहमति दी थी। गैरसैंण के साथ ही केंद्रीय स्थल के नाम पर राजधानी बनाने के पक्षधर लोग 68.85 फीसद थे।
'राजधानी का मुद्दा जजबाती नहीं होना चाहिए। राजधानी की घोषणा को लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर किया जाना बेहद जरूरी है। सरकार राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। रिपोर्ट पर बहस के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए।'
सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:-निर्णय सरकार को करना है। सूर्यकांत धस्माना, कांग्रेस नेता चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही पार्टियों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात पर ही चुनाव जीता है। सदन की कार्यवाही में गैरसैंण को लेकर जिस प्रकार की गतिविधि देखी गयी वह बेहद निराशाजनक है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो ? जवाब:- केवल गैरसैंण। कमला पंत, राज्य आंदोलनकारी मैंने अभी पूरी जानकारी हासिल नहीं की है। जहां भी बने शीघ्र बने। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-पता नहीं। रविन्द्र जुगरान, राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष जनता के साथ सदन में एक बार फिर धोखा हुआ है। कांग्रेस और विधायकों ने राजधानी गैरसैण को लेकर जो रवैया अपनाया है बेहद शर्मनाक है। सवाल:- राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-निश्चित रूप से पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। प्रदीप कुकरेती, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी राजधानी का तो कोई मुद्दा ही नहीं है। जब गैरसैंण को लेकर आंदोलन हुआ इसी नाम पर ही राज्य का गठन हुआ तो अब बहस किस बात की हो रही है। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां मोहन सिंह रावत, राज्य आंदोलनकारी मंच संगठन मंत्री राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। यदि यूकेडी नेता सदन में राजधानी के मुद्दे पर समर्थन चाहते थे तो उन्हें पहले वार्ता करनी चाहिए थी। सवाल:-क्या राजधानी गैरसैंण हो? जवाब:-हां। लालचंद शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष कांग्रेस राजधानी मुद्दे पर राय
Wednesday, 16 March 2011
उत्तराखंड में होली की अनूठी परंपरा
युवक, युवतियों और वृद्ध सभी को होली के गूंजते गानों में सराबोर देखा जा सकता है
उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में तबले, मंजीरे और हारमोनियम के सुर में मनाया जाने वाला परंपरागत होलिकोत्सव हर किसी को बरबस अपनी ओर खींच ही लेता है.
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध एवं सजग माने जाने वाले अल्मोड़ा में तो सांझ ढलते ही होल्यारों की महफिलें सज जाती हैं. इसमें हर उम्र के लोग शामिल होते हैं. युवक, युवतियों और वृद्ध सभी को होली के गूंजते गानों में सराबोर देखा जा सकता है.
लगभग यही दशा कुमाऊं मंडल के अधिकांश क्षेत्रों की होती है. नैनीताल और चंपावत में तबले की थाप, मंजीरे की खनखन और हारमोनियम के मधुर सुरों पर जब 'ऐसे चटक रंग डारो कन्हैया' गाते हैं, तो सभी झूम उठते हैं.
तिहाई पूरा होते ही लगता है कि राग-विहाग की ख़ूबसूरत बंदिश ख़त्म हो गई है. लेकिन तभी होली में भाग लगाने वाले होल्यारों के मुक्त कंठ से भाग लगाते ही तबले पर चांचर का ठेका अभी शुरू नहीं हुआ कि 'होरी' फिर से शबाब पर लौट आती है.
पूरी रात इस मस्ती में गुजर जाती है और इस बीच पता नहीं चलता कि भोर कब हुई.
बैठकी होली की उमंग
यह कद्रदान और कलाकार दोनों का मंच है. इस लोक विधा ने हिन्दुस्तानी संगीत को समृद्ध करने के साथ-साथ एक नई समझ भी दी है.
कुमाऊंनी होली के दो रूप प्रचलित हैं-बैठकी होली और खड़ी होली.
बैठकी होली यहाँ पौष माह से शुरू होकर फाल्गुन तक गाई जाती है. पौष से बसंत पंचमी तक अध्यात्मिक बसंत, पंचमी से शिवरात्रि तक अर्ध श्रृंगारिक और उसके बाद श्रृंगार रस में डूबी होलियाँ गाई जाती हैं. इनमें भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण-गोपियों की हंसी-ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़छाड़ सभी रस मिलते हैं.
इस होली में वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति रस एक साथ मौजूद हैं.
संस्कृति प्रेमी एवं युग मंच संस्था चलाने वाले जुहूर आलम कहते हैं कि बैठकी होली जैसे त्योहार को एक गरिमा देती है.
होली मर्मज्ञ एवं संस्कृतिकर्मी रहे गिरीश तिवारी 'गिर्दा' कहते हैं, ‘‘बैठकी होली अपने समृद्ध लोकसंगीत की वजह से यहाँ की संस्कृति में रच बस गई है. यह लोकगीत न्योली जैसे पारंपरिक लोकगीतों से भिन्न है. इसकी भाषा कुमाऊंनी न होकर ब्रज है. सभी बंदिशें राग रागनियों में गाई जाती है. यह खांटी का शास्त्रीय गायन है.’’
एकल और समूह गायन
इस गाने का ढब निराला ही है. इसे समूह में गाया जाता है. लेकिन यह न तो सामूहिक गायन है न ही शास्त्रीय होली की तरह एकल गायन. महफ़िल में मौजूद कोई भी व्यक्ति बंदिश का मुखड़ा गा सकता है जिसे स्थानीय भाषा में भाग लगाना कहते हैं .
गीत एवं नाट्य प्रभाग, भारत सरकार के पूर्व निदेशक प्रेम मटियानी के अनुसार, ‘‘यह कदरदान और कलाकार दोनों का मंच है. इस लोक विधा ने हिन्दुस्तानी संगीत को समृद्ध करने के साथ-साथ एक नई समझ भी दी है.’’
होली के अवसर पर गीत-संगीत की सजती महफ़िल.
खड़ी होली दिन में ढोल-मंजीरों के साथ गोल घेरे में पग संचालन और भाव प्रदर्शन के साथ गाई जाती है. तो रात में यही होली बैठकर गाई जाती है.
शिवरात्रि से होलिकाअष्टमी तक बिना रंग के ही होली गाई जाती है.
होलिका अष्टमी को मंदिरों में आंवला एकादशी को गाँव मोहल्ले के निर्धारित स्थान पर चीर बंधन होता है और रंग डाला जाता है.
होली का उत्साह
बसंत पंचमी होली का नमूना देखें. बसंत पंचमी में "नवल बसंत सखी, ऋतुराज कहायो पुष्पकली सब फूलन लागी फूलहि फूल सुहायो" के साथ शिवरात्रि में "जय जय शिवशंकर योगी, नृत्य करत प्रभु डमरू बजावत बावन धूनी रमायो" गाकर यह होली मनाते हैं.
उत्तराखंड में गंगोलीहाट, लोहाघाट, चंपावत, पिथौरागढ़ एवं नैनीताल बैठकी होली के गढ़ माने जाते हैं. यहां के लोग मैदानी क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ गए, इस परंपरा का प्रसार होता गया.
आधुनिक दौर में जब परंपरागत संस्कृति का क्षय हो रहा है तो वहीं कुमाऊं अंचल की होली में मौजूद परंपरा और शास्त्रीय राग-रागनियों में डूबी होली को आमजन की होली बनता देख सुकून दिलाता है.
बसंत का मौसम उल्लास, प्रेम, नवजीवन का प्रतीक है। बसंत के मौसम में पृकृति अपने पूरे यौवन पर होती। इस मौसम में उत्तराखंड की धरती भी दुल्हन की तरह सज जाती है। इसी लिये नरेन्द्र सिंह नेगी जी कहते हैं “मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि”
होली से लगभग एक महीने पहले से, उत्तरांचल की वादियों में होली के गीतों की आवाज सुन सकते हैं, जहाँ लोग रात को आग के चारों ओर बैठ कर स्पेैशियल होली के गीतों (कुमांऊनी बोली के गीत) को गाते हुए सुने और देखे जा सकते हैं।
लोकल परंपराओं के अनुसार, होली से ठीक एक सप्ता ह पहले शुरूआत होती है, कुमांऊनी ‘खड़ी होली’ की। जिसमें लोग गाने के साथ-साथ हुलियारों और अपनी आवाज की धुन में थिरकते दिखायी देते हैं। यह सब रात के वक्त चीर (होलिका दहने के लिए लाया गया पेड़, जैसे क्रिसमस ट्री लगाया जाता है) के चारों ओर नाच गाकर मनाया जाता है।
और फिर अंतिम दिन (दुलहेंदी के पहले की रात) उस चीर को जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। उस दिन देर रात तक नाच गाना चलता रहता है। इसी सप्तांह होली के समुह जगह-जगह जाकर होली गाकर चंदा इकट्ठात करते रहते हैं। और फिर दुलहंदी के दिन मचता है, धमाल तरह तरह के रंगों का, मिठाई, गुजिया और भांग (एक पेय पदार्थ जो केनाबिस बीज से बनया जाता है) का।
संक्षिप्तथ में कहा जाय तो, खुशी और मस्तीे का ही आलम होता है होली के दौरान। ढोलक और मंजीरे की तान में नाचते गाते लोग कुमाँऊ की सड़कों में, मोहल्लों में आसानी से देखे जा सकते हैं। ऐसा लगता है जैसे बच्चे , जवान, बुढ़े, आदमी, औरत सभी अपने आप में क्लाकसिकिल गायक हों। जैसे मैंने पहले कहा होली के दौरान गाये जाने वाले गीत न सिर्फ रागों में बेस्डि होते हैं बल्िक उनके गाने का भी स्पे शियल वक्त होता है। उदाहरण के लिए, दिन के वक्तो वो ही गीत गाये जाते हैं जो कि पीलू, भीम पलासी या सारंग राग में बेस्ड होते हैं जबकि शाम का वक्तह होता है कल्या
Sunday, 13 March 2011
अनुदेशकों की नई मेरिट लिस्ट तैयार करें
नैनीताल: हाईकोर्ट ने आइटीआइ में अनुदेशकों के परीक्षा परिणाम मामले में सुनवाई के बाद सरकार को नई मेरिट लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए हैं। साथ ही सीटीआई धारकों को शामिल करने के बाद नॉन सीटीआई धारकों की मेरिट लिस्ट के आधार पर नियुक्ति को कहा है।
जगदीश चंद्र उपाध्याय आदि दर्जनों याचिकाकर्ताओं ने आइटीआइ अनुदेशक भर्ती परिणामों में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि ऐसे अभ्यर्थी सफल घोषित कर दिए गए जो अर्ह नहीं हैं। कहा गया था कि टैक्निकल पदों पर नॉन सीटीआई धारक अभ्यिर्थियों को नियुक्ति दी गई है। जबकि नियमों के तहत उन पदों पर सीटीआई प्रमाण पत्र धारकों को ही नियुक्ति दी जानी चाहिए। सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की एकल पीठ ने सरकार को पहले सीटीआई धारकों की मेरिट लिस्ट बनाकर उन्हें प्राथमिकता देने तथा शेष बचे पदों पर नॉन सीटीआई धारकों को मेरिट के आधार पर नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश दिया है।
Saturday, 12 March 2011
Thursday, 3 March 2011
Tuesday, 1 March 2011
नेफा (अरुणाचल) से लद्दाख तक प्रचलित नृत्य गीत है चांचड़ी
विख्यात: देवभूमि उत्तराखंड का सर्वाधिक प्रचलित नृत्य गीत है चांचड़ी
नेफा से लद्दाख तक चांचड़ी की महक
-लोकगीत पहाड़ी नदी की तरह हैं। जहां जैसी जमीन मिली, उसी के अनुरूप ढल गए और जब नृत्य इनके साथ जुड़ा तो नृत्यगीत हो गए। उत्तराखंड हिमालय का ऐसा ही नृत्यगीत है चांचड़ी, जिसके रंग अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक किसी न किसी रूप में बिखरे हुए हैं। यही ऐसी विधा है, जिसमें सिर्फ मनोरंजन प्रधान नृत्य है। बाकी लोकनृत्यों में तो किसी न किसी रूप में देवत्व का भाव समाया हुआ है।
आस्था और विश्वास से लेकर प्रेम, श्रृंगार, परिस्थिति, नारी व्यथा, याद, प्रकृति, पर्यावरण, फौजी जीवन जैसे प्रतिबिंबों की प्रतिकृति है चांचड़ी नृत्यगीत। लोकजीवन का यह रूप पूरे हिमालय में एक है, इसीलिए नेफा (अरुणाचल) से लद्दाख तक चांचड़ी की झलक देखी जा सकती है। गढ़वाल, कुमाऊं व जौनसार में भी इस के रंग अलग-अलग हैं। विभिन्न क्षेत्रों में प्रकृति एवं परिस्थिति के अनुसार चांचड़ी को चांचरी, झुमैला, दांकुड़ी, थड़्या, ज्वौड़, हाथजोड़ी, न्यौल्या, खेल, ठुलखेल, भ्वैनी, भ्वींन, रासौं, तांदी, छपेली, हारुल, नाटी व झेंता जैसे नामों से जाना जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी जगह नृत्य के साथ अनिवार्य रूप से गीत गाने की परंपरा है। इन गीतों की रचना किसी गीतकार ने नहीं की, बल्कि लोक के सुर से जो बोल फूटे, वही कालांतर में लोकगीत बन गए।
प्रशिक्षित बेरोजगारों की मुराद पूरी
देहरादून,: विशिष्ट बीटीसी/ बीटीसी में 90 प्रतिशत वर्षानुसार प्राथमिकता व शैक्षिक योग्यता के अंक तथा केवल दस प्रतिशत अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीइटी) के अंक होंगे
। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ने विभागीय समीक्षा बैठक में इसकी जानकारी दी। काबीना मंत्री के मुताबिक राष्ट्रीय शिक्षा परिषद व केंद्र सरकार के शिक्षा अधिकार अधिनियम में अध्यापक पात्रता परीक्षा आवश्यक कर दिया गया है। इस बारे में गत 14 फरवरी को परिषद द्वारा नई गाइडलाइन भी जारी कर दी गई है। राज्य सरकार ने सूबे के प्रशिक्षित बेरोजगारों की लंबे समय से चली आ रही मांग व इनके हितों को ध्यान में रखकर नीतिगत निर्णय लेते हुए बेसिक शिक्षा में अध्यापक की नियुक्ति में अध्यापक पात्रता परीक्षा को केवल क्वालीफाई परीक्षा कर दिया गया है। इसका केवल दस प्रतिशत अधिभार तय किया है। 90 प्रतिशत अधिभार वर्ष की वरीयता, हाइस्कूल, इंटर, स्नातक बीएड, परास्नातक के अंकों के गुणांक के अनुसार चयन होगा। नई व्यवस्था के तहत शिक्षकों के चयन में वर्ष की वरिष्ठता व गुणांक मुख्य निर्धारक होंगे। उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय से सूबे के प्रशिक्षित युवाओं को उनकी मांग के नियुक्ति मिल जाएगी। काबीना मंत्री ने विभागीय कार्यो को तय समय पर पूरा करने के निर्देश भी दिए।
कला इतिहास, कलाकार मजदूर
जिन्होंने गढ़पतियों की विरुदावलियां गाई, राजाओं, तीर्थो, समाज सुधारकों, धर्माचार्यो और राष्ट्रीय आंदोलनों पर गीत रचे, आज शिव के इन्हीं वंशजों का अस्तित्व खतरे में है।
पहाड़ों में उजड़ते घरों के साथ इनके सुर खो गए और ढोलक पर थिरकने वाले हाथ पत्थर तोड़ने को मजबूर हैं। हालात की लाचारी देखिए कि गीत, नृत्य और लोक नाटकों से देवभूमि की सेवा करने वाले बाद्दि आज इस शब्द से भी परहेज करने लगे हैं।
सृष्टि के आदि संगीत का प्रारंभ जिन गंधर्वो ने किया बाद्दि (बेडा) उन्हीं की वंश परंपरा के कलाकार हैं। ये न केवल आशुकवि हैं, बल्कि महान इतिहासकार भी हैं। इन्होंने समाज की अच्छी-बुरी घटनाओं को ढोलक की थाप और घुंघरुओं की झनकार के साथ प्रस्तुत किया। गढ़वाल के जिस युग को इतिहासकारों ने अंधकार युग कहा, उस समय के गढ़पतियों का वर्णन भी बाद्दियों के गीतों में मिलता है।
बादी गढ़वाल में लोकगीत, स्वांग, लांग और बेडावर्त जैसे अनुष्ठान के जनक हैं। मुखौटे बनाना, वादन कला, पौराणिक व सामाजिक गीतों की रचना करना इनकी प्रतिभा है। खिर्सू में बोर्डिग स्कूल का खुलना, पहाड़ों में पहली मोटर का आना, मंहगाई, स्वतंत्रता संग्राम, भारत-चीन युद्ध, प्रेम संबंध, सास की प्रताड़ना, बहुओं की आत्महत्या जैसी गढ़वाल की सामाजिक-राष्ट्रीय गतिविधियों का परिचय इनके गीतों में मिलता है।
लाचारगी पेश करती तस्वीर
साथी संस्था की ओर से किए गए 250 बाद्दि परिवारों के सैंपल सर्वेक्षण में 98 प्रतिशत की मासिक आय 500 रुपये से कम पाई गई। इनमें दो प्रतिशत सरकारी सेवा में और केवल दो लोग ही अध्यापन से जुड़े मिले। विधवा पेंशन लेने वाली महिलाओं का प्रतिशत दो है, जबकि 98 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूरी से पेट पाल रही हैं।
आर्मी की भर्ती रैली 15 अप्रैल से
कुमाऊं भर के युवा लेंगे भाग
, अल्मोड़ा: आर्मी के विभिन्न पदों के लिए भर्ती रैली 15 से 23 अप्रैल तक कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर रानीखेत में होगी। रैली में अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, पिथौरागढ़ व चंपावत जिलों के अभ्यर्थी भाग ले सकेंगे।
यह जानकारी भर्ती कार्यालय अल्मोड़ा के निदेशक कर्नल अनंत निरंजन ने दी। उन्होंने बताया कि 15 अप्रैल को अल्मोड़ा जनपद के अभ्यर्थियों की सोल्जर जीडी, क्लर्क एसकेटी, सोल्जर तकनीकी व ट्रेडसमैन पदों के लिए भर्ती होगी। 16 को इन्हीं पदों के लिए नैनीताल जनपद के अभ्यर्थियों की भर्ती रैली होगी। इसी दिन अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर व ऊधमसिंह नगर के अभ्यर्थियों की विभिन्न पदों के लिए भर्ती रैली आयोजित की गई है। 17 अप्रैल को बागेश्वर व 18 अप्रैल को ऊधमसिंह नगर के अभ्यर्थियों के अभ्यर्थियों की भर्ती होगी। 19 अप्रैल को राज्य के सभी जिलों के अभ्यर्थी सोल्जर नर्सिंग असिस्टेंट पद की भर्ती रैली में शामिल हो सकेंगे। 20 व 21 अप्रैल को चम्पावत व पिथौरागढ़ जनपद के अभ्यर्थियों की विभिन्न पदों के लिए भर्ती रैली आयोजित की गई है। 22 को ट्रेड्समैन पद के लिए एप्टीट्यूड टेस्ट होगा। 23 अप्रैल को रैली में सफल रहे अभ्यर्थियों को फार्म का वितरण होगा। उन्होंने बताया कि अभ्यर्थियों की लिखित परीक्षा अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ में 31 जुलाई को होगी।
Subscribe to:
Posts (Atom)