Friday, 30 April 2010
-'डाक्टर साब! पहाड़ कब चढ़ोगेÓ
सात साल के छोटे से वक्फे में मानदेय में तीन गुना बढ़ोतरी और
फिर भी सैकड़ों पद खाली। चौंकिए नहीं, यह सौ फीसदी सच है और ऐसा हो रहा है सूबे के स्वास्थ्य महकमे में। प्रदेश सरकार ने डाक्टरों की कमी से निजात पाने को कांटे्रक्चुअल डाक्टर तैनात करने शुरू किए तो सात साल में इनका मेहनताना तीन गुना तक बढ़ा दिया मगर इसके बावजूद राज्य में अब भी डाक्टरों के पचास फीसदी पद खाली पड़े हैं।
पहाड़ के लिए सेहत की सुविधाएं जुटाना सरकार के लिए सचमुच पहाड़ सरीखा ही साबित हो रहा है। उत्तराखंड को अलग राज्य बने दस साल होने को आए लेकिन हालात ये हैं कि चिकित्सालयों व स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टर जाने को तैयार नहीं। खासकर पहाड़ी जिलों में जिस तरह डाक्टरों के सैकड़ों पद खाली पड़े हैं उससे सरकार के सबको स्वास्थ्य सुविधा देने के दावे हवा हवाई ही नजर आते हैं। स्थिति किस हद तक चिंताजनक है इस तथ्य का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि राज्य में ऐलोपैथिक डाक्टरों के कुल पद 2200 हैं और इनमें से आधे के करीब रिक्त हैं। लगभग ग्यारह-साढ़े ग्यारह सौ डाक्टरों में से दो सौ के आसपास कांट्रेक्चुअल हैं। यानी छोटे से राज्य की आधी आबादी को ही सरकारी डाक्टरों से उपचार की सुविधा मिल पा रही है।
यह स्थिति आज-कल नहीं बल्कि राज्य गठन के वक्त से ही बनी हुई है। इसीलिए राज्य सरकार ने वर्ष 2003 में कांट्रेक्चुअल डाक्टर (संविदा पर नियुक्त डाक्टर) की नियुक्तिकी प्रक्रिया आरंभ की। तब संविदा पर नियुक्त डाक्टरों के लिए मानदेय तय किया गया प्रति माह 11 हजार रुपए और अब सात वर्ष गुजरने के बाद यह पहुंच गया है 34 हजार रुपए तक। दरअसल सरकार ने डाक्टरों को लुभाने के लिए इनके मानदेय में लगातार बढ़ोतरी की और दुर्गम व अति दुर्गम क्षेत्र में तैनाती के लिए अतिरिक्त धनराशि का भी प्रावधान किया लेकिन डाक्टर साहब हैं कि पहाड़ चढऩे को राजी ही नहीं। वर्ष 2005 में कांट्रेक्ट पर नियुक्त डाक्टरों का मानदेय 11 से बढ़ाकर पहले 13 व फिर 15 हजार रुपए किया गया जबकि इसके अगले ही साल वर्ष 2006 में यह धनराशि पहुंच गई 18 हजार रुपए महीना।
वर्ष 2009 में सरकार ने पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों तक डाक्टरों को पहुंचाने के लिए अतिरिक्त मानदेय की व्यवस्था आरंभ की। इसके मुताबिक मैदानी क्षेत्र में 25 से 29 हजार, दुर्गम में 29 से 33 हजार और अति दुर्गम क्षेत्र में तैनात होने वाले कांट्रेक्चुअल डाक्टरों को 30 से 34 हजार रुपए प्रतिमाह तक मानदेय का प्रावधान किया गया। इस सबके बावजूद सरकार के तमाम प्रयास पूरी तरह परवान चढ़ते नजर नहीं आ रहे क्योंकि अब भी राज्य में डाक्टरों के आधे पद खाली ही पड़े हुए हैं।
जितने डाक्टर सरकारी सेवा में हैं उनमें से तकरीबन आधे तो चार मैदानी जिलों में ही नियुक्त हैं। देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों में नियुक्त डाक्टरों की संख्या का आंकड़ा लगभग पांच सौ के आसपास पहुंचता है जबकि शेष नौ जिलों में छह सौ के आसपास सरकारी डाक्टर आम जनता के लिए उपलब्ध हैं। तस्वीर अपनी कहानी खुद बयां कर रही है, यानी अभी राज्य के पहाड़ी जिलों के बाशिंदों के पास यह कहने कि 'डाक्टर साब, पहाड़ कब चढ़ोगेÓ, कहने और इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं।
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बोले स्वास्थ्य महानिदेशक
'' डाक्टरों की कमी को पूरा करने लिए प्रयास जारी हैं। जल्द उत्तराखंड लोक सेवा आयोग से विभाग को अस्सी स्पेशलिस्ट व पचास महिला चिकित्साधिकारी मिलने जा रहे हैं। इसके अलावा मई अंत तक आशा है कि सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज के डाक्टरों का पहला बैच हमें मिल जाएगा। जहां तक डाक्टरों का मैदानी जिलों तक सिमटे रहने का सवाल है इसके लिए स्थानान्तरण नीति को मजबूत बनाने की कोशिश की जा रही है। ताकि सभी जिलों में समान स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। ÓÓ
डा.सीपी आर्य
स्वास्थ्य महानिदेशक, उत्तराखंड
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