Thursday, 22 April 2010

अब विलुप्त नहीं होगी पहाड़ी नारंगी

-अकेले दम पर अनिल जोशी की पहल -मलेथा में 30 हजार पौध हैं रोपण के लिए तैयार -दो लाख पौध होंगी अगले साल तैयार श्रीनगर गढ़वाल,: पहाड़ी संतरा (नारंगी) विलुप्त होने के कगार पर आ गया है। संतरों की अन्य प्रजातियों की अपेक्षा पहाड़ी संतरा ज्यादा रसीला और स्वादिष्ट होता है। पहाड़ी नारंगी को बचाने को लेकर पंतनगर विश्वविद्यालय से वानिकी में चार वर्षीय स्नातक अनिल जोशी ने अकेले दम पर पहल करने की ठानी। महिला डेयरी विकास परियोजना की सरकारी नौकरी छोड़ अनिल कुमार जोशी ने अपनी इस पहल के लिए श्रीनगर से दस किमी दूर मलेथा के सेरों में 15 काश्तकारों से पांच साल के लिए 200 नाली खेत लीज पर लेकर पहाड़ी संतरे की पौध लगाने का कार्य शुरू किया। वर्तमान में जोशी की इस पौधशाला में 30 हजार पहाड़ी नारंगी की पौध रोपण के लिए तैयार हैं। दो लाख पौध अगले वर्ष रोपण के लिए तैयार हो जाएगी। अनिल जोशी ने बताया कि पौध को तैयार होने में डेढ़ वर्ष का समय लगता है। पौधशाला बनाने में श्रीनगर के घाटी फलशोध केंद्र और उद्यान विभाग कीर्तिनगर का तकनीकी सहयोग उन्हें मिला। पिछले वर्ष वह 40 हजार संतरे की पौध तैयार कर वितरित कर चुके हैं। युवाओं के लिए स्वरोजगार का एक आदर्श उदाहरण बने अनिल जोशी का कहना है कि प्रदेश का उद्यान, जलागम विभागों के साथ ही ब्लाक भी उनसे सरकारी दर पर यह पौध खरीदते हैं। वर्ष 2007-08 पंजाब के किन्नू की 97 हजार बीजू पौध भी जोशी की पौधशाला में तैयार हुई। इसके अतिरिक्त वर्ष 2009 में बीजू आम की एक लाख पौध भी उनके द्वारा विभिन्न विभागों को उपलब्ध करा दी गयी। अनिल जोशी का कहना है कि अपने हौसले और साथियों के सहयोग से ही वह इस क्षेत्र में आगे बढ़े हैं। इससे पूर्व वर्ष 2000 में खण्डाह में उनके द्वारा कचनार (चार वृक्ष) की 8 लाख पौध भी उगाई जा चुकी थी। श्री जोशी का कहना है कि उद्यानिकी और फल सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में आशातीत संभावनाएं हैं। इनके बाजार भी बेहतर रूप से उपलब्ध हो जाते हैं। युवाओं को इस क्षेत्र में आगे आना चाहिए।

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