Tuesday, 20 April 2010
'पीपल ने सेहरा, 'तुलसी ने ओढ़ी चुनरी
- मठ गांव: यहां है वृक्षों के विवाह की अनूठी परम्परा
- एक परिवार कई पीढिय़ों से कर रहा है इस अनोखे रिवाज का निर्वहन
- दुल्हन वृक्ष को सजाया जाता है सोने-चांदी के जेवरातों से
- दान और दहेज के रूप में दिया जाता है सामान
, गोपेश्वर (चमोली)-
दो वृक्षों का विवाह शान-ओ-शौकत और धूमधाम से कराया जाए तो इस बात का चर्चाओं में शुमार होना लाजिमी है। जी हां! उत्तराखंड के चमोली जिले के मठ नामक गांव में वृक्षों के विवाह का अनूठा रिवाज है। यहां एक ऐसा परिवार है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस परम्परा का निर्वाह करता चला आ रहा है। इस अनोखे विवाह में 'पीपलÓ को दूल्हा तो 'तुलसीÓ अथवा 'बड़Ó के वृक्ष को दुल्हन माना जाता है। शादी के दिन पीपल के वृक्ष को सेहरा और शेरवानी पहनाई जाती है तो दुल्हन बने पेड़ का भी सोने-चांदी के जेवरातों से ऋंगार किया जाता है। और तो और, समारोह में सैकड़ों लोग शिरकत करते हैं, जिन्हें बाकायदा शादी का कार्ड देकर आमंत्रित किया जाता है।
अजब है पर सच है। मठ गांव निवासी पीताम्बर दत्त तिवारी का परिवार पिछली कई पीढिय़ों से वृक्षों के विवाह की परम्परा का निर्वहन करता चला हा रहा है। इस परिवार का मानना है कि वृक्षों के विवाह का सकारात्मक प्रभाव न सिर्फ बुरे ग्रह-नक्षत्रों पर पड़ता है, बल्कि ऐसा करने से पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी बना जा सकता है। वृक्षों के विवाह का बाकायदा मुहूर्त निकाला जाता है। उसके बाद तिवारी परिवार अपने नाते-रिश्तेदारों को प्रिंटेड कार्ड भेजकर शादी समारोह के लिए आमंत्रित करता है। फिर, अपने बेटे अथवा बेटी की शादी की तर्ज पर पूरा परिवार इस विवाह की तैयारियों में जुट जाता है। वर और दुल्हन के लिए शादी के कपड़े व जेवरात की खरीद की जाती है। दरअसल, तिवारी परिवार की हर पीढ़ी गांव में ही 'पीपलÓ के वृक्ष का रोपण करती है। करीब पांच-छह वर्ष बाद जब यह व़ृक्ष बड़ा हो जाता है तो उसका विवाह 'तुलसीÓ अथवा 'बड़Ó के वृक्ष के साथ किया जाना अनिवार्य माना जाता है। ऐसी परंपरा एक पीढ़ी एक बार निभाती है। विवाह के दिन एक ओर पीपल के पेड़ को सेहरा और शेरवानी पहनाकर दुल्हे तो दूसरी ओर तुलसी अथवा बड़ के वृक्ष (छोटी पौध) को जेवरात व चुनरी से घर में दुल्हन की तरह सजाया जाता है। उसके बाद बारातियों के साथ दुल्हन वृक्ष की डोली पीपल के पेड़ के पास लाई जाती है और फिर विवाह संस्कार शुरू हो जाते हैं। प्रतीकस्वरूप न सिर्फ सात फेरे होते हैं, बल्कि उसके बाद दुल्हन पौध को पीपल के वृक्ष के समीप रोपित कर दिया जाता है। इस तरह मंत्रोच्चारण के साथ विवाह संस्कार पूर्ण हो जाता है और फिर आमंत्रित लोगों को सामूहिक भोज करवाया जाता है।
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